शीर्षिक पंक्ति :आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
सादर अभिवादन। बुधवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
काव्यांश आदरणीया मीना भारद्वाज जी की रचना से -
दोस्ती में मिला हमें बेमालूम सा एक नाम,
तोहफे में वहीं नाम उनका रख करके देखें ।
झील के उस पार फिर निकलेगा पूरा चाँद,
फुर्सत बहुत है आज जरा टहल करके देखें ।
कौमुदी की छांव और परिजात के फूल,
दिल अजीज मंज़र को जी भर करके देखें ।
दोस्ती में मिला हमें बेमालूम सा एक नाम,
तोहफे में वहीं नाम उनका रख करके देखें ।
झील के उस पार फिर निकलेगा पूरा चाँद,
फुर्सत बहुत है आज जरा टहल करके देखें ।
कौमुदी की छांव और परिजात के फूल,
दिल अजीज मंज़र को जी भर करके देखें ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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उच्चारण: दोहे "शुभ हो नूतन साल"
अपनों से दिल की बात हम करके देखें ।
खैर न खबर उनकी बीते जमाने से,
जा कर उन्हीं के पास हैरान करके देखें ।
दरवाज़ों का मिलता नहीं कोई भी
नामोनिशान, वही सीलन
भरी ज़िन्दगी, झूलते
हुए चमगादड़ों
की तरह
भीड़
भरी सांध्य लोकल लौट आती है कच्चे
रास्तों से हो कर सुबह के ठिकान,
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो, हो,
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन
घेर रही विपदा जब मानव,नाथ दयालु खड़े तब साथ है।
काट रहे सब बंधन संकट,दीन दुखी झुकते सिर माथ है॥
कंठ हलाहल पीकर शंकर,तारणहार बने जग नाथ है।
झूम उठे फिर लोक सभी तब,शीश सदाशिव का फिर हाथ है॥
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जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती
सहम-सहम कर चलती सांसे
जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती
वो स्पंदन भरती आहें.
उथल-पुथल सी मची हुई है
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