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Sunday, March 19, 2023

'वृक्ष सब छोटे-बड़े नव पल्लवों को पा गये'(चर्चा अंक 4648)

सादर अभिवादन। 
रविवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।


आदरणीय रविंद्र जी सर शायद कहीं व्यस्त हैं चलिए हम पढ़ते हैं कुछ रचनाएँ-

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गीतिका छन्द "मधुमास सबको भा रहा"

खिल उठे हैं बाग-वन मधुमास सबको भा रहा।

होलिका के बाद में नव वर्ष चलकर आ रहा।।

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वृक्ष सब छोटे-बड़े नव पल्लवों को पा गये।

आमजामुन-नीम भी मदमस्त हो बौरा गये।।

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अग्निशिखा : : अंध द र्शकों के मध्य - - 

पैतृक सीढ़ी के बग़ैर, छत पे चढ़ना आसान नहीं होता,
हर शख़्स के माथे पे, कुलीनता का निशान नहीं होता,
उस आदमी को चलना है ख़ुद के दम पे बहुत दूर तक,
हर किसी के नंगे पांव तले मख़मली ढलान नहीं होता,
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बह चला, वक्त का ढ़लान...
वो इक नदी,
बहा ले चली, कितनी ही, सदी,
बह चले, वो किनारे,
संवारता किसे!
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मुस्कान ऐसी की मन में कटुता ना रहे
और आँसू ऐसे की आँखों से निश्छलता बहे
सुख इतना कि मन में बस भक्ति जगे
और दुःख इतना कि जीवन श्राप ना लगे।
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हम साथ साथ रहे
मैंने तुम्हें जाना 
तुम्हारी फितरत को पहचाना 
पर तुम ना समझे मुझे||
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कुछ मुश्किल है,
आँख खुलती नहीं,
ख़्वाब मिलते नहीं I
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कासे कहूँ?: बैंक में एक दिन अनायास 

कल एक प्रायवेट बैंक में जाना पड़ा। पड़ा इसलिये क्योंकि मैं ज्यादातर बैंक जाना बिल भरना सब्जी खरीदने जैसे काम करना पसंद नहीं करती लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मुझे ये काम नहीं आते। आते भी हैं और जरूरत होने पर करती भी हूँ। अब चूँकि पतिदेव का प्रमोशन हो गया है और उनका वर्किंग डे में इंदौर आना कम ही होता है इसलिये काफी समय से पेंडिंग यह काम मैंने ही करने का सोचा।
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आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

Thursday, March 16, 2023

"पसरी धवल उजास" (चर्चा अंक 4647)

सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है 

(शीर्षक और भूमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)

हैं शीतलता-उष्णताजीवन के आधार।

जब तक सूरज-चन्द्रमातब तक ही संसार।।

आईये, आज की चर्चा का शुभारम्भ करते हैं  

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 दोहे "पसरी धवल उजास" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

चन्दा में होती नहींसूरज जैसी धूप।

शीतलता को बाँटताउसका प्यारा रूप।।

-३-

चन्दा चमका गगन मेंपसरी धवल उजास।

कुदरत के उपहार काकरना मत परिहास।।

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“मैत्री”

सूरज की सोहबत में

लहरों के साथ दिन भर

गरजता उफनता रहा 

समुद्र ..

साँझ तक थका-मांदा 

जलते अंगार सा वह जब

जाने को हुआ अपने घर

 तो..

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रहेगा हो के जो किसी का नाम होना था ...

न चाहते हुए भी इतना काम होना था.
हवा में एक बुलबुला तमाम होना था.


जो बन गया है खुद को भूल के फ़क़त राधे,
उसे तो यूँ भी एक रोज़ श्याम होना था.

वो खुद को आब ही समझ रहा था पर उसको,
किसी हसीन की नज़र का जाम होना था.

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बेटियाँ खपती जाती हैं दो दो घरों की फिकर में ।

कावेरी ने जब सुना कि बेटी इस बार होली पे आ रही है तो उसकी खुशियों की सीमा ही न थी । बड़ी उत्सुकता से लग गयी उसकी पसन्द के पकवान बनाने में ।  अड़ोस-पड़ोस की सखियों को बुलाकर उनके साथ मिलकऱ, ढ़ेर सारी गुजिया शक्करपारे और मठरियाँ बनाई । शुद्ध देशी घी में उन्हें तलते हुए वह बेटी कान्ति की बचपन के किस्से सुनाती जा रही थी सबको । पिछले एक साल से कान्ति मायके ना आ सकी तो माँ का मन तड़प रहा था बेटी से मिलने के लिए । 
-----------------------------तू आराध्य तू है ईश तू

भगवान तू  ही  है ईश तू।
जगन्नाथ तुम जगदीश तू।
महामना महान महीष तू।
देते सभी को आशीष  तू
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रतजगा पाखी 

कोहरे में ढकी रहती है सदा जीवन की परिभाषा, 
कभी रहस्यमय चक्र सी, कभी महज सरल रेखा, 
सफ़र में आते हैं, असंख्य यति चिन्हों के स्टेशन, 
पल भर का मेल बंधन अंतिम गंत्वय है अनदेखा,
--------------------हम ही तो बादल बन बरसे

तुझमें मुझमें कुछ भेद नहीं 

मैं तुझ से ही तो आया है, 

अब मस्त हुआ मन यह डोले 

सिमटी यह सारी माया है !

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सौंदर्य एक बाग़ का

महका बाग़ 
 छोटे छोटे पुष्पों से 
कई रंगों के
पुष्प खिले हैं 
आई रौनक वहां 

चहके पक्षी 
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बहुत-बहुत बधाई एवं अनंत शुभकामनायें दी

आपका सफर यूँही जारी रहें,नमन आपको

छलका मधु घट - विमोचन की विज्ञप्ति

साथियों आपके साथ यह शुभ समाचार शेयर करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है कि १२ मार्च, दिन रविवार को मेरे सद्य प्रकाशित हाइकु-संग्रह, 'छलका मधु घट' का विमोचन समारोह यूथ हॉस्टल संजय प्लेस आगरा में यहाँ के वरिष्ठ साहित्यकारों के कर कमलों के द्वारा विधिवत संपन्न हुआ ! प्रस्तुत है कार्क्रम की छोटी सी प्रेस विज्ञप्ति आदरणीय कुमार ललित जी द्वारा
--------------------आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें आपका दिन मंगलमय हो कामिनी सिन्हा

Sunday, March 12, 2023

"शब्द बहुत अनमोल" (चर्चा-अंक 4646)

सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है 

(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)

"शब्द" बहुत अनमोल होते हैं। 

ये घाव भी देते हैं और मरहम भी लगते हैं। 

कुछ शब्द बोलकर ही हम किसी को श्रापित कर देते हैं 

और वरदान या दुआ भी देते हैं 

 इसलिए कहते हैं कि-सोच समझ कर बोले 

स्वस्थ रहें सब जगत मेंदाता दो वरदान।

शीत ग्रीष्म-बरसात मेंदुखी न हो इन्सान।

चलिए दुआओं भरी इन शब्दों के साथ शुरू करते हैं

 आज का ये चर्चा अंक 

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एक एक दोहा अनमोल जिनका मनन करना ही चाहिए 

 सोलह दोहे "शब्द बहुत अनमोल" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

हरे-भरे सब पेड़ होंछाया दें घनघोर।

उपवन में हँसते सुमनमन को करें विभोर।

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ज्ञान बाँटने से कभीहोंगे नहीं विपन्न।

विद्या धन का दानकरबन जाओ सम्पन्न।

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जीवन में समंजस्य बैठना बहुत जरूरी है कुछ खुलकर कहना होता है

 कुछ सहना भी होता है.... 

कम शब्दों में बड़ी बात कहना बिभा दी को बखूबी आता है।  

ज्वार/भाटा


"जानती हूँ, मुझे अनुरागी चाहिए था। लेकिन अनुराग लिव इन में रहा जाए तभी साबित हो यह नए शास्त्र के हिसाब से भी सही नहीं है।"

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एक पुकार बुलाती है हमेशा मगर....हम कानों पर हाथ रखे होते हैं 

लाखों में कोई एक आत्मा ही इस पुकार को सुन पाती है... 

एक पुकार बुलाती है जो

कोई कथा अनकही न रहे  

व्यथा कोई अनसुनी न रहे  , 

जिसने कहना-सुनना चाहा 

वाणी उसकी मुखर हो रहे   !

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भ्र्ष्टाचार कुकुरमुत्ते की तरह फैल चूका है

अगर इसे खत्म करना है तो शुरुआत खुद से ही करनी होगी....

भ्रष्टाचारअभी अचानक नहीं है निकला,              
मानव हृदय को जिसने कुचला,                
विविध रूपधर भर धरती में
अवलोक रहा है बारंबार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
ज्ञान नहीं है,तर्क नहीं है
जन है जग है मोह कई है
----------------------------चलिए मिलते हैं आत्ममुग्धा जी के माध्यम से  एक अद्भुत व्यक्तित्व से सत-सत नमन है उन्हें 

कला और कलाकारआज मैं मिली पदमश्री डॉ. यशोधर मठपाल से , उनके लोक संस्कृति संग्रहालय में । मठपालजी की उम्र  85 वर्ष  है, लेकिन एनर्जी इतनी कि वो संग्रहालय दिखाने हमारे साथ चल लिये अपनी छड़ी लेकर । हर चीज के बारे में वो बड़े उत्साह से बता रहे थे और बहुत ही अपनेपन से अपनी सहेजी हुई धरोहर दिखा रहे थे। फाइन आर्ट गैलेरी में मैं उनकी बनायी बड़ी बड़ी पेंटिंग देखकर अचंभित हो गयी तो उन्होने हँसते हुए कहा कि "मैं लगभग 40000 पेंटिंगस् बना चुका हूँ....------------कला और कलाकार की बाते चल रही हो और इस जिंदादिल शख्सियत का जिक्र ना हो जो खुद तो मुस्कुराता ही रहता था और हमें भी ठहाके लगाने पर मजबूर करता था सतीश जी का असमय जाना बड़ा अफसोसजनक रहा बिनम्र श्रद्धांजलि उन्हें जाने भी दो यारों - Satish Koushik RIP 9 March 2023

और फिर हमारे पास भी तो कुल चार ही दिन है जीवन में, काम करते रहो अपना और ऐसा कुछ कर चलो कि कोई तनिक ठहरकर ओम शांति लिख दें, समय हो तो कंधा देने आ जाए, समय हो तो दो घड़ी बुदबुदा दें, दो घड़ी सम्हल जाये अपने हालात में, दो घड़ी विचार लें, दो घड़ी मुस्काते हुए देख लें घर परिवार को कि सब ठीक है ना, अपने बाद की जुगत से सब ठीक चलता रहेगा ना ...क्योंकि वो कहते है ना - "उड़ जायेगा हंस अकेला"
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महिलाओं के अधिकार के बारे में जगरुक करता 
अनीता सुधीर जी का एक लेख 

महिलाओं के अधिकार

महिलाओं के अधिकार से तात्पर्य ऐसी स्वतंत्रता से है जो व्यक्तिगत बेहतरी के लिये तथा सम्पूर्ण समुदाय की भलाई के लिये आवश्यक है।
प्रत्येक महिला या बालिका का समाज में जन्मसिद्ध अधिकार है।  न्याय के मूलभूत सिद्धांतों के तहत वमानवीय दृष्टिकोण से ये नितांत आवश्यक है कि महिलाओं को पूर्ण संरक्षण प्रदान करे व उन्हें स्वयं के निर्णय लेते हुए जीवन जीने का अवसर प्राप्त हो।
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ज्योति जी बता रही है कुछ किचन टिप्स 

कटा हुआ तरबूज फ्रिज में क्यों नहीं रखना चाहिए?

गर्मियों के मौसम में ठंडी चीजें ज्यादा अच्छी लगती है। इसलिए अक्सर लोग फलों को ठंडा करके खाते है। यदि आप भी तरबूज काटकर फ्रिज में रखकर ठंडा करके खाते है तो सावधान हो जाइए। फ्रिज में ठंडा किया हुआ तरबूज आपको नुकसान पहुंचा सकता है! 
तरबूज में 92 प्रतिशत पानी होता है, जो गर्मी में बहुत फायदेमंद होता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन और फाइबर आदि कई पौष्टिक तत्व पाए जाते है।
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कहते हैं क्षमादान सबसे बड़ा दान है 
दूसरों को क्षमा करना खुद के शांति के लिए भी जरूरी है  


दूसरों को क्षमा करें भले ही किसी ने माफ़ी ना भी मांगी हो... 
उनका व्यवहार उनकी जागरूकता, 
संस्करण के स्तर पर निर्भर करता है... उन्हे माफ कर दो.
--------------------जब शांति की बात चल ही रही है तो आईये जानते हैं कि-"शांति" शब्द यूँ ही नहीं बोलते काश हमारी पिछली पीढ़ी हर बात को हमें एक कर्मकांड बनाकर नहीं सौपती बल्कि उसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी समझाती तो आज हम अपने ही सनातन धर्म से यूँ अनभिज्ञ नहीं रहते एक बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक लेख,जिसको साझा करने के लिए गगन जी को तहे दिल से शुक्रिया "शांति" का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है :

आज मन में पता नहीं क्यूँ एक के बाद एक प्रश्न अपना सर उठा रहे थे ! ऐसे ही एक सवाल के बारे में मैंने पंडितजी से फिर पूछ लिया कि पूजा समाप्ति पर हम "शांतिका उच्चारण तीन बार क्यों करते हैं ?
रामजी ने बताया कि शांति एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह सब जगह सदा विद्यमान रहती है। जब तक इसे हमारे या हमारे क्रिया-कलापों द्वारा भंग ना किया जाए। इसका यह भी अर्थ है कि हमारी गति-विधियों से ही शांति का क्षय होता है पर जैसे ही यह सब खत्म होता हैशांति पुनबहाल हो जाती है। 

आज का सफर बस यहीं तक 
फिर मिलती हूँ गुरुवार को 
तब तक आज्ञा दीजिये 
आपका दिन मंगलमय हो 
कामिनी सिन्हा