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गुरुवार, जनवरी 31, 2013

सिर्फ दिखावा बाकी है ( चर्चा - 1141 )

आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 
आज दिन में फेसबुक के बहुत से स्टेट्स देखे , मीडिया के विभिन्न माध्यम देखे, सभी गांधी जी को याद कर रहे थे , लेकिन क्या 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को गांधी जी को याद कर लेने से उनके सपने साकार हो जाएंगे , सत्य और अहिंसा दोनों को हम लगभग छोड़ चुके हैं , बची है तो सिर्फ गांधी टोपी या खादी के वस्त्र जो फैशन के रूप में या दिखावे के रूप में नजर आते हैं , गांधीवाद को मारकर गांधी जी को याद करना बे मा'नी है ।
चलते हैं आज की चर्चा की ओर 

गाँधी जी का अंतिम दिन 

प्रविष्टि भेजने का अंतिम दिन आज 
उच्चारण
बिखरी है छटा मुक्तकों की 

रितेश गुप्ता का कौसानी का यात्रा वृत्तांत 
My Photo
इमरोज के नाम हरकीरत जी की कविता हीर होने के लिए 

पूर्वाभास पर हैं पंखुरी सिन्हा जी की कविताएँ 

पुरुषों के द्वारा महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध

रश्मि जी कह रही हैं - प्रेम की भाषा भयानक हो गई है 

प्रेम में होना सच में बुरा नहीं होता - रश्मि 

भोला भाला प्यार’ कहाँ से लाओगे ?
My Photo
रजनी मल्होत्रा जी की शायरी 
मेरा फोटो
पंडित जी का तोता 
Karbonn-S1-Titanium
जानिए ई - पंडित की राय 

फेसबुक रत्न के लिए इरा ताक़ की प्रविष्टि 

एक ग़ज़लनुमा रचना मेरी भी 

तरही मुशायरे की एक ग़ज़ल 
Kshatrani Kunwarani Nisha
दिल्ली कांड पर कुंवरानी निशा कुंवर के विचार 

मासूमियत की परिभाषा क्या है ?
"लिंक-लिक्खाड़"
अंधी देवी न्याय की, चालें डंडी-मार

तो क्या इतिहास ने फिर खुद को दोहराया है

हिंदी में कम्प्यूटर ज्ञान 
निरामिष
अब बारी ई - ईलाज की 
My Photo
भीड़-तन्त्र की डाली पर,अब न जाने कौन सा फूल बैठेगा

स्मरण देशभक्त सूफी अम्बा प्रसाद जी का 

शकुन्तला के प्रश्न 


"छाया चारों ओर उजाला"

आज की चर्चा में बस इतना ही 
धन्यवाद 
दिलबाग विर्क 

बुधवार, जनवरी 30, 2013

इक अदद चेहरा - -(बुधवार की चर्चा-1140)


आप सबको प्रदीप का नमस्कार |
(2 अक्टूबर 1869)-(30 जनवरी 1948)
गांधीजी को सादर श्रद्धांजलि |

अब चलते हैं आज की चर्चा की ओर |
इक अदद चेहरा - -
अग्निशिखा


मुखौटों की भीड़, और इक अदद ख़ालिस चेहरे
की तलाश, बहोत मुश्किल है बहरान
दरिया की सतह पर, अक्स
नाख़ुदा का उभरना !
दुःस्वप्न
@ ॥ दर्शन-प्राशन ॥


निशा आधी नग्न होकर
मेरी शैया के किनारे
आई सुधा-मग्न होकर
लिए नयनों में नज़ारे।
किसानों की आत्महत्या: कितनी बड़ी समस्या?
दरअसल

किसान
कफ़न अपना बुने जा रही हूँ
@ Benakab


बेटिओं के किस्से लिखे जा रहीं हूँ
कफ़न अपना ख़ुद बुने जा रही हूँ

कब कहाँ जल उठे बेटिओं की चिता
बन अभागन का आँचल जिए जा रही हूँ
फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ...
गिरीश पंकज


फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ
है यही इक सिलसिला, मैं क्या कहूँ

देख ली तेरी वफ़ा मैंने इधर -
ला, जहर मुझको पिला, मैं क्या कहूँ
रिश्तों को चाहिये
सफर के सजदे में


कड़वे से घूँट
सब्र के प्याले से
हाय क्या अन्दाज़ हैं
दर्द के निवाले से
पुस्तकालय ऐसे भी..
@ स्पंदन


यदि विदेशी धरती पर उतरते ही मूलभूत जानकारियों के लिए कोई आपसे कहे कि पुस्तकालय चले जाइए तो आप क्या सोचेंगे? यही न कि पुस्तकालय तो किताबें और पत्र पत्रिकाएं पढ़ने की जगह होती है, वहां भला प्रशासन व सुविधाओं से जुड़ी जानकारियां कैसे मिलेंगी।
वंशवाद से नहीं विकासवाद से चलता है देश
तेताला


आखिर कुछ आच्छा दिखने लगा भाजपा में, एक बुरे दौर से गुजर रही भाजपा ने लोकसभा चुनाव के पहले कुछ अनोखे पहलुओ पर काम करते हुए देश को दिखा दिया की ये किसी परिवारवाद पर चलने वाला दल नहीं है !
कविता उसके पार खडी है लुप्तप्राय सी
Impleadment

"प्यार के माने
हमारे और ...तेरे और हैं
इसलिए प्यार मेरे यार मैं लिखता नहीं
स्नेह यदि स्वीकार हो सत्कार कर लेना
हमन है इश्क़ मस्ताना
लिखो यहां वहां


हमन है इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या?
रहें आज़ाद या जग से हमन दुनिया से यारी क्या?

जो बिछुड़े हैं पियारे से भटाकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम मेम हमन को इन्तज़ारी क्या?
भ्रष्ट कहा तो सुलग गई
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र


चलिये, नंदी महोदय ने आरक्षण का एक और पहलू सामने रख दिया। उनके बयान के बाद भ्रष्टाचार की वर्गवार स्थिति पर वर्तमान में भले ही एक अलग प्रकार का माहौल बना दिख रहा हो, वर्ग विशेष में रोष का वातावरण दिख रहा हो किन्तु इस विषय पर एक प्रकार की बहस की गुंजाइश दिखाई देती है।
जिन्दगी है एक धूप छाँव सी;
अन्तर्गगन


जिन्दगी है एक धूप छाँव सी;
पल-पल बदले शहर गाँव सी!
साहित्य सम्मेलन में साहित्यकार बीरबल
सफ़ेद घर


"बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय"
इस शख्श को बोलने के दस्त लगें हैं
@ ram ram bhai


जब से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखने की आकांक्षा लोगों में बलवती होती जा रही है ,कांग्रेसियों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं हैं .इसमें उन्हें अपनी करतूतों का डर ज्यादा सता रहा है
दामि‍नी.....नहीं मि‍लेगा तुम्‍हें न्‍याय
@ रूप-अरूप


मत करो दामि‍नी
तुम कि‍सी इंसाफ का इंतजार
नहीं मि‍लेगा तुम्‍हें न्‍याय
रच शौर्य गाथा ना गा चाँचरी
" सोच का सृजन "

आ जा ,सुन ल जा बात खरी-खरी
ना बताइब ,ना समझाइब बारी-बारी
बहुत चला चु क ल जा जुबान के आरी
अब आ गइल बा ओकर पारी
थका मादा
@ बेचैन आत्मा


देर शाम
सब्जियों का भारी झोला उठाये
लौटते हुए घर
चढ़ते हुए
फ्लैट की सीढ़ियाँ
मत बांधो मुझको परिभाषा के बंधन में
@ Kashish - My Poetry


मत बांधो मुझको परिभाषा के बंधन में,
मुझको तो बस नारी बन कर जीने दो
.
पहरा....
@ मैं और मेरी कविताएं


बावली है...
आजकल उसे
चंदामामा, बिल्ली मौसी,
चिड़िया रानी, परियों के
सपने नहीं आते
तेरे आने से
मेरा मन पंछी सा


तेरे आने से रोशन मेरा जहाँ हो गया
तेरे प्यार से महकता आशियाँ हो गया .....
इक अदद चेहरा - -
@ अग्निशिखा


मुखौटों की भीड़, और इक अदद ख़ालिस चेहरे
की तलाश, बहोत मुश्किल है बहरान
दरिया की सतह पर, अक्स
नाख़ुदा का उभरना !
कोशिश
@ मेरे हिस्से की धूप


हर मुनासिब कोशिश की तुम्हें मनाने की
तुमने तो ठान ली थी ...बस दूर जाने की

जानते थे तेरी किस बात से डर लगता है
अपना ली वही आदत पार पाने की
मेरे हक में जब भी फैसला होगा
@ " मेरे जज्बात "


मेरे हक में जब भी फैसला होगा
पत्थर उनके और सर मेरा होगा
लहुलुहान जिस्म है मेरे शहर का
फिर से मजहबी खंजर चला होगा
तन की सुन्दरता या मन की
Love


हँसी आती है मुझे
ये देख कर की लोगों के
बोलने मे
और सोच मे
कितना फरक होता है
तुम्हारी याद
@ Do Took

लो, अबकी फिर से भूल गए अपनी यादें साथ ले जाना
कितनी बार कहा था यादों का बैग छोड़ मत जाना
बहुत परेशान करती हैं मुझे पीछे से...
अनचाहे ब्लॉग वेबसाइट ब्लॉगर के अपडेट से छुटकारा पायें
कंप्यूटर वर्ल्ड हिंदी -

सुनो………।
@ ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र


सुनो
तुम ज़लालत की ज़िन्दगी जीने
और मरने के लिये ही पैदा होती हो
सुनो
तुम जागीर हो हमारी
कैसे तुम्हारे भले का हम सोच सकते हैं
नहीं करे एतबार, बड़ी चालाक प्रियतमा-"लिंक-लिक्खाड़"
"आने वाला है बसन्त"
@ च्चारण

आने वाला है बसन्त,
अब प्रणय दिवस में देर नहीं।
कुहरा छँटने ही वाला है,
फिर होगा अन्धेर नहीं।।
आज के लिए बस इतना ही | मुझे अब आज्ञा दीजिये | मिलते हैं अगले बुधवार को कुछ अन्य लिंक्स के साथ |
तब तक के लिए अनंत शुभकामनायें |
आभार |

मंगलवार, जनवरी 29, 2013

मंगलवारीय चर्चामंच --(1139)-कर्म किये जा

आज की मंगलवारीय  चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते , ,आप सब का दिन मंगल मय हो अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लॉग्स पर 


अंतर्कथा---जानने के इच्छुक हैं तो जरूर पढ़िए 

रश्मि प्रभा... at वटवृक्ष -

जगा रहे जो मन अपना----तो कभी समस्या ही ना हो 


कर्म किये जा (छंद त्रिभंगी)---फल की चिंता मत कर ऊपर वाले पर छोड़ दे 

Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR 

नन्ही नव्या के लिए---खिलौने या प्यार दुलार 


Jain mantra - Mantra gianista - जैन मंत्र--अद्दभुत चित्रों का खजाना आप भी देखिये 


पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म मीनिया-सही वक़्त पर सही इंसान को मिले तो कोई गिला नहीं 


नारी---सम्मान के लिए लड़ती रही है लडती रहेगी 

नीरज पाल at भारतीय नारी -

आलोचना पुरूष---केवल प्रशंसा ही नहीं आलोचना सहने का भी धैर्य होना चाहिए 

प्रेम सरोवर at प्रेम सरोवर -

दिल्ली की सर्दियों में शादी और शादी में खाने की बर्बादी ---हर जगह

देखने को मिल जाती है एक ओर अन्न का अपमान दूसरे  छोर पर ही भूख से बिलखते मासूम  यही दो चेहरे हैं हमारे देश के 

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन


आँखों को वीज़ा नहीं लगता---सही कहा तभी तो कल्पना लोक में हम दुनिया घूम लेते  हैं 

Ajit Singh Taimur at Akela Chana 

Benaulim beach-Colva beach बेनाउलिम बीच और कोलवा बीच पर जमकर धमाल केन्सोलिम की ओर ट्रेकिंग---जी हाँ आप भी संदीप भाई के साथ मुफ्त में गोवा घूमने का मजा लीजिये 


खड़ा शीश पर नौटंकी का कालू---


अभी रसोई में

बाक़ी है
चूल्हा और सिलबट्टा

कल के लिये सुरक्षित 

सींके पर 
रक्खे दो आलू -----मजेदार कविता पढिये 

मनोज कुमार at मनोज -

बदतमीज़ सपने---सच में मुझे भी आते हैं ,दिल में आता है  थप्पड़ जड़   हूँ !!

Yashwant Mathur at जो मेरा मन कहे 

कैसे तुमसे नैन मिलाऊँ...शर्म आ रही है तो कला चश्मा पहन सकते हैं 


तरक्की ने नयी पीढी को बड़ी सीख दी है--इतनी बड़ी की अब हमें ही सिखाने लगे हैं 




एक कंवारे की गुहार- कोई मेरी मम्मी को समझाये- कि  मेरी शादी के लिए खुद ही लड़की ढूढ़ ले नहीं तो !!! 

विक्रम वेताल 8--------- आज की ज्वलंत समस्या पर वार्तालाप 
Ramakant Singh at ज़रूरत 

 - 
हाँ मैं नारी हूँ-- -अब अबला नहीं हूँ सबला हूँ 


पृथ्वी के बहुत करीब आया है चाँद - कभी तो मेरे अंगना उतरे एक बार छूना चाहती हूँ तुझे ऐ चाँद  
"गद्दारों से गद्दारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मक्कारों से मक्कारी होगद्दारों से गद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगीखुद्दारों की खुद्दारी।।

प्रसिद्धि का शार्टकट -हर कोई ढूंढता है आज कल,सब को जल्दी है । 
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 आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ  फिर चर्चामंच पर हाजिर होऊँगी  कुछ नए सूत्रों के साथ तब तक के लिए शुभ विदा बाय बाय ||