फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, फ़रवरी 28, 2018

"होली के ये रंग" (चर्चा अंक-2895)

सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
सबसे पहले गुरु जी के ब्लॉग की पोस्ट.. 
--
--
--

उदास नज़्म....  

सीमा ‘असीम’ सक्सेना 

जब कभी उकेर लेती हूँ  
तुम्हें अपनी नज़्मों में !  
आँसुओं से भीगे गीले,  
अधसूखे शब्दों से!!  
सूख जायेंगी गर 
कभी वे उदास नज़्में... 
विविधा.....पर yashoda Agrawal  
--
--
--
--

तब से तुमसे प्यार किया है... 

जब तुमने पहली बार मुझे देखा था 
उन झुकी हुई निगाहों से 
तब से तुमसे प्यार किया है... 
--
--

Lahar 

कविता-एक कोशिश पर नीलांश  
--
--
--

रुसवाई 

मेरी जुबानी पर Sudha's insights 
--

असफलता बोती रहे, नित्य सफलता बीज- 

शुभ अवसर देता सदा, सूर्योदय रक्ताभ।  
हो प्रसन्न सूर्यास्त यदि, उठा सके तुम लाभ... 
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर  
--
--

शीर्षकहीन 

आनन्द वर्धन ओझा  
--

वसंत पर कविता  

" मन पांखी हो देख आवारा " 

कोयल कूंके पंचम सुर में 
नवविकसित कलियाँ लें अंगड़ाई 
भृंगों का गुंजन उपवन गूंजे 
बहुरंगी तितलियाँ थिरकें अमराई... 
Shail Singh  at  शैल रचना 
--

पूर्वोत्तर में जागीं  

बीजेपी की हसरतें 

pramod joshi  at  जिज्ञासा 

--

क्या बैंक  

हमें लूटने के लिए हैं? 

--

मंगलवार, फ़रवरी 27, 2018

"नागिन इतनी ख़ूबसूरत होती है क्या" (चर्चा अंक-2894)

मित्रों!
चर्चा मंच क्या है? एक लघु एग्रीगेटर ही तो है।
अगर किसी के ब्लॉग की पोस्ट का लिंक नहीं लगेगा तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। 
लेकिन ब्लॉग के संक्रमण काल में जो लोग नियमित ब्लॉग लेखन कर रहे हैं,
ऐसे में उनके ब्लॉग पर हौसलाअफजाई के लिए यदि एक कमेंट आ जायेगा तो 
मेरे विचार से उनका उत्साहवर्धन अवश्य होगा। 
इसी भावना के कारण मैं चर्चामंच को जीवित रखे हुए हूँ।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--

कविता  

"भय मानो मीठी मुस्कानों से"  

मित्रों।
आज घर की पुरानी अलमारी में 
जीर्ण-शीर्ण अवस्था में 
1970 से 1973 तक की 
एक पुरानी डायरी मिल गयी।
जिसमें मेरी यह रचना भी है-
सब तोप तबर बेकार हुए, 
अब डरो न तीर कमानों से।
भय मानो तो ऐ लोगों! 
मानो मीठी मुस्कानों से... 

चुप..... 

प्रियंका सिंह 

मैं चुप से सुनती 
चुप से कहती 
और चुप सी ही रहती हूँ 
मेरे आप-पास भी चुप रहता है 
चुप ही कहता है और 
चुप सुनता भी है... 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
--
--

हिंदी ग़ज़ल के पथ प्रदर्शक  

गुलाब जी 

आदरणीय श्री गुलाब खंडेलवाल जी की रचनाओं से मेरे प्रथम परिचय में मेरी स्थिति ठीक वैसी ही थी जैसे किसी ठेठ ग्रामीण व्यक्ति को अचानक किसी शहर के सुपरमॉल में लाकर खड़ा कर दिया गया हो | अद्भुत निर्वचनीय और विपुल साहित्य सामग्री और उनमें भी मेरी पसंदीदा विधा ग़ज़ल की चार चार पुस्तकें |
मौलिक उद्गारों के सृजक आदरणीय गुलाब जी ने बहुत ही कोमल भावों को अनेक विधाओं में समेटा है | उत्कृष्ट साहित्य लिखने के साथ-साथ गुलाब जी ने हिंदी के आधुनिक स्वरूप में नई-पुरानी विधाओं को इस रूप में प्रस्तुत किया कि पुराने वृक्षों पर नवशाखाओं नवपल्ल्वों ने इठलाना शुरू कर दिया मानों वसंत के आगमन पर बगीचों में गुलाब अपने रस गंध का हर कतरा न्यौछावर कर देना चाहता हो | गुलाब जी स्वयं अपना परिचय इन पंक्तियों के माध्यम से देते हैं कि –
“गंध बनकर हवा में बिखर जाएँ हम
ओस बनकर पंखुरियों से झर जाएँ हम”... 
वाग्वैभव पर Vandana Ramasingh  
--
--
--
--

साक्षात्कार ब्रह्म से ... 

ढूंढता हूँ बर्फ से ढंकी पहाड़ियों पर 
उँगलियों से बनाए प्रेम के निशान 
मुहब्बत का इज़हार करते तीन लफ्ज़ 
जिसके साक्षी थे मैं और तुम... 
Digamber Naswa  
--

हाईकू 

1- 
ना वे आ पाए 
ना मुझे आने दिया 
यह क्या किया  
2-.. 
Akanksha पर Asha Saxena  
--

किताबों की दुनिया - 166 

नीरज पर नीरज गोस्वामी  
--
--
--
--
--

अभंगित मौन ............. 

चन्द्र किशोर प्रसाद 

विविधा.....पर yashoda Agrawal  
--

नागिन इतनी ख़ूबसूरत होती है क्या? 

वंदे मातरम् पर abhishek shukla  
--

मृत्यु संस्कार है –  

कौतुहल का विषय नहीं 

बहुत दिनों से मन की कलम चली नहीं, मन में चिंतन चलता रहा कि लेखन क्यों? लेखन स्वयं की वेदना के लिये या दूसरों की वेदना को अपनी संवेदना बनाने के लिये। मेरी वेदना के लेखन का औचित्य ही क्या है लेकिन यदि कोई ऐसी वेदना समाज की हो या देश की हो तब वह वेदना लेखक की संवेदना बन जाए और उसकी कलम से शब्द बनकर बह निकले तभी लेखन सार्थक है। कई बार हम अपनी वेदनाओं में घिर जाते हैं, लगता है सारे संसार का दुख हम ही में समा गया है लेकिन जैसे ही समाज के किसी अन्य सदस्य का दुख दिखायी देता है तब उसके समक्ष हमारा दुख गौण हो जाता है, बस तभी लेखन का औचित्य है। जन्म-मृत्यु, सुख-दुख हमारे जीवन के अंग हैं... 
smt. Ajit Gupta