पूत को खो कर तिलमिलाया आसमां, ख़ुशी के आँसू बहाए , ठण्डी हुई ह्रदय की ज्वाला, आज सुकून से रोया | आँख का पानी, दिल का दर्द इत्मीनान से सोया, सेना का शौर्य , शहीद का कारवा ख़ुशी से मुस्कुराया | अदम्य साहस देख जवानों का, आसमां मिलने आया , सौगात में बरसाई बूंदें, तिलक सूर्य की किरणों से करवाया।
पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों की जाति का विश्लेष्ण कर, ‘कारवां’ पत्रिका ने एक अलग ही दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का प्रयास किया है. लेख पढ़ कर मुझे तो कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि कई वर्षों से आतंकवाद के लिए आतंकवादियों को कम और इस देश की नीतियों को, सामाजिक व्यवस्था को, आर्थिक असमानता को अधिक दोषी ठहराने का प्रयास किया जा रहा है...
१४ फरवरी को पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हुए हमले के बाद, देश में कई लोगों ने अपनी-अपनी आवाज़ उठाई। कुछ लोगों की आवाज़ खूब सुनी गयी, कुछ की नहीं। तब से आजतक लगभग ५० जवानों की जानें चली गयीं, उनके परिवार के लोगों के दुःख का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। उम्मीद है सरकार उनकी मदद के लिए हर संभव कदम उठा रही है। मगर जब घर का बेटा, पिता, या पति जब इस तरह अचानक चला जाता है तो कोई मदद उस घाव को नहीं भर कर पाती। ईश्वर उन जवानों की आत्मा को शांति दे और उन परिवारों ढाँढस और हिम्मत दे। ऐसे में हम जो इस घृणित घटना से आहत हैं...