सादर अभिवादन !
शुक्रवार की चर्चा में आप सभी प्रबुद्धजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष श्री सुमित्रा नन्दन पंत की लेखनी से निसृत "गुंजन" काव्य संग्रह की एक कविता "नौका विहार" के अंश से -
शांत स्निग्ध, ज्योत्स्ना उज्ज्वल!
अपलक अनंत, नीरव भू-तल!
सैकत-शय्या पर दुग्ध-धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म-विरल,
लेटी हैं श्रान्त, क्लान्त, निश्चल!
तापस-बाला गंगा, निर्मल, शशि-मुख से दीपित मृदु-करतल,
लहरे उर पर कोमल कुंतल।
【आज की चर्चा का शीर्षक -"शांत स्निग्ध, ज्योत्स्ना उज्ज्वल" है। 】
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आइए अब बढ़ते हैं आज की चर्चा के सूत्रों की ओर-
सिर्फ खरीदार मिले- डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
![](https://lh6.googleusercontent.com/Z4MhJ7_jryIALBKSniHRE69xI0w2xwrlOu87MWlrY_1zrTx7J2ZfcQW0TW3LQKqKMCvBvXU7102oNU6otwki4qXsQzjyBrjS-EysFlBs5WyvFK75FcI821EVSwb5iLk66hv66DOn)
वफा की राह में, घर से निकल पड़े हम तो,
डगर में फैले हुए हमको सिर्फ खार मिले!
खुशी की चाह में, भटके गली-गली हम तो,
उदास चेहरे सिसकते हुए हजार मिले!!
हमारे साथ तो बस दिल की दौलतें ही थी,
खुदा की बख्शी हुई चन्द नेमतें ही थी,
मगर यहाँ तो हमें सिर्फ खरीदार मिले!
उदास चेहरे सिसकते हुए हजार मिले!!
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रूठी रहूंगी सावन से ......
![](https://lh5.googleusercontent.com/RvQfXssLqyktH7B7Z7dOpy_FBA8YAU1DshiNOVKDoeIbhD8LoxhwQ0bW2oqnCfjyrPQwAGVQRdImri1k3cduHj-sons43ZUFqHxioxYNk6FQqAPBV3d3814fNSOr2gHg8DBmHqcF)
ढोल, मंजीरों पर थाप पड़ेंगी
मृदंग संग झांझे झमकेंगी
घुंघरू पायल की रुनझुन में
सब सखियन संग झूलुआ झूलेंगी
सबके हाथों सजन के लिए मेंहदी रचेंगी
और हरी-भरी चूड़ियां खन-खन खनकेंगी
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निर्णयों के वैकल्पिक विश्व
![](https://lh5.googleusercontent.com/qKSk8GXHXtV_5rh0aQx4yjqn6gO8Vqtt2q2_5Ob-gbVxnQumlYMZVpMxyR5djoZiaYQmMY-LCPmy5YX2CWZlcPRpKRHSGwC2UbCSp7gNKXLEI0NqPbIXRY4C0auwqI1Tp1Ba-PSj)
मैं वैकल्पिक विश्व में भले ही न जाऊँ पर नियतिवाद को भी स्वीकार नहीं कर सकता। भले ही उस पर कुछ कर न पाऊँ पर अपने निर्णयों पर प्रश्न उठाता ही रहता हूँ। अपने ही क्यों, उन सभी निर्णयों पर प्रश्न उठाता रहता हूँ जो मुझे प्रभावित करते हैं और जहाँ मुझे लगता है कि यदि वैकल्पिक निर्णय होता तो कहीं अच्छा होता।
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जिंदगी जहाज होती है
![](https://lh4.googleusercontent.com/GZm_ngIPTM4cSfxMPhBYJ9zTVGneRG4qV94E2APiFOll2W3FMO2ThUFcq29V_iYBSHKo9TTs8tIhtA58QfF0qMaWHcyimaZAep3pmq_AF6eGCVQsqlkaF95wOO8XLD4m_N1Mq9mL)
जिंदगी
जहाज होती है
पानी का जहाज।
कभी
सतह पर
शांत
बहती
कभी
तेज हवा में
हिचकोले लेती।
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कोई तो इस रहगुज़र आए - -
![](https://lh4.googleusercontent.com/6b-0R0b-qN7nrAVTyOGXI0hmfQDMdvPqsRLlIEXxIFnH12fXGYD6-XC0vUYmwe-GWzNu02HquyCQATMLMDe7uJKd9j6cER_f1g8AjHdgFYyUrdiWJor-E8KptUy9kxtl7w6Sfw4n)
इस यक़ीं में गुज़ारी है, रात -
कि निगार ए सहर आए,
मिटा जाए रूह का
अंधेरा ऐसा
कोई
नामा-बर आए। उम्र भर की
तिश्नगी को मिल जाए
ज़रा सी राहत, भिगो
जाए सीने की दहन,
वो बारिश
तरबतर आए।
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निंदक नियरे राखिए
![](https://lh6.googleusercontent.com/8QtItLIw-GFSlozIW-P3RmwpC-MZQqjvNJ6OeCS5-1SO-xpSCLhGaECslZ0WyoSrfy0bM6Ecv9LB9SF8rxBUXzzVSMG-s-26BGJQMr34QMPUFCZCXYDMhxCcYMp9QP3p-zaymmlY)
कबीरदास की आलोचक-निंदक परंपरा का निर्वाह करने वाला मैं गरीब भी, न तो समाज में किसी का साथ पाता हूँ और न ही अपने घर में !
कबीर की ही तरह मुझे पूजा-स्थलों में भक्ति के नाम पर अपने धन का प्रदर्शन सहन नहीं होता है.
मुझे राजस्थान के अलवर जिले में स्थित जैन तीर्थ तिजारा जी जाने का कई बार सौभाग्य मिला है. वहां जा कर मन को बड़ी शांति मिलती है ।
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लड़कियां किसम-किसम की - डॉ शरद सिंह
![](https://lh4.googleusercontent.com/AU-6xLInm5zerFQBmBJSVhmO4qe4syPuLKjAoy3oNuIxD-h7J_DwPqZr_rCQEcacTeIKMmIVYm_y0iHpOOYGui_LoAzkmruV8LMOpnRXMIze2xjjTt-K9-VrFVPbF44p-dTyENQu)
मूक दर्शक से हम
देखते हैं उन्हें
एक तारीख़
एक दिन
एक समय में -
एक लड़की
रचती है इतिहास
ओलंपिक में
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बिन बुलाए मेहमान
![](https://lh3.googleusercontent.com/-RwJQ01Iw-Ut578LuN578meMnJmarLzCs4T6kV3BDs1DQF-7k_ZlSbKYNqwR4dpJtCTeULBuMd6JGK_S2oPH5IU-1L7DTH0QeJceOSZl-I8FIrGjv2Us_UJqz8bJeZYIwEnTstig)
बिन बुलाए
वो आए
बन के मेहमान
फिर सम्मान
क्या मिलता उन्हें
जिन्हें
अजूबा समझ
बड़े ही सहज
ढंग से
इधर उधर बेढंग से
छोड़ दिया
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सुर बिन तान नहीं, गुरु बिन ज्ञान नहीं
![](https://lh4.googleusercontent.com/zSNufJSgYiqQKaVcGAV7NYYM8Safb5CuRHuZSdVWE5DWPAGyiAbtWkfoElhvbu8mBcKBGQKvQAR0g-1dqgiYUClN_gqB550A2Z_B-u-cGt1Gl2qzxW2EbVp_MQXsKD6ZM_6WVnkc)
तीन दिवस पूर्व चौबीस जुलाई को इस वर्ष की गुरु पूर्णिमा आकर गई। भारतीय परंपरा में न केवल गुरु को माता-पिता के समकक्ष माना गया है वरन उसे देवों से कम नहीं समझा गया है । बृहदारण्यक उपनिषद में श्लोक है :
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
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रावण के प्रश्न
![](https://lh6.googleusercontent.com/SgiJF2BP3TKYnRYpQ6h7LPMwdfZND44QK9NzbZ5eTNb-mbIJw9ncG48uFnUMnq-t-iFeQanq-Wt_h2vRpiajSmCLhCzZEJn53ESwmqDBO5bHbtml3xJtPS3yqCMob8ogBKej4UjF)
क्यों वानर किसके दम तूने,आज उजाड़ी है लंका।
किसके बल पर कूँद-फाँद के,यहाँ बजाता तू डंका।
लगता आज मर्कट की मृत्यु ,खींच यहाँ पर लायी है।
मेरे योद्धा मार गिराए,करनी अब भरपायी है।
अक्ष कुमार गिराए भू पर,कैसा दुस्साहस तेरा।
एक चाल चलके क्या समझे,देश बिगाड़ेगा मेरा।
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पात-पात प्रेम मेरा
![](https://lh6.googleusercontent.com/VrmKSjIv69rYo0kGujwJRVbMIddvikXgQaHlfvQa57jVOzhvKwcrb_kvbO9pu6VXnrAzKkOmPOR0PuedwzvEpEe5RW7MidPa4UbaMLFffunLCpLiu1xGLRCbuzldW7_NPIjzD4DI)
आज हरफ़-दर-हरफ़
ख़ुद मैं तुममें मिली.
आज फिर मुझे आती रही सिसकी
आज फिर टहलती रही नंगे पाँव मन पर
तुम्हारे नाम की हिचकी.
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कहानी- तेजतर्रार बहू
![](https://lh3.googleusercontent.com/MbsipF2_nGRHpmSiNQlO3aORRzXyE8AsrI76lJNAbg45J6hdEtqbIuaWVr1krY76Q2bnhdgMbHTfLWMh1Bf42zV9Kcr4O-Ez_hlAQXV7V7zpK8DOihAoD02RbXyn7ubbQDzNEYoX)
छोटे बेटा-बहू कई दिनों से मुझे मुंबई आने कह रहे थे। लेकिन इनके जाने के बाद मेरी सहेलियों ने मुझे बताया था कि गांव का घर तेरा अपना है। इसे छोड़ कर मत जाना। वैसे भी छोटी बहू तेजतर्रार है। उससे तेरी नहीं पटेगी। इसलिए उनके पास जाने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी।
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आपका दिन मंगलमय हो…
अगले शुक्रवार फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"