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Sunday, April 30, 2023

"आम हो गये खास" (चर्चा अंक 4660)

 अप्रैल के अन्तिम रविवार की चर्चा।

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दोहे "बादल करते हास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

बारिश का पीकर सलिलआम हो गये खास।

पक जायेंगे आम अबहोगी मधुर मिठास।1।

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गरमी कुछ कम हो गयीबादल करते हास।

नभ के निर्मल नीर सेबुझी धरा की प्यास।2। 

उच्चारण 

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गूँगी गुड़िया : एक और चिट्ठी 

सुरमई साँझ होले-होले

उतरने लगे जब धरती पर 

घरौंदो में लौटने लगे पंछी 

तब फ़ुर्सत में कान लगाकर 

तुम! हवा की सुगबुगाहट सुनना

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मिलकर काम करो : पंचतंत्र || Milkar Kaam Karo : Panchtantra || 

एक तालाब में भारण्ड नाम का एक विचित्र पक्षी रहता था। इसके मुख दो थे, किन्तु पेट एक ही था। एक दिन समुद्र के किनारे घूमते हुए उसे एक अमृत समान मधुर फल मिला। यह फल समुद्र की लहरों ने किनारे पर फेंक दिया गया था। उसे खाते हुए एक मुख बोला-ओह, कितना मीठा है, यह फल! आज तक मैंने अनेक फल खाए, लेकिन इतना स्वादु कोई नहीं था। न जाने किस अमृत बेल का यह फल है।

पंचतंत्र - दो सिर वाला पक्षी (The Bird with Two Heads : Panchtantra)

दूसरा मुख उससे वंचित रह गया था। उसने भी जब उसकी महिमा सुनी तो पहले मुख से कहा-मुझे भी थोड़ा-सा चखने को दे दे। पहला मुख हँसकर बोला- तुझे क्या करना है? हमारा पेट तो एक ही है, उसमें वह चला ही गया है। तृप्ति तो हो ही गई है।  Rupa Oos Ki Ek Boond... 

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औषधियाँ दोहो में 

अश्वगंधा (असगंध) 

चूर्ण ग्राम असगंध दो करें शहद सह योग।

जो पीपल के साथ लें, दूर हटे क्षय रोग।।

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मुलहठी (यष्टिमधु) 

प्रतिरोधक क्षमता बढ़े, श्वांसकास हितकार।

जेष्टमधी सेवन करें, वैद्यक नियम विचार।‌

मन की वीणा - कुसुम कोठारी 

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उत्कल गौरव मधुसूदन दास ; ओड़िशा राज्य के प्रथम स्वप्न दृष्टा 

  छत्तीसगढ़ , झारखण्ड और बंगाल के निकटतम पड़ोसी उत्कलवासी आज 28 अप्रैल को आधुनिक ओड़िशा राज्य के प्रथम स्वप्नदृष्टा  स्वर्गीय मधुसूदन दास को उनकी जयंती के दिन ज़रूर याद कर रहे होंगे । उन्होंने आज से लगभग 120 साल पहले अलग ओड़िशा राज्य का सपना देखा था और जनता को इसके लिए प्रेरित और संगठित किया था। 

 ओड़िशा के समाचार पत्रों , ओड़िशा के टीव्ही चैनलों और सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों में भी आज लोग अलग -अलग तरीके से लोग उनके व्यक्ति और कृतित्व की चर्चा कर रहे होंगे। उत्कलवासियों ने उन्हें  'उत्कल गौरव 'का लोकप्रिय और आत्मीय सम्बोधन दिया । वह आज भी इसी सम्बोधन से याद किये जाते हैं । भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाकटिकट भी जारी किया था  ।वह बैरिस्टर (वकील ) होने के साथ -साथ विद्वान लेखक , चिन्तक और ओड़िया भाषा के लोकप्रिय साहित्यकार भी थे । उनका जन्मदिन ओड़िशा में 'वकील दिवस ' के रूप में भी मनाया जाता है । 

मेरे दिल की बात 

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विश्व पशु चिकित्सा दिवस : पोषण का रामबाण है भारत का पशुधन 

विश्व पशु चिकित्सा दिवस का आयोजन हर साल अप्रैल के अंतिम शनिवार को पशु चिकित्सा व्यवसाय को सम्मान स्वरुप मनाया जाता है। इस साल इस दिवस का विषय पशु चिकित्सा क्षेत्र में विविधता, समानता और समावेश को बढ़ावा देना है। पशुपालन का अभ्यास अब एक विकल्प नहीं है, बल्कि समकालीन परिदृश्य में एक आवश्यकता है। इसके सफल, टिकाऊ और कुशल कार्यान्वयन से हमारे समाज के निचले तबके की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। पशुपालन को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कृषि, शोध और पेटेंट से जोड़ने से भारत को दुनिया का पोषण शक्ति केंद्र बनाने की हर संभव क्षमता है। पशुपालन भारत के साथ-साथ विश्व के लिए अनिवार्य आशा, निश्चित इच्छा और अत्यावश्यक रामबाण है।

शब्द-शिखर 

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72 साल की दास्तां ( मुसाफ़िर हूं मैं राहों का ) डॉ लोक सेतिया कोई नहीं पास तो क्या
बाकी नहीं आस तो क्या ।

टूटा हर सपना तो क्या
कोई नहीं अपना तो क्या ।

धुंधली है तस्वीर तो क्या
रूठी है तकदीर तो क्या । 
Expressions by Dr Lok Setia 

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रामबाण औषधि (दोहे)-1 

१-असगंध
सेवन से असगंध के,करो बुढ़ापा दूर।
क्षमता घटती रोग की, प्रतिरोधक भरपूर॥

२-मुलहठी

छाले मुख के दूर कर,हरती है यह पीर।
रोग मुलहठी से डरे,ठंडी है तासीर॥ 

सैलाब शब्दों का 

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सपेरा | राज कॉमिक्स | जॉली सिन्हा 

कहानी 

रवि मेनन एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे जिन्होंने अपने संगीत के बल पर कई असंभव कार्य संभव कर दिखाए थे। लेकिन पिछले दो  माह से रवि गायब चल रहे थे। वो किधर गए थे किसी को इसका कुछ पता नहीं चला था।

और फिर एक दिन महानगर में सपेरा का आगमन हुआ। 

सपेरा के पास संगीत की ऐसी ताकत थी जिसके चलते उसने नागराज को भी एक तगड़ी चुनौती दे दी थी। 

क्या रवि मेनन का गायब होना और सपेरा के आने के बीच कोई संबध था?

संगीतज्ञ रवि मेनन क्यों गायब हुए थे?

आखिर कौन था ये सपेरा? उसका महानगर में आने का मकसद क्या था? 

एक बुक जर्नल 

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अमरबेल ये जो कैक्टस पर
दिख रही है
अमरबेल ,
जानते हो यह भी
परजीवी है ठीक
राजतन्त्र की तरह।   
अन्तर्गगन 

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प्रत्यागत दरवाजे पर हल्की-हल्की थाप की ध्वनि सुनकर मैंने दरवाजा खोला तो देखा सजा-सँवरा कृष्णा खड़ा था।

"वाह बहुत अच्छे लग रहे हो कृष्णा! आओ, अन्दर आ जाओ !"

"ऑफिस जा रहा हूँ 

आपको प्रणाम करने के लिए माँ ने कहा है !"  

कृष्णा की बातें अस्पष्ट होती हैं। 

कई बार पूछने पर पूरी बात 

अंदाजा से समझा जा सकता है। 

नवजात से देख रही हूँ ।

"नवजात रो नहीं रहा है डॉक्टर।"  

"सोच का सृजन" 

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एक सैनिक की घर वापसी 

अवकाश होते ही राह तुम्हारी देखी 

दिन काटे ना कटता

रातें गुजरीं करवटें बदल  

आशा निराशा में झूलती रही |

मन में शक पैदा हुआ 

कहीं छुट्टिया तो नहीं हुई केंसिल तुम्हारी  

Akanksha -asha.blog spot.com 

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मैं, मेरा चश्मा और बंदर कृष्णभूमि के 

पिछले दिनों RSCB के सौजन्य से वृन्दावन-मथुरा जाने का सुयोग बना ! संयोगवश ग्रुप की अगुवाई की बागडोर मेरे ही हाथों में थी ! चलने के पहले मिली हिदायतों में सबसे अहम् बात जो बताई गई वह थी, दोनों जगहों के बंदरों से सावधानी बरतने की ! खासकर वृन्दावन के इन स्वच्छंद जीवों से, जहां इनका उत्पात खौफ का रूप ले चुका है ! इनका आतंक मथुरा में भी है पर वृन्दावन की तुलना में कुछ कम !  हम सब ने इस बात की अच्छी तरह गांठ बांध ली थी ! जिसका असर भी रहा ! दोपहर तक पहुंचने के बाद गुफा मंदिर, प्रेम मंदिर और इस्कॉन मंदिर के दर्शनों में रात का पहला पहर बिना किसी विघ्न-बाधा के गुजर गया ! सब लोग निश्चिंतता के बावजूद सावधान भी थे !   

कुछ अलग सा 

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अभी रात है बाक़ी न बुझाओ शमअ, कि अभी बहोत रात है बाक़ी,

अभी अभी खुल के महके हैं गुल ए नज़दीकियां,
पहलू से न दूर जाओ ज़रा दिल की बात है बाक़ी, 
अग्निशिखा 

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पतनोन्मुख राजनीति  हमारे देश भारत के प्रधान मंत्री, जो इस गौरवशाली राष्ट्र की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, के लिए अपशब्द कहने वाले लोग अच्छे खानदान के नहीं हो सकते। शासन की यह आश्चर्यजनक व विस्मयकारी उदारता है कि ऐसे लोगों के अपराधों को निरन्तर सहन किये जा रहा है। आज से दस वर्ष पहले के दिनों में ऐसी गन्दगी सत्ताधारियों का विरोध करने वाले किसी भी विपक्षी ने कभी नहीं की थी, क्योंकि उस समय के सत्ताधारी आज की तरह उदार नहीं थे।

स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी, जिनका मैं भी प्रबल प्रशंसक रहा हूँ, की उनके राजनैतिक विरोधी स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने प्रशंसा करते हुए उन्हें 'देवी दुर्गा' कह कर सम्बोधित किया था। छिप गया है राजनीति का वह उज्ज्वल चेहरा आज के घिनौने राजनीतिज्ञों के अपवित्र अस्तित्व की ओट में।

ऐसे निरंकुश नराधमों को देश की प्रबुद्ध जनता सिरे से अस्वीकार कर देगी, यह बात सम्भवतः वह एवं उनके पिछलग्गू नहीं जान रहे।

जनता तो उन्हें दंडित करेगी ही, किन्तु उसके पहले कानून को भी अपनी आँख खोलनी चाहिए। हाँ, कानून को सत्य की परख करते समय यह नहीं देखना चाहिए कि अपराधी सत्तासीन दल का है या विपक्ष का। 

 Gajendra Bhatt 

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फिर क्यूँ भला मन दरबदर है ?  

चारों तरफ सनसनीखेज़ खबर है,सोया हुआ सारा शहर है।

है मौसम में कनकनी,किस डर से पसीने में सब तरबतर हैं?

बंजारा बस्ती के बाशिंदे 

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जिद्दी 

प्रेमियों से

ज्यादा जिद्दी

धुन के पक्के 

इस धरा पर

और किसी को नहीं देखा। 

अडिग शब्दों का पहरा 

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उनका जाना 

एक जोड़ी जूते का 
घर से चले जाना 
मेरे बच्चे के लिए प्रश्नचिंह था 
मेरे लिए  जीवन का 
सबसे गलत निर्णय  
समाज के लिए एक ऐसी खबर
जो बिना अखबार
रोज़ छपती रही
मनोरंजन के बाजार में 

कावेरी 

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जिंदगी रहती कहाँ है 

अपने वक्त पर साथ देते नहीं
यह कहते हुए हम थकते कहाँ है
ये अपने होते हैं कौन?
यह हम समझ पाते कहाँ है! 

KAVITA RAWAT 

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बालकविता "कच्चे घर अच्छे रहते हैं" 


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सुन्दर-सुन्दर सबसे न्यारा।
मेरा घर है सबसे प्यारा।।
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खुला-खुला सा नील गगन है।
हरा-भरा फैला आँगन है।।
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पेड़ों की छाया सुखदायी।
सूरज ने किरणें चमकाई।।
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कल-कल का है नाद सुनाती।
निर्मल नदिया बहती जाती।।
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तन-मन खुशियों से भर जाता।
यहाँ प्रदूषण नहीं सताता।।
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लोग पुराने यह कहते हैं।

 कच्चे घर अच्छे रहते हैं।।

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आज के लिए बस इतना ही...!

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Thursday, April 27, 2023

"बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक 4659)

 मित्रों!

अप्रैल के अन्तिम गुरुवार की चर्चा में 

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दोहे "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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हित जिससे होता जुड़ा, वो होता साहित्य।
सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य।।
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जीवनपथ पर ओ मनुज, चलना सीधी चाल।
जीवनभर टिकता नहीं, फोकट का धन-माल।।
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उच्चारण 

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राष्ट्रीय एकता का बड़ा लक्ष्य पूरा हो रहा है 

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी

 

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हिटमैंस गर्लफ्रेंड - कामिनी कुसुम | सृष्टि प्रकाशन

संस्करण विवरण

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 42 | प्रकाशक: सृष्टि प्रकाशन 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

हिटमैंस गर्लफ्रेंड - कामिनी कुसुम | सृष्टि प्रकाशन | समीक्षा

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मेरा सफल होने का राज

                                                 जब  कदम उठाए थे

विशिष्ट कार्य करने के लिए 

कभी जल्दबाजी का नाम

 ना था मेरे पास |  

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चंदन वंदन

मंगल सुवासित प्रभात ।
पुलकित हुआ पात पात ।
फूलों का सुगंधित हास ।
पंछियों का सुरीला आलाप ।
समय जल सम प्रवाहित 
लहर लहर पल पल निरंतर । 

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खुसर-पुसुर

किताबों से सजी अलमारी से खुसर -पुसुर की आवाज़ आ रही थी ......।
पहली...आज तो क्या बात है !दरवाजा खुला । सुबह-सुबह दरवाजे की चरमराहट से मेरी आँख ही खुल गई लगता है मानो सालों से सो रहे  हैं ।
दूसरी ...और क्या एक साल से तो बंद है दरवाजा ,कोई हमें पढता ही नहीं ....
  पहली ...अरे हाँ आज पुस्तक दिवस है न ..शायद आज हम पर जमी धूल झाड कर ,हमारे साथ फोटो लेगें और फिर सोशल मीडिया पर हेकड़ी जमाएगें कि देखो हमें पुस्तकों का कितना शौक है ।
   शुभा मेहता  

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“समर्पण”

वर्जनाओं की

 देहरी से..


कब बँध कर 

रहती आई हैं

वे सब

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किताबी घर

पुस्तक दिवस पर विशेष 

निकली ईंट
हिलेगी बुनियाद
किताबी घर
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छोड़ेंगे नहीं
खिड़की कपाट भी
पुस्तक चोर

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सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे

stair night

मौसम बदलने लगा धीरे-धीरे

जगा आँख मलने लगा धीरे-धीरे ।

जमाना जो आगे बहुत दूर निकला

रुका , साथ चलने लगा धीरे - धीरे। 

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सीक्रेट फ़ाइल 

सूरज के तेवर के साथ ट्रैफ़िक की 

आवाजाही भी बढ़ती जा रही थी, 

इंतज़ार में आँखें स्कूल-बस ताक रही थीं। 

अपनेपन की तलाश में प्रतिदिन की तरह निधि, 

प्रभा के समीप आकर खड़ी हो गई और बोली- 

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मुरादाबाद की साहित्यकार 

(वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) 

वैशाली रस्तोगी के 101 दोहे 

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साँझ 

उतर रही है साँझ 

क्षितिज से
गालों पे 

फिर तिरे  दामन पे

पाँव रख 

हौले से 

बिखर गई गुलशन में

रक्स-ए-बहाराँ बन के….

                 - उषा किरण 🌸🍃🌱 

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मियाँ ! शायरी ख़ुद असरदार होगी

 अस्वस्थ्य होने के कारण काफ़ी दिन से 
कोई पोस्ट साझा नहीं कर सका। 
आज एक पुरानी ग़ज़ल में कई संशोधन करके 
उसे नया रूप दिया है। 
आपकी प्रतिक्रिया हेतु 
यहां प्रस्तुत कर रहा हूं
ग़ज़ल--- ओंकार सिंह विवेक
©️
ज़रा  भी   अगर  फ़िक्र  में  धार  होगी,
मियाँ!शायरी   ख़ुद   असरदार   होगी।

सफ़र  का  सभी   लुत्फ़  जाता  रहेगा,
रह-ए-ज़िंदगी   ग़र   न   दुश्वार   होगी। 

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चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था …

सैण्डल जिस-पल नीली साड़ी की चुन्नट पे अटका था.
चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था.


बीती यादों की बुग्नी में जाने कितने लम्हे थे,
पर ये मन गोरी छलकत गगरी पन-घट पे अटका था. 
दिगम्बर नासवा

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देह प्राण के अतिक्रम 

सूखे पत्तों का इतिहास कोई नहीं लिखता,
फूलों पर लिख जाते हैं लोग महा गाथिका,

शाखों के धुव्र छुपाए रखते हैं पत्तों के भ्रूण,
खिलते हैं पुष्प चाहे गहनतम रहे नीहारिका,

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''आज तेईस अप्रैल है। दो दिन बीत चुके हैं , तुम्हें गये हुए। सोच भी नहीं पा रहा हूँ, कि यथार्थ में ऐसा भी कुछ हुआ है। शरीर ढीला पड़ा हुआ है। अपने कमरे में बैठा हुआ हूँ, उसी कुर्सी पर। जब तुम छुप छुप कर पीछें खड़े होकर मुझे लिखा हुआ देखा करती थीं। अचानक तुम्हारे ख़ुश्बू से कमरा फिर भर गया है। तुम्हारा स्पर्श मेरे पीठ से होते हुए मेरे गर्दन को जकड रहा है और मुझे यह जकड़न ... आह, मैं बैचैन हो रहा हूँ , नोतून बोउ ठान ''  

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किस्सा - सक जैर अर विस्वास वैद

     

किस्सा तबारी छ जब चारधामा वास्ता क्वी मोटर रोड़ नि छै। जात्री रिऋीकेस बटे पैदल जान्दा छाया। गौचर बटे मील द्वी मील अग्ने चटवापीपळ गौं पड़दू। तबारी जात्रा टेम फर एक दिन तीन साधु बद्रीनाथै जात्रा पर छौ बल। ज्यौठा मैने बात तड़तड़ौ घाम। जोग्यूँ तैं तीस छै लगीं। जब जोगी चटवापीपळ मा पौंछी त बाटा मा पीपळा डाळा छैल मा थौ खाणू बैठ्यांतबारी तौंकि नजर बाटा ऐथर कै मवसी साळी अग्ने बंधी घळमळकार बाळैण भैंस पर लगिन। अब तौन मिस्कोट बणेंन कि यार तै घौर मु ठंडी टपटपी छांस मिल जाली। अर जोगी पौंछग्यां मथि खौळ मा। धै लगान्दी बौड़ी भैर ऐन अर जोग्यूँ तैं सेवा सौंळी करि। स्वामी जी बोला मि क्या सेवा पाणी कैर सकदी आपक। जोगी जगम अपणी डिमांड सि पैली मनखी तैं पुळयाण पटाण नि छौड़दा। मायी तू बड़ि भारी भग्यान जसीली मनख्याण छन। तेरी साळी सदानी लेणी लवाण गाजियूँन भौरिं रयां। नाती नतेण पूत संतान को भलौ सुख लिख्यूँ तेरा भाग मा। 

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डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी

मुस्कुराता हुआ फूल और मुस्कुराता चेहरा किसे नहीं भाता? फूलों की खूबसूरती और खुशबू हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इस दुनिया में कई ऐसे फूल भी जिसकी अपनी अलग अलग है। मिलते हैं फूलों के अजीबो गरीब दुनिया के एक और फूल से, जिसका नाम है "डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी"
डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी || Dendrophylax Lindenii ||

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आज के् लिए बस इतना ही...!

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