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Thursday, March 30, 2023

"रामनवमी : श्रीराम जन्मोत्सव" (चर्चा अंक 4651)

 मित्रों!

प्रस्तुत है

मार्च के अन्तिम बृहस्पतिवार की चर्चा!

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आया पावन मंगलकारी 

आया पावन मंगलकारी

श्री रामचंद्र का जन्म दिवस

हे प्रेरणाओं के प्रकाश पुंज 

हर लो धरती से अज्ञान तमस. 

BHARTI DAS 

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रामनवमी : श्रीराम जन्मोत्सव 

जब मंद-मंद शीतल सुगंधित वायु प्रवाहित हो रही थी, साधुजन प्रसन्नचित्त उत्साहित हो रहे थे, वन प्रफुल्लित हो उठे, पर्वतों में मणि की खदानें उत्पन्न हो गई और नदियों में अमृत तुल्य जल बहने लगा तब-
नवमी तिथि मधुमास पुनीता सुक्ल पक्ष अभिजित हरि प्रीता।
मध्यदिवस अति सीत न घामा पावन काल लोक विश्रामा।।
          अर्थात- चैत्र के पवित्र माह की अभिजित शुभ तिथि शुक्ल पक्ष की नवमी को जब न बहुत शीत थी न धूप थी, सब लोक को विश्राम देने वाला समय था, ऐसे में विश्वकर्मा द्वारा रचित स्वर्ग सम अयोध्या पुरी में रघुवंशमणि परम धर्मात्मा, सर्वगुण विधान, ज्ञान हृदय में भगवान की पूर्ण भक्ति रखने वाले महाराज दशरथ के महल में-
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी। 

KAVITA RAWAT 

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"माता का वरदान" 

व्रत-तप-पूजन के लिएआते हैं नवरात।

माँ को मत बिसराइएबदलेंगे हालात।।

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मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल )निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के नौ दोहे माता के हर रूप में, ममता का भंडार। कृष्णम् बच्चों को सदा, करती लाड़ दुलार।।1।। मातृशक्ति का जो करें, जन, मन से गुणगान। चाकर बन उनके रहें, सुख के सब सामान।।2।। भक्तों को जगदंबिका, होती कोमल फूल। दुष्टों को चुभती मगर, जैसे घातक शूल।।3।। 

साहित्यिक मुरादाबाद 

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मात्र मात्राओं का खेल है ...  एक वैज्ञानिक का नज़रिया ... समीक्षा १ 

मात्रमात्राओंकाखेलहै #निवेदिन *कविता में विज्ञान और विज्ञान में कविता देखने वाले डॉ. विनोद तिवारी भौतिक विज्ञान के शोध कर्ता और काव्यालय https://kaavyaalaya.org/ के सम्पादक हैं जिन की ईमेल द्वारा भेजी चिट्ठी पढ़ने के बाद साँझा किये बिना नहीं रह सकी |भौतिकी में शोध कार्य के लिये उन्हें प्राइड आफ इंडिया पुरस्कार, अमरीका सरकार का पदक, और लाइफ-टाइम-एचीवमेंट पुरस्कार मिल चुके हैं एवं कई बरसों से Boulder, Colorado; USA में रहते हैं | Sunehra Ehsaas 

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करें नववर्ष का स्वागत (गीत) 

करें नव वर्ष का स्वागत, तहेदिल से सभी मिलके।

ये सृष्टि हंस रही है आज,अभिनंदन में खिलखिल के।


सजी है भोर सिंदूरी अवनि से दूर अंबर तक,

पहन कर किरण पैजनियाँ उतरती आज हो रुनझुन।

झुकी हैं बाग में डाली भरी गदराई कलियों से,

झरें मकरंद, भौरों की सुखद आमद करे गुनगुन॥


फलेंगे और फूलेंगे, कुसुम बन भाव हर दिल के।

करें नव वर्ष का स्वागत, तहेदिल से सभी मिल के॥

जिज्ञासा की जिज्ञासा 

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तोता चशमी 

टहटह लाल माँग, कजरा, गजरा, बिन्दी, चूड़ी, पायल, बिछिया, मंगलसूत्र, मन्दिर-महलों के लगभग सभी प्रमुख द्वारस्तंभों पर अंकित सोलह शृंगारों के दृश्य से कुछ ही चीजें कम धारण किए,

बुजुर्गों को और सभी मनपसंद चीजें धूल-धूसरित होने छोड़ जाते हैं, बेटे भी विदा होते हैं••• आधारित पूरी रचना पढ़ते-पढ़ते नायिका फफ़क पड़ी। 

"सोच का सृजन" 

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किताब परिचय: मौत का विलाप | सुरेन्द्र मोहन पाठक | साहित्य विमर्श प्रकाशन 

एक बुक जर्नल 

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मुझे तुमसे कुछ ना चाहिए तुमसे कुछ ना चाहिए प्यार के सिवाय 

जीवन बहुत सीधा साधा 

कोई जीवन की रंगीनिया नहीं |

सीधा साधा है यह तो |

मुझे सादगी से लगाव है  

Akanksha -asha.blog spot.com 

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बरसों से हम और आप कितने उदास हैं 

बरसों से हम और आप कितने उदास हैं

रह के भी दूर-दूर हम इतने पास हैं 

घर से गए जो आप तो घर घर लगा नहीं 

आएँगे इक दिन आप फिर ये मेरी आस है

उधेड़-बुन 

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अपना अपना कयास 

अग्निशिखा 

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गोडाण 

गोडाण! नाम सुनकर आप कहेंगे यह किस चिड़िया का नाम है। यह उस चिड़िया का नाम है, जिसके नाम-ओ- निशां मिट जाने को हैं। सदियों से सताई जा रही चिड़िया। कुदरती शर्मिली, लेकिन कण्ठ खोलती, तो पूरा गांव सुनता। कभी भारत भर में गूंजने वाला इस गगनभेर का स्वर अब केवल जैसलमेर के धोरों में गाहे-बगाहे सुनाई देता है।Bahut-kuch 

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नारी उत्पीडन और धार्मिक आस्था 

यह बड़े दुख की बात है कि आज के तथाकथित सभ्यशिक्षित एवं आधुनिक समाज में भी नारी उत्पीडन का शिकार हो रही है ! समाज के कुछ तथाकथित पुरोधा और चंद महिला संगठन कितने ही दावे कर लें आये दिन समाचारपत्रों में छपी घरेलू हिंसा की शिकार हुई स्त्रियों, दरिन्दगी और दुष्कर्म की शिकार हुई बालिग़ नाबालिग बच्चियों के समाचार स्वयमेव इन दावों को झुठला देते हैं !

सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि जब भी धर्म और आस्था की बात आती है हीन मानसिकता वाले कुछ पुरुष अपनी इस दुर्भावना को बड़ी दक्षता के साथ श्रद्धा और भक्ति के मुखौटे के नीचे छिपा कर देवी माँ की पूजा अर्चना आराधना में डूबे दिखाई देते हैं ! नवरात्र के आरम्भ होते ही देवी की पूजा आराधना का पर्व आरम्भ हो जाता है जिसे प्राय: अधिकांश सनातन धर्मावलम्बियों के यहाँ बड़े विधि विधान से मनाया जाता है ! पहले ये पर्व बिना विशेष आडम्बर एवं दिखावे के घरेलू स्तर पर श्रद्धा भाव से मना लिया जाता था लेकिन इधर कुछ समय से फिल्मों एवं दूरदर्शन के प्रभाव के कारण इन छोटे छोटे अनुष्ठानों में भी बहुत अधिक आडम्बर और प्रदर्शन की प्रवृत्ति का समावेश हो गया है !

Sudhinama 

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चमकता सितारा चुभन भरा कांटा 

यह एक किस्सागो के जीवन का किस्सा हैजिसको उनकी ही जुबानी सुनने के लिए साक्षात्कार कर्ता तो निमित मात्र है. 25 नवम्बर 2022 की एक दोस्ताना शाम को किस्सागो सुभाष पंत जी के आवास पर ही बतियाने के लिए पहुंच जाने का प्रतिफल. उस वक्त ऐसी कोई योजना तो दूर, ख्वाब भी नहीं था कि किसी माह भर की समस्त पोस्ट्स को एक रचनाकार पर केंद्रित करते हुए ब्लाग पर विशेषांक भी निकाला जा सकता है. तब भी बातचीत को रिकार्ड यह सोच के कर लिया था कि इसका कोई सार्थक उपयोग किया जाएगा.

मेरा मानना है कि कथाकार सुभाष पंत से यह बातचीत इस ब्लाग के लिए ही नहीं हिंदी साहित्य की दुनिया के लिए एक तोहफा है.  लिखो यहां वहां 

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राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March || 

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||
आज भी चिखतें है दरो दिवार महलों के 
भरते सिसकियाँ कंगूरे आज भी झरोखों के
बहुत करीब से देखी आहूतियाँ बलिदान की
तब बचा पाए रणबांकुरे शीश इन दुर्गों के

प्रतिवर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस अथवा राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष आज के दिन राजस्थान का 74 वा स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान सङ्घ' बना था।

Rupa Oos Ki Ek Boond... 

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गीत "'रूप' बदलता जाता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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मोम कभी हो जाता है, तो पत्थर भी बन जाता है।
दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।।

कभी किसी की नहीं मानता,
प्रतिबन्धों को नहीं जानता।
भरता है बिन पंख उड़ानें,
जगह-जगह की ख़ाक छानता।
वही काम करता है यह, जो इसके मन को भाता है।
दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।।

उच्चारण 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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Sunday, March 26, 2023

"चैत्र नवरात्र" (चर्चा अंक 4650)

 मित्रों!

मार्च के अन्तिम रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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देखिए कुछ ब्लॉग पोस्टों के अद्यतन लिंक।

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नवरात्र और मैं ~ 

मार्च का महीना यानी हिंदू नववर्ष का प्रारम्भ जो माता रानी जगत जननी माँ अम्बे के आशीर्वाद के साथ प्रारम्भ होता है। यानी "गुड़ी पड़वा" अर्थात "चैत्र नवरात्र" का प्रथम दिवस और पूरे नो दिन धूम मचाने के बाद हमारे हम सब के प्रिय श्री राम लला का जन्मोत्सव और क्या ही शुभ शगुन चाहिए नववर्ष के आरंभ के लिए. यूँ तो साल में चार नवरात्र आते है मगर मुझे इस विषय में अब तक कोई जानकारी नहीं थी जैसे 

1. शारदीय नवरात्र 
2. गुप्त नवरात्र 
3. चैत्र नवरात्र 
4. गुप्त नवरात्र 

मेरे अनुभव (Mere Anubhav) 

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गूँगी गुड़िया : पहाड़ 

कुछ लोग उसे

पहाड़ कहते थे, कुछ पत्थरों का ढ़ेर

सभी का अपना-अपना मंतव्य

अपने ही विचारों से गढ़ा सेतु था 

आघात नहीं पहुँचता शब्दों से उसे 

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कर्ता भाव से मुक्त हुआ जो जब हम घटनाओं के साक्षी बन जाते हैं, तो मुक्ति का अहसास  सहज ही होता है। हम सभी ने यह अनुभव किया है। कई बार हम क्रोध करना नहीं चाहते थे लेकिन किसी बात से क्रोधित हो गए और खुद पर आश्चर्य हुआ।यह क्रोध हमारे भीतर संस्कार रूप से मौजूद था और जब तक वह संस्कार बना रहेगा, हमारे न चाहने पर भी क्रोध आएगा। सुबह से रात्रि तक इस सृष्टि में सब कुछ हो रहा है।कोई उन्हें  कर नहीं रहा है। कोई चित्रकार किसी दिन एक चित्र बना लेता है और कवि किसी दिन बहुत अच्छी कविता लिखता है। उनसे कोई पूछे, तो वे आश्चर्य करते हैं कि यह कैसे हुआ! उनके मन की गहराई में वे सब मौजूद है, जो उचित समय आने पर व्यक्त हो जाता है । जीवन ने हमें कदम-कदम पर सिखाया है कि यहाँ सब कुछ हो रहा है। हम कर्ता नहीं हैं। बड़े से बड़ा अपराधी भी कहता है, उसने अपराध नहीं किया, किसी क्षण में यह उससे हो गया। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मनुष्य अब भी इसे कैसे नहीं देख पाता कि वह कई कार्य स्वभाव वश ही करता है ! मनुष्य सोचता भर है कि वह स्वयं निर्णय लेकर रहा है। कोई कह सकता है कि यदि उसने प्रयास न किया होता तो उसके जीवन में वह सब न होता जो आज है। पर जीवन में हमें जहाँ जन्म मिला, जैसे परिस्थितियाँ मिलीं, उनमें हमारा क्या हाथ था, हमारे पास उस स्थिति में वही प्रयास करने के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं था। किन्हीं कारणों हमारा जीवन एक विशेष दिशा ले ले लेता है और उस दिशा में बहने लगता है।  डायरी के पन्नों से अनीता

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पानी पर कब्जे की लड़ाई या सहयोग? 

जनवरी के महीने में जब भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जलसंधि पर संशोधन का सुझाव देते हुए एक नोटिस दिया था, तभी स्पष्ट हो गया था कि यह एक नए राजनीतिक टकराव का प्रस्थान-बिंदु है. सिंधु जलसंधि दुनिया के सबसे उदार जल-समझौतों में से एक है. भारत ने सिंधु नदी से संबद्ध छह नदियों के पानी का पाकिस्तान को उदारता के साथ इस्तेमाल करने का मौका दिया है. अब जब भारत ने इस संधि के तहत अपने हिस्से के पानी के इस्तेमाल का फैसला किया, तो पाकिस्तान ने आपत्ति दर्ज करा दी. जिज्ञासा 

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एक मुल्क 

जैसे कोई जल 

विलग हो जाए 

बहते दरिया से 

तो सूखने लगता है 

वैसे ही झुलस रहा है एक मुल्क 

अपने स्रोत से बिछड़ा 

मन पाए विश्राम जहाँ  अनीता

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हम सब ईमानदार शरीफ़ लोग हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया मुझे कोई तीस साल पुरानी खबर याद आई आल इंडिया रेडियो पर सीधा प्रसारण हो रहा था जिस में इक बच्चे ने कविता नुमा बोल दिया था गली गली में शोर है .............. चोर है । तब अख़बार में बहुत कुछ हुआ राजनेताओं ने भाषण में जाने क्या क्या कहा सब हुआ यहां तक की पुरानी कहानी पढ़ने को मिली जो हमने नहीं सुनी थी तब तक , " राजा नंगा है " । लेकिन अब समझ आया है कि उस पर मुकदमा दायर किया जाना चाहिए था और चोरी साबित नहीं होने पर सज़ा मिलनी चाहिए थी । बच्चा होने से कोई बच नहीं सकता है और ढूंढना होगा अब तक वो लड़की या लड़का चालीस से ऊपर का हो गया होगा उस पर अभियोग चला कर न्याय की मिसाल कायम की जा सकती है । ऐसा किसी व्यक्ति की मान सम्मान की खातिर नहीं बल्कि हर  किसी की इज़्ज़त समान होती है इस खातिर किया जाना ज़रूरी है । क्या आपको ये हंसी मज़ाक की बात लगती है जी नहीं विषय बेहद गंभीर है ।Expressions by Dr Lok Setia 

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कार्टून :- मानहानि 

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साथी कैसा हो 

साथी  ऐसा हो 

जिसे भले बुरे का हो ज्ञान 

समझाने का तरीका 

हो सरल प्रेम भरा | 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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विश्व क्षय रोग दिवस : टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य और चुनौतियां 

शब्द-शिखर 

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जीने की ख़्वाहिश 

अग्निशिखा 

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लेखक, अनुवादक यादवेन्द्र के शब्दो में कथाकार सुभाष पंत का स्कैच 

मैंने जब पंतजी से इन दोनों घटनाओं पर कहानियाँ लिखने के बारे में पूछा तो उन्होंने बड़ी सहजता और दृढ़ता से जवाब दिया कि ये मेरे जीवन का "फिक्स्ड डिपॉज़िट" है जिसको मैंने सोच रखा है काम चलाने के लिए कभी तुड़ाऊँगा नहीं ..... और हमेशा ये घटनाएँ मुझे दिये की तरह रोशनी दिखाती रहेंगी और यह बताती रहेंगी कि मुझे किनके बारे में और किनके लिए लिखना है। लिखो यहां वहां 

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स्वर्ग की सराय 

राष्ट्राध्यक्ष ने युद्ध का ऐसा बखान किया
जैसे हो कोई जादुई प्रेम-रस।
मेरी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गई थीं। 

Lyrics of Life 

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कलसी,जगतग्राम, सुमनक्यारी, नैनबन्ध विकासनगर किसी कारण से 2 दिन रुकना पड़ा, कारण बाद में बताएंगे। तो आज दोपहर तक हमारे पास विकासनगर में समय था, Vikas Porwal जी ने मार्गदर्शन किया और कहा कि आप कलसी में सम्राट अशोक का शिलालेख देख लें, जो कि उत्तराखंड में एकमात्र शिलालेख पाया गया है। और दूसरी जगह जगतग्राम जहाँ अश्वमेध यज्ञ के होने के प्रमाण पाये गये हैं। कल्पतरू 

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मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी) वैशाली रस्तोगी की तीन काव्य कृतियों मेरे चारों धाम (दोहा संग्रह), करती खुद को मैं नमन (कविता संग्रह), तथा शुभ-प्रभात (हाइकु संग्रह) का जनपद संभल की साहित्यिक संस्था परिवर्तन ट्रस्ट(पंजी) के तत्वावधान में आयोजित भव्य समारोह में किया गया लोकार्पण 

साहित्यिक मुरादाबाद 

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काग़ज़ पे क़लम से लिखा 

काग़ज़ पे कलम से लिखा 

तो कहने लगे मेहनत है

वही काम फ़ोन पे किया

तो कहने लगे लानत है

उधेड़-बुन 

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आज फिर उन्हें सताने का मन करता है ! 

आज फिर उन्हें #सताने का मन करता है , 
आज फिर  #रूठ जाने का मन करता है । 

कर दूं बातें उनकी अनसुनी ,

बैठ जाऊं मुंह फेरकर कहीं ,

नजर न आऊं रहकर भी वहीं ,

कुछ देर उनसे खुद को छुपाने का मन करता है ।

Abhivyakti Deep - अभिव्यक्ति दीप 

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मित्र की शिक्षा मानो : पंचतंत्र || Mitra ki Shiksha Mano : Panchtantra || 

मित्र की शिक्षा मानो : पंचतंत्र || Mitra ki Shiksha Mano : Panchtantra ||

एक बार मन्थरक नाम के जुलाहे के सब उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गए उपकरणों को फिर बनाने के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी। लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी लेकर यह समुद्र तट पर स्थित वन की ओर चल दिया। समुद्र के किनारे पहुँचकर उसने एक वृक्ष देखा और सोचा कि इसकी लकड़ी से उसके सब उपकरण बन जाएँगे। यह सोचकर वृक्ष के तने में वह कुल्हाड़ी मारने को ही था कि वृक्ष की शाखा पर बैठे हुए एक देव ने उसे कहा- मैं वृक्ष पर सुख से रहता हूँ और समुद्र की शीतल हवा का आनन्द लेता हूँ। तुम्हारा इस वृक्ष को काटना उचित नहीं। दूसरे के सुख को छीनने वाला कभी सुखी नहीं होता। 

Rupa Oos Ki Ek Boond... 

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वो आप थे  

जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी, 

वो आप थे! 

तभी तो, वो एहसास था, 

सर्द सा वो हवा भी, बदहवास था, 

कर सका, ना असर, 

गर्म सांसों पर, 

सह पे जिसकी, करता रहा अनसुनी, 

वो आप थे! 

कविता "जीवन कलश" 

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ज़िद 

हम एक ही रास्ते पर चले, एक ही मंज़िल की ओर बढ़े, पर साथ-साथ नहीं, कोई वजह तो नहीं थी, बस एक झिझक थी, एक ज़िद थी  कि हम अकेले भी चल सकते हैं. 

कविताएँ 

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पुस्तक समीक्षा "चंचल अठसई" दोहा संग्रह (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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      अपने पिछत्तर साल के जीवन में मैंने यह देखा है कि गद्य-पद्य में रचनाधर्मी बहुत लम्बे समय से सृजन कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो दोहों की रचना में आज भी संलग्न हैं। "चंचल अठसई" मेरे विचार से कोई नया प्रयोग तो नहीं है। किन्तु इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को दोहों की विशेषताओं का संग-साथ लेकर कवि ओम् शरण आर्य ने अपने दोहा-संकलन में पिरोया है। जिसकी जितनी प्रशंसा की जाये वो कम ही होगी।

उच्चारण 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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