सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भुमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)
गीत "गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
क्या करेगा तम वहाँ, होंगे अगर नन्हें दिये,
..सिर्फ बारह बोतल पानी लेकर गए थे। तीन दिन तक खाना नहीं खाया। बिस्कुट खाकर गुजारा किया... मेरे 'आर्य'पुत्र!, मेरे लाल!....हे लोक पाल!
उफ्फ! इतनी यातना तो मेरे बाल (गंगाधर तिलक) ने भी मांडले जेल में नहीं सही..!!!!!
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"तुम क्या जानों, रचना की आत्मा कहाँ बसती है..!"
"थोथा चना...! तुम जैसे सम्पादक-प्रकाशक की नज़रों में पाठक-समीक्षक तो गाजर मूली होते हैं!"
"क्या मैंने लेखक गाँव है, जिसको गोद लिया है?"
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‘इंटरनेट का भविष्य’ बताए जा रहे Facebook का ‘मेटावर्स’ आखिर है क्या?
*******फटे लिबास में तुम्हारी हंसी
इस बाज़ार से
कुछ
बचपन बचा पाता...।
काश
मुस्कान का भी
कोई
कारोबार खोज पाता।
काश
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पिया तो नैनन आज बसाऊँ
ऐसी रुत ने अगन लगाई
प्रीत की धुन में है बौराई
जल स्वाहा हो जाऊँ
पिया तोहे नैनन आज बसाऊँ
नैना छलके
अश्रु बहने लगे द्रुत गति से
मन को लगी ठेस
उसके वार से|
कभी न सोचा था
किसी से प्यार किया
तब क्या होगा |
जब भी स्वीकृति चाही
मन की चाहत गहराई
इन्तजार में
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इंसान हो,तो साबित करो,
कहने से क्या होता है?
दूसरों के दुःख से
दुखी होकर दिखाओ,
दूसरों के आँसुओं से
पिघलकर दिखाओ.
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हमर अंगना में शोभे,श्याम तुलसी।
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आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे
आप का दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा