शीर्षक पंक्ति:आदरणीय डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। पढ़िए कुछ पसंदीदा रचनाएँ-
दोहे "मुखिया का अधिकार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अब ढोलक की बारी आई
गीत हुए महिलाओं के मन में सोचे गीत गाए
हवा में उड़ जाने का बहाना लिया
हुआ समापन सालगिरह का।
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"यह तो झोके हैं पवन के
हैं यह घुंघरू जीवन के
यह तो सुर है चमन के
खो न जाऐ
तारे ज़मीन पर
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अच्छा नहीं लगा देखकर,
तुम घुली रहा करो मुझमें,
चाहे सुबह हो या शाम,
दिन हो या रात.
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एक दिन वह वृक्ष होगा
आस्था के पुष्प धारे,
दे सहारा पंछियों को
रात-दिन जो गीत गायें !
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झुलस गये पेङ पौधे
गर्म हवाओं से
ठूठ रहा खङा निहारता
जीने की आस लिए
बरस जाओ फिर इक.बार
भर कर गहरे रंग
बन जाओ फिर काले बादल
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अहं अनन्तं स्वप्नं पश्यामि - -
पुनर्जीवित हों सभी सुप्त
इच्छाएं जागृत हों स्वप्न
जो नदी तट ने ग्रास
किए श्रावणी
अझर वृष्टि
पूर्व,
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शान्ति निकेतन, सोनाझुरी- हाट और बाउल_गीत
अपना सर्वस्व समर्पित करने हेतु
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंएक-एक कर सभी लिंक्स पर चक्कर लगाया,
कहीं मुस्कान तो कहीं गंभीरता ने दिल को लुभाया,
आभार 'मन पाये विश्राम जहां' को भी आज के इस शानदार अंक में शामिल करने के लिए रवींद्र जी !
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
शानदार अंक. आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
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