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गुरुवार, फ़रवरी 28, 2013

साथी हुए जुदा ( चर्चा - 1169 )


 मित्रों!
आज “मयंक का कोना” में पढ़िए-
पोस्ट तो चाहे जैसी भी हो मगर 
इस ब्लॉग के संचालक के मन में 
कितनी वैमनस्यता भरी है, 
यह आपको इन ज़नाब के कमेंटों से ही पता लग जायेगा।
हम तो सब धर्मों का आदर करते हैं 
मगर ये तो सीधे-सीधे एक धर्म विशेष को 
नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। 
जो सर्वथा निन्दनीय है।
इन्होंने तो चर्चा मंच पर भी लांछन लगाया है 
जो कि ब्लॉग जगत में एक सेतु का काम कर रहा है।
देखिए चर्चा मंच का इनका दिया हुआ लिंक 
और बताइए कि इसमें आपत्तिजनक क्या है?
http://charchamanch.
blogspot.in/2012/04/840.html
रही बात इस पोस्ट की तो इसका मूल उल्लेख तो 
मुझे कहीं पर भी नहीं मिला। 
इससे तो यह प्रमाणित होता है कि धर्म विशेष को 
नीचा दिखाने के लिए यह पोस्ट इनके मन की देन है।
Posted by DR. ANWER JAMAL at 4:36 PM
शगुन गुप्ता कहती हैं कि 
हाल ही में मेरे पड़ोस में रहने वाली आंटी जी की मौत 
हुई भगवान की दया से मौत देखने 
और उससे जुड़े रीति रिवाज़ों को समझने का 
ये मेरा पहला मौका था। 
अब तक बस ये पता था की दिल की धड़कन रुक जाती है 
और जान निकल जाती है
अब पता चला कि जान निकलते वक्त बहुत तड़पाती है। 
आंटी जी के दोनों बच्चे मेरे हमउम्र हैं 
और हम तीनों को नहीं पता था कि प्राण पलंग पर नहीं 
ज़मीन पर निकलने चाहियें नहीं 
तो मुक्ति नहीं मिलेगी हाँ गंगाजल पिला दिया था 
और हाथ पाँव भी सीधे कर दिये थे 
(क्योंकि खून का दौरा रुक जाने से शरीर अकड़ जाता है 
और अंगों को सीधा करने के लिये उन्हें तोड़ना पड़ता है) 
------------
नोट: लिंक ऊपर शीर्षक में पेवस्त है.
8 COMMENTS:
रविकर said...
कर्म काण्ड |छूट भी है-
अपने स्नेही के जाने का गम-
ध्यान भटकाने के कई उपाय-
राम जाने-
इस प्रकार की पोस्ट लगाकर वैंनस्यता को मत बढाइए।
कोई भी धर्म छोटा बड़ा नहीं होता।
जिसका जिसमें अकीदा है उसे उस पर आचरण करना चाहिए!
DR. ANWER JAMAL said...
आदरणय रूपचंद शास्त्री जी ! 
शगुन गुप्ता जी ने अपनी पोस्ट में अंतिम संस्कार को 
निकट से देखने के अपने पहले अनुभव को शेयर किया है। हमने एक अंश के साथ उनकी पोस्ट की सूचना 
ब्लॉग की ख़बरें‘ पर दी है। 
आपको पोस्ट पर कोई आपत्ति है तो आप उसे 
पोस्ट लेखिका शगुन गुप्ता‘ को दे सकते हैं।
आप स्वयं चर्चामंच पर हर तरह की 

पोस्ट्स के लिंक्स देते हैं। 
आपके लिंक संकलन पर किसी ने 
कभी आपत्ति जताई 
तो आपने सदा यही कहा है कि यह प्रतिक्रिया 
पोस्ट पर दी जाए।
 हम भी यही कहेंगे।
आपकी प्रतिक्रिया के बाद हम आपसे यह पूछना चाहेंगे 

कि आपके चर्चामंच पर आदम हव्वा का 
नंगा फ़ोटो तक लगाया गया 
और हमने उस पर आपत्ति जताई थी 
लेकिन आपने उसे आज तक नहीं हटाया।
क्या आप किसी पैग़म्बर के नंगे फोटो को लगाना 

वैमनस्य पैदा करने वाला नहीं मानते ?
लिंक यह है-
http://charchamanch.

blogspot.in/2012/04/840.html
इसी क्रम में कमल कुमार नारद की वे पोस्ट्स हैं
जिसमें उसने   इसलामक़ुरआन 
और पैग़म्बर (स.) का मज़ाक़ उड़ाया है। 
उनके लिंक्स भी आपके चर्चामंच पर 
आज तक शोभायमान हैं और आपके चर्चामंच द्वारा नफ़रत फैलाने वाली पोस्ट्स को पाठक भेजे गए।
आपकी राय का आदर करते हुए हमने 

पोस्ट को एडिट करके आपत्तिजनक 
लगने वाली बातों को हटा दिया है। 
आप भी ऐसी सभी पोस्ट्स को एडिट करके 
आपत्तिजनक लिंक्स को हटा दें।
नापने का पैमाना एक रखना चाहिए।
तो आप विद्वान होकर बदले की भावना से
 काम कर रहे हो क्या
मैंने तो सुझाव दिया था

आपको बुरा लगा हो तो जाने दीजिए
रही बात चर्चा मंच की तो उसमें 

किसी की पोस्ट पोस्ट के रूप में नहीं लगाई जाती है।
केवल चर्चा ही की जाती हैमात्र लिंक देकर।
DR. ANWER JAMAL said...
मान्यवर रूपचंद शास्त्री जी ! 
‘ नापने का पैमाना एक रखना चाहिए
यह याद दिलाना बदले की भावना कैसे हो कहलाएगा ?
अगर गिलास भर कर शराब पीना बुरा है 
तो अंगुलि भर पीना भी वर्जित ही है।
पैग़म्बर के नंगे फ़ोटो लगाने पर आपको 

अभी भी शर्मिंदगी महसूस नहीं हो रही है। 
अफ़सोस की बात है।
इस प्रकार की पोस्ट लगाकर 
वैंनस्यता को मत बढाइए।
कोई भी धर्म छोटा बड़ा नहीं होता।
जिसका जिसमें अकीदा है 

उसे उस पर आचरण करना चाहिए!
--
इस कमेंट में बुरी लगने वाली क्या बात है?
मान्यवर असली पोस्ट उड़ चुकी है 
उस पर कमेंट कैसे करें
बहुत कुछ नहीं कहना बस इतनी इल्तिजा है कि

 दूसरे के घर में झांकना कभी अच्छा नहीं होता
रिवाज सबके अपने अपने है
रही कुरीतियों की बात तो यह कहाँ नहीं
आपने एक लिंक दिया है-
http://charchamanch.

blogspot.in/2012/04/840.html
क्या है इस लिंक में?

आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 
anju nagpal
चर्चा हेतु जब ब्लॉग भ्रमण पर निकला तो टिप्स हिंदी में ब्लॉग पर दुखद समाचार मिला । तीन फरवरी को विनीत नागपाल जी की पत्नी का देहांत महज 38 वर्ष की आयु में हो गया । इस दुःख की घड़ी में चर्चा मंच परिवार उनके साथ है और भगवान से दिवंगत आत्मा की शांति और परिवार को दुःख सहने की शक्ति की कामना करता है । 
चलते हैं चर्चा की ओर 
ग़ज़लगंगा.dg
 
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बुधवार, फ़रवरी 27, 2013

नहीं हिन्दु में ताब, पटे ना मोदी सौदा / चर्चा मंच 1168




  (विष्णु बैरागी) 

 एकोऽहम्
सौदायिक बिन व्याहता, करने चली सिंगार |
गहने पहने मांग कर, लेती कई उधार |

(भाजपा की ओर इशारा)
 

लेती कई उधार, खफा पटना पटनायक |
खानम खाए खार, करे खारिज खलनायक |

(जदयू, बीजद , मुस्लिम) 
हौदा हाथी रहित, साइकिल बिना घरौंदा |
 नहीं हिन्दु में ताब, पटे ना मोदी सौदा ||

(माया-मुलायम)
सौदायिक= स्त्री-धन नइखे= नहीं






 मायावी दिल्ली किला, जिला-जीत जम जाँय । 
जिला मिला मुर्दा रखें, मुद्दा दें भटकाय । 

मुद्दा दें भटकाय, नजर तख्ते-ताउस पर । 
वोट बैंक का खेल, नजर सबकी हाउस पर । 

पटना पटनाएक, जया ममता बहकाया ।  
 चूक रहे चौहान, चूकते मोदी माया ॥


गोरु गोरस गोरसी,  गौरैया गोराटि ।
  गो गोबर गोसा गणित, गोशाला परिपाटि । 
 
गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी ।
पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी । 
 
गाँव गाँव में जंग,  जमीं जर जल्पक जोरू । 
 भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥ 
गोसा=गोइंठा / उपला
गोरसी = अंगीठी 
गोरु = जानवर 
गोराटि = मैना 
पाग=पगड़ी  
जलपक =बकवादी  


पिस्सू-मच्छर-खटमल Vs जूँ-चीलर

पिस्सू मच्छर तेज हैं, देते खटमल भेज । 
जगह जगह कब्जा करें, खटिया कुर्सी मेज ।  
खटिया कुर्सी मेज, कान पर जूँ  ना रेंगे । 
देते कड़े बयान, किन्तु विस्फोट सहेंगे । 
चीलर रक्त सफ़ेद, लाल तो बहे सड़क पर। 
करके धूम-धड़ाक, चूसते पिस्सू मच्छर।।


Kailash Sharma


डा. मेराज अहमद


पूरण खण्डेलवाल 


expression  

Pill-free ways to keep your blood pressure in check this summer

Virendra Kumar Sharma 



भारत योगी 


क्षणिकाएँ

Kalipad "Prasad" 



noreply@blogger.com (सतीश पंचम) 


रश्मि प्रभा... 


अपने लाडले को बिगाडिये मत ..

ZEAL 
 ZEAL -


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण

कटी है उम्र गीतों में, मगर लिखना नहीं आया।
तभी तो हाट में हमको, अभी बिकना नहीं आया।


Bamulahija dot Com 



Shah Nawaz 





छंद सरसी

अरुण कुमार निगम  
छंद सरसी
[16, 11 पर यति, कुल 27 मात्राएँ , पदांत में गुरु लघु]

चाक  निरंतर  रहे  घूमता , कौन  बनाता   देह |
क्षणभंगुर  होती  है  रचना  ,  इससे  कैसा  नेह ||

जीवित करने भरता इसमें ,  अपना नन्हा भाग |
परम पिता का यही अंश है , कर  इससे अनुराग ||

हरपल कितने पात्र बन रहे, अजर-अमर है कौन |
कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है   , उत्तर लेकिन मौन ||

एक बुलबुला बहते जल का   समझाता है यार |
छल-प्रपंच से बचकर रहना, जीवन के दिन चार ||

"मयंक का कोना" 
ज़िन्दग़ी का फलसफा, कोई नहीं है जानता।
ज़िन्दग़ी को कोई भी, अब तक नहीं पहचानता।।

--
मन की कह दे, वह कविता है,
सब की कह दे, वह कविता है,
निकसे कुछ कुछ अलसायी सी,
अपने में ही सकुचायी सी,
शब्द थाप बन आप खनकती,
रस सी ढलके, वह कविता है।