फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, जुलाई 31, 2010

“'जिंदगी' और मैं” (चर्चा मंच – 231)

मित्रों!
मैं हफ्तेभर के अवकाश पर था 
इसलिए लगातार एक सप्ताह तक नेट से दूर रहा 
सफर की थकान अभी पूरी तरह से उतर नही पाई है!
कुछ लोगों की पोस्टों को पढ़ा है और 
कुछ की पोस्ट अभी पढ़नी बाकी हैं!
इस स्पष्टीकरण के पश्चात 
आज की चर्चा का शुभारम्भ करता हूँ!
  सबसे पहले पढ़िए एक यक्ष प्रश्न-
 महाप्रलय...
Author: रंजना | Source: संवेदना संसार
अब जानिए कि मरने के बाद आपका क्या होगा?
मृत्यु के बाद का सफ़र ..
Author: राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ | Source: सत्य की खोज @ आत्मग्यान
यह चौपट राजा नही है केवल-
अंधकार का राज है?
Author: ミ★Vivek Mishra★彡 | Source: अनंत अपार असीम आकाश
लेखक : भूतनाथ ” विकिलिक्स ” द्वारा अमेरिकी कार्यवाइयों के भंडाफ़ोड किये जाने और अमेरिकी सरकार द्वारा इसे संघीय व्यवस्था का उल्लंघन बताये जाने पर एक प्रश्न अपने-आप ही उठ खडा...
अगर सरकारें अप्रासंगिक हो गयीं हैं…तो 
Author: जनोक्ति डेस्क | Source: JANOKTI : जनोक्ति :राज-समाज और जन की आवाज:Hindi web portal,Hindi web Magazine,Hindi Website
अब पढ़िए विज्ञान को चुनौती देता हुआ यह आलेख-
Author: veerubhai | Source: ram ram bhai 
हैंड्स -ओनली सी पी आर एनफ टू सेव ए लाइफ ,माउथ-टू -माउथ नोट नीडिद इन मोस्ट कार्डिएक अरेस्ट केसिज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई ३० ,२०१० ,पृष्ठ २३ ) एक नै रिसर्च के मुताबिक़ मौके पे मौजूद (बाई -स्तैंदर्स)लोगों को थोड़ा सा प्रशिक्षण देकर केवल हाथों से थम्पिंद द्वारा अचानक रुक गए दिल को आपातकाल में चालू करना सिखलाकर हज़ारों हजार लोगों की जान बचाई जा सकती है .इसके लिए माउथ -टू -माउथ सांस फूंकना भी ज़रूरी नहीं है । कार्डियो -पल्मोनरी -रिससितेसन क्या है ? इसे कार्डिएक मसाज़ ,कार्डिएक कम्प्र ...
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
Author: ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ | Source: Science Bloggers' Association
वह एक युवा और खूबसूरत लड़की थी। सिर्फ खूबसूरती ही नहीं बल्कि टैलेंट के मामले में भी वह विलक्षण थी। वह शानदार कविताएँ रचती थी और कई भाषाएँ जानती थी। लेकिन अचानक उसकी जिंदगी में एक ऐसा समय आया कि उसकी ज़िंदगी नर्क से भी बदतर हो गयी और वह अपनी मौत की दुआ माँगने लगी।  उस लड़की पर जैसे कष्टों का पहाड़ ही टूट पड़े। उसके हाथ-पैरों में अकड़न पैदा होने लगी और देखते ही देखते वह पक्षाघात का शिकार हो गयी।
कैसे कैसे विज्ञापन - आज फेसबुक पर विचरण करते हुए एक मित्र के फेसबुक एल्बम में एक विज्ञापन पट्ट का चित्र मिला जो यहाँ प्रस्तुत है आप भी इस विज्ञापन पट्ट को देखिये और सोचिये इसकी ...
बॉलीवुड की खबरें-
Author: pushpendra albe |Source:www.bollywoodextraa.blogspot.com

हीरोइनों को लेकर बॉलीवुड में एक सर्वमान्य तथ्य बना हुआ है ः जब तक जवानी रहती है, उन्हें फिल्मों में काम मिलता है. जवानी गई, तो धीरे-धीरे फिल्में भी उनके हाथ से जाने लगती है. आखिर में थक हारकर वे फिल्मों से विदा हो जाती है. बीते एक दशक में जूही चावला, करिश्मा कपूर, रवीना टंडन, तब्बु जैसी हीरोईनों ने अपने कॅरिअर के आखिरी दौर में समझदारी दिखाते हुए फिल्मों को अलविदा कहकर दांपत्य जीवन में प्रवेश कर लिया. लेकिन इसके उलट कुछ ऐसी भी अभिनेत्रियां है जो अपने कॅरिअर का अच्छा दौर गुजर जाने के बाद भी ब ...
फिल्म समीक्षा : वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई 
Author: chavanni chap | Source: chavanni chap (चवन्नी चैप)
- ajay brahmatmaj सबसे पहले तो इस फिल्म के शीर्षक पर आपत्ति की जा सकती है। वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई, इस शीर्षक का आशय कितने हिंदी दर्शक समझ पाएंगे या शीर्षक अब अर्थहीन हो गए हैं। बहरहाल, निर्माता-निर्देशक ने समाज और दर्शकों के बदलते रुख को देखते हुए यही शीर्षक जाने दिया है। यह आठवें दशक की मुंबई की कहानी है, जब अंडरव‌र्ल्ड अपनी जड़ें पकड़ रहा था और अपराध की दुनिया में तेजी से नैतिकता बदल रही थी। हिंदी में गैगस्टर फिल्में घूम-फिर कर मुंबई में सिमट आती हैं। पहले कभी डाकुओं के जीवन पर ..
पाबला जी!
आपका स्वागत और अभिनन्दन है-   
मौत के मुँह से बचकर, फिर हाज़िर हूँ आपके बीच - पिछले माह जब मैं मुम्बई की ओर, सड़क मार्ग से यात्रा पर निकला था तो यह आभास नहीं था कि मौत मुझे आलिंगन करने को आतुर होगी। वह भी *एक बार नहीं दो बार!*दूसरी बा...
अगर अब तक नही देखा हो तो अब देख लीजिए-
10 रुपये के नये सिक्के की मनोहर छवि
Author: स्वार्थ | Source: स्वार्थ
देखें भारतीय मुद्रा के नये सिंबल के साथ दस रुपये के नये सिक्के के लुभावने रुप रंग को। यूरोप की यूरो मुद्रा के 2 यूरो के सिक्के जैसा आकर्षक है भारतीय मुद्रा का 10 रुपये का सिक्का
जय श्री राम! हो गया काम!!
चोरी का माल आप के नाम....
!!! Author: राज भाटिय़ा | Source: मुझे शिकायत हे. Mujhe Sikayaat Hay.
मेरी थोडी बहुत तबीयत खराब थी, ओर अभी भी है, इस लिये अभी कम समय दे पा रहा हुं, आज ओर्कुट  पर गया तो मुझे एक कविता हमारे किरायेदार ने भेजी, जो बहुत अच्छी लगी, लेकिन उस की प्रोफ़ाईल मे मुझे एक कविता ओर मिली जो मैने चुपके से वहां से चुरा ली....
आकांक्षा जी
        को हमारी भी हार्दिक शुभकामनाएँ!
धूप भी कहने लगी दालान से....आज आकांक्षा जी का शुभ जन्मदिन है
Author: Ratnesh Kr. Maurya | Source: ताक-झाँक
सोच रहा था कि आकांक्षा जी को जन्मदिन विश करूँ, पर कैसे। समझ में नहीं आया कि तभी ऑरकुट पर उनके प्रोफाइल पर गया। और सुशीला जी की ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं-
तमाम घरों में बड़े-बड़े ताले लगे होते हैं!
मगर चोरों को लिए नहीं होते हैं!!
मेरे घर आना
Author: रश्मि प्रभा... | Source: मेरी भावनायें...
तमाम घरों में बड़े बड़े ताले लगे होते हैं एक सख्त लोहे का ग्रिल दरवाज़े पर एक होल घंटी बजे तो देख लो कौन है ! बड़ा खतरा है- जाने कब क्या हो जाये ! बेशकीमती सामानों से घर भरा है मामूली चीजों की तो कोई औकात नहीं वही चीजें हों जिनकी कीमत आसमान छुते हों और सबसे अलग हों अब घर के रंग रूप ही बदल गए हैं सामान - प्रदर्शनी में रखे अदभुत वस्तु लगते हैं रहनेवाले लोग कांच के नज़र आते हैं पॉलिश इतनी ज़बदस्त कि फिसलन ही फिसलन बड़े तो बड़े , छोटों की अदा पर आँखें विस्फारित रहती हैं ! क्य ..
जनसेवक को लिखी पाती का जवाब आयेगा??
एक पड़ोसी जनता की पाती एक पड़ोसी जनसेवक के नाम 
Author: ミ★Vivek Mishra★彡 | Source: अनंत अपार असीम आकाश
धरा पर हरा-हरा
वसुंधरा......
Author: रोली पाठक | Source: आवाज़
नील-श्वेत गगन, हो चला गहन... छा रही घटा सुरमयी, बह रही मदमस्त पवन... रह-रह कर कौंधती सौदामिनी.. दिन में ही मानो, उतर आई यामिनी.. निर्झरिणी की लहरें, कर रही अठखेलियाँ ... खिलखिला रही हों जैसे, चंचल सहेलियां... वसुधा रही बदल, अप्रतिम रूप पल-पल... कभी नवयौवना चंचल, कभी उद्वेलित,कभी अल्हड़... कभी गंभीर कभी उच्छृंखल... रिमझिम-रिमझिम टिप-टिप, मेघ देखो बरस पड़े... देवदार औ चीड़, भीग रहे खड़े-खड़े... मुरझाई प्रकृति में,प्राण आ रहे हैं... पत्ते-पत्ते बूटे-बूटे,मुस्कुरा रहे हैं.. नृत ..
लिंक खोलकर कार्टून देखिए-
कार्टून: में २.८० प्रतिशत खुश हूँ
Author: Kirtish Bhatt, Cartoonist | Source: Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA
बामुलाहिजा >> Cartoon by Kirtish Bhatt
कार्टून:- पढ़े-लिखे लोगों के बच्चे अब यूं पैदा होते हैं 
| Author: काजल कुमार Kajal Kumar | Source: Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
मनोज
  प्रेमचंद का पद्य-कौशल - प्रेमचंद का पद्य-कौशल करण समस्तीपुरी संस्कृत वांग्मय का आरम्भ ही पद्य में हुआ है। वेद और उपनिषद पद्य में है। श्रुति और स्मृतियाँ पद्य में हैं। रामायण औ...
जन्मने जायते शूद्राः संस्कारात् द्विज उच्यते!
संस्कार विज्ञान------(प्रथम भाग) 
Author: पं.डी.के.शर्मा"वत्स" | Source: धर्म यात्रा
किसी भी मनुष्य में अपने पूर्वजन्म के कर्मों के संस्कार तो रहते ही हैं. गर्भ के, माता-पिता के, उनकी वंशानुगत क्रमधारा के भी संस्कार रहते हैं. अब संस्कार हैं तो उनमें से कुछ अच्छे होंगें तो कुछ बुरे भी. बुरे संस्कारों को विकार कहा जाता है. जो जडता की ओर ले जाए सो विकार. जो भीतर के विकारों को मिटा दे वो संस्कार. संस्कार माने सँवारना, सुधारना. जैसे-----दर्पण को स्वच्छ करना, चमकाना. जैसे रत्न जब खान से निकाला जाता है तो उसमें मिट्टी लगी होती है, बेडौल होता है. उसको साफ करते हैं, चमकाते हैं; छंटाई ..
लघु कथा: अब पापा कौन बनेगा? 
Author: Shah Nawaz | Source: प्रेम रस 
बाबू आज बहुत खुश था, नानी ने बताया कि पापा आने वाले हैं। वैसे वह पापा से नाराज़ था, दो महीने से पापा ने फोन पर भी बात नहीं की थी। नानी ने समझाया था कि "बाबू नाराज़ नहीं, होते पापा जल्द ही घर वापिस आ जाएंगे"। "लेकिन मुझसे बात तो कर सकते थे ना? उन्होंने मुझसे गिफ्ट का वादा किया था, और अब बात भी नहीं कर रहे हैं।" नानी ने समझाया था कि जब वह घर आएंगे तो बहुत से गिफ्ट लाएंगे, इसलिए जब से पता चला था कि पापा आने वाले हैं, तभी से वह बहुत खुश था।

यह तो बहुत ही अच्छा काम किया! 
हाल ऐ दिल कभी मैंने ..तमाम ..नहीं लिखा लिखा सब कुछ ,कुछ भी तेरे नाम नहीं लिखा
आज तो क्रिकेट हॉबी है!
विलुप्त प्राय: ग्रामीण खेल : झुरनी डंडा 
Author: Ratan Singh Shekhawat | Source: Gyan Darpan ज्ञान दर्पण
आज से कोई तीन दशक पहले तक गांवों में तरह -तरह के खेल खेले जाते थे | कब्बड्डी,खो खो,फूटबाल,बोलीबोल आदि के साथ रात के अँधेरे में छुपा छुपी तो दिन में गुल्ली डंडा,गुच्या दडी,सोटा दडी,कांच की गोलियों के कंचे तो दोपहर में किसी पेड़ के ऊपर झुरनी डंडा खेल खेला जाता था | गर्मियों में दोपहर में गांव के बच्चे अलग-अलग समूह बनाकर अलग -अलग पेड़ों पर यह झुरनी डंडा नाम का खेल खेला करते थे | पेड़ पर खेले जाने वाले खेल में पेड़ पर तेजी से चढ़ना और डालों पर दौड़ना और जरुरत पड़े तो पेड़ से कूदना भी इन खेलों में श ..
पोस्ट जन्म-दिन की!
हमारी भी हार्दिक शुभकामनाएँ!
तुम 
Author: सप्तरंगी प्रेम | Source: सप्तरंगी प्रेम 
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती कृष्ण कुमार यादव जी की एक कविता 'तुम'. आज आकांक्षा जी का जन्मदिन भी है, सो यह प्यार भरी कविता पतिदेव कृष्ण कुमार जी की तरफ से आकांक्षा जी के लिए..आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा..
आज तो ममा का हैपी बर्थ-डे है....
Author: Pakhi | Source: पाखी की दुनिया
आज मैं बहुत खुश हूँ. आज मेरी ममा का बर्थ-डे है. आज तो मैं सुबह-सुबह ही जग गई और ममा को किस करके बर्थ-डे विश किया. फिर एक प्यारा सा बुके और कार्ड भी दिया. पहले तो ममा को नींद में पता ही नहीं चला कि आज उनका जन्मदिन है. पर जब मैंने व पापा ने उन्हें जगाकर हैपी बर्थ-डे गाया तो उन्हें भी इस दिन की खासियत का अहसास हुआ. खैर, आज के दिन तो खूब मस्ती करनी है. शाम को पापा मुझे व ममा को एक शानदार पार्टी भी तो देंगें, फिर तो मैं जमकर धमाल करुँगी. आज कई काम है मेरे जिम्मे- ममा के लिए केक लाना, ढेर सारे बैल ..
जीवन के सफ़र में आज मेरा जन्मदिन...
| Author: Akanksha~आकांक्षा | Source: शब्द-शिखर
जीवन का प्रवाह अपनी गति से चलता रहता है। कभी हर्ष तो कभी विषाद, यह सब जीवन में लगे रहते हैं। हर किसी का जीवन जीने का और जिंदगी के प्रति अपना नजरिया होता है। महत्व यह नहीं रखता कि आपने जीवन कितना लम्बा जिया बल्कि कितना सार्थक जिया। आज अपने जीवन के एक नए वर्ष में प्रवेश कर रही हूँ। मेरी माँ बताती हैं कि मेरा जन्म 30 जुलाई की रात्रि एक बजे के करीब हुआ। ऐसे में पाश्चात्य समय को देखें तो मेरी जन्म तिथि 31 जुलाई को पड़ती है, पर भारतीय समयानुसार यह 30 जुलाई ही माना जायेगा। जीवन के इस सफर में न जाने ...
कहाँ से आई 'हैप्पी बर्थडे टू यू' की पैरोडी 
Author: Akanksha Yadav | Source: बाल-दुनिया
आज 30 जुलाई को मेरा जन्मदिन है। जन्मदिन की बात आती है तो ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ गीत जरुर याद आता है. कभी सोचा है कि आखिर ये प्यारी सी पैरोडी आरम्भ कहां से हुई। आज आपने जन्मदिन पर इसी के बारे में बताती हूँ
तुम जियो हजारों साल...
Author: Ram Shiv Murti Yadav | Source: यदुकुल
आज आकांक्षा यादव का जन्मदिन है। आकांक्षा उन चुनिंदा रचनाधर्मियों में शामिल हैं, जो एक साथ ही पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ ब्लागिंग में भी उतनी ही सक्रिय हैं. इनके चार ब्लॉग हैं- शब्द-शिखर, उत्सव के रंग, सप्तरंगी प्रेम और बाल-दुनिया. आकांक्षा यादव के जन्मदिन पर यदुकुल की तरफ से ढेरों बधाई.
| Author: वेदिका | Source: तेताला
   भूल न जाना कि मेरा क्या होगा कि तेरे दिल कि सदा फिर याद आई
और अन्त में-
Rhythm of words...

'जिंदगी' और मैं! - वो जी रहा था 'जिसे' मैं 'उसको' एक किताब में पढ़ रहा था वो हकीक़त ही थी 'जिसको' एक मुद्दत से मैं ख्वाब में गढ़ रहा था॥ कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी ख़ामोशी भी ...

शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

अनामिका की सदायें ...(चर्चा मंच - 230) भाग - 2


पिछली बार हमने फोटो सैशन शुरू किया था जिसमें बहुत से फोटो खींचने बाकी रह गए थे, तो लीजिए जनाब जो पिछली बार कतार में थे उनका भी नंबर आ गया है...तो चलिए देखते हैं इस बार कौन कौन वोटर आई डी पा चुके हैं...




सबसे पहले कुछ भीगी नज्में ...




My Photo मेरा फोटो



मेरा फोटो


मेरा फोटो


मेरा फोटो
मेरा फोटो


लेखक / writer
My Photo


मेरा फोटो
मेरा फोटो



अब पढ़िए कुछ लेख ...







krantidut


My Photo
मेरा फोटो


गौतम बुद्ध की तपःस्थली सारनाथ

बिटिया रानी की कारगुजारियां ... मेरा फोटो


और अब दीजिये इजाजत अनामिका को, फिर मिलते हैं इसी समय, इसी दिन, इसी स्थान पर अगले शुक्रवार ...तब तक के लिए ....आज्ञा चाहूंगी.
नमस्कार


अनामिका


गुरुवार, जुलाई 29, 2010

लेटलतीफ चर्चा----(चर्चा मंच 229)चर्चाकार--पं.डी.के.शर्मा “वत्स”

image भाई आज एक तो पहले ही लेट हो चुके हैं. उस पर से यदि हम आप लोगों से बतियाने बैठ गए तो आप भी कहेंगें कि एक तो सुबह से चर्चा बाँचने को नही मिली, आधा दिन गुजर गया और अब आए हैं तो आते ही बातों में टाईम खोटी करने लगे. सो,इसलिए आज हम कछु न कहेंगें.हमने तो बस आपके लिए यहाँ लिंक्स सजा दिए हैं---आप लोग पढिए, आनन्द लीजिए और मन करे तो टिप्पणी कीजिए वर्ना कोई जोर जबरदस्ती थोडा ही है. हाँ, यदि कर देंगें तो आपका आभार :)  

शब्दों के लुप्तीकरण पर चवनीया छाप चिंतन ........गिद्धों पर अठनीया छाप......तो कुछ मुद्दों पर झोला-झक्कड़ सहित.......पसेरी भर का औना-पौना चिंतन..........सतीश पंचम


image एक समय था कि भारत में स्मगलर शब्द बहुत प्रचलित था। आम बोलचाल में भी लोग एक दूसरे को स्मगलर तक कह डालते थे…..कोई कहता कि अरे उसकी क्या कहते हो….वह तो स्मगलर ठहरा…..आर पार करके ही तो इतना बड़ा मकान बना लिया है ……ये कर लिया वो कर लिया। कहीं कुछ अनोखी या विदेशी टाइप चीज देख लेते तो तड़ से कहते स्मगलिंग का माल है। दूकानदार भी अपनी चीजों के दाम बढ़ाने के लिए पास आकर कान में मंत्र कह देते थे कि….साहब स्मगल का माल है….आसपास की दुकानों में मिलेगा भी नहीं। यह स्मगल शब्द का ही चमत्कार होता था कि खरीददार एक नजर आस पास मारता और धीरे से कहता……गुरू बड़े पहुँचे हुए हो ..






जानिए  भारत की विश्व को देन : गणित शास्त्र-१ ---प्रस्तुतकर्ता श्री अनुनाद सिँह( भारत का वैज्ञानिक चिन्तन)

गणित शास्त्र की परम्परा भारत में बहुत प्राचीन काल से ही रही है। गणित के महत्व को प्रतिपादित करने वाला एक श्लोक प्राचीन काल से प्रचलित है।

ईशावास्योपनिषद् के शांति मंत्र में कहा गया है-
ॐपूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
यह मंत्र मात्र आध्यात्मिक वर्णन नहीं है, अपितु इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण गणितीय संकेत छिपा है, जो समग्र गणित शास्त्र का आधार बना। मंत्र कहता है, यह भी पूर्ण है, वह भी पूर्ण है, पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है, तो भी वह पूर्ण है और अंत में पूर्ण में लीन होने पर भी अवशिष्ट पूर्ण ही रहता है। जो वैशिष्ट्य पूर्ण के वर्णन में है वही वैशिष्ट्य शून्य व अनंत में है। शून्य में शून्य जोड़ने या घटाने पर शून्य ही रहता है। यही बात अनन्त की भी है।

बास्टन के पण्डे,गौवंश और सामुद्रिक कला के बारे में बता रहे हैं श्री अनुराग शर्मा.

वो लिखते हैं कि---अमेरिका में गाय की एक जाति को भी ब्राह्मण गाय/गोवंश (Brahman cow/cattle) कहा जाता है। अपने चौडे कन्धे और विकट जिजीविशा के लिये प्रसिद्ध यह गोवंश पहली बार 1849 में भारत से यहाँ लाया गया था और तब से अब तक इसमें बहुत वृद्धि हो चुकी है। और आप सोचते थे कि जर्सी और फ्रीज़ियन गायें बेहतर होती हैं। यह तो वैसी ही बात हुई जैसे उल्टे बाँस बरेली को।

साईब्लाग पर अरविन्द मिश्र जी प्रस्तुत कर रहे हैं:-यौनिक रिश्तों की पड़ताल के कुछ नए परिणाम !


भारतीय समाज यौन मुद्दों पर खुलकर बात करने से कतराता है,हमारे संस्कार,हमारे कतिपय सुनहले नियम इसका प्रतिषेध करते हैं. और एक दृष्टि से यह उचित भी है.किन्तु जब ऐसी वर्जनाएं यौन कुंठाओं को जन्म देने लगे तो हमें कुछ स्वच्छन्दता लेनी चाहिए -और वैज्ञानिक निष्कर्षों के प्रति एक खुली दृष्टि रखनी चाहिए,विचार विमर्श होते रहना चाहिए नहीं तो खाप पंचायतों जैसी हठधर्मिता ,भयावह सामाजिक स्थितियां भी मुखरित हो उठती हैं.

कलियुग केवल नाम अधारा---अभिषेक औझा

नाम तो धांसू होना ही चाहिए चाहे किसी रेसिपी का हो या जगह का. इंसान का तो फिर भी ठीक है...अपना बस चलता तो लोग रखते फिर एक से बढ़कर एक नाम. हमारे एक दोस्त ने दसवीं में अपना नाम पप्पू से बदल कर अक्षय कुमार कर लिया ! अब ये बात अलग है कि उनको इस बात पर दोस्तों ने इतना परेशान किया...अगर फिर मौका मिलता तो वो अब अपना नाम रवीना टंडन भी कर लेते लेकिन अक्षय कुमार तो नहीं ही रहने देते. जो भी हो…..

टेकिंग अ फ्लावर-पाट शाट---बाई द शिव कुमार मिश्र

image बिहार की ज्योति कुमारी द्वारा गमलों के साथ दिखाए गए उनके करतब की वजह से देश में चारों तरफ बदलाव दिखाई दे रहा है. सबसे पहले तो उनका नाम ही चेंज हो गया. अब उन्हें लोग गमला आंटी कहने लगे हैं. विरोध के उनके इस तरीके पर वे प्रधानमन्त्री का थम्ब्स-अप डिजर्व करती थी imageइसलिए प्रधानमंत्री ने उन्हें थम्ब्स-अप दिया.
(अजी हम तो आप लोगों के लिए सिर्फ ये दो तस्वीरें ही चुरा कर  ला पाए हैं. पोस्ट पर जाईये तो आपको तस्वीरों की पूरी की पूरी एल्बम देखने को मिलेगी.)

हिन्दू या मुसलमान होने से पहले 'इंसान' होने का लाभ (Benefits of Becoming a Good Human Being First)बता रहे हैं श्री प्रवीण शाह

मेरे 'इंसान' मित्रों,
'इंसान' होने का लाभ (Benefits of Becoming a Good Human Being First)
आज मैं आपको 'इंसान' होने के फायदे बताऊंगा...
धर्म-धार्मिकता-मजहब से परे अगर कोई महज एक अदना सा 'इंसान' है तो उसे क्या क्या फायदे है या कोई अगर धर्म की मानसिक गुलामी से निजात पा महज 'इंसान' बन जाता है तो उसके उसे क्या क्या फायदे होंगे ?...

और सांई बाबा लौट गए... (लघु कथा)

गुरूपूर्णिमा का दिन,मुहल्ले के सांई बाबा मंदिर में भंड़ारा का आयोजन। मंदिर बनवाने वाली महिला ही मुख्य आयोजक,  उनके आदेशानुसार भंडारा चालू था। एक- दो घंटे तक मुहल्ले की भीड़ के साथ-साथ आसपास के ­झुग्गी-­झोपड़ी के गरीब लोग भी एकत्रित थे, दोनों वर्गों के लिए अलग-अलग लाईन और व्यवस्था देख रहे लोगों का इन दोनों लाईन के लोगों के लिए अलग-अलग व्यवहार।

मेरी अपूर्णता !!


हे प्रभु! तूँ भी पूर्ण है. तेरी इच्छा भी पूर्ण है. तेरी सृ्ष्टि भी पूर्ण है. तेरी कृ्ति भी पूर्ण है.
केवल एक मैं ही अपूर्ण हूँ और वह भी सिर्फ अपने अहंकार के कारण.मेरा ही अहंकार मेरे और आपके दरम्यान एक पर्दा बन गया है.
यदि मैं आपके भक्ति रस में डूबे प्रेम गीत गाकर, अपने प्रत्येक पवित्र कर्म द्वारा और अपने स्वच्छ, पवित्र, शुद्ध और निर्मल मन की उडान द्वारा इस पर्दे को हटा सकूँ तो….

अंजाम-ए-आशिकी क्या है (अरुण मिश्रा)

वफ़ा में मेरी कसर कोई रह गयी क्या है,
जब भी पूछा,तो वो बोला,तुम्हें जल्दी क्या है!

लूट कर मुझको वो कज्जाख अब ये कहता  है,
और हो जायेगा फिर,आपको कमी क्या है !!  


ये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
अब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है!!

एक भूमिका और रिल्के का पहला ख़त


यूरोप के विएना शहर की सन्‌ 1888 के पतझड़ की एक शाम।
बलूत के पेड़ तले झड़ती पत्तियों के बीच एक कमजोर और दुबला सा लड़का उदास बैठा हुआ था। अपने कुल तेरह साल के जीवन के धूसर से रंगों के बीच उलझा, हताश। अपने ही अनबुझ सवालों से परेशान, कि आखिर जिंदगी उससे चाहती क्या है? वो अपनी जिंदगी से क्या चाहता है ? 

“गांधी की सन्तान कहते हुए भी... ..” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

एक पादप साल का,
जिसका अस्तित्व नही मिटा पाई,
कभी भी,समय की आंधी ।
ऐसा था,
हमारा राष्ट्र-पिता,महात्मा गान्धी ।।
कितना है कमजोर,
सेमल के पेड़ सा-
आज का नेता।
जो किसी को,कुछ नही देता ।।
दिया सलाई का-
मजबूत बक्सा,
सेंमल द्वारा निर्मित,एक भवन ।
माचिस दिखाओ,और कर लो हवन।
आग ही तो लगानी है,

झज्झर का यक्ष प्रश्न?????(डा. पवन मिश्र)

image

ब्राह्मण देव मुझे छूने से इतना क्यों घबराते है                            
नारायण कि चौखट पर सारे अंतर मिट जाते है                                                       
मै भी बना पंच तत्वों से प्रभु ने रचा मनोयोग से                                                       
क्या जल अछूत पावक अछूत,धरती अछूत ,अम्बर अछूत                             
अपने स्वारथ में रत होकर मानवता को बाँट दिया                                                
ज्ञान से मुझको वंचित कर अज्ञानी का नाम दिया

कार्टून : संसद का 'महंगाई सत्र' (बामुल्लाहिजा)


image

कल्पवृक्ष एक कहानी है उनके नाम जो अपने बुज़ुर्ग माँ बाप को या तो बोझ समझते हैं,या फिर ओल्ड फैशन कपड़े, जिनकी एक समय के बाद मार्केट डिमांड समाप्त हो जाती है,ये उनकी कहानी है जो पेड़ तो लगा देते हैं, इस आस में की समय आने पर वह फल देगा और अगर फल न भी मिले तो कम से कम छाया तो ज़रूर मिलेगी,पर अंत में क्या होता है ?

चलिए अब चलते चलते  जान लीजिए अपना मासिक राशिफल------अगस्त 2010

image** यह राशिफल जन्मकालीन चन्द्र राशि पर आधारित है.


  
Technorati टैग्स: {टैग-समूह},

बुधवार, जुलाई 28, 2010

गांधी तेरे देश में …..उफ़ यह ट्रैफिक …………चर्चा मंच - २२८

आज के चर्चा मंच से संगीता स्वरुप का नमस्कार …… 


आज शास्त्री जी ने अपनी अनुपस्थिति  में इस यज्ञ ( चर्चा मंच ) का कार्य भार मुझे सौंपा है…तो लीजिए मैं यज्ञ प्रारंभ करती हूँ …आप सब भी समिधा ( टिप्पणियाँ ) हवन कुंड ( लिंक्स पर ) में समर्पित कीजियेगा


आज भारतीय नारियों ने हर क्षेत्र में अपनी धाक जमा ली है …और यह मान लिया गया है कि नारियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं …लेकिन क्या आप यह नहीं पढ़ना चाहेंगे ?
 

अफ़सोस भी है........गुस्सा भी और हैरानी भी...….


बात जब हद से गुज़र जाए तो बुरी होती है…… आप भी पढ़ें
  - 

बुरे फंसे अमित शाह..अब क्या होगा


बात बुरी हो तो इंसान माफ़ी मांग ही लेता है …पर सबसे ज्यादा किससे माफ़ी मांगता है ..जानिए यहाँ पर



इंसान सबसे ज्यादा माफ़ी किससे मांगता है?

माफ़ी मांग कर दूसरों के लिए भी सही मार्ग प्रशस्त करता है और बन जाता है

पथ –प्रदर्शक

पथ प्रदर्शन का काम धार्मिक आधार पर बखूबी किया जाता है….आप भी पढ़िए धार्मिक आधार ..

इस्लाम में चार शादियाँ..

जीवन में धर्म हो या   ज्ञान …गुरु का महत्त्व हमेशा से रहा है…भले ही कोई इसे माने या ना माने …पर मैं यह मानती हूँ कि जो भी आपको थोड़ा सा  भी ज्ञान देता है वो गुरु ही होता है….गुरु की महत्ता से आप भी रू -ब-रू  होइए .

आज गुरु पुर्णिमा है    ( रविवार को थी )

ज्ञानवान को कुछ भी  सिखाना कठिन होता है….जैसे लिखे हुए कागज पर नहीं लिखा जाता… कागज कोरा हो तो उस पर कुछ भी लिख सकते हैं…ऐसे ही कुछ यूँ प्रार्थना की गयी है

आ कर छू लो कोरा है मन

 

लीजिए कोरे मन की बात चली तो यहाँ तो सन्नाटा ही छा  गया …..चलिए इसे भी पढ़ ही लें .
.

नीरवता

इस नीरवता में भी एक शोर है..कहीं सूखा है तो कहीं बाढ़ …..आप भी देखें ऐसे दृश्य

पानी ही पानी-देखिए बरसात के कुछ दृश्य


प्रकृति के दृश्य तो हम आँखों से देख सकते हैं ….पर हम स्वयं किस प्रवृति के हैं …यह जानना चाहते हैं  तो मन के चक्षु खोलिए और थोड़ा अंतर्मंथन कीजिये ..

क्या आप जानना चाहेंगे आप किस प्रवृत्ति के मनुष्य हैं ?


खुद को जान समझ लिया है तो आपको ले चलते हैं एक यात्रा पर

‘महाकाल’ .......... जहाँ जलती थी रोज एक चिता


अब यात्रा के साथ ही तो जीवन की यात्रा भी जुडी हुई है….और यह यात्रा निरंतर चलती रहती है…पल -पल आगे बढती हुई …..फिर भी हम एक पल के बारे में सोचते रह जाते हैं …

एक पल


लोग पल - पल का हिसाब रखते हैं पर जब फंस जाएँ ट्रैफिक में तब?  ज़रा आप भी जानिए की क्या होता है तब …

व्यंग्य: उफ्फ! यह ट्रैफिक!

वैसे इससे छुटकारा पाने का एक बहुत आसान तरीका है….जानना चाहेंगे आप ?

गर मैं चिड़िया होता

लीजिए यह तो  परिंदा बन उड़ लिए….और यहाँ नीव के पत्थर ही कम पड़ रहे हैं ..सपनों का घर  बनाने  के लिए किये जा रहे हैं

शिल्प –जतन


और जब  जतन सम्पूर्ण मन से किया जाये तो एक खूबसूरत घरौंदा  बन ही जाता है फिर उम्र कितनी ही क्यों ना हो….
 
 जब तुम होगे साठ साल के.


कभी कभी ऐसा भी होता है की उम्र खत्म हो जाती है….इस संसार से मुक्ति भी मिल जाती है ..पर फिर भी आप बहुत याद आते हैं …किसी न किसी बहाने से ….

कील पर टँगी बाबूजी की शर्ट


याद आने की बात चली है तो यहाँ भी ज़रा पढ़िए कि हम राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी को कैसे याद और क्यों याद कर रहे हैं


गांधी तेरे देश में

अब बापू से तो हो गए शिकवे शिकायत….ज़रा यह भी देख लें कि यहाँ गाँधी जी के बंदरों की परिभाषा ही बदल गयी है

गाँधी जी के तीन बंदरो की बदली हुई परिभाषा

बंदरों की बात करते करते ना जाने क्यों बच्चे याद आ गए….असल में बच्चे कोई बन्दर से कम थोड़े ही होते हैं …आज कल बहुत धूम है बच्चों की ….

हम बच्चों की बड़ी धूम है..

बच्चों को शांत कराने के लिए पहले ज़माने में कह दिया जाता था कि चुप बैठो नहीं तो बाबा आ जायेगा …पर आज कल के बच्चे ….खैर आप यहाँ देखिये

बाबा का चक्कर

चलिए बाबा का चक्कर छोडिये और यहाँ पर तीखा तीखा पढ़िए

अपने बच्चे, बच्चे और दूसरो के मुसीबत

 

सच में यह बात तो बहुत गलत है …बच्चों को मुसीबत कहना ….यह तो अपराध हुआ ना…आप यहाँ पढ़ें

बड़ा अपराध ?

अब बड़ा अपराध क्या , और छोटा क्या…हमारे तो सारे मंत्री इसी श्रेणी में आते हैं …मानसून सत्र प्रारंभ हो चुका है वहाँ क्या होने वाला है ज़रा आप भी एक दृष्टि डालें -

महंगाई जैसे कई मुद्दों पर गरजेगा मानसून सत्र


अब जो गरजेगा वो बरसेगा भी ….आंधी पानी सब आ सकता है …हमको तो चिन्ता है कि एक दीप भी नहीं जल पायेगा क्या ?

दीपक एक नहीं जल पाया

चलो कोई बात नहीं दीप जले या ना जले ….मान्यता है कि गंगा में डुबकी लगा लो सारे पाप धुल जाते हैं …तो भैया कर लेते हैं हर - हर गंगे

एक डुबकी गंग धार में

अकेले अकेले गंगा नहाने का कोई आनंद नहीं…..तभी तो आप यहाँ पढ़िए

जब तुम साथ थे


साथ हो किसी का तो रंगत कुछ और ही होती है…अब रंग की बात चली है तो यह भी जान लीजिए

रंग है आपके व्यक्तित्व की परछाईं..

अब परछाईं पकड़ने से तो कुछ होने वाला है नहीं…कहीं कोई किनारा भी ना छूट जाये ..

छूटे किनारों के बीच.

किनारे छूटें या ना छूटें पर बीच में स्वार्थ ज़रूर आ जाता है …

राजनीतिक स्वार्थ ..


स्वार्थ से ऊपर उठता ही नहीं कोई ….और आँखों में उदासी उतर आती है….उम्र के निशाँ चेहरे पर दिखने लगते हैं ….यह दुनिया ही मतलब की है…चलिए आप यहाँ पढ़िए

उदास आँखों में छुपी झुर्रियों की दास्तान (भाग -12)

चलिए अब इस दास्ताँ को पढते हुए आगे बढते हैं ….जहाँ कोई बहुत ओजपूर्ण गीत गा रहा है ..

मिहिरपुत्र के गीत


गीत के अलावा भी बहुत सी विधाएं हैं , एक है उसमें नाटक….नाटक तो हर इंसान ज़िंदगी में करता है…..लेकिन कुछ ऐसी व्यवस्थाएं हैं जहाँ नाटक नहीं होना चाहिए…

मीडिया का काम नाटकबाज़ी नहीं

संसद में भी खूब नाटक चलता है….लेकिन उस नाटक से कम से कम कोई खुश तो है…आप भी जाने कि  किसको सबसे ज्यादा खुशी है

चप्‍पलें खूब खुश हैं

चलिए इनको खुश रहने दीजिए…..हम सैर कर आते हैं मुंबई की …..जहाँ के वासियों में जिजीविषा है…हर हादसे से उबरने की हिम्मत है …तभी तो वहाँ के लोग कहते हैं आमची मुंबई …

ये मुंबई आमा हल्दी..


जहाँ ऐसा माहौल हो तो रिश्ते अपने आप पनपते हैं ….. यदि कहीं कोई कमी भी रहती है तो मन में यह भावना भी आती है…

रिश्तों की भूख जगने दो


गहन रिश्तों में कभी कभी रूह का ऐसा स्वर भी झंकृत हो उठता है ….

बस वो ना बनाया

 

चलिए नहीं बनाया तो न सही….हम तो एक आवाहन कर ही सकते हैं  कि अभी देर नहीं हुई है….

अब तो जागो

और  केवल जागने  से ही तो काम नहीं चलता न…हौसला बुलंद होना चाहिए ….एक बानगी आप भी देखें …

फिर भी जीते रहे ज़िंदगी, कभी न टूटे हम.

जी हाँ नहीं टूटे तभी तो आज भी पुरानी यादों को बहुत मन से और सकारात्मक सोच से याद करते हैं ..

याद तेरी आई .....


बस इसी हौसले के साथ इस यज्ञ में पूर्णाहुति  देते हुए अंतिम चरण की ओर अग्रसर हो गयी हूँ …..आप भी साथ दें …

आहुति


चलते चलते एक नज़र यहाँ भी

कार्टून - रे ओ मुसाफिर देख , तेरी गठरी में छेद....सखेद

कार्टून यहाँ दिखा देंगे तो ब्लॉग पर क्या देखेंगे?

   

उम्मीद है आपको यह चर्चा पसंद आई होगी……अपनी प्रतिक्रिया के साथ सुझाव भी दें ..जिससे हम आपके लिए चर्चा को बेहतर बना सकें ….प्रयास रहा है कि आपको अच्छे लिंक्स दे सकें फिर भी त्रुटियाँ अवश्यम्भावी हैं….आपके मार्गदर्शन से सुधार की हमेशा गुन्जायिश  रहेगी…..आभार ….
नमस्कार

मंगलवार, जुलाई 27, 2010

साप्ताहिक काव्य मंच – १० ( संगीता स्वरुप ) चर्चा मंच – 227


नमस्कार ,साप्ताहिक काव्य मंच का था आप सबको  इंतज़ार… तो हाज़िर है आपका यह मंच.  ..आज इस मंच को मैंने दो भागों में विभक्त किया है…..पहला ---वह रचनाकार जिनको मैं नियमित पढ़ती हूँ और उनके लेखन की विशेषताओं से प्रभावित होती हूँ…..आज कुछ कवियों से अपनी सोच के आधार पर परिचय करा रही हूँ….हांलांकि कोई भी परिचय का मुहताज नहीं है ..पर आज आप इनसे मेरी दृष्टि से मिलिए और इस परिचय का सिलसिला आगे भी चलेगा…क्यों कि सबका परिचय एक साथ नहीं करा सकती थी ..यदि ऐसा करती तो चर्चा शायद अंतहीन हो जाती…तो आज कुछ रचनाकारों से मिलिए…अगली कड़ी में कुछ अन्य का परिचय ले कर आऊँगी….परिचय के साथ उनकी कुछ रचनाओं को भी प्रस्तुत किया है….ब्लॉग तक जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें ..और रचनाओं के लिंक रचनाओं के साथ हैं….और आज की चर्चा के दूसरे भाग में आपको इस सप्ताह की कविताओं के लिंक्स मिलेंगे….तो प्रारंभ करते हैं आज की चर्चा …….
मेरा फोटो
समीर लाल जी से कौन परिचित नहीं है….आपका हर विधा में लेखन खूबसूरती से गढा हुआ होता है…कविता हो लेख हो या कहानी…..कविताओं की बात करें तो हर रंग आपको इनकी रचनाओं में मिलेगा …जीवन दर्शन  हो या ..व्यंग में कही बात …या फिर मन का उद्द्वेलन ..गहरी से गहरी बात सरलता से कह जाते हैं --

 एक विचार और फिर.
जिनके छोटे मकान होते हैं
लोग वे भी महान होते हैं

वो ही बचते हैं फूल शाखों में
जिनके काटों में प्राण होते हैं....
आज एक खास दिन!
जब भी मैं
पीछे मुड़कर सोचता हूँ..
अपना बचपन
अपना मकान
वो गलियाँ
वो मोहल्ला
अपना शहर
बहता दरिया है शब्दों का!!
बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो!
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो!!
कविता का मौसम
बारिशों के मौसम में, मेघ बन के छा जाओ
रात के अँधेरे में, चाँद बन के आ जाओ
भीड़ तो बहुत है पर, मन में इक उदासी है
आपकी यह रचना मुझे सबसे ज्यादा पसंद है ..
मैं कृष्ण होना चाहता हूँ!
जो दिखा वो मैं नहीं हूँ
बस पाप धोना चाहता हूँ
है मुझे बस आस इतनी
कुछ और होना चाहता हूँ.

जिन्दगी चलती रही है
ख्वाब सी पलती रही है
सब मिला मुझको यहाँ पर
कुछ कमी खलती रही है.
 मेरा फोटो
डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी अपने कार्य के प्रति जिस तरह से समर्पित हैं उनसे हमें प्रेरणा मिलती है…हर कार्य निरंतर लगन से करते हैं..गीतों की रचना सहज और सरल होती है.लयबद्ध और छंदबद्ध रचनाएँ लिखने में इनका कोई सानी नहीं है | बच्चों के लिए बहुत सार्थक रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं..ज़िंदगी की हर बात से जुडी इनकी रचनाएँ होती हैं …आप भी कुछ नमूने देखिये .

नन्हें सुमन पर

“मेरा झूला”
मम्मी जी ने इसको डाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।


खुश हो जाती हूँ मैं कितनी,
जब झूला पा जाती हूँ।
होम-वर्क पूरा करते ही,
मैं इस पर आ जाती हूँ।


उच्चारण पर

“यही समाजवाद है

समाजवाद से-
कौन है अंजाना?
लोगों ने भी यह जाना।
समाजवाद आ गया है,
क्या यह प्रयोग नया है?

डाका, राहजनी, और चोरी,
सुरसा के मुँह के समान-
बढ़ रही है,रिश्वतखोरी।


“कुछ दोहे”

बेमौसम आँधी चलें, दुनिया है बेहाल ।
गीतों के दिन लद गये,गायब सुर और ताल ।।
नानक, सूर, कबीर के , छन्द हो गये दूर ।
कर्णभेद संगीत का , युग है अब भरपूर । ।
 मेरा फोटो
आशाजी  की कविताओं में ज़िंदगी का सार नज़र आता है….एक सकारात्मक सोच का एहसास लिए ..दिनप्रतिदिन में घटने वाली घटनाओं का ज़िक्र हर पाठक के मन से जोड़ देता है…और एक नयी सीख और प्रेरणा पा कर मन को कहीं सुकून मिलता है…आप भी कुछ रचनाओं को देखें ..
सफर जिंदगी का
जिंदगी बहुत बड़ी है ,
उसमे हताशा कैसी ,
प्यार में सफलता न मिली ,
तो निराशा कैसी ,
मन तो सम्हल ही जाएगा ,
आसान नहीं होता ,
प्यार में मिली असफलता से
तमाशबीन

जन सैलाब उमढ़ता है ,
जाने किसे देखने को ,
लोगों को एकत्रित देख,
राह चलते रुक जाते हैं ,
कुछ और लोग जुड़ जाते है ,
अक्सर वे यह भी न जानते
ओस की एक बूंद

अरुणिमा से भरे नीले आकाश तले,
हर श्रृंगार के पत्ते पर ,
नाचती ,थिरकती ,
एक चंचल चपला सी ,


या नन्हीं कलिका के सम्पुट सी ,
दिखती ओस की एक बूंद
जिसे विश्वास कर्ता पर हो

परम्पराओं में फंसा इंसान ,
रूढियों से जकड़ा इंसान ,
सदियों से इस मकडजाल में ,
चारों ओर से घिरा इंसान ,
निकलना भी चाहे ,
तो निकल नहीं पाता ,
My Photo
एम० वर्मा जी की रचनाएँ बहुत ओज पूर्ण होती हैं ….आम इंसान की हकीकत को बयान  करती हुई….कविताओं के साथ साथ अपने दूसरे ब्लॉग पर खूबसूरत रचनात्मक कार्य करते भी देखा जा सकता है…मैं इनकी क्षणिकाओं से बेहद प्रभावित हूँ ..जहाँ वो शब्दों का ऐसा चमत्कार प्रस्तुत करते हैं कि  हम सोच भी नहीं पाते….आप भी उनकी कुछ ऐसी रचनाएँ देखें ..

प्रवाह पर

निकालेंगे यहीं से एक नहर

रूठे बादलों
तुम्हारा रूठना सबक दे गया
बेशक तूँ हमारे दुख-दर्द
न हर
तय कर लिया है हमने
निकालेंगे यहीं से एक
नहर


ताश के महल सा कांपता है मकाँ


परिन्दे यूँ ही नहीं घबरा रहे होंगे
गिद्धों के क़ाफ़िले नज़र आ रहे होंगे
.
सिहर जाती हैं शाखों पे फुनगियाँ
लोग बेवजह पत्थर चला रहे होंगे

उँगलियॉ बेचैन हैं ज़ख्म कुरेदने वाले


मत करो प्रश्न
उत्तर नहीं पाओगे
और फिर निरुत्तर रहकर
ख़ुद ही पर झुंझलाओगे
प्रतिउत्तर में आएंगे
सैकड़ो प्रश्नों के जाल
और फिर तुम्हारा अस्तित्व ही
बन जाएगा एक सवाल

दिगंबर नासवा जी के लेखन को कौन नहीं जानता…..आपकी रचनाएँ हमेशा प्रेरणादायक रही हैं….ग़ज़ल बहुत खूबसूरत लिखते हैं तो यथार्थ में डुबो कर कलम से सुन्दर नज्मों को जन्म देते हैं …आज कल बहुत  गहरे भाव लिए कविताएँ पढने को मिल रही हैं….हर कविता जैसे मन की गहराई से जुडी हुई … ज़िंदगी के फलसफे को बताती हुई….

यूज़ एंड थ्रो

यूज़ एंड थ्रो
अँग्रेज़ी के तीन शब्द
और आत्म-ग्लानि से मुक्ति
कितनी आसानी से
कचरे की तरह निकाल दिया
अपने जीवन से मुझे
मुक्त कर लिया अपनी आत्मा को
शब्द-कथा

शब्दकोष से निकले कुछ शब्द
बूड़े बरगद के नीचे बतियाने लगे
इक दूजे को अपना दुखड़ा सुनाने लगे
इंसानियत बोली
में तो बस किस्से कहानियों में ही पलती हूँ
हाँ कभी कभी नेताओं के भाषणों में भी मिलती हूँ
न पनघट न झूले न पीपल के साए

न पनघट न झूले न पीपल के साए
शहर काँच पत्थर के किसने बनाए
मैं तन्हा बहुत ज़िंदगी के सफ़र में
न साथी न सपने न यादों के साए
प्रगति

कुछ नही बदला
टूटा फर्श
छिली दीवारें
चरमराते दरवाजे
सिसकते बिस्तर
जिस्म की गंध में घुली
फ़र्नैल की खुश्बू
चालिस वाट की रोशनी में दमकते
पीले जर्जर शरीर
मेरा फोटो
रश्मिप्रभा जी के लेखन ने मुझे बहुत प्रभावित किया है…मन के भावों को इतनी सहेजता से समेटती हैं कि पढते हुए लगता है कि पाठक भी उन्ही भावों  में बहा चला जा रहा है….कहीं संवाद से युक्त रचनाएँ होती हैं तो कोई कठोर धरातल पर उकेरी हुई…सत्य के परिपेक्ष में लिखी रचनाएँ हमेशा प्रेरणा प्रदान करती हैं ….उनकी कुछ रचनाओं की बानगी प्रस्तुत कर रही हूँ ….

वजन है !


वजन है तुम्हारी आँखों में
जो मुझे नशा आता है
वजन है तुम्हारी बातों में
जो मेरी आवाज़ बदल जाती है
वजन है तुम्हारी साँसों में
जो मेरी साँसें
कभी तेज, कभी कम होती हैं

आज को जियो


आज को जीना चाहते हो
तो उस आज को जियो
जो रात तुम्हारे सिरहाने की बेचैनी ना बने
उधेड़बुन और जोड़ घटाव में
सुबह ना हो जाये
और वह आज एक प्रश्न ना बन जाये

मंजिल के लिए


कहीं कोई अंतर ही नहीं,
सारे रास्ते दर्द के
तुमने भी सहे
हमने भी सहे
तुमको एक तलाश रही
मेरे साथ विश्वास रहा
तो आज मैंने कुछ चुनिन्दा रचनाकारों से अपनी नज़र से परिचय कराया ….अगली बार कुछ अन्य लोगों को लेकर आऊँगी इस मंच पर …..अब आज के चर्चा मंच का दूसरा भाग …..इस सप्ताह के काव्य कलश को सुन्दर भावों  से सजी धारा से भर कर आपको पेश कर रही हूँ….आप इसका भरपूर आनंद उठायें….यही ख्वाहिश है….
सुख-दुख  पर पढ़िए मदन मोहन अरविन्द जी की रचना कल ऐसी बरसात नहीं थी


झूले भी थे आंगन भी था तूफानों की बात नहीं थी
कल ऐसी बरसात नहीं थी।
भीगे आँचल में सिमटी सी बदली घर-घर घूम रही थी
आसमान के झुके बदन को छू कर बिजली झूम रही थी
**********************************************
मेरा फोटो
अर्चना तिवारी   कुछ लम्हे दिल के ... पर लायी हैं दोस्तों की आस्तीनों में छुपे हैं नाग अब

दोस्तों की आस्तीनों में छुपे हैं नाग अब
रहनुमा, रहज़न बने हैं, इनसे बच कर भाग अब
गांव, बस्ती, शहर, क़स्बा, देश का हर भाग अब
जल चुका है, क्या बुझेगी नफरतों की आग अब
My Photoहरकीरत ' हीर' » की क्षणिकाएं पढ़िए
नजरिया ......
उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....
और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर .......!!
  ************************************************
कुमार जाहिद  meri haseen ghazalein  पर लाये हैं अपनी दो गज़लें
दो ग़ज़ल----  
बारिश की बारदात।
कुछ भी नया नहीं है, वहीं दिन है, वही रात !
उनसे कहूं तो कैसे कहूं कोई नयी बात !!

मैं तो दरिया हूं नये ख्वाब का ,बहने आया ।।
‘क्यों है खाली तेरा घर’, कोई ना कहने आया ।
तू गया छोड़ के तो कोई ना रहने आया ।।
My Photoशिखा वार्ष्णेय के स्पंदन  पर  इसरार बादल का  , गज़ब की सोच है…..कोई और इसरार करे ना करे  यह तो बादलों के साथ ही अपने सपनों के गाँव उड़ जाना चाहती हैं…

आज मुस्कुराता सा एक टुकडा बादल का
मेरे कमरे की खिड़की से झांक रहा था
कर रहा हो वो इसरार कुछ जैसे
जाने उसके मन में क्या मचल रहा था

***********************************************
My Photoपारुल के ब्लॉग Rhythm of words... पर क्यों दिखती नहीं वो.  अब मिलना ही ऐसी चीज़ से चाहती हैं  जो बहुत मुश्किल है….ज़रा आप भी पढ़ें ..
वो मुट्ठी बंद थी एक रोज से
जो जब तब खुल जाती थी
वो भी कोई दौर था
जब जिंदगी आबो-हवा में घुल जाती थी ।
वो एक ख़्वाबों की खुसफुस
जो बड़ा शोर करती थी
एक चुप्पी पे भी अम्मी
तब बड़ा गौर करती थी
My Photoअरुणा कपूर जी अपने मन की बेचैनी को    मेरी माला,मेरे मोती.  पर कुछ इस तरह बयां कर रही हैं ---   अंतर है...उनमें और हम में..
अब वे टिम-टिम नही, ट्विट-ट्विट करते है...
ब्लॉग हिंदी में नहीं, इंग्लिश में लिखतें है!

हिंदी फिल्मों में अभिनय करते है, तो क्या हुआ?
भारत में भी रहते है...तो क्या हुआ?

**********************************************
My Photo
रंजू भाटिया कुछ मेरी कलम से….ज़िंदगी को हिदायत देते हुए कह रही हैं कि  तब जिंदगी मेरी तरफ रुख करना   … पर कब ? यह जानिये इनकी यह रचना पढ़ कर
जिस तरफ़ देखो उस तरफ़ है
भागम भाग .....
हर कोई अपने में मस्त है
कैसी हो चली है यह ज़िन्दगी
एक अजब सी प्यास हर तरफ है
जब कुछ लम्हे लगे खाली
तब ज़िन्दगी
मेरी तरफ़ रुख करना

My Photoसंजय तिवारी को पढ़िए   "Aawara Rahi" पर … कह रहे हैं कि    आदत...  डाल लो….अब कैसी आदत डालनी है  यह जानना बाकी है -

आदत डाल लो,
समस्या जड़ से ख़त्म हो जायेगी
इसलिए,आदत डाल ली हमने
भूख से लड़ने की आदत
भय में जीने की आदत
गरीबी से जूझने की आदत
My Photoउपेन्द्र जी     सृजन _शिखर   पर मायावती जी के माध्यम से शासकों से कुछ कह रहे हैं   -
" मायावती जी सुनिए ! "
मायावती जी !
हमें पता चला है की
आप हजारों के बेड पे
चैन की नींद सोती है
करोड़ो के नोट की माला
पहनकर इठलाती है।
साखी   पर पढ़ें  राजेश उत्साही की कविताएं……
पानी
_________
पानी
अब कहीं नहीं है
विलोम अर्थ
वो
दुश्म‍न
नहीं हैं मेरे
हां, मैं उनका दुश्मन हूं
                                                                      

नवगीत की पाठशाला     पर    : कमल खिला : पूर्णिमा वर्मन

सेवा का सुफल मिला
धीरे से
मन के इस मंदिर का ताल हिला
कमल खिला
पंकिल इस जीवन को
जीवन की सीवन को
अनबन के ताने को
मेहनत के बाने को
My Photoराम त्यागी     कविता संग्रह  पर कह रहे हैं कि  
बढता ही जाऊँगा

मैं ना रुकूँगा
ना ही हारूँगा
बस प्रयास के रास्ते
बढता ही जाऊँगा !!
My Photoभागीरथ कनकनी  Santam Sukhaya  पर कैसे राम की  कल्पना कर रहे हैं ज़रा आप भी देखें ..

मेरी रामायण का राम

मै  फिर से   एक
रामायण लिखूंगा
जो एक आदर्श
रामायण
होगी.

My Photoराजीव रत्नेश    ek kona mera apna  पर  लिखते हैं … 
बस एक बार .......!!!!!!
तूलिका भी हो रंग भी हो ,
कनवास भी हो ,
और गर मैं
चित्रकार भी होता
फिर भी भगवन तुम्हारी
तस्वीर नहीं बना सकता ।
वाणी शर्मा  गीत मेरे ....  पर बहुत ही संवेदनशील रचना पेश कर रही हैं….घर की धुरी माँ  होती है और हर रिश्ते को कैसे निभाया जाता है ,यह वही कर सकती है..

बस माँ ही जानती है ... कलई चढ़ाना ... बर्तनों पर भी ,रिश्तों पर भी


माँ लौट आई है गाँव से
खंडहर होते उस मकान के इकलौते कमरे से
अपना कुछ पुराना समान लेकर
आया था जो विवाह में दायजा बन कर ..
My Photoराजेन्द्र स्वरंकर  को पढ़िए  शस्वरं »  पर  गोविंद से गुरु है बड़ा
गुरुपूर्णिमा पर लिखे उनके दोहे गुरु की महत्ता को बताते हैं …

शिल्पी छैनी से करे , सपनों को साकार !
अनगढ़ पत्थर से रचे , मनचाहा आकार !!
माटी रख कर चाक पर , घड़ा घड़े कुम्हार !
श्रेष्ठ गुरू मिल जाय तो , शिष्य पाय संस्कार !!
मेरा फोटोके० एल० कोरी की गज़लें बहुत खूबसूरत होती हैं . मेरे जज्बात »  पर उनकी गज़ल पढ़िए -

मेरा दिल ख्याली है..

मेरी सोच है संजीदा, मेरा दिल ख्याली है
बेतरतीब सी  मैंने एक दुनिया बना ली है
तुम आ जाओ और इनको छू लो होठों से
मेरी ग़ज़ल तुम्हारे बगैर खाली--खाली है


हमकलम :  पर पढ़िए   एकांत श्रीवास्तव की दो कवितायें

अनाम चिड़िया के नाम

गंगा इमली की पत्तियों में छुपकर
एक चिड़िया मुँह अँधेरे
बोलती है बहुत मीठी आवाज़ में


**********************************************
दु:ख
दु:ख जब तक हृदय में था
था बर्फ़ की तरह
पिघला तो उमड़ा आँसू बनकर
गिरा तो जल की तरह मिट्टी में
रिस गया भीतर बीज तक
नरेश शांडिल्य  की गज़लें पढ़िए  वाटिका »  पर    वाटिका - जुलाई, 2010
ये चार काग़ज़, ये लफ्ज़ ढाई
है उम्र भर की यही कमाई
किसी ने हम पर जिगर उलीचा
किसी ने हमसे नज़र चुराई
मेरा फोटोचैन सिंह शेखावत को पढ़िए   ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी   पर …. आज की विसंगतियाँ देख कवि के हृदय में जो आक्रोश जन्म लेता है उसी की बानगी मिलेगी    …    अन्नदाता हैं हमारे
सहते रहो पीठ पर
लातों के सन्नाटेदार चाबुक
अन्नदाता हैं हमारे
ये अमिट स्याही नहीं
कलंक है लोकतंत्र की उँगलियों पर
यही द्रोणाचार्य फिर
उखाड़ेंगे उँगलियों से नाखून
 स्वप्न  मंजूषा जी की ग़ज़लों से कौन वाकिफ नहीं है…. खूब लिखती हैं और कमाल का लिखती हैं  ..ज़रा आप भी गौर फरमाएं …
उफ़क से ये ज़मीन क्यूँ रूबरू नज़र आए ..
तेरा जमाल मुझे क्यूँ हर सू नज़र आए
इन बंद आँखों में भी बस तू नज़र आए

My Photoदेवेन्द्र  जी  अपनी   बेचैन आत्मा     से इस बार बात कर रहे हैं    सरकारी अनुदान  की ,  तीखा व्यंग पढ़ना है तो ज़रूर पढियेगा

झिंगुरों से पूछते, खेत के मेंढक
बिजली कड़की
बादल गरजे
बरसात हुयी
My Photoलमहा -लमहा » पर मैं नीर भरी के नाम से लिखती हैं ….आज उनके विचार जानिए..इंसान कहाँ खो रहा है…

आकाश से ज़मीन की रह गुजर में .

हम  खो गए
जैसे रास्तों पर
खो जाते हैं पावों के निशान 
फिर   खो
जाती है
स्फूर्ति सारी ताक़त सारा रस कहीं .!.


आज का काव्यमंच प्रवीण पांडे जी की कविता के बिना अधूरा ही रह जाता …आज की यह विशेष प्रस्तुति आप  सब के लिए …. जिन्होंने नहीं पढ़ा अब तक तो इसे ज़रूर पढ़ें और जो पढ़ चुके हैं दुबारा पढ़ें :):) …

न दैन्यं न पलायनम्   पर पढ़ें    नहीं दैन्यता और पलायन

अर्जुन का उद्घोष था 'न दैन्यं न पलायनम्'। पिछला जीवन यदि पाण्डवों सा बीता हो तो आपके अन्दर छिपा अर्जुन भी यही बोले संभवतः………….
मन में जग का बोझ, हृदय संकोच लिये क्यों घिरता हूँ,
राजपुत्र, अभिशाप-ग्रस्त हूँ, जंगल जंगल फिरता हूँ,
देवदत्त हुंकार भरे तो, समय शून्य हो जाता है,
गांडीव अँगड़ाई लेता, रिपुदल-बल थर्राता है,
बहुत सहा है छल प्रपंच, अब अन्यायों से लड़ने का मन,
नहीं दैन्यता और पलायन ।
आज  इस अर्जुन के उद्घोष के साथ ही चर्चा मंच का समापन करती हूँ ….आशा है आपको चर्चा पसंद आई होगी….इसकी सार्थकता आपके ही हाथों में निहित है….फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को कुछ विशेष चिट्ठों और सप्ताह के बेहतरीन लिंक्स के साथ….तब तक के लिए …..नमस्कार