मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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कविताओं में लिखा,
कविताओं में पढ़ा,
कविताओं में सुना,
मैंने तुम्हें कविताओं में देखा,
कविताओं में छुआ.
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भाई हो तो लक्ष्मण जैसा,
भ्रात हेतु सुख त्याग दिये।
हुआ था वनवास राम का,
लक्ष्मण ने सुख त्याग दिये।।
अशर्फीलाल मिश्र
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यादगार यात्रा, डलहौजी-खजियार की
RSCB के मई के उत्तरार्द्ध के अमृतसर-चिंतपूर्णी यात्रा का अमृतसर के बाद दूसरा पड़ाव था, हिमाचल का खूबसूरत, छोटा सा पहाड़ी शहर डलहौजी ! सफर के दूसरे दिन होटल वगैरह की कार्यवाही निपटा, जालियांवाला बाग में श्रद्धांजलि अर्पित करने और दुर्गयाणा मंदिर के दर्शनों के पश्चात हमारी स्वस्थ-प्रसन्न टोली ने यहां से तक़रीबन 198 किमी दूर स्थित डलहौजी का रूख किया ! सड़क मार्ग से डलहौज़ी दिल्ली से 555 किमी तथा चंबा से 45 किमी है ! इसका निकटतम रेलवे स्टेहन पठानकोट यहां से 85 किमी की दूरी पर है !
दुर्गियाना मंदिर |
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शहरों में रहते हुए बहुत कुछ छूट जाता है, जैसे प्रकृति, खेत, फलों के बाग। सो शहरों के पास के किसानों ने अपनी आय का एक नया साधन ढूँढ लिया है। किसी ने फार्म हाउस बनाकर उसे किराए पर देना शुरू किया है, किसी ने आम के मौसम में आम पार्टी रखना शुरु किया है।
पहले से पैसे देकर आप आम पार्टी में जा सकते हैं। आम के बाग में आपका स्वागत होता है। वहाँ आप घूम फिर सकते हैं। चाय, जलपान, खाना पीना खरीदकर कर सकते हैं। आम तोडकर उन्हें तुलवाकर खरीद सकते हैं। फलों के जैम, मुरब्बे, अचार खरीद सकते हैं। कुछ फार्म में आप जानवरों को खिला पिला भी सकते हैं।
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क्या उत्तर देंगे? अपने समाज में अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करने का और उसे अभिव्यक्त करने वाले सांस्कृतिक चिह्नों को धारण करने का कल्चर है क्या आप लोगों में ? आपकी विवाहित महिलाओं ने माथे पर पल्लू तो छोड़िये, साड़ी पहनना तक छोड़ दिया...किसने रोका है उन्हें? तिलक बिंदी तो आपकी पहचान हुआ करती थी न...कोरा मस्तक और सुने कपाल को तो आप अशुभ, अमंगल का और शोकाकुल होने का चिह्न मानते थे न...आपने घर से निकलने से पहले तिलक लगाना तो छोड़ा ही, आपकी महिलाओं ने भी आधुनिकता और फैशन के चक्कर में और फारवर्ड दिखने की होड़ में माथे पर बिंदी लगाना क्यों छोड़ दिया? लालित्यम्
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पाँच-सात पसेरी सट से पसर गया
दो-तीन पन्नी की थैली में ससर गया
सबरे के आठ बजे सब्जी लेने इतनी जल्दी पहुँच गये कि सब्जी विक्रेता की सपने से विमुखता ही नहीं हुई थी। सड़क पर झाडू लगाने वाला साँकल बजा रहा था। दूकान से सटकर खड़ी गाड़ी को पीट रहा था। सब्जी लेने आई अन्य महिला शोर कर रही थी। कुम्भकरण से बाज़ी लगाये युवा विक्रेता के जागने की प्रतीक्षा करुँ या लौट जाऊँ मेरे लिए निर्णयात्मक क्षण उलझन वाला था। घर वापसी पर 'क्या पकाऊँ?' वाला सौ अँक वाला प्रश्न के लिए सीमांत पर लड़े जाने वाले जंग से कम कठिन जंग नहीं होने वाला था।
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स्वास्थ्य के लिए गुणकारी है जंगल जलेबी
गर्मियों में सुबह-सुबह घूमने-फिरने से दिन भर शरीर में ताजगी बनी रहती हैं। इस दौरान घूमते-फिरते मुफ्त में यदि कुछ प्रोटीन, वसा, कार्बोहैड्रेट, केल्शियम, फास्फोरस, लौह, थायामिन, रिबोफ्लेविन आदि तत्वों से भरपूर खाने को मिले तो क्या कोई इसे यूँ ही छोड़ देगा? नहीं न? लेकिन आप गलत सोच रहे हैं जानकारी के अभाव में हम से अधिकाँश लोग कई सुलभ चीजों को यूँ ही बड़े हल्के में लेते हुए छोड़ या नज़रअंदाज कर देते हैं या फिर इसके लिए थोड़ी मेहनत मशकत देखकर आगे बढ़ लेते हैं। बचपन में माँ लग्गी लेकर घर के आस-पास लगे जंगल जलेबी के पेड़ों से खूब फल तोड़कर खिलाती थी, तो खा-खा उकता जाते थे। तब पता न था कि ये स्वास्थ्य के लिए कितने गुणकारी हैं, वह तो अब जब बड़े से बूढ़े हो रहे हैं तब इसकी उपयोगिता समझ आ रही है। Kavita Rawat Blog, Kahani, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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कविता खाने को नहीं देती
जीवन व्यापन के लिए भी
होता आवश्यक कुछ काम करना
दौनों की आवश्यकता होती है बराबरी से |
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दिवसांत के अंतिम सीढ़ी पर खड़ा हूँ, जिस के
नीचे है गहन तिमिर जलराशि, कुछ मोह
के पराग कण देह से हैं चिपके हुए,
कुछ प्रणय गंध बह रही हैं
स्नायु कोशिकाओं से
हो कर वक्षस्थल
तक, सामने
है विस्तृत
निशिअग्निशिखा
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धरती गगन के मौन गूंज को
चाहिए केवल प्रखर विचार
ओज तेज भर पाये उर में
चाहिए ऐसे प्रवीर अवतार.
एक विकृत-विकार था रावण
जिसने मर्यादा को ध्वस्त किया था
उत्पात मचाकर अधर्म बढ़ाकर
ऋषि मुनि को नष्ट किया था.
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वृक्ष हों भले खड़े- हरिवंशराय बच्चन
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
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गीत "किसमें कितना खोट भरा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
“डॉ. राजविन्दर कौर द्वारा ग़ज़लियात-ए-रूप”
की भूमिका”
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आज के लिए बस इतना ही...!
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बहुत ही खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति. हार्दिक आभार.
जवाब देंहटाएंअब समय आ गया है कि चर्चा मंच को बन्द कर दिया जाय। लोग अब ब्लॉगिंग से फेसबुक की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय अंक।
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