मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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ग़ज़ल "आदमी मजबूर है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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राह है काँटों भरी, मंजिल बहुत ही दूर है
देख कुदरत का करिश्मा, आदमी मजबूर है
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आशिकी में के खेल में, ऐसी दगाबाजी मिली
प्यार की दीवानगी में, लुट गया सब नूर है
उच्चारण
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प्रभु तेरी महिमा अपरंपार!!
एक मित्र ने आज शाम
घर पर भोजन का निमंत्रण दिया था,
अतः निर्धारित समय पर
सपत्नीक उनके घर पहुँचे।
राजनीतिक मित्रता है अतः पारिवारिक मेल जोल
अब तक न था
और न कभी उनके पतिदेव से मुलाकात थी।
वो जरूर मेरी पत्नी से मिली हुई थी
क्यूंकि मेरी पत्नी भी राजनीति में
सक्रिय हिस्सेदारी रखती हैं।
उड़न तश्तरी .... समीर लाल समीर
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एक पुकार मिलन की जागे
तू ही मार्ग, मुसाफिर भी तू
तू ही पथ के कंटक बनता,
तू ही लक्ष्य यात्रा का है
फिर क्यों खुद का रोके रस्ता !
मन पाए विश्राम जहाँ
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स्वप्न बिकते है
स्वप्न बिकते है बोलो खरीदोगे,
कोई रोजगार का स्वप्न बेचता,
नेता महगाई कम करने का स्वप्न बेचता,
नेता गरीबी हटाने का
साधू बेचते है भगवान को पाने का
aashaye
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वक्रोक्ति अलंकार
‘वक्रोक्ति’ का अर्थ है ‘वक्र उक्ति’ अर्थात ‘टेढ़ी उक्ति’। जब काव्य में वक्ता के कथन का अभिप्रेत अर्थ ग्रहण न कर श्रोता अन्य ही कल्पित या चमत्कारपूर्ण अर्थ लगाये और उसका उत्तर दे तब वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता हैं।दूसरे शब्दों में जहाँ किसी के कथन का कोई दूसरा पुरुष श्लेष या काकु (उच्चारण के ढंग) से दूसरा अर्थ करे, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
वक्रोक्ति में चार बातों का होना आवश्यक है-
(क) वक्ता की एक उक्ति।
(ख) उक्ति का अभिप्रेत अर्थ होना चाहिए।
(ग) श्रोता उसका कोई दूसरा अर्थ लगाये।
(घ) श्रोता अपने लगाये अर्थ को प्रकट करे।
स्व रचना जीएसटी शाण्डिल्य
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रमाकान्त दायमा की पाँच कविताएँ
पहली दफा 'अभिप्राय' पर आपका स्वागत करते हुए
आपकी पाँच कविताएँ
हम अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं-
मुंबई
ये मुंबई शहर
तनहाइयों का शहर है
यहाँ रोज़ ट्रेनों से, बसों से
उतरते हैं सपने,
और उतरते ही
दौड़ पड़ते हैं वे
अभिप्राय
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रंगीन पंख
वक़्त उड़ जाता है
हथेलियों में रह जाते हैं टिमटिमाते दो जोड़े अग्निशिखा --
घर आना अच्छा लगता है कहीं दूर चला जाऊँ तो घर आना अच्छा लगता है घर से दूर चला जाऊँ तो घर आना अच्छा लगता है
उधेड़-बुन राहुल उपाध्याय
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भारतीय संविधान के मौलिक दोषों का निवारण आवश्यक
हर्षवर्धन त्रिपाठी--
संध्या टॉकीज - रवि बुले | बॉलीवुड स्टोरी बॉक्स
भास्कर घोष एक क्राइम रिपोर्टर था जिसे जब खबर मिली कि सूर्यदर्शन इमारत की लिफ्ट में एक लाश मिली है तो वह उस खबर की टोह लेने चला गया। वहाँ जाकर उसे ध्यान आया कि यह सूर्यदर्शन बिल्डिंग की लिफ्ट में मिलने वाली यह तीसरी लाश थी। गुनाहगार का तो पुलिस कुछ पता नहीं लगा पायी लेकिन भास्कर को एक नई कहानी का आइडिया जरूर मिल गया।
एक बुक जर्नल
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श्वासों का सट्टा
हर दिवस की आस उजड़ी
दर्द बहता फूट थाली
अब बगीचा ठूँठ होगा
रुष्ठ है जब दक्ष माली।
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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कर दिया है तुम्हें मुक्त
मैं तुम्हे मुक्त कर रही हूँ
इस रिश्ते की डोर से
कही बार मैंने महसूस किया है
तुम्हारी पीठ पर
मेरा अदृ्श्य बोझ
कावेरी
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पिंजरा
झरोख़ा निवेदिता श्रीवास्तव --
मैराथन एक स्वप्न ब्लॉगर सतीश सक्सेना जी की कई पोस्ट पढ़ने में आई दौड़ने के बारे में फिर प्रेरणा मिली कि अब भी देर नहीं हुई है।
इस साल की शुरुआत में सुबह की सैर के समय एक ग्रुप से मुलाकात हुई वो एक कोच रमेश सर के निर्देशन में व्यायाम कर रहे थे,उन्हें ज्वॉइन किया, पता चला वे इंदौर मैराथन AIM की तरफ से अपाइंट किए गए हैं,लोग अच्छे थे,ग्रुप अच्छा था और सबसे बड़ी बात कि नियमित है।
मेरे मन की
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इंदिरा गांधी की सत्ता चली गई, एक दिन पीएम मोदी भी चले जाएंगे- मलिक
नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने के अलावा, सत्यपाल मलिक ने अग्निपथ योजना पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि तीन साल की सर्विस में सैनिक के अंदर बलिदान की भावना नहीं आ सकती. मेघालय के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह समझना चाहिए कि सत्ता स्थायी नहीं है और वह आती-जाती रहती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, "मोदी जी को समझना चाहिए कि सत्ता की पावर तो आती और जाती रहती है. इंदिरा गांधी की सत्ता भी चली गई, जबकि लोग कहते थे कि उन्हें कोई नहीं हटा सकता. एक दिन आप भी चले जाएंगे, लो क सं घ र्ष !
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आज के लिए बस इतना ही...!
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