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बुधवार, अगस्त 16, 2023

'घास-फूस की झोंपड़ी'(चर्चा अंक-4677)

सादर अभिवादन। 
बुधवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।


हमारे द्वारा लगाए गए पौधे को सींचने में जब कोई हमारी मदद करता है तब हृदय से आभार शब्द स्वतः फूट पड़ता  है। 

पिछले कुछ दिनों से आदरणीय शास्त्री जी सर की तबीयत ख़राब चल रही है। वैसे समय-समय पर उनसे बात-चित होती रहती है।आज फिर उनसे बात हुई। 
बात क्या हुई! साठ सेंकण्ड का फ़ोन और मौन पसरा रहा।
 मैंने नमस्कार कहा। 
उन्होंने भरी आवाज़ में आशीर्वाद के साथ कहा-” बेटी आभार।” मैंने कहा- ”आप जल्द ही स्वस्थ हो जाएंगे।” उन्होंने कहा- "अब मैं बुढ़ा हो गया हूँ।”
शब्दों से मन भीग गया,मैं मौन थी।

जल्द ही उनके स्वस्थ होने की कामना के साथ पढ़ते हैं कुछ रचनाएँ-

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उच्चारण: दोहे "बोलो वन्दे मातरम्, रहो सदा सानन्द" 

तीन रंग से है सजा, भारत का परिधान।
पन्थ-धर्म का हो रहा, सदियों से सम्मान।।
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लोगों करना सीखिए, देशभक्ति पर गौर।
तीन रंग की है ध्वजा, भारत की शिरमौर।।

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उलूक टाइम्स: आजादी के मायने सबके लिये उनके अपने हिसाब से हैं बस हिसाब बहुत जरूरी है 

आजादी दिखने दिखाने तक ही ठीक नहीं है
आजादी है कितनी है उसे लिखना भी उतना ही जरूरी है

जब मिली थी आजादी सुना है एक कच्ची कली थी 
आज के दिन पूरा खिल गयी है फूल बन गयी है
स्वीकार कर लेना है
आज की मजबूरी है
-- 

तुम्हारे अपनेपन की महक सांसों में भरते ही

तन का रोम -रोम मन ही मन कह उठता है..,

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।

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यश पथ (Yash Path): प्यासा भूखा पंद्रह अगस्त.........


मर गया आंख का पानी है
किस्सा किस्सा बलिदानी है
हंसते से महल दुमहले हैं
टूटी सी छप्पर छानी है

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विहान: आजादी का दिन 

हों संकल्प पूरे  मन से लगन से।
इरादे अडिग नेक चिन्तन मनन से ।
प्रलोभन कभी भी हमें ना डिगाएं
दिवस आजादी का....
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मुझे तुमसे मोहब्बत है
तुम्हें मैं प्यार करती हूँ
तुम्हारे नाम पर भारत
मैं दिल कुर्बान करती हूँ।
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कुछ अनुभूति अंकुरित हुई है 
नव स्फूर्ति विस्तरित हुई है
हे शुभ प्रभात के बाल-श्रेष्ठ
महसूस करो क्या विदित हुई है.
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दुश्मनों की है हालत खराब ,
कुछ पकड़ाया #कटोरा हाथ ,
भारत ने ऐसा चला है पास ,
अब कोई न दिखाये आँख ।
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घास-फूस की झोंपड़ी
मिट्टी पुती दीवार 
जूते-चप्पल 
झाड़ू छिपाने से परहेज करता 
वह शहर होने से घबराता है 
पूछता है- ”जीवन बसर करने हेतु
सभी को शहर होना होता है?”
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जीवन को तरह-तरह से परिभाषित किया गया है। कोई इसे प्रभू की देन कहता है, कोई सांसों की गिनती का खेल, कोई भूल-भुलैया, कोई समय की बहती धारा तो कोई ऐसी पहेली जिसका कोई ओर-छोर नहीं। कुछ लोग इसे पुण्यों का फल मानते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो इसे पापों का दंड समझते हैं। 
कोई चाहे कितना भी इसे समझने और समझाने का दावा कर ले, रहता यह अबूझ ही है। यह एक ऐसे सर्कस की तरह है जो बाहर से सिर्फ एक तंबू नज़र आता है पर जिसके भीतर अनेकों हैरतंगेज कारनामे होते रहते हैं। ऐसा ही एक कारनामा है इंसान का सच से आंख मूंद अपने को सर्वोपरि समझना।
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वक़्त-बेवक़्त यों हीं मिलते रहेंगे। 
आप भी आते रहें। 
@अनीता सैनी  

13 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय शास्त्री जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई अनीता जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर सूत्रों से सजी नायाब प्रस्तुति अनीता जी ।चर्चा में सूत्र साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।आदरणीय शास्त्री जी सर के शीघ्रातिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करती हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
    आदरणीय शास्त्री सर जी
    जल्दी से स्वस्थ हो जाएं यही मंगल कामना है

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय मेम
    जी नमस्ते ,
    मेरी प्रविष्टि् " #भारत तो है अब #बॉस !" की चर्चा इस अंक में शामिल करने के लिये बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
    इस अंक में सम्मिलित सभी रचनाएँ बहुत उम्दा है । सभी आदरणीय को बहुत बधाइयाँ ।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार अभ‍िव्यक्त‍ियों को आज पढ़ते हुए मन तृप्त हो गया अनीता जी, बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आद. अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  8. चर्चा मंच की सुखद स्मृति

    जवाब देंहटाएं

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