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बुधवार, जुलाई 31, 2019

"राह में चलते-चलते" (चर्चा अंक- 3413)

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
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वो है अलबेला 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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ट्रिपल तलक आस्था नही,  

अधिकारों की लड़ाई है । 

ट्रिपल तलाक पर रोक लगाने का बिल लोकसभा से तीसरी बार पारित होने के बाद एक बार फिर चर्चा में है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में ही इसे असंवैधानिक करार दे दिया था लेकिन इसे एक कानून का रूप लेने के लिए अभी और कितना इंतज़ार करना होगा यह तो समय ही बताएगा। क्योंकि बीजेपी सरकार भले ही अकेले अपने दम पर इस बिल को लोकसभा में 82 के मुकाबले 303 वोटों से पास कराने में आसानी से सफल हो गई हो लेकिन इस बिल के प्रति विपक्षी दलों के रवैये को देखते हुए इसे राज्यसभा से पास कराना ही उसके लिए असली चुनौती है... 
dr neelam mahendra  
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बाज नहीं क्यों आते 

बाज नहीं क्यों आते अपनी आदत से  
और बदजुबानी करते हो औरत से  
जिसने भेजा है तुझको अब संसद में  
बच के रहना तू जनता की ताकत से... 
मनोरमा पर श्यामल सुमन  
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वो बच्ची 


दद्दू उसे बुलाती रही

गलत उसकी नजरों को भांपती रही
ताड़ती थी निगाहे उसे
तार तार वो होती रही
कातर नजरे गुहार लगाती रही... 
आत्ममुग्धा 
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मंगलवार, जुलाई 30, 2019

"गर्म चाय का प्याला आया" (चर्चा अंक- 3412)

मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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काश के वन 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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ये भी आये, वे भी आये 

ये भी आये, वे भी आये,  
सभी ही उनके, जनाजे मे आये।  
आये करीबी, आये रकीबी,  
रोते थे बिसूरते थे सभी ही।  
उनमें से कुछ थे, मुखौटे लगाये... 
जयन्ती प्रसाद शर्मा 
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पहली बारिश 

उफ़्फ़ ये पहली बारिश...
ये पहली बारिश भी ना बड़ी जिद्दी होती है, हर बार चली आती है, अपने उसी पुराने रूप में। बचपन से आज तक सब कुछ बदल गया, लोग बदल गए, गाँव बदल गए, शहर बदल गए और तो और रिश्तों के रूप भी बदल गए। पर इसे देखो आज तक नही बदली... 
Amit Mishra 'मौन'  
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एक ग़ज़ल :  

साज़िश थी अमीरों की---- 

 साज़िश थी अमीरों की ,फाईल में दबी होगी  
दो-चार मरें होंगे ,’कार ’ उनकी चढ़ी होगी ... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
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साँझ के बादल -  

धर्मवीर भारती 

काव्य-धरा परर वीन्द्र भारद्वाज  
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हाइकु 


शिव सत्य है

हिमालय निवास

गौरा के साथ... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
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मनमर्जियों की बेल लहलहा रही है 

कोरी हथेलियों को देखती हूँ तो देखती ही जाती हूँ. कोरी हथेलियों पर मनमर्जियां उगाने का सुख होता है. मनमर्जियां...कितना दिलकश शब्द है लेकिन इस शब्द की यात्रा बहुत लम्बी है. आसानी से नहीं उगता यह जिन्दगी के बगीचे में. इस शब्द की तासीर सबको भाती है लेकिन इसे उगाने का हुनर कमाना आसान नहीं. और यह आसान न होना मनमर्जियो के माथे पर तमाम इलज़ाम धर देता है.... 
Pratibha Katiyar  
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