मित्रों।
रविवार की चर्चा में आप सबका स्वागत है।
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ग़ज़ल "जमीं की सब दरारों को, मिटाता सिर्फ पानी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उदास चेहरा मुरझाया आनन
यह हाल है तुम्हारा
मुझसे क्यओं छि\पाया
मुझे बताया नहीं |
तुमने मुझे अपना नहीं समझा
मुझे पराया समझअपने से दूर रखा
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क़वायद सुबह के बमुश्किल सात बजे थे, जब दरवाज़े पर किसी ने घंटी बजायी. बालकनी से झाँक के देखा तो गेट के सामने एक सरकारी गाड़ी खड़ी और सादी वर्दी में उससे उतरे कुछ लोग खड़े थे. उनके चेहरे से रुआब टपका पड़ रहा था. मुझे लगा आज ईडी ने रेड डाल ही दी. ख़ुशी भी हुयी कि मोहल्ले वाले जो मुझे किसी लायक नहीं समझते थे, उन्हें जलाने के लिये इस रेड का पड़ना आवश्यक था. नीचे आते-आते मै ये ही सोचता रहा कि कहीं समाज कल्याण में काम करने वाले मेरे पडोसी की जगह गलती से मेरी घंटी तो नहीं बजा दी. मेरे घर क्या पूरे खानदान की रेड डाल दो तो भी क्या मिलेगा. गेट पर पहुँचा तो चपरासीनुमा अधिकारी ने कुछ धमकी भरे अन्दाज़ में कहा - गेट खोलो हमारे पास तुम्हारे घर का सर्च वारेन्ट. वाणभट्ट
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"कोई पत्थर नहीं हैं हम" : ग़ज़ल-संग्रह (ग़ज़लकार अशोक रावत)
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हूं अंतिम अरुण क्षितिज का
एक पिता ने कहा खेद से
विषम बहुत है सूनापन
नीरव-नीरव वृद्ध नयन यह
खोज रहा है अपनापन.
भूल गया क्या, याद है कुछ भी
था तेरा भोला सा बचपन
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जिसके पास जितनी सुविधा है,
उसके पास उतनी दुविधा है..❣️"
तुमने कहा वो मोटी है
वो खाना छोड़ कर बैठ गयी
तुमने कहा शरीर सुडौल नहीं
वो पोछा लगा पेट कम करने लगी
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बदरिया गरजे आधी रात .
बिजुरिया चमके आधी रात
रिमझिम रिमझिम सुधियाँ बरसें
कैसी यह बरसात
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सभ्यता है बलवती
दुराचार के राज में
गौण हो गई संस्कृति
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•स्मृति क्या है?
°बीते हुए कल के शोर की प्रतिध्वनि
•शोर क्यों स्वर क्यों नहीं?
°जिस प्रकार हमारी सूक्ष्म देह होती है ठीक उसी प्रकार सूक्ष्म कान भी। स्वर उनसे टकराये भी तो हम विचलित नहीं होते और उनके बारे में बार-बार नहीं सोचते
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नदियां इन दिनों
झेल रही हैं
ताने
और
उलाहने।
शहरों में नदियों का प्रवेश
नागवार है
मानव को
क्योंकि वह
नहीं चाहता अपने जीवन में
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सिकुड़ जाता है मन का चोला
तो घुटने लगती हैं श्वासें
और जन्म होता है हिंसा का
शायद आत्मरक्षा में
मन घायल करता है
पहले स्वयं को
फिर अपनों को
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अमावस्या के दिन महिलाएं बाल धो सकती है या नहीं?
हम हमारे बड़े बुजुर्गों से कई बार सुनते है कि अमावस्या के दिन बाल नहीं धोना चाहिए। क्या आपने कभी इस बारें में सोचा कि ऐसा क्यों? क्यों हमारे बड़े बुजुर्ग अमावस्या के दिन बाल धोने मना करते है? क्या सचमुच अमावस्या के दिन बाल धोना अशुभ है? आइए, जानते है क्या है सच्चाई? आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल--
कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान) - ■ काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग ■ 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग ■ 2 त्रुटि = 1 लव , ■ 1 लव = 1 क्षण ■ 30 क्षण = 1 विपल , ■ 60 विपल = 1 पल ■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) , ■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा ) लालित्यम्
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गीत
"दिवस गये अनुराग के"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोहे
"संरक्षण देता सदा, काँटों का परिवेश"
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आज के लिए बस इतना ही...!
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चर्चा मंच पर मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या, विविधरंगी चर्चा, आभार!
जवाब देंहटाएंधरा की सब दरारों को, मिटाता सिर्फ पानी है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ, काश ! मानव के दिलों की दरारों को भी कोई मिटा पाता !
हमेशा की तरह बेहतरीन रचनाओं से सजा अंक। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए हृदयपूर्वक आभार।
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति, सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा है
जवाब देंहटाएंMetro Route finder Website Gometro
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