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बुधवार, जून 30, 2021

'जी करता है किसी से मिल करके देखें'(चर्चा अंक- 4111)

शीर्षिक पंक्ति :आदरणीया मीना भारद्वाज जी। 

सादर अभिवादन। 
बुधवारीय  प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

 काव्यांश आदरणीया मीना भारद्वाज जी 
की रचना से -

दोस्ती में मिला हमें बेमालूम सा एक नाम,

 तोहफे में वहीं  नाम उनका रख करके देखें ।


झील के उस पार फिर निकलेगा पूरा चाँद,

फुर्सत बहुत है आज जरा टहल करके देखें ।


कौमुदी की छांव और परिजात के फूल,

दिल अजीज  मंज़र को जी भर करके देखें ।


आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

 --

उच्चारण: दोहे "शुभ हो नूतन साल" 

पानी कैसा भी रहे, गलती इनकी दाल।
आज राम के देश में, हैं सब जगह दलाल।।

रहते थे जिस ताल में, करते वहाँ बबाल।
घड़ियालों ने कर दिये, सारे मैले ताल।।
--
जी करता है  किसी से आज मिल करके देखें,

अपनों से दिल की बात हम करके देखें ।


खैर न खबर उनकी बीते जमाने से,

जा कर उन्हीं के पास हैरान करके देखें ।

--

फिर याद आए

फिर याद आए, वो सांझ के साए....

था कोई साया, जो चुपके से पास आया,
थी वही, कदमों की हल्की सी आहट,
मगन हो, झूमते पत्तियों की सरसराहट,
वो दूर, समेटे आँचल में नूर वो ही,
रुपहला गगन, मुझको रिझाए....
पुरातन अभिलेख देते हैं दस्तक, विलुप्त
दरवाज़ों का मिलता नहीं कोई भी
नामोनिशान, वही सीलन
भरी ज़िन्दगी, झूलते
हुए चमगादड़ों
की तरह
भीड़
भरी सांध्य लोकल लौट आती है कच्चे
रास्तों से हो कर सुबह के ठिकान,
एक से बढ़ लेखनी है
काव्य रचती भाव भी
कल्पना की डोर न्यारी
और गहरे घाव भी
गंध को भरले हृदय में
घ्राण रखना चाहिए।।
देर तक देखती हूं तो
चौंधिया जाती हैं आंखें
अकुलाकर 
मूंदती हूं आंखें
दिखते हैं
काले-काले धब्बे

बदल जाता है धूप का चरित्र
आंखों में समाते ही
होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो, हो,
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन
यह इंसान वही है
 पर जहां एक ओर वह...
किसी के  लिए बुरा नहीं होता 
तो वहीं दूसरी ओर 
किसी के लिए अच्छा नहीं होता।।
--

घेर रही विपदा जब मानव,नाथ दयालु खड़े तब साथ है।
काट रहे सब बंधन संकट,दीन दुखी झुकते सिर माथ है॥
कंठ हलाहल पीकर शंकर,तारणहार बने जग नाथ है।
झूम उठे फिर लोक सभी तब,शीश सदाशिव का फिर हाथ है॥

--

 जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती 

अंधेरे हो या चाहे उजाले
सहम-सहम कर चलती सांसे
जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती
वो स्पंदन भरती आहें.
उथल-पुथल सी मची हुई है

--

स्वरों को मिला सुर

--
रावण मुस्कुराते हुए बोला,    
                                   "राम, मैं सिर्फ महादेव के प्रति ही मित्रता के भाव से भरा हुआ हूँ । महादेव के अलावा किसी भी अन्य का मेरे मित्रभाव में प्रवेश निषिद्ध है, फिर वह भले ही महादेव को ही क्यो न प्रिय हो इसलिये तुम्हे कभी भी रावण की मित्रता नहीं मिलती। मेरे निदान के लिये महादेव ने
तुम्हारा चयन किया है राम,क्योंकि महादेव अपने इस अतिप्रिय शिष्य को मृत्यु नहीं, मुक्ति प्रदान करना चाहते हैं।"
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

मंगलवार, जून 29, 2021

चर्चा - 4140

 आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है
चलते हैं चर्चा की ओर 
धन्यवाद 
दिलबागसिंह विर्क 

"मन की बात नहीं कर पाया"(चर्चा अंक- 4110 )

  सादर अभिवादन 

आज  की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से) 

बिना किसी भूमिका के चलते है,

 आज की कुछ खास रचनाओं की ओर....

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गीत "मन की बात नहीं कर पाया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


अपने जीवन साथी से जो, मन की बात नहीं कर पाया।।

दीन-दुखी के मन की पीड़ा, कैसे वो हर पायेगा।।

सूखे जीवन-उपवन को जो, नहीं नीर से भर पाया।

नयी पौध को वो खेतों में वो, अब कैसे रोपायेगा।।

--


एक पन्ना डायरी का




मुहब्बत  का फ़रमान, अपनेपन का एहसास
 समा लेता  दर्द-ए-गम , जताता न कोई अहसान ।।

प्यार  का  अफ़साना, दर्दभरी  कहानी
सहेज  लेता  दिल  में, उसी  की  ज़ुबानी ।।

झूठ  को  बढ़ाता  न  सच   को  छिपाता,
 दिल  बहुत साफ़, जताकर देखो हर बात।

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"अन्तर"






बचपन में स्कूल से आकर अपना बैग पटकते हुए मैनें शिकायती लहज़े में माँ से कहा - “तुम मुझ में और भाई में भेद-भाव रखती हो , उसको शाम तक भी घर से बाहर आने-जाने की छूट और मुझे नही.” माँ ने निर्लिप्त भाव से मेरी ओर देखते हुए पूछा-”आज यह सब कहाँ से भर लाई है कूड़ा-कबाड़ दिमाग में।’


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रंगबिरंगे पक्षी (बाल कविता)



छोटे छोटे होंठ रसीले छोटे छोटे टोंट 
देख देख के हुआ मगन मैं होकर लोटपोट 
कुतर कुतर ये आम गिराए मेरे ही बाग़ान में 
उनकी कुतरन से गुलशन है भरा भरा

ये इतनी गौरैया कहाँ से आईं हैं, मेरे दालान में 
चिड़ियाघर है दिखता आँगन आज मेरा 


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"आई..!"निर्मला ने सलाद काट लिया था तो वो सलाद की प्लेट लेकर आ गई। मेघना के कॉलेज लौटने पर ही निर्मला मेघना साथ में बैठकर खाना खाते थे।मनोहर तो सुबह ही ऑफिस चले जाते थे तो दोनों सास बहू इधर-उधर की बातें करके टाइमपास करते थे।

"देवकी से बात हुई आपकी ?"


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फ़िक्रमंद और मेहरबान भाभीजियाँ

मैं अपने कैंपस का मोस्ट एलिजिबिल बैचलर था.
अब इस सवाल का उठना लाज़मी है कि तीस साल से महज़ बारह दिन छोटा शख्स अपने तबक़े का मोस्ट एलिजिबिल बैचलेर कैसे हो सकता है !
इस सवाल का जवाब मेरे दूसरे कीर्तिमान से जुड़ा है.

अल्मोड़ा कैंपस में मेरे नाम दूसरा कीर्तिमान यह था कि अपनी मित्र-मंडली में मैं अकेला ही अविवाहित बचा था.
मुझ से तीन-चार साल क्या, पांच साल छोटे भी, अपने सर पर सेहरा बाँध चुके थे और उन में से कईयों ने तो मुझे ताउजी कहलवाने का सम्मान भी दिलवा दिया था.

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अन्तोन चेखोव: पेश है उनकी ल‍िखी कहानी "ग‍िरग‍िट" जो आज भी उतनी ही प्रासंग‍िक है, पढ़‍िए



 एंटोन चेखोव का जन्म सेंट एंथनी द ग्रेट (17 जनवरी पुरानी शैली) के त्योहार के दिन 29 जनवरी 1860 को दक्षिणी रूस में अज़ोव सागर पर एक बंदरगाह टैगान्रोग में हुआ था। वह छह जीवित बच्चों में से तीसरा था। उनके पिता, पावेल एगोरोविच चेखोव, एक पूर्व सर्फ और उसकी यूक्रेनी पत्नी के बेटे, गांव ओलोवात्का (वोरोनिश गवर्नर) से था और एक किराने की दुकान से भाग गया।
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सुशील सर, आपको इतनी बड़ी उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत बधाई ,आपका सफर यूँ ही जारी रहें...

बकवास-ए-उलूक एक और मील के पत्थर के पार पचास लाख से ऊपर आकर देख गये पन्ना चिट्ठा-ए-उलूक सबका दिल से आभार




लिखते लिखते
कहाँ से कहाँ पहुँचा गया
 बकवास-ए-उलूक

पढ़ने
कौन आया कौन नहीं
पता नहीं चला
देखने वाला
आ कर देख गया
घड़ी की सूईं
कुछ आगे को जरा सा खिसका गया


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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें 

आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 

कामिनी सिन्हा 









सोमवार, जून 28, 2021

"अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!"'(चर्चा अंक- 4109 )

  सादर अभिवादन 

सोमवार  की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

रवींद्र सर कही व्यस्त है तो आज की प्रस्तुति लेकर मैं उपस्थित हूँ 

(शीर्षक हमारी सबसे छोटी उम्र की ब्लॉगर "मनीषा गोश्वामी जी" की रचना से )

"अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!"

एक ऐसी सोच जो आज के युवा-पीढ़ी को समझना बेहद जरुरी है... 

कुछ दिनों से होड़ लगी है बस, जीतने की खुद को सही साबित और दूसरों को

 (वो दूसरे अपने माता-पिता या कोई बड़े ही क्यों न हो )

 गलत साबित करने की..... 

काश !! सब समझ पाते "अपनों को जीत लिया तो जग को जीत लिया"

अपनों का मान रख लिया ....

 उनके दिल में  जगह बना ली..तो भगवान के दिल में जगह बना ली...

और ये तभी होगा जब दोषारोपण छोड़...खुद के गुण-दोष देखना शुरू करेंगे...

खैर,चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...

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अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!



अभी इतनी काबिल नहीं मैं।
सपनो के खातिर नहीं लड़ सकती अपनो से , 
क्योंकि अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे! 


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मैं हारी तुम संग नेह लगा ?


 मनुहार तुम्हारी करके |

अब तक जान न पाई 

क्या गुनाह किया मैंने 

तुम संग नेह लगा 

हूँ तुम्हारी अनुरागी |

-------------------बुढ़ापे का सीख



कुछ दिन से एक बच्चा मुझसे पढ़ने आ रहा है।  पहले भी कुछ समय के लिए आया था किंतु होम वर्क न करने के कारण जब मैंने उसे वापस भेज दिया तो घर वालोें को अच्छा नहीं लगा और उसने आना बंद कर दिया। अब घर वालों ने फिर से भेजना शुरु किया है। मैंने  देखा कि बच्चे को पढ़ने का शौक नहीं है और शायद घर वालों की जबरदस्ती से यहाँ आ रहा है।-----------------------------
मुझे पसंद है

तुम्हें पसंद है

मुझमें

स्वयं को खोजना

और 

मुझे पसंद है

तुम्हारे चेहरे पर नजर आना।

तुम्हें पसंद है


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पृष्ठों के पृष्ठ



पहली सीढ़ी चढ़ी औ पहला पायदान लकड़ी का 

जीवन की कड़ियों में जुड़ती हर एक एक कड़ी का 

कर स्मरण सजाए मैंने अपने सपने 

पृष्ठों के भी पृष्ठ कई देखे हैं मैंने 

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वह



मौन को कैसे लिखें अब 

भाव भी तो सारे अमूर्त ही हैं 

  वह अलख अपनी उपस्थिति 

 हर पल  दर्ज कराता है 

सदा साथ है, यह अहसास ही दिल को 

अपरिमित शक्ति से भर जाता है !


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क़िरदार


गुज़ारिश रास ना आयी उस काफ़िर को ख्यालात में ll

फ़लसफ़ा मजमून इतना सा ही था मेरे पास में l
यादें सदा हमसफ़र बनी रहे मेरे हर किरदार में ll 


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स्मृतियाँ



रात के सन्नाटे में 

कभी कभी 
खनकती पायल सी 
स्मृतियाँ 
बोलती हैं ,
खिलती हैं
मनस पटल खोलती हैं !

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अंजुरी भर धूप



जब तुम्हारे जीवन में समस्याएं आयेगी
निराशा तुम पर हावी हो जायेगी
चारो ओर बस अन्धकार ही होगा 
जब तुम्हारा आत्मविश्वास 
टूट कर चकनाचूर हो जायेगा
और तुम इस अर्न्तद्वद से 
निकलने की कोशिश में छटपटाओगे 
बार -बार जीतने की कोशिश में
जब हार जाओगे 


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क्यों नहीं लेनी चाहिए पीरियड्स को आगे बढ़ानेवाली गोलियां?



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चलते-चलते, आलोक सिन्हा सर की लिखी बहुत ही सुंदर सरस्वती वंदना सरस्वती वन्दना


जीवन संघर्ष का इक पर्याय है ,

                     आंसुओं , हर्ष का एक अध्याय है |

                     हर नयन में हैं सौ सौ सपने मधुर ,

                     नियति के सामने किन्तु असहाय है |

                           तू मुझे ज्ञान दे ,

                           एक वरदान दे ,


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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें 
आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 
कामिनी सिन्हा