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शुक्रवार, जुलाई 31, 2020

"जन-जन का अनुबन्ध" (चर्चा अंक-3779)

सादर अभिवादन ।
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विद्वजनों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन । आज की चर्चा का आगाज़ कुंवर नारायण जी की लेखनी से निसृत 'कविता के बहाने' कवितांश से -

कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्‍या जाने!
बाहर भीतर, इस घर, उस घर
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्‍या जाने?
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आज की चयनित रचनाएँ. ...
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लोकतन्त्र से है बँधा, जन-जन का अनुबन्ध।
राजतन्त्र की क्यों यहाँ, फैलाते दुर्गन्ध।।
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देशभक्ति के रंग में, बनकर रहो शरीफ।
पाक-चीन की छोड़ दो, करना अब तारीफ।।
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खाते हो जिस देश का, उससे करो न घात।
नहीं करो विष वमन को, करो नेह की बात।।
***
जटिलताएँ जीवन कीं  
सापेक्ष आलोकित हैं 
अस्तित्त्व-वेदना का 
  पराभवपरायण होना 
अनंत और विस्तृत है
***
कैसे तय कर दी तुमने 
उसकी नियति अकेले-अकेले?
कैसे भूल गए तुम 
कि वह मेरी भी संतान है?
***
कामना शुभता की
ह्रदय में संजोये
अभिनन्दन है
आदिशक्ति का,
कर कमल 
पग धरो दिव्यता !!
***
जब हो आचरण ऐसा कि
 पद चिन्हों  पर चल कर जिसके
गर्व होने लगे  श्रद्धा में सर झुके
 सब कहें किसके अनुयाई हो |
 बात यही  आकर्षित करती  सब को
***
अंंधेरे का खौफ बढ़ गया इतना
रात को दिन बना रहा आदमी।

दिये का चलन खत्म हो चला समझो
बल्ब को सूरज बना रहा आदमी।
***
ख़ेमे में बँटा इंसान 
मोम-सा पिंघलने लगा 
 मुँह पर बँधा है मास्क तभी
कुछ लोग 
आँखों पर सफ़ेद पट्टी बाँधने लगे
और कहने लगे 
देखना हम इतिहास रचेंगे
***
 "बस दो सौ- तीन सौ रुपये का जुगाड़ और हो जाए तो हम लोग अपने गाँव के लिए निकल चलेंगे। पता नहीं, हालत कब तक सुधरेगी और कब काम-धंधे शुरू होंगे! कब तक लोगों से दान-दक्षिणा लेते रहेंगे! मेहनत से जो मिलता है, मुझे तो उसी में सुख मिलता है संतोषी!" -गणेश ने अपनी पत्नी से कहा।
***
न शिकवा न मुस्कान
न गीत न संवाद,
सालों से उसके शुष्क अधरों के
रिक्त सम्पुट
यूँ ही मौन पड़े हैं !
***
काले ,घुंघराले बादलों 
के बीच सूर्योदय और सूर्यास्त !
उनकी रिमझिम बरसती
जल बूंदों की सरसराहट से भरा 
 एक भीगा हुआ दिन !
***
मेरी खुशकिस्मती है कि अरविन्द कुमार ने मुझे भी इस चाय के लायक समझा और आज शाम को अपने साथ चाय पर आमंत्रित किया है उनके साथ मुख्य विषय शारीरिक फिटनेस होगा साथ में एक दो गीत भी उनके अनुरोध पर प्रस्तुत किये जाएंगे !
***
भीषण ताप सहे वसुधा ने
पतझड़ जबसे आया था
खोकर अपना रूप सलोना
मन उसका मुरझाया था।
फिर बसंत आया चुपके से
बिगड़ी थी जो बात बनी
***
माथे पर तिलक-चंदन लगाये बिल्कुल प्रथम पूज्य गणेश देवता जैसे लंबोदर विश्वनाथ साव दुकान के दूसरे छोर पर गद्दी संभाले ग्राहकों से पैसा बंटोरने में व्यस्त दिखते। वे अपने इस कार्य में ऐसे निपुण थे कि दुकानदारी के वक़्त सगे-संबधी भी सामने आ खड़े हों तो उसे न पहचान पाए, किन्तु साव की काक दृष्टि इतनी पैनी थी कि कोई भी ग्राहक बिना पैसा दिये भीड़ का लाभ उठा यहाँ से खिसक नहीं सकता था।
***
उदियांचल से सूर्य झांकता,
पनिहारिन सह चिड़िया चहकी।
कुहकी कोयल डाल-डाल पर,
ताल-ताल पर कुमुदिनी महकी।
निरभ्र आसमां खिला-खिला सा,
ज्यों स्वागत करता हो रवि का
***
सरहदों से तुम्हारा आना
पलाश के फूल की तरह 
वहीँ तो खिलते हैं 
उमीदों की तपती दोपहर में 
तुम आओगे तो न…
***
आपका दिन मंगलमय हो..
फिर मिलेंगे…
🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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बुधवार, जुलाई 29, 2020

"कोरोना वार्तालाप" (चर्चा अंक-3777)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
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ऐतिहासिक स्वर्णिम पल 
मन्दिर निर्माँण की प्रथम ईंट रखने के लिए दो जुलाई को सुबह 8 से 10 बजे तक प्रस्तावित था कार्यक्रम, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए 
प्रधानमंत्री मोदी बनने वाले थे आयोजन का हिस्सा। 
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट महासचिव चंपत राय ने कहा- भारत 
चीन सीमा की परिस्थिति गंभीर, यह निर्माणकार्य के लिए ठीक समय नहीं। राम मंदिर का भूमि पूजन 5 अगस्त को होना है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें शामिल होंगे। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की आखिरी बैठक में मंदिर के डिजाइन में कई बदलावों को मंजूरी मिली मसलन, अब मंदिर की ऊंचाई 20 फीट बढ़ाकर 161 फीट होगी। यह जानकारी मंदिर के चीफ आर्किटेक्ट रहे सी सोमपुरा के बेटे निखिल सोमपुरा ने दी है।
समाज के 10 करोड़ परिवार से धन संग्रह किया जाएगा,
इसके बाद ही मंदिर का निर्माण शुरू किया जाएगा।
अगर लॉकडाउन की परिस्थितियां सामान्य रहीं तो
अगले तीन वर्ष में मंदिर निर्माण का काम पूरा हो जाएगा।
अब चलते हैं कुछ नियमित और अद्यतन लिंकों की ओर... 

प्यार और दोस्ती ... 

दोस्ती वो है जो आपके जस्बात को समझे,

दोस्ती वो है जो आपके एहसास को समझे!
मिल तो जाते हैं अपना कहने वाले ज़माने में बहुत,
अपना वो है जो बिना कहे ही आपको अपना समझे !! 

वक़्त की साँकल में अटका इक दुपट्टा रह गया 

आँसुओं से तर-ब-तर मासूम कन्धा रह गया
वक़्त की साँकल में अटका इक दुपट्टा रह गया

मिल गया जो उसकी मायाजो हुआ उसका करम
पा लिया तुझको तो सब अपना पराया रह गया 
स्वप्न मेरे पर दिगम्बर नासवा  

लैंडलाइन में कोरोना वार्तालाप 

तभी टू टू टू टू की आवाज के साथ अचानक फोन कट गया। दोनों कोरोना वायरस बिल-बिलाकर रह गए। किसी तरल पदार्थ के ढाले जाने की आवाज के साथ इधर वाला कोरोना फुर्ती से हीरोइनी के मुँह से वापस नाक में घुस गया, क्योंकि हीरोइनी ने फिर से दारू का गिलास भर लिया था। 
VYANGYALOK पर प्रमोद ताम्बट  

पदचाप तुम्हारी 

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हाईकू  

(अश्रु जल ) 

१- 
आँखों का जल  
समुद्र के पानी सा  
खारा लगे  
 २-  
बिना जल से  
भरे नैनों के झरने  
बहते जाते...  

प्रेम में पड़ी स्त्रियाँ 

प्रेम में पड़ी स्त्रियाँ हो जाती हैं
गोमुख से निकली गंगा
जिसके घाटों पर बुझती है
प्यासों की प्यास
लहरों पर पलते हैं धर्म
स्पर्श मात्र से तर जाती हैं पीढ़ियाँ 

कुण्डली 

सरगर्मी नित बढ़ चली,  बही चुनावी ब्यार;
बोतल के मुंह खुल गये, बढ़ा प्रेम व्यवहार;
बढ़ा प्रेम व्यवहार, प्रेम में रंग जायेगा ;
रसना को रस मिले, कौन अब घर जायेगा;
कह दहिया सुन बात, जेब में आती गर्मी;
तेरे प्रेमी लोग , बढ़ाते तब सरगर्मी । 
चिंतन पर सरोज  

कभी सड़को पे हंगामा....... 

कभी सड़कों पे हंगामा कहीं नफरत की आवाजे,
तुझी से पूछती भगवन इंसानी संस्कृति क्या है!

किसी के टूटते ख्वाब कोई सिसकीयों को रोकता
जो आदी है उजालों के उन्हें मालूम नही तीरगी क्या है! 
सागर लहरें पर उर्मिला सिंह 

अनमोल गहना 

करूँ विनती सुनो भैया,हमें भी याद कर लेना।  
बहन राखी लिए बैठी,कहाँ अब चैन दिन रैना।  
लगे सावन बड़ा फीका,न कोई संग दिखता है।  
चले आना जरा मिलने,नहीं हमको भुला देना। 
सैलाब शब्दों का पर Anuradha chauhan  
आज के लिए बस इतना ही...!