मित्रों।
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आदरणीय रविकर जी
जिस शुभ काम के लिए गये हैं।
मेरी कामना है कि उनके मनोरथ सिद्ध हों।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"तीस सितम्बर-मेरी संगिनी का जन्मदिन है"
30 सितम्बर को
मेरी जीवनसंगिनी
श्रीमती अमरभारती का
61वाँ जन्मदिन है।
इस अवसर पर उपहार के रूप में
कुछ उद्गार उन्हें समर्पित कर रहा हूँ।
जन्मदिन पर मैं सतत् उपहार दूँगा।
प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।।
साथ में रहते जमाना हो गया है,
“रूप” भी अब तो पुराना हो गया है,
मैं तुम्हें फिर भी नवल उद्गार दूँगा।
प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।।
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शिक्षा का महत्त्व
पहले दिन शाला गई
कक्षा में प्रवेश किया
बोझ बस्ते का था भारी
थकित चकित वह बैठ गई |
पाठ बड़ा ही कठिन लगा
अवधान केन्द्रित ना हो पाया
जाने कब होगी छुट्टी
उसने सोचा कहाँ आ गई |
समस्त आजादी गई...
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अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम
नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६
औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा
Niranjan Welankar
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बाबा रे बाबा
चौदह सितंबर को जंतर मंतर पर गजब की भीड़ थी। रामपाल के समर्थन में। पता नहीं आपमें से कितने लोगों को रामपाल याद होगा। हालांकि, ये मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है कि किसी के लिए ऐसे अपमानजनक तरीके से लिखा जाए। लेकिन, मुझे लगता है ये जरूरी है। जरूरी है कि रामपाल जैसे लोगों को अपमान ही मिले। अब मुझे ये नहीं पता कि ऐसे लोगों का सम्मान करने वाले लोग किस मानसिकता से जीते हैं। या फिर ऐसे लोगों को रामपाल जैसे लोग क्या दे देते हैं जिसके चक्कर में ये उमस भरी गर्मी में सरकार को चेताने जंतर-मंतर तक चले आते हैं...
HARSHVARDHAN TRIPATHI
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अतीत के कुछ निर्णय,
पता नहीं मैं सही था कि गलत !
कुँए में तो मैं उतर रहा था, भाई लोग तो दोनों हाथों में लड्डू लिए ऊपर जगत को पकड़े अंदर झांकते हुए मौका ताड़ रहे थे । व्यवसाय जम गया तो नाम और दाम का बड़ा हिस्सा उनका नहीं जमा तो अभी का जमा-जमाया काम तो है ही। और हुआ वही जो ऐसे जुओं में होता आया है, सारे प्लान चारों खाने चित्त रहे थे .....
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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फौज में मौज है;
फौज में मौज है;
हजार रूपये रोज है;
थोड़ा सा गम है;
इसके लिए भी रम है;
ज़िंदगी थोड़ी रिस्की है;
इसके लिए तो व्हिस्की है...
मालीगांव पर
Surendra Singh bhamboo
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मैं धरती- पुत्र मंगल हूँ...
और मानव तुम भी तो धरती- पुत्र ही हो।
फिर तो रक्त -सम्बन्ध ही हुआ ना मेरा और तुम्हारा |
मैं तम्हारी रगों में रक्त बन, र
क्त संबंधों को मजबूत करता प्रवाहित होता हूँ ...
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कोई अश्कों से धोए जा रहा रुख़सार जाने क्यूँ
दिखे हैं और मेरी मौत के आसार जाने क्यूँ
पशेमाँ है किए पे ख़ुद के वह गद्दार जाने क्यूँ
बड़े बनते मुसन्निफ़ सब, कहो तो मौत लिख डालें
मगर वो लिख नहीं सकते हैं तो बस प्यार, जाने क्यूँ ...
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अर्थहीन है वो ...
जब तक बुहारती रही आँगन
मिटाती रही सिलवटें
घर, बाज़ार स्कूल ,डॉक्टर से लेकर
दुनियावी पहलुओं तक उगाती रही
कोशिशों के चिनार
खुद को मिटा सजाती रही तुम्हारी बज़्म
बा -अदब बा - मुलाहिजा होशियार की टंकार...
vandana gupta
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कल के लिये....
बालक बनकर
जब दुनिया में आया था
स्वागत किया था सबने
बिना कुछ किये ही
मिला था सब कुछ
उमीदें थी सब को
भविष्य का
अंकुर समझकर
हर इच्छा
पूरी हुई थी तब.....
जब दुनिया में आया था
स्वागत किया था सबने
बिना कुछ किये ही
मिला था सब कुछ
उमीदें थी सब को
भविष्य का
अंकुर समझकर
हर इच्छा
पूरी हुई थी तब.....
--चुनावी बिसात पर जाति के मुहरे
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राजनीति, सामयिकी, साहित्य, समाज, कला-संस्कृति, विविधा
देहाती औरत और मोदी ?
फर्क विदेशी दौरे मे
AAWAZ पर SACCHAI
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