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Thursday, June 30, 2022
चर्चा - 4476
Wednesday, June 29, 2022
"सियासत में शरारत है" (चर्चा अंक-4475)
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
अब सीधे चलते हैं
कुछ अद्यतन लिंकों की ओर
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जमाना है तिजारत का, तिज़ारत ही तिज़ारत है
तिज़ारत में सियासत है, सियासत में तिज़ारत है
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सभी वादे इरादे हो गये बेमायने अब तो
भरी नस-नस में लोगों की सियासत में शरारत है
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') उच्चारण
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प्रेम गली अति साँकरी प्रेम प्रदर्शन की वस्तु नहीं, यह तो दिल में सम्भाल कर रखने जैसा क़ीमती रत्न है। प्रेम पूँजी है। प्रेम एक बीज की तरह है जिसे कोमल भावनाओं से सिंचित मन की भूमि चाहिए, जिसमें क्रोध, ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा या स्वार्थ के खर-पतवार न उगे हों। जहाँ भक्ति की शीतल पवन बहती हो और ज्ञान का सूरज भी अपनी किरणें बिखेरता हो। ऐसे मन में ही प्रेम का वृक्ष पनपता है जो स्वयं को और अपने इर्द गिर्द अन्यों को भी छाया देता है।
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लेखनी लेखनी
मत करियो कुंठित कलम, गाय मनुज यश गान।
मानव हित में लेखनी , वही लेखनी जान।।1।।
राजनीति
राजनीति की कोठरी , कालिख से भरपूर।
विरला ही कोई मिले, हो कालिख से दूर।।2।।
प्रकाश-पुंज अशर्फी लाल मिश्र
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पिव आने की आशा मन में
मृगनयनी छत पर चढ़ आती।
नख सिख तक श्रृंगार रचाए
लेकर हाथ कलम अरु पाती।।
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शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२५)
बावरा मन सुमन कपूर--
10 से 5 - कौन खरीदता /पीता शराब
यूपी में आज नहीं मिलेगी शराब, सरकार ने घोषित किया ड्राई डे, आबकारी विभाग में अपर आयुक्त हरिश्चंद्र ने बताया कि आज ड्राई डे घोषित किया गया है, जिसके चलते शराब की दुकानों को सुबह 10 से शाम 5 बजे तक पूरी तरह से बंद रखा जाएगा. इसके अलावा सरकारी भांग की दुकानें भी आज पूरी तरह से बंद रखी जाएंगी. अगर उत्तर प्रदेश सरकार के इस आदेश की गुणवत्ता की जांच की जाए तो इसे शून्य प्रभावी ही कहा जाएगा
All India Bloggers' Association ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन
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एक व्यंग्य व्यथा : एक लघु चिन्तन --देश हित में जिन्हें घोटाला करना है वो घोटाला करेंगे--- जिन्हें लार टपकाना है वो लार टपकायेगें--- जिन्हें विरोध करना है वो विरोध करेंगे--- सब अपना अपना काम करेगे । ख़ुमार बाराबंकी साहब का एक शे’र है न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है दिया जल रहा है , हवा चल रही है यानी दोनो अपना अपना काम कर रहे हैं} एक कमल है जो कीचड़ में खिलता है और दूसरा कमल का पत्ता है जो सदा पानी के ऊपर रहता है --पानी ठहरता ही नहीं उस पर।
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कच्चे आम की चाट वाली मीठी चटनी (Raw Mango Sweet Red Chutney)
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सोशल मीडिया पहले ही बता देता है कि हम कौन सा केस सुनेंगे : जस्टिस चंद्रचूड़
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लघुकथा *लघुकथा कलश में प्रकाशित मेरी एक लघुकथा
औलाद है मेरी "अब अपना काम भी समेटो और सामान भी। आखिर बुढ़ापा है माँ तुम्हारा । हमें तो यह पुराने जमाने का कुछ चाहिए नहीं । जिसे देना है दो ,जिसे बांटना है उसे बाँटों। और हाँ ,इन पेंटिग्स का क्या होगा जिनमें तुम्हारी जान बसी है।" "चिंता न कर । अपनी छाती पर रख कर ले जाऊँगी।" माँ की पीड़ा शब्दों से फूट पड़ी।--
महाराष्ट्र-घमासान से जुड़े राजनीतिक-अंतर्विरोध
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रितिका का प्यार और लिव-इन - भारतीय संस्कृति को धक्का
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जसपुर के बहुगुणाओं का ज्योतिष का गढ़वाली टीका साहित्य- 3
• भीष्म कुकरेती यह लेखक हिंदी टीकाओं से गढ़वाली शब्दों की खोज कर रहा था कि उसे कुछ पंक्तियों के बाद गढ़वाली पक्तियों की टीका भी मिली। याने की पहले हिंदी में टीका फिर गढ़वाली और फिर हिंदी में। इस भाग में भी ग्रहों की गणना करने की विधि और फलादेश की टीका है।
गढ़वाली टीका का भाग इस प्रकार है -
।। भाषालिख्यते ।। प्रथम भूजबोल्याजांद ।। पैले २१२९ अंशतौ भुज होयु होयो जषते ३ राश होया तव ६ राशिमा घटाणो याने ६। ०। ०। ० । मा घटाणो ५ राश २९ अंश तक जषते फिर ६। ७। ८ राश होयातो ६। ०। ०। ० । मा उलटा घटाणो ९ राश उप्र १२। ०। ०। ० मा घटाणो। सो भुज होयो ना सूर्य को मन्दो च्च ७८ अंश को होयो तो सो ३० न चढ़णो।। अथ सूर्य स्फष्ट ।। पैलो सूर्य मध्य माउ को २। १८। ०। ० मा घटाणो। तव तैको नामकेंद्र होयो २ राश से केंद्र अधिक होवूत भुज करनो तव भुजकी राश ३० न गुणनि तलांक जीउणा तव ९ न भाग लीणो ३ अंक पौणा . तव सो तीन अंक। २०। ०। ० ०। मा घटाणो।
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अफ़सर से बने नौकर रिटायरमेंट ने काम से नाता अटूट बना दिया है , हमें कामवाली बाई का सब्स्टीस्यूट बना दिया है। जब भी कामवाली बाई लम्बी छुट्टी भग जाती है , घर के काम करने की अपनी ड्यूटी लग जाती है।
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प्रस्तुत हैं सपना भट्ट की कुछ चुनिंदा कवितायें
1
चिंताएं हैं इस विपुला पृथ्वी पर
और
मुझ पर अपनी
उम्र से अधिक सालों का ही कर्ज़ नहीं
अपने छोटे बच्चों और अपनी ही
रुग्ण देह से असीम काम लेने का भी निर्दयी कर्ज़ है
मैं प्रेम कविताएँ लिखती हूँ...
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ग़ज़ल , मुझे इन मेमनों को कसाई कहना है
मुझे इन मेमनों को कसाई कहना है
और जल्लादों को सिपाही कहना है
लगाई है ऐसी बंदिश जेहन पर मेरे
मुझे अपने क़ातिलों को भाई कहना है
साहित्यमठ हरिनारायण तन्हा
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सुनहरे बूटों वाला नीला बक्सा दीपावली की सफाई करते हुए मीता के हाथ में अलमारी के ऊपर वाले खाने में रखा वह बक्सा आ गया। गहरे नीले रंग के उस छोटे से बक्से पर बने सुनहरी बूटे उसमें लगा छोटा सा कुंदा और उसमें लटकता पीतल का छोटा सा ताला मानो उसे मुंह चढ़ा रहे थे। पंद्रह साल हो गए हैं उसकी शादी को पंद्रह दीपावली गुजर गई हर साल वह बक्सा उसके हाथ आता है और हर बार वह उस पर हाथ फिरा कर उसके ताले को एक दो बार खींचकर कपड़े से उसकी धूल झाड़ पोंछकर वापस रख देती है।
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ज़िंदगी में क्यूँ इतनी भागम-भाग हो गयी है
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यह समयबहुत डराती है
जैसे दरबार में बैठकर
किसी कवि का लिखना
प्रजा को डराता है
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आज के लिए बस इतना ही...!
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