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मंगलवार, अक्तूबर 31, 2017

तलाशे घूर में रोटी, गरीबी व्यस्त रोजी में; चर्चामंच 2774


तलाशे घूर में रोटी, गरीबी व्यस्त रोजी में।- 

रविकर 

सती - 

Gopesh Jaswal 

किताबों की दुनिया -149 

नीरज गोस्वामी 

दर्द का तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये  

-सतीश सक्सेना 

दुनिया में चंद लोग होते हैं जादूगर... 

गौतम राजऋषि 

क्षमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात , 

का रहीम हरि को घटो, जो भृगु मारी लात। 

Virendra Kumar Sharma 

जामफल के ठेले पर बड़ा व्यापारी 

विष्णु बैरागी 

मुक्तक 

रविकर 

Untitled 

लाल और बवाल (जुगलबन्दी) 

गीत  

"आँखों के बिन जग सूना है"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

बैंक-सुधार में भी तेजी चाहिए 

pramod joshi 

कार्टून :- कोई लौटा दे मेरे गुजरात का गुज 

Kajal Kumar 

सोमवार, अक्तूबर 30, 2017

"दिया और बाती" (चर्चा अंक 2773)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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दीया और बाती 

Akanksha पर Asha Saxena  
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भ्रम रोमांचित करता है 

जब किसी की नई नई तोंद निकलना शुरू होती है तो वो बंदा बड़े दिनों तक डिनायल मोड में रहता है. वह दूसरों के साथ साथ खुद को भी भ्रमित करने की कोशिश में लगा रहता है. कभी टोंकते ही सांस खींच लेगा और कहेगा कहाँ? या कभी कहेगा आज खाना ज्यादा खा लिया तो कभी कमीज टाईट सिल गई जैसे बहाने तब तक बनाता रहता है जब तक कि तोंद छिपाए न छिपे... 
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57th जन्मदिन  

"समरी" 

अर्चना चावजी Archana Chaoji  
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कागज में लिखा चाँद 

कुछ कागज में लिखी स्मृतियाँ 
कुछ में सपने कुछ में सुख कुछ में दुख
 कुछ में लिखा चाँद 
चांद रोटियों की शक्ल में ढल गया ... 
Jyoti Khare 
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गुरु - गुरुदेव - गुरुघंटाल 

ढोंगी बाबाओं के आश्रमों का मकड़जाल इस लेख का मकसद उन सच्चे गुरुओं और उनके द्वारा संचालित आश्रमों का अपमान करना बिलकुल नहीं है जो अपनी निस्वार्थ सेवा से जनता का भला कर रहे हैं ! प्रयत्न यह है कि उन कारणों को समझा जाए जिनकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में लोग अनेक कपटी बाबाओं के जाल में फँसते चले जाते हैं ... 
Sudhinama पर sadhana vaid  
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सदियों से इन्सान यह सुनता आया है /  

साहिर लुधियानवी 

सदियों से इन्सान यह सुनता आया हैदुख की धूप के आगे सुख का साया है
हम को इन सस्ती ख़ुशियों का लोभ न दोहम ने सोच समझ कर ग़म अपनाया है... 

विविधा.....पर kuldeep thakur  
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रनर 

"नवरंग" के वार्षिकांक (2017) में प्रकाशित कहानी ‘रनर’- पूंजीवाद चुनाव तंत्र के उस रूप से साक्षात्कार कराती है जिसमें चुनाव प्रक्रिया एक ढकोसला बनती हुई दिखती है। नील कमल मूलत: कवि है, और ऐसे कवि हैं जिनकी निगाहें हमेशा अपने आस पास पर चौकन्नी बनी रहती हैं। कहानी एवं उनके आलोचनात्‍मक लेखन पर भी यह बात उतनी ही सच है। यह भी प्रत्यक्ष है कि उनकी रचनाओं की प्रमाणिकता एक रचनाकार के मनोगत आग्रहों से नहीं, बल्कि वस्‍तुगत स्थिति के तार्किक विश्ले षण के साथ अवधारणा का रूप अख्तियार करती है... 
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़ 

रविवार, अक्तूबर 29, 2017

"सुनामी मतलब सुंदर नाम वाली" (चर्चा अंक 2772)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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प्रेम इक अनसुलझी गुत्थी है 

शब्दों ने अपने अर्थ खो दिए हैंअब न तुमअपने मन की कह पाती होन मैंतुम्हारी भावनाएं समझ पाता हूंक्योंकि दुनिया के किसी व्याकरण मेंइतना सामर्थ्य नहींकिसुलझा देहमारे नासमझी के द्वंद्व को.... 
वंदे मातरम् पर abhishek shukla  
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मुक्त-ग़ज़ल : 243 -  

राख़ हो जाता है सब कुछ..... 

नज़र से गिरके उठने का किसी का वाक़िआ बतला ॥ 
गड़े मुर्दे के चलने का किसी का वाक़िआ बतला... 
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सुनामी का मतलब 

सुंदर नाम वाली 

सुनामी का मतलब सुंदर नाम वाली एक बार एक पत्रकार ने राहुल से कहा -लोग पूछते हैं आप पचास साल के हो गए शादी कब कर रहें हैं। बोले राहुल -सुनामी आ रही है क्या ? आप सुनामी को कल अच्छे नाम वाली सुंदर लड़की समझ रहे थे आज उसे राहुलजी - जीएसटी बतला रहे हैं... 
Virendra Kumar Sharma  
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प्रजा तंत्र का दोष 

(दोहे) 

प्रजा तंत्र का दोष है, तंत्र रहे कमजोर। 
शाह झांकते है बगल, हावी रहते चोर... 
Jayanti Prasad Sharma  
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रफ़्तार 

धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ रही है गाड़ी, 
छूट गया पीछे स्टेशन, 
ओझल हो गए परिजन, 
जाने-पहचाने मकान, 
गली-कूचे, सड़कें, पेड़,चबूतरे- 
सब कुछ. 
पीछे रह गया मेरा शहर... 
कविताएँ पर Onkar 
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रसकदम- 

लघुकथा 

ऋता शेखर 'मधु' 
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श्रीकृष्ण चरित्र का यथार्थ :  

एक दृष्टि . 

भारतीय जन-मानस में श्रीकृष्ण की छवि ईश्वर का पूर्णावतार होने के साथ परम रसिक नायक एवं प्रेम तथा करुणा के आगार के रूप में विद्यमान है .अपनी रुचि के अनुसार उसे इन दोनों के अलग-अलग अनुपातों में ढाल लिया जाता है.इन्हीं दोनों का गहरा आवरण उनके कठोर चुनौतियों भरे जीवन की वास्तविकताओं को गौण बना देता है .लेकिन गीता के गायक का व्यक्तित्व ,ठोस वास्तविकता से परिपूर्ण रहा है... 
लालित्यम् पर प्रतिभा सक्सेना  
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चिड़िया:  

रहिए जरा सँभलकर 

रहिए जरा सँभलकर  
मंजिल है दूर कितनी,  
इसकी फिकर न करिए 
बस हमसफर राहों के,  
चुनिए जरा सँभलकर... 
काँटे भी ढूँढते हैं,  
नजदीकियों के ... 
आपका ब्लॉग पर Meena Sharma  
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