मित्रों!
मई के अन्तिम रविवार की चर्चा में
आपका स्वागत है।
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दोहे "सूरज से हैं धूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पुस्तक समीक्षा
"मृग-मरीचिका" डॉ.राज
विमोचित पुस्तक
"मृग-मरीचिका"
(राज सक्सेना)
सबसे पहले तो मैं हमारे बीच के ही खटीमा के साहित्यगौरव राजकिशोर सक्सेना डॉ. राज को उनकी प्रकाशित पुस्तक "मृग-मरीचिका" के विमोचन के अवसर पर बधाई देता हूँ। अब तक जिन्हें हम लोग मात्र एक कवि के रूप में जानते थे, किन्तु "मृग-मरीचिका" के लोकार्पण से आज उन्हें सम्पूर्ण समाज एक विश्लेषक और गद्यकार के रूप में पहचानेगा।
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बँधी भावना निबाहते
हाथ से मिट्टी झाड़ते हुए
खुरपी से उठी निगाहों ने
क्षणभर वार्तालाप के बाद
अंबर से
गहरे विश्वास को दर्शाया
चातक पक्षी की तरह
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मेरी ही बर्बादी का जश्न क्यों हो रहा है?
कौन जानता है सच और झूठ के बीच का फासला,
किसने गढ़े हैं इन दीवारों पर एक विरहन की व्यथा।
कौन मेरे अरमानो की अर्थी को कंधा दे गया,
किसने मेरे दुख को अपना दुख समझा है?
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कल को जीना है! सुनो मुझे कल को जीना है कोई चलेगा क्या कल में? मत चलो कोई, फिर भी मुझे वापस जीना है,
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साँसों की ओलती ... पूछ भर लिया क्या एक बार, मंच पर सामने से रूमानी अंदाज़ में 'स्टैंड-अप कॉमेडियन' जाकिर खान ने कि - "लड़कियाँ इतनी महकती क्यों हैं ?"
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कितने स्वप्न
देखे हैं दिन ही मैं
समझ आई
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ककड़ी चोरी वाले बचपन के दिन आज सोचती हूँ कि हमारी तरह ही गांव से शहर आने के बाद कई लोग वर्षों बरस बीत जाने पर गांव नहीं जा पाते हैं, लेकिन जो गांव आते-जाते रहते हैं, उन्हें जरूर ककड़ी दिखने पर उसे चुराकर आज भी खाने का मन करता होगा। क्योंकि मैं समझती हूँ शहर में भले ही कई तरह की ककड़ी खाने को मिले, लेकिन वह चोरी कर खाई ककड़ी का स्वाद और उसके बदले मिली गाली और कभी-कभी मार शायद ही कोई भूल पाया हो, या भूला हो। क्या कहा आपने भूल गए? अरे, न भई न.. भूलो मत ...यादें ताज़ी करो . चलिए हमारे साथ हमारे यूट्यूब चैनल "रावत कविता" में जहाँ मैं लाई हूँ "गांव से ककड़ी चोरों के लिए काकी-बोडी की ताज़ी-ताज़ी गालियां" ... . . याद करो बचपन और लिखो अपनी-अपनी दिल की बातें कमेंट बॉक्स में। .
.... कविता रावत
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सब सहसा एकान्त लग रहा,
ठहरा रुद्ध नितान्त लग रहा,
बने हुये आकार ढह रहे,
सिमटा सब कुछ शान्त लग रहा।
सज्जन-मन निर्जन-वन भटके,
पूछे जग से, प्रश्न सहज थे,
कपटपूर्ण उत्तर पाये नित,
हर उत्तर, हर भाव पृथक थे।
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रास्ते में मुझे अनेक अमराइयाँ मिली जिसमें कच्चे टिकोरे दूर से ही चमक रहे थे। कुछ खेतों पर कटींले तारों की बाड़ लगी थी। पता नहीं मनुष्य या जानवर से रक्षा के लिए। एक मोड़ पर मैं रुक कर तस्वीरें लेने लगा तबतक पीछे से उस बाग के मालिक अजय शर्मा जी आ गए। उनकी उत्सुकता को शांत करते हुए मैंने अपना परिचय दिया और आश्वस्त किया कि मैं कोई रेकी नहीं कर रहा।
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आज बाबा जब अपने लाये थोड़े से फलों को बार - बार देखकर बड़े जतन से टोकरी में रख रहे थे तब रीना ने अपने छोटे भाई रवि को बुलाकर धीमी आवाज में समझाया कि बाबा जब माँ को फल काटकर देंगे और माँ हमेशा की तरह हमें खिलायेगी तो हम फल नहीं खायेंगे !
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हर रोज़ हमने देखा घुलती है चाँदनी
हर रोज़ हमने देखा घुलती है चाँदनी
हर पल जहां हसीन है, हर पल है ताज़गी
आँखों में आओ रंग भरें, जन्नत है सामने
कैसे कहाँ छूटेगा कोई, सब कुछ है आप में
अपनी ही कोई कमी है हमें दूसरों में दिखती
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आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे- Suraj-Sanim आज लौटा हूँ तो हँसन की अदा भूल गया ये शहर भूला मुझे मैँ भी इसे भूल गया मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगें आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे
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देख रही हूँ
जीवन घट रीतता ही जाता है
सुख का कोई भी पल
कहाँ थोड़ी देर भी टिकता है
वक्त के हलके से झोंके के साथ
बीतता ही जाता है !
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आज के लिए बस इतना ही...!
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जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपने मंच पर जगह देने के लिए .. अभी फिर अपनी रूठी ब्लॉग रानी के स्पैम रूपी कोपभवन से आपकी अनमोल प्रतिक्रिया को मना कर सार्वजनिक किया, ना जाने क्यों रूठीं हैं महारानी जी मुझसे .. प्रतीत होता है .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार,,
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया अंक
जवाब देंहटाएंविविधता भरे उम्दा लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना सम्मिलित करने के लिए दिल से धन्यवाद ।
सुप्रभात ! एक से बढ़कर एक रचनाओं से सुसज्जित चर्चा मंच! मन पाये विश्राम जहां को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंविविध रचनाओं से सज्जित अंक ।
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुतिकरण। प्रणाम आदरणीय शास्त्री जी।