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बुधवार, सितंबर 30, 2015

"हिंदी में लिखना हुआ आसान" (चर्चा अंक-2114)

मित्रों।
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आदरणीय रविकर जी 
जिस शुभ काम के लिए गये हैं।
मेरी कामना है कि उनके मनोरथ सिद्ध हों।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"तीस सितम्बर-मेरी संगिनी का जन्मदिन है" 

30 सितम्बर को
मेरी जीवनसंगिनी
श्रीमती अमरभारती का
61वाँ जन्मदिन है।
इस अवसर पर उपहार के रूप में
कुछ उद्गार उन्हें समर्पित कर रहा हूँ।
जन्मदिन पर मैं सतत् उपहार दूँगा।
प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।।

साथ में रहते जमाना हो गया है,
“रूप” भी अब तो पुराना हो गया है,
मैं तुम्हें फिर भी नवल उद्गार दूँगा।
प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।।
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शिक्षा का महत्त्व 

पहले दिन शाला गई
कक्षा में प्रवेश किया
बोझ  बस्ते का था भारी
थकित चकित वह बैठ गई |
पाठ बड़ा ही कठिन लगा
अवधान केन्द्रित ना हो पाया
जाने कब होगी छुट्टी
उसने सोचा कहाँ आ गई |
समस्त  आजादी गई... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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बाबा रे बाबा 

चौदह सितंबर को जंतर मंतर पर गजब की भीड़ थी। रामपाल के समर्थन में। पता नहीं आपमें से कितने लोगों को रामपाल याद होगा। हालांकि, ये मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है कि किसी के लिए ऐसे अपमानजनक तरीके से लिखा जाए। लेकिन, मुझे लगता है ये जरूरी है। जरूरी है कि रामपाल जैसे लोगों को अपमान ही मिले। अब मुझे ये नहीं पता कि ऐसे लोगों का सम्मान करने वाले लोग किस मानसिकता से जीते हैं। या फिर ऐसे लोगों को रामपाल जैसे लोग क्या दे देते हैं जिसके चक्कर में ये उमस भरी गर्मी में सरकार को चेताने जंतर-मंतर तक चले आते हैं... 
HARSHVARDHAN TRIPATHI 
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अतीत के कुछ निर्णय, 

पता नहीं मैं सही था कि गलत ! 

कुँए में तो मैं उतर रहा था, भाई लोग तो दोनों हाथों में लड्डू लिए ऊपर जगत को पकड़े अंदर झांकते हुए मौका ताड़ रहे थे । व्यवसाय जम गया तो नाम और दाम का बड़ा हिस्सा उनका नहीं जमा तो अभी का जमा-जमाया काम तो है ही। और हुआ वही जो ऐसे जुओं में होता आया है, सारे प्लान चारों खाने चित्त रहे थे ..... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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फौज में मौज है; 

फौज में मौज है;

हजार रूपये रोज है;
थोड़ा सा गम है;

इसके लिए भी रम है;
ज़िंदगी थोड़ी रिस्की है;
इसके लिए तो व्हिस्की है... 
Surendra Singh bhamboo 
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मैं धरती- पुत्र मंगल हूँ... 

और मानव तुम भी तो धरती- पुत्र ही हो। 
फिर तो रक्त -सम्बन्ध ही हुआ ना मेरा और तुम्हारा | 
मैं तम्हारी रगों में रक्त बन, र
क्त संबंधों को मजबूत करता प्रवाहित होता हूँ ... 
नयी उड़ान + पर Upasna Siag 
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कोई अश्कों से धोए जा रहा रुख़सार जाने क्यूँ 

दिखे हैं और मेरी मौत के आसार जाने क्यूँ 
पशेमाँ है किए पे ख़ुद के वह गद्दार जाने क्यूँ 
बड़े बनते मुसन्निफ़ सब, कहो तो मौत लिख डालें 
मगर वो लिख नहीं सकते हैं तो बस प्यार, जाने क्यूँ ... 
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’  
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अर्थहीन है वो ... 

जब तक बुहारती रही आँगन 
मिटाती रही सिलवटें 
घर, बाज़ार स्कूल ,डॉक्टर से लेकर 
दुनियावी पहलुओं तक उगाती रही 
कोशिशों के चिनार 
खुद को मिटा सजाती रही तुम्हारी बज़्म 
बा -अदब बा - मुलाहिजा होशियार की टंकार... 
vandana gupta 
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कल के लिये.... 

बालक बनकर
जब दुनिया में आया था
स्वागत किया था सबने
बिना कुछ किये ही
मिला था सब कुछ
उमीदें थी सब को
भविष्य का
अंकुर समझकर
हर इच्छा
पूरी हुई थी  तब..... 
मन का मंथन  पर kuldeep thakur 
--चुनावी बिसात पर जाति के मुहरे 

राजनीति, सामयिकी, साहित्य, समाज, कला-संस्कृति, विविधा

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देहाती औरत और मोदी ? 

फर्क विदेशी दौरे मे 

AAWAZ पर SACCHAI 
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रंगा सियार 

Image result for रंगा सियार
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु 
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मंगलवार, सितंबर 29, 2015

"डिजिटल इंडिया की दीवानगी मुबारक" (चर्चा अंक-2113)

मित्रों।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

डिजिटल इंडिया की दीवानगी मुबारक  

ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik 

ये क्या दुनिया बनाई है 

Madan Mohan Saxena
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बच्चे `भविष्य के कर्णधार है 

माता-पिता की आकांक्षा ने दशा ख़राब बना दी 
बचपन की मासूम हंसी अवसाद तले ही दबा दी 
सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन में ख्वाब अनेकों मिटा दी 
नन्हें-मुन्हें हाथों में तो मोटी किताबें थमा दी... 
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वर्ल्ड रेबीज डे ... 

आज वर्ल्ड रेबीज डे है। क्या आप जानते हैं : * रेबीज एक १०० % फेटल रोग है। यानि यदि रेबीज हो गई तो मृत्यु निश्चित है। * लेकिन यह १०० % प्रिवेंटेबल भी है। यानि इससे पूर्णतया बचा जा सकता है। * इसका बचाव भी बहुत आसान है। अब पेट में १४ दर्दनाक ठीके नहीं लगाये जाते। * कुत्ते या बिल्ली आदि के काटने पर महज घाव को बहते पानी और साबुन से १० मिनट तक धोते रहिये। फिर कोई भी एंटीसेप्टिक लगा दीजिये। पट्टी बिलकुल मत बांधिए । * उसके बाद बस डॉक्टर की शरण में चले जाइये। आपका काम हो गया... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
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मत समझना हम हुए लाचार से 

लौट जो आए तिरे दरबार से 
मत समझना हम हुए लाचार से
 हुस्ने मतला- नाव तो 
हम खे रहे पतवार से... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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गीत "काले दाग़ बहुत गहरे हैं" 

रंग-रंगीली इस दुनिया में, झंझावात बहुत गहरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।।

पल-दो पल का होता यौवन,
नहीं पता कितना है जीवन,
जीवन की आपाधापी में, झंझावात बहुत उभरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं... 
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किताबों की दुनिया -110 

नीरज पर नीरज गोस्वामी 
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कैसे भूल सकती हूँ … 

सुन बिटिया झुमकी , कुछ महीनों पहले तुझे सोचते हुए लिख डाला था । आज मैं पोस्ट कर रही हूँ । तू अपने स्कूल की धर्मशाला ट्रिप में खूब खूब मज़े करना। फोटोग्राफी, हाईकिंग, कैंपिंग , गपशप, कूदना, फाँदना सब कुछ पर अपना ख्याल रखना । पापा और मैं इंतज़ार कर रहे है । कैसे भूल सकती हूँ, उन दो पैरेलल लाल लकीरों को … 
Sunehra Ehsaas पर Nivedita Dinkar 
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काश छोड़ा न होता घर अपना 

दूर अपने घर से जाने कहाँ आ गया मै 
आँखे बिछाए बैठी होगी वह 
निहारती होगी रस्ता मेरा 
और मै पागल छोड़ आया 
उसे बीच राह पर... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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मेरे दिल आज ये बता दे 

मंजिल है कहीं और तेरी पर रस्ता ये कोई और है, 
मेरे दिल आज ये बता दे, तू जाता ये किस ओर है । 
बेपरवाह गलियों में भटक रहा, क्या तेरे सनम का ठौर है, 
मेरे दिल आज ये बता दे, तू जाता ये किस ओर है ... 
ई. प्रदीप कुमार साहनी 
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उड़न तश्तरी 

Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार 
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उसका बदन छूकर 

उसका बदन छूकर कोई बयार आएगा 
फिर खामोश आॅखों में प्यार आएगा... 
Sanjay kumar maurya 
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