सादर अभिवादन।
दिसंबर माह की तीसरी प्रस्तुति लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
आदरणीय रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी अपनी रचना में प्रकृति की विविधता का बखान करते हुए सकारात्मक विचारों की ओर मुड़ने का संदेश दे रहे हैं-
"झोंके मस्त बयार के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नग से भू तक, कलकल करती, सरिताएँ बहती जायें,
शस्यश्यामला अपनी धरती, अन्न हमेशा उपजायें,
मिल-जुलकर सब पर्व मनायें, थाल सजें उपहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
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परिवर्तन प्रकृति का नियम है। रचनात्मक परिवर्तन हमें भाता भी ख़ूब है किंतु झूठ जब उजागर हो जाता है तब मन खिन्नता से भर जाता है। पढ़िए डॉ.(सुश्री ) शरद सिंह जी की एक मनमोहक रचना-
शायरी | फिर कहो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
बेअसर लगने लगीं बातें तुम्हारी
झूठ का लहज़ा बदल लो, फिर कहो
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आदरणीय शांतनु सान्याल जी का गंभीर चिंतन हम सबको ख़ूब रस विभोर करता है। पढ़िए उनकी एक रचना जिसका हर शेर अलग-अलग रंगों की छटा बिखेरता है-
ग़ज़ल - -*****मेले भारतीय संस्कृति का ख़ूबसूरत पहलू हैं। मेले लोगों को लोगों से जोड़ते हैं। आदरणीया कविता रावत जी पेश कर रही हैं भोजपाल महोत्सव के ख़ास रंग-भोजपाल महोत्सव मेलामेले में गए और वहां कुछ चटपटा देखने के बाद उसका स्वाद चखने-खाने का मन न हो, ऐसा कभी होता नहीं, इसके बिना गाड़ी भी आगे नहीं बढ पाती है। यहां भी देशी-विदेशी खाने-पीने की छोटी-बड़ी कई दुकानें सजी हुई थी, जिनमें लोग पेट-पूजा करने में लगे हुए थे।
एक सैनिक का देश के लिए सर्वोच्च बलिदान अविस्मरणीय होता है। पढ़िए एक बलिदानी सैनिक की शौर्य गाथा जिसे पेश कर रहे हैं आदरणीय ओंकार सिंह विवेक जी -
शौर्य चक्र विजेता फौजी बलिदानी रंजीत सिंहबलिदानी रंजीत सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के छोटे से जनपद रामपुर के सैदनगर ब्लॉक के अलीपुरा गांव में हुआ था।बलिदानी के पिता श्री सत्यपाल सिंह जी ने बताया कि रंजीत का शुरू से ही सपना था कि वह पढ़-लिखकर फौज में जाकर देश की सेवा करे।परिवार के लोग भी उसके जज़्बे को देखकर गर्व महसूस करते थे।यही कारण है की उसे सहर्ष फौज में भर्ती होने की अनुमति भी घर से मिल गई थी।
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जीवन संघर्ष की प्रेरणा शब्दों के ज़रिये उत्पन्न करना लाजवाब सृजन है। पढ़िए एक रचना जो जीवन के नए अर्थों की ओर हमें मोड़ती है-
भूमि ने है दिया भरोसा
खूब उड़ो तुम नील गगन में
यदि कभी कमजोर पड़े तो
साहस लेना तुम मुझसे |
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सृजन का अनूठा अंदाज़ आदरणीय ओंकार जी की रचनाओं में नज़र आता है। मौसम पर रची गई इस रचना ने मेरा मन मोह लिया-
जब मुझमें पतझड़ होता है,
तुममें वसंत,
जब मुझमें ठण्ड होती है,
तुममें बरसात,
हममें मौसम तो एक जैसे हैं,
पर उनका टाइमिंग अलग है.
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर समीक्षा के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय चर्चाकारः रवीन्द्र सिंह यादव जी।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा ।मेरी पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
let's be friend
सार्थक चयन. बधाई.
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