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शुक्रवार, जनवरी 31, 2014

"कैसे नवअंकुर उपजाऊँ..?" (चर्चा मंच-1509)

शु्क्रवार की चर्चा में मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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एक बार फिर, गाँधी जी ख़ामोश थे 

शब्द-शिखर पर Akanksha Yadav

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''सियासत की गोली गांधी के जा लगी ! 

फूल को तलवार बना देती सियासत ! 
मासूम को मक्कार बना देती सियासत...
WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION
पर shikha kaushik
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ख्‍वाहिशें झाँकती हैं बन के ख्‍व़ाब ! 
SADA
अंज़ाम की परवाह
बिना किये जब
जिंदगी के साथ चलता है कोई 

कदम से कदम मिलाकर तो 

जीने का सलीक़ा आ जाता है...
SADA
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टूट जाता है दिल 

ग़ाफ़िल की अमानत पर 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल
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श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद 
(१६वां अध्याय) 

इतना आज है मैंने पाया अमुक मनोरथ पूर्ण करूँगा. 
इतना धन है पास में मेरे इतना ही फिर प्राप्त करूँगा....
Kashish - My Poetry पर 
Kailash Sharma
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कुछ लिंक आपका ब्लॉग से...
धुरी बन जाने को 
नही समझ पाया मैं कभी 
मनुष्य हृद्य धुरी कैसे बन सकता हैं ? 
पाठ शांति का दे इंसानों को 
र्निलोभी होने की सलाह दी जाती हैं ...
पथिकअनजाना 
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चलते चलते बातें सेहत की
Eating high levels of flavonoids including anthocyanins and other compounds (found in berries ,tea ,and chocolate )could offer protection from type 2 diabetes .High intakes of the compounds are associated with lower insulin resistance and better blood glucose regulation... 
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
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पहली मरतबा 
योरोपीय न्यूक्लीयर एजन्सी (CERN ) 
के भौतिकी विद प्रति -हाइड्रोजन परमाणुओं का 
पुंज बनाने में कामयाब हुए हैं।
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
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सिर्फ पढ़ने से ज्ञान नहीं मिलता 
उसे आचरण में अपनाने से मिलता है.. 
जिस ज्ञान से चित्तशुद्धि होती है, 
वही यथार्थ ज्ञान है, 
बाकी सब अज्ञान है...
रमेश पाण्डेय
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"मधुमास आ गया है" 
टेसू के पेड़ पर अब,
कलियाँ दहक रहीं हैं।
मधुमास आ गया है,
चिड़ियाँ चहक रहीं हैं।
 
सरसों के खेत में भी,
पीले सुमन खिले हैं।
आने लगे चमन में,
भँवरों के काफिले हैं।
मादक सुगन्ध से अब,
गलियाँ महक रहीं है।
उच्चारण
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जिद्दी जिंदगी.. 

जब से सोचने समझने लायक हुई, 
न जाने कितने सपने खुली आँखों से देखे. 
कभी कोई कहता 
कोरे सपने देखने वाला कहीं नहीं पहुंचता 
तो कभी कोई कहता 
कोई बात नहीं देखो देखो 
सपने देखने के 
कोई दाम पैसे थोड़े न लगते हैं....
स्पंदन SPANDAN पर shikha varshney
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"भवसागर को कैसे पार करेगा" 
जो बहती गंगा में अपने हाथ नही धो पाया, 
जीवनरूपी भवसागर को, कैसे पार करेगा? 
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जो मानव-चोला पाकर इन्सान नही हो पाया, 
वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा?
सुख का सूरज
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इंतज़ार 
इंतज़ार कि घड़ियाँ गिनते - गिनते , 
प्रीत कि ओढ़नी ओढे मन 
दुल्हन सा हो गया है , 
मिलन कि आस लिए बस दरवाज़े पर 
टक - टकी लगाये 
पहरा देते रहते हैं मेरे एहसास...
Love पर Rewa tibrewa
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सियासत “आप” की ! 
हिलगई नींव अब खानदानी महल की 
'खास' अब लगाने लगे टोपी 'आम' की l 
बढ़ गई धड़कन सियासत के मुक्केबाजों की 
बेहोश हो रहे बार बार, 
खाकर मुक्का एक 'आम' की...
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर 

कालीपद प्रसाद
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जिस्म की परछाईं भी लुप्त हो गयी 
कुछ चली ऐसी बयार चिंगारियों की 
जिस्म की परछाईं भी लुप्त हो गयी 
अब परछाइयों की परछाइयाँ 
ढूँढती हूँ पुराने मकाँ में...
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र पर 

vandana gupta 
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विवशता में फायदे का सौदा 
नहीं किया जा सकता है 

विवशता की हालत में 
कोई नियम लागू नहीं होता है। 
कीचड़ में फँसे हाथी को 
कौआ भी चोंच मारता है।। 
कुँए में गिरे शेर को 
बंदर भी आँखें दिखाता है। 
उखड़े हुए पेड़ पर 
हर कोई कुल्हाड़ी मारता है...
KAVITA RAWAT पर कविता रावत 
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दिशाशूल : 
अंधविश्वास बनाम तार्किकता 

आज के इस वैज्ञानिक युग में भी बहुत सी ऐसी बातें हैं,जो समाज में प्राचीन काल से प्रचलित रही हैं और अब भी अंधविश्वास की श्रेणी में ही गिनी जाती हैं.इन्हीं में से एक है – दिशाशूल. एक समय विशेष में दिशा-विशेष की यात्रा करने की बात को या मुहूर्त इत्यादि में विश्वास को आज का तथाकथित आधुनिक समाज अंध-विश्वास की श्रेणी में ही गिनता है.परन्तु ऐसे तथाकथित अंधविश्वासों का आधुनिक युग में वैज्ञानिक विश्लेषण हो रहा है.यह बात बहुत ही आश्चर्यजनक है कि उन तथाकथित अंधविश्वासों को वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त हो रही है...
देहात पर राजीव कुमार झा
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यह मैं हूँ कागज के खेत में 

'रंग' सीरीज की अपनी कुछ कविताओं में से 
एक कविता आप इसी ठिकाने पर पहले पढ़ चुके हैं। 
लीजिए आज प्रस्तुत है एक और कविता... 
कुछ और रंग
एक कैनवस है यह
एक चौखुटा आकार
क्षितिज की छतरी
मानो आकाश का प्रतिरूप
जिसकी सीमायें बाँधती है हमारी आँख
और मन अहसूस करना चाहता है अंत का अनंत...
कर्मनाशा पर siddheshwar singh 
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यह क्या ? 
यह क्या कहा 
कैसा सदमा लगा 
मैं भूली ना | 
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लिखी किस्मत न 
विधाता ने मेरी 
भूल किसकी...
Akanksha पर Asha Saxena
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तू बहुत देर से मिला है मुझे.. 
अहमद फ़राज़ 

जिंदगी से यही गिला है मुझे 
तू बहुत देर से मिला है मुझे 

हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं 
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे ...
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
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धिक् पुरुष की गन्दी सोच 

दामिनी गैंगरेप कांड और इसके पहले हुए बलात्कार और इसके बाद निरंतर हो रहे बलात्कारों ने देश में एक बहस सी छेड़ दी है और अधिकांशतया ये बहस एक ही कोण पर जाकर ठहर जाती है और वह कोण है नारी विरोध ,नारी से सम्बंधित जितने भी अपराध हैं उन सबमे एक ही परंपरा रही है नारी को ही जिम्मेदार ठहराने की .ये पहली और आखिरी पीड़ित होती है जो स्वयं ही अपराधी भी होती है...
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
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गाती जाए सोन चिरैया----- 

घर छोटा और गाड़ी छोटी पर ---  
दिल बड़ा रखना भैया 
मेरे छत के मुंडेरे पे 
गाती जाए सोन चिरैया... 
Tere bin पर Dr.NISHA MAHARANA
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'जय हो' की जय हो ! 

सलमान खान के फिल्मों की एक ख़ास विशेषता है कि इसे हर आम व ख़ास आदमी अपने परिवार के साथ देख सकता है । सलमान द्वारा अभिनीत हर फिल्म से हमें उम्मीद होती है - धाँसू डायलॉग, हँसते गुदगुदाते हुए डायलॉग, जोरदार एंट्री, जबरदस्त फाइट, नायिका के साथ स्वस्थ प्रेम दृश्य, डांस में कुछ ख़ास नया स्टेप्स, गीत के बोल और धुन ऐसे जो आम आदमी की जबान पर चढ़ जाए...
साझा-संसार पर डॉ. जेन्नी शबनम 

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लिबास-कहानी 
मंजू ने लम्बी साँस लेते हुए मन में सोचा -''आज सासू माँ की तेरहवीं भी निपट गयी .माँ ने तो केवल इक्कीस साल संभाल कर रखा मुझे पर सासू माँ ने अपने मरते दम तक मेरे सम्मान ,मेरी गरिमा और सबसे बढ़कर मेरी इस देह की पवित्रता की रक्षा की . ससुराल आते ही जब ससुर जी के पांव छूने को झुकी तब आशीर्वाद देते हुए सिर पर से ससुर जी का हाथ पीछे पीठ पर पहुँचते ही सासू माँ ने टोका था उन्हें -'' बिटिया ही समझो ...
भारतीय नारी पर shikha kaushik

गुरुवार, जनवरी 30, 2014

बसंत की छटा ( चर्चा - 1507 )

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है 
ठंड का प्रकोप कम हुआ है और बसंत की छटा छाने लगी है ब्लॉग जगत में बसंत की  झलक सदा विद्यमान रहती है | इसी की एक झलक प्रस्तुत करने का प्रयास चर्चा मंच का उद्देश्य है , इसी क्रम में एक प्रयास है ये चर्चा | 
सरिता भाटिया का प्रोफ़ाइल फ़ोटो 
आभार 
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"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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प्यारे बापू, आपका मनोरथ 
कुछ ही महीनों में पूरा कर दिया जाएगा 

अलबेला खत्री
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श्याम स्मृति – 
आज की कविता... 
भाव शब्द व कथ्य.... 
मीराबाई को राणा जी द्वारा सताए जाने पर 
परामर्श रूप में तुलसी ने कहा...  
*जाके प्रिय न राम वैदेही |* 
*ताजिये ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही |*  
आज का कवि इस सन्दर्भ में परामर्श देता तो क्या कहता..... 
*‘राजा मस्त पिए बैठा है * *करता अत्याचार |* 
*भक्ति में रोड़े अटकाए ,* *रानी बैठी मुंह लटकाए ;* 
*त्याग करे यदि राजा का वो-* *तभी मिले सुख-चैन ,* 
*करे भक्ति दिन-रैन,* *छोड़ कर बैठे सब घर द्वार |* 
भाव, तथ्य व अर्थार्थ वही है ..परन्तु भाषा व कथ्य–शिल्प...
जिसे लट्ठमार भी कहा जा सकता है | 
यह असाहित्यिकता है....
सृजन मंच ऑनलाइन पर 

shyam Gupta
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सफर 
हर सफर मे कितने कब्र फोड़ 
निकाल लेते दोनों मसीहों को....!!! 
हथेलियों से रगड़ मुंह की फूँक से 
उनके कपड़े उतार डालते...!!! 
कुछ को बड़ी बेरहमी से जख्म पर नमक छिड़क 
मुंह मे ड़ाल बारीकी से पीस देते....!!! 
तो औरों के गले घोंटकर पूरे शरीर का तेल 
बड़ी आसानी से निचोड़ डालते....!
खामोशियाँ...!!! पर मिश्रा राहुल -

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वृक्ष हूँ मै 
बहुत बड़ा वृक्ष हूँ मै खड़ा हूँ सदियों से 
यहाँ बन द्रष्टा देख रहा हूँ  
हर आते जाते मुसाफिर को करते है  
विश्राम कुछ पल यहाँ और फिर चल पड़तें है 
अपनी मंज़िल की ओर ....
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 

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वह भर पेट संगीत नहीं लिख पाता है... 

क्या तुमने वह संगीत सुना है, 
जिसे कोई भूख के लिए बजा रहा होता है? 
बंधे-बंधाए सुर के बीच में कहीं 
उसकी उंग्लिया गलती से कांप जाती है। 
कहते हैं, जब दूर देश से 
उसकी प्रेमिका का खत उसे मिलता था.. 
तो वह उस ख़त में प्रेम नहीं.... 
पैसे तलाशता था....
प्रतिभा की दुनिया ...पर Pratibha Katiyar

बुधवार, जनवरी 29, 2014

वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है: चर्चा मंच 1507

आदरणीय/आदरेया : 5 फरवरी तक प्रवास पर हूँ-रविकर 

वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है-


लेकर कुलकर आयकर, करती क्या सरकार |
लोकतंत्र सुकरात का, वोटों की दरकार |


वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है |
विविध भाँति सत्कार, तंत्र में फर्स्ट-रैंक है |


दे अनुदान तमाम, मुफ्त में राशन देकर |
करते अपना नाम, रुपैया हमसे लेकर ||

मन की भूख

Rewa tibrewal 
 Love

सूरदास

देवेन्द्र पाण्डेय 
"अपना गणतन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अंग्रेजी से ओत-प्रोत, 
अपने भारत का तन्त्र, 
मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।
पुरुष विमर्श

Abhilasha पर नीलिमा शर्मा
श्रीमान जी की तारीफ में  
--पथिकअनजाना 
*गर चन्द लफ्जात श्रीमान की तारीफ में 
कर दें बयान आप* 
*दुनिया में हर मौके पर इससे बेहत्तर 
तोहफा क्या होगा*... 
आपका ब्लॉग
इस देश को कौन बचाएगा ? 
 जयचंदों की कमी नही माँ , माना मेरे देश में । 
राणा और शिवाजी भी तो, बसते हैं इस देश में...
निर्झर'नीर!
"अद्यतन लिंक" 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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चलिये आज आप से ही पूछ लेते हैं 
कुछ लिखा जाये या रहने दिया जाये 
रोज लिख लेते हैं अपने मन से 
कुछ भी पूछते भी नहीं 
फिर आज कुछ अलग सा 
क्यों ना कर लिया जाये... 

उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी 

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सुखकर कि यात्रा-क्रम में ही जन्‍म-तिथि भी आई.. 
मित्रवर आज स्‍वीकार कीजिए बधाई बधाई बधाई..

Shyam Bihari Shyamal

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हिन्दी कविता में नवीन प्रयोगवादी कवियों के द्वारा जापान से जिस नई विधा ' हाइकु' का पदार्पण हुआ, उसी विधा में यह पुस्तक अपने रंग बिखेरती है . अपनी भावनाओं को कम से कम शब्दों में सार्थकता से पिरोना काफी कठिन है परन्तु सारिका मुकेश जी ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए इस विधा को नए आयाम प्रदान किये है...

अंतर्मन की लहरें पर सारिका मुकेश
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कक्षा -कथा 

बालकुंज पर सुधाकल्प

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समलैंग‌िकता पर 
SC ने खारिज की याच‌िका- 
एक सराहनीय कदम 

कानूनी ज्ञान पर Shalini Kaushik 

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हमें पेड़ बोने हैं और ढेर सारे पेड़ बोने हैं :) 
बात थोड़ी पुरानी है, हमारे भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गांधी ने कहा था 'हमें पेड़ बोने हैं और ढेर सारे पेड़ बोने हैं :), लेकिन उन्होंने ये बात, पर्यायवरण की रक्षा के लिए कहा था । परन्तु उसी पेड़ से हमारी भावी प्रधानमन्त्री कुछ दूसरे तरीके से फायदा उठाने की सलाह दे रहे हैं । वो चाहते हैं कि Gendercide (यहाँ कन्या की बात करते हैं) अर्थात कन्या जेंडर को विलुप्त होने से बचाना है तो पेड़ लगाएं। अगर आपके घर में बेटी जन्म लेती है तो आप उसके लालन-पालन की चिंता ताख पर रख दीजिये, उसको क़ाबिल बनाने के बारे में तो आप कल्पना भी मत कीजिये...
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा -

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सुख : दुख 
“राशि हैलो तुझे पता है कि अनिल के फादर की क्रिया आज है। दस दिन बात उसके बेटे की शादी है।” इंदु ने कहा। “नहीं मुझे नहीं मालूम ।” “अच्‍छा, चल मैं आ रही हूँ तू मुझे मैट्रो स्‍टेशन के पास मिलना...
आपका ब्लॉग पर सीमा स्‍मृति