सादर अभिवादन !
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सबका हार्दिक स्वागत
एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा का आरम्भ ब्लॉग जगत की जानी मानी
विदुषी लेखिका मीना शर्मा जी की रचना से-
जीवन की लंबी राहों में
पीछे छूटे सहचर कितने !
कितनी यात्रा बाकी है अब ?
कितना और मुझे चलना है ?
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अब बढ़ते हैं आज के चयनित सूत्रों की ओर-
दोहे "मत कर देना भूल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
![](https://lh3.googleusercontent.com/bsUBoBbfoZz_BmcYCxcOUMF3tjW_-yAz8hm4Ep8sUcr4UBwyaCF0n-Y-ti13lRzCuRr0ANzlY5qqqnxntrKH5IfH3ngJU2QMbHRZmfJx0ennpNU6U83ZzMXMnKj0w3tCiSZ7Gw38)
कवियों की रचनाओं में, होते भाव प्रधान।
सात सुरों का जानते, गायक ही विज्ञान।।
उच्चारण में शब्द की, मत कर देना भूल।
गाना कविता-गीत को, शब्दों के अनुकूल।।
कल्पनाओं में हैं निहित, जाने कितने अर्थ।
कविताओं की भावना, करते शब्द समर्थ।।
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कितना और मुझे चलना है ?
![](https://lh4.googleusercontent.com/uACemZPQFN9OKYhLWgn5z49ncAVRVnxoGhit823kXTcvHs-zvH5FWF2cZa_5BDDULIWwd0oCJBpPnZVP4ezXen0rYjXrN5Vrj-fLwRyAHCjJ6KEejpw0faa9wDgnCVUVNHpeJ9zL)
यूँ तो, इतनी आसानी से
मेरे कदम नहीं थकते हैं,
लेकिन जब संध्या की बेला
पीपल तले दिए जलते हैं !
मेरे हृदय - दीप की, कंपित
लौ पूछे, कितना जलना है ?
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राग- विराग -
![](https://lh6.googleusercontent.com/9hSZF0jPmRwV9jSdu-1qWI6y9GwDiZEFpD55phywLCqEi_5KFnhN0Q6NThF9I4juZ1WPs8hMur78vylmxpVIXjfCKTenhtG9QJygR4jy5YqLUopRmK0J3G73HfzlnDxA6eX-ZhrQ)
मन पर वराह मन्दिर का वातावरण छा गया. कर्ण-कुहरों में राम-कथा के बोल समाने लगे.लगा सूकरखेत में गुरु से सुनी रामकथा उच्चरित हो रही है .नया बोध उदित हुआ .
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बेचैनी
![](https://lh5.googleusercontent.com/RYDv10x92ZnNBCHtqOKOTEynJoDqemLMTS_7H__BP2KwX8mBl7SFizy6tGLsP7P4KxG0vRNIqFC-p9yBAk7kZjw-8DaB9b4ACczJgMXE0AXTAGzOtc3ZCwI6dmZI0wVMo5cOSaZe)
कोई जब बेचैन हो
कहाँ जाए किससे सलाह लें
यह सिलसिला कब तक चले
यह तक जान न पाए |
मन को वश में कितना रखे
कब तक रखे कैसे रखे
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एक रेलवे स्टेशन, जो ग्रामीणों के चंदे से चलता है
![](https://lh6.googleusercontent.com/XeNC6bIxFzCnMW82czKNtDnTx5pUO173lV9l2paouy_uq-eyDfWwfYJUTYLVLJt5aMyZo-2QgCtKbbYhMVUnnHLWMUi2-VDRKIWbmjt6SKdAHYTmmAYopKN0IndIWLN8RrKsI1Ky)
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि हमारे ही देश में एक ऐसा रेलवे स्टेशन भी है, जिसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए वहां के ग्रामीण हर महीने चंदा जुटा कर 1500 रूपए का टिकट खरीदते हैं, जिससे कि रेलवे उस स्टेशन को बंद ना कर दे !
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कोरा संवाद
![](https://lh5.googleusercontent.com/UbO3UfggrQu14bSAM8oaCg8oxyyXgdVz-X93GYJGk2u5q9soY46hl4FJQjl_gCiwfGw6RWeEKx4lAmjOV9pPGNQvW30RywNlU91Tg5oJdyAmF08kud7eKirlW-c83GBepgReiP2q)
राजतंत्र हो या लोकतंत्र सत्ता के मद में बहुधा जनप्रतिनिधि स्वयं को शासक और जनता को दास समझ लेते हैं। आज़ाद भारत में आज भी वही हो रहा है जो गुलामी के दौर में अंग्रेज़ अथवा इनसे पहले राजा और जमींदार अपनी प्रजा संग किया करते थे।
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स्वधर्म – परधर्म
![](https://lh4.googleusercontent.com/yNnXIQ9Wy2xhG7jL48XzmoyAU94sy_pZb1hLclQsxTr6wCVOw_Vimc6Ft9liA33HV9sK5CIwfDN7-0TIWk9gVGOIbMtBEghYvZEi4SefLAXaeLoEMjWIEJS1SDKIyHpRS4YFQIVM)
बाहर बहती हवा प्राण भीतर भरती है
भीतर व बाहर का भेद वृथा है
जो भीतर है वही बाहर है !
जो लेन-देन पर चलता है वह संसार है
जो स्वभाव से चलता है
वह अस्तित्व है
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मानव ही दानव
![](https://lh3.googleusercontent.com/J91caEr_z9A0l0hjW_W1lJv0CwU4FkMGheuuPf8wQfBXzX2boC4ff9ANtEkFZN6KvoinOj-nUFK0EpXwZ7uLROqecTMGkeQ5CQZXnF0URoDJ3X7LaDyCitjNwGGP2cYpcSWePNRy)
प्रीत दिखावे में लिपटी
जिव्हा भी मिसरी बोले।
पीछे पीठ पर घात करें
और जहर ज़िंदगी घोले।
मानव की कैसी ये लीला
विनाश पथ ही चलता।
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अवरोह पथ के साथी - -
![](https://lh5.googleusercontent.com/45HxMin9MaazaWLFZ76V8C7x9kEPaEuOlk61iz4noHaonv1hCIAOgLGItc9yLLKgFKHF2m1vZ9FfXCKhoEWkhE4Ia3fPeeFTBa_5N6f8ElrMxoGGGe3iN3R2cLcDckCxb_v7QDd1)
जाते हैं सभी मोक्ष के रास्ते, मृत्यु के
बाद भी ख़त्म नहीं होती ये ये जन्म
जन्मांतर की अनुरक्ति, मैं
आज भी नहीं चाहता,
ह्रदय दुर्ग से
तुम्हारी
मुक्ति।
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बुधवारीय स्तम्भ | विचार वर्षा 22 |
मंदोदरी और सत्य की पक्षधारिता |
डॉ. वर्षा सिंह
![](https://lh6.googleusercontent.com/L3kwIyWvfTWSLPU4NU4dbPiC1XV6OsXNBm4skgLYihIOdnkW_4b7r2OAXzCfijaONDYBywzyfh3IrFmps7zQPt1YAy0WSj-q5Y-L0FbIcCvhzz9kWQRCuoZTYPoGkXyCR0__rJGw)
पिछले दिनों ही आश्विन अथवा क्वांर की नवरात्रि के भक्ति काल का समापन हुआ है। नवरात्रि में नौ दिनों तक आदि शक्ति देवी माता दुर्गा के नौ रूपों की उपासना के बाद दसवीं तिथि दशहरा पर्व अथवा विजयादशमी पर्व के रूप में मनाई जाती है।
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नारी अस्मिता पर चोट कब तक?
![](https://lh5.googleusercontent.com/B4Pnye6vP0lqvqK8KGkFwsJpdN-FauPjJponnl_au7Xw7vUVzVnsYkciYdgu9Ji_Q0uHb6dMyt5kdxSKpXVj0mzOQ9iECHpF_c8ZeE05042dFLA1IY9NQZPgDU_azrwYxyqFJ7pO)
जीवन उपवन इतना सुना क्यों है
राहों पर इतना सन्नाटा क्यों है
सहमी सहमी डरी डरी कलियां ....
उजालो के घर अँधेरा क्यों है।।
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आपका दिन मंगलमय हो...
फिर मिलेंगे…
🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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