मेरी दुनिया मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए कुछ अद्यतन लिंक।
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"खुशहाली लेकर आया है चौमास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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खेतों में हरियाली लेकर आया है चौमास!
जीवन में खुशहाली लेकर आया है चौमास!!
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सन-सन, सन-सन चलती पुरुवा, जिउरा लेत हिलोर,
इन्द्रधनुष के रंग देखकर, नाचे मनका मोर,
पकवानों की थाली लेकर आया है चौमास!
जीवन में खुशहाली लेकर आया है चौमास!!--
नौ-शेरी ग़ज़ल
"निर्मल नीर पिलाते हैं"
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अदना सा ख्याल यूँ ही जाने क्यों मन को भा गया l
गुफ़्तगू इश्क की खुद से भी कर लिया करूँ कभी ll
गुजरु जब फिर यादों की उन तंग गलियों से कभी l
जी लूँ हर वो लम्हा उम्र जहां आ ठहरी थी कभी ll
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इक आईने के सामने लाया गया हूँ मैं ... झूठा लिबास ओढ़ के घबरा गया हूँ मैं.
अपना ही जिस्म छोड़ के फिर आ गया हूँ मैं.
बंदिश में ताल, छंद के गाया गया हूँ मैं.
अपनी ग़ज़ल के शेर में पाया गया हूँ मैं. स्वप्न मेरे
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भीगी-भीगी दूब ओस से
हरीतिमा जिसकी मनभाती,
शेफाली की मोहक सुवास
झींगुर गान संग तिर आती !
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तोरा मन दर्पण कहलाये न उसी का नाम है जो सदा डांवाडोल रहता है, तभी मन को पंछी भी कहते हैं हिरन भी और वानर भी..आत्मा रूपी वृक्ष के आश्रय में बैठकर टिकना यदि इसे आ जाये तो इसमें भी स्थिरता आने लगती है, वास्तव में वह स्थिरता होती आत्मा की है प्रतीत होती है मन में, जैसे सारी हलचल होती बाहर की है प्रतीत होती है मन में।मन तो दर्पण ही है जैसा उसके आस-पास होता है झलक जाता है. संगीत की लहरियों में डूबकर यह मस्त हो जाता है और किसी उपन्यास के भावुक दृश्य में भावुक।ऐसे मन का चाहे वह अपना हो या अन्यों का क्या रूठना और क्या मनाना।क्यों न हर सुबह मन को समझते हुए प्रवेश करें ताकि न किसी से मनमुटाव हो और न किसी का मन टूटे. आत्मा रूपी वृक्ष पर कुसुम की तरह खिला रहे सबका मन. डायरी के पन्नों से अनीता
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13 मई – ध्वजावरोहण समारोह – रोमांचक पल
अगरतला में अपने होटल एयर ड्रॉप में अपने कमरे में पहुँच कर ज़रा देर पीठ सीधी करने के बारे में सोच ही रहे थे कि अंजना जी की कॉल आ गयी सब लोग जल्दी जल्दी फ्रेश होकर नीचे आ जाएँ ! कहीं जाना है और देर हो गयी तो कार्यक्रम अच्छी तरह से नहीं देख पायेंगे ! कहाँ जाना है यह स्पष्ट नहीं हुआ था ! वैसे पूर्व निर्धारित प्रोग्राम सिटी साइटिंग का था उसमें तो समय की कोई पाबंदी नहीं थी ! दस पंद्रह मिनिट आगे पीछे होने से कुछ मिस होने वाला नहीं था ! अंजना जी की कॉल ने उत्सुकता बढ़ा दी ! मैं और राजन झटपट नीचे आ गए !
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बा बा नहीं, चुन चुन .. बस यूँ ही ...
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एक नन्ही-सी कहानी बदलू राम, अकड़ू राम, गोलू मल, पेटू चन्द, नौटंकी लाल, हेठी बाई, तेजी ताई, वगैरह-वगैरह चचेरे-ममेरे भाई-बहन एक कमरे में बैठे मीटिंग कर रहे थे। मुद्दा था, मोहल्ले के वर्तमान अध्यक्ष को हटा कर अपना अध्यक्ष बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने के लिए नक्शा तैयार करना। सब की अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग - हर कोई अध्यक्ष बनने का इच्छुक, पर अपने मुँह से कहे कौन? कुछ रिश्तेदारों ने गोलू मल का नाम सुझाया, तो उसे अयोग्य मान कर नौटंकी लाल बिफर गया, क्योंकि वह तो खुद को ही सबसे अधिक योग्य मानता था। बदलू राम सहित दो-तीन अन्य रिश्तेदार भी, जो स्वयं अध्यक्ष बनने को बेचैन थे, गोलू मल के चुनाव से सहमत नहीं थे। लेकिन बेचारे कुछ कह नहीं पा रहे थे। किसी एक ने बदलू राम का नाम भी चलाया। बदलू राम के मन में तो लड्डू फूट रहे थे, पर बेचारा ‘ना-ना, मैं नहीं’, कहते हुए इंतज़ार कर रहा था कि और कोई भी आग्रह करे, लेकिन बात बनी नहीं। Gajendra Bhatt
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किसी मज़दूर की क़िस्मत में कब इतवार होता है
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क्या सच में गर्भवती स्त्री को देख कर सांप अंधे हो जाते है?
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अपना दिमाग इस्तेमाल करो || Use Your Mind ||
एक बार की बात है कि जंगल के राजा सिंह को भूख लगी और उसने लोमड़ी से कहा, मेरे लिए कोई शिकार ढूंढकर लाओ, अन्यथा मैं तुम्हें ही खा जाऊँगा। लोमड़ी एक गधे के पास गई और बोली, मेरे साथ सिंह के समीप चलो, क्योंकि सिंह तुम्हें जंगल का राजा बनाना चाहता है।
गधा उसके साथ चल दिया, सिंह ने गधे को देखते ही उस पर हमला करके उसके कान काट लिए। लेकिन गधा किसी प्रकार भागने में सफल रहा। तब गधे ने लोमड़ी से कहा, तुमने मुझे धोखा दिया, सिंह ने तो मुझे मारने का प्रयास किया और तुम कह रही थी कि वह मुझे जंगल का राजा बनायेगा।
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धरती को सुंदर श्यामल-से मेघ मुबारक ! और किसानों को हरियाले खेत मुबारक ! अल्हड़ बचपन को कागज की नाव मुबारक ! और जवानी को बारिश का चाव मुबारक !
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हो सके ख़्वाब बन दिख ही' जाया करो ।
साथ तुम भी कभी मुस्कराया करो ।।
गुनगुनाती रही रात भर बन गज़ल।
साथ तुम भी कभी गुनगुनाया करो।।
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गोरी | गुरुदेव सिंह रुपाणा | अनु: प्रीतपाल सिंह रुपाणा | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
कहानी
मिठ्ठो और देव बचपन के दोस्त थे। दोनों में रूठना मनाना चलता रहता था। कभी कोई किसी से रूठ जाता तो दूसरा उसे मनाता।
मिठ्ठो रंग से गोरी थी और उसका सपना था कि वह किसी गोरे लड़के से शादी करे।
देव रंग से साँवला था और उसका सपना था कि मिठ्ठो उसकी थाली में उसके साथ तो खा ले। वह तरह से तरह से कोशिश करता लेकिन मिठ्ठो हर बार वादा करके मुकर जाती।
दोनों साथ खेलते हुए बड़े हुए थे। दोनों एक दूसरे से अपने दिल के राज साझा करते थे।
ऐसे में जब मिठ्ठो ने देव से कुछ माँगा तो क्या वो उसको वो दे पाया?
क्या मिठ्ठो और देव का बचपन का सपना पूरा हो पाया?
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जीवन एक शांत नदी की धारा की तरह सुचारू रूप से चल रहा है। आज दोपहर को उसने गणेश जी की पाँच छोटी मूर्तियों पर रंग भरना आरंभ किया। महादेव में समुद्र मंथन हो गया है, किंतु अमृत का बँटवारा अभी शेष है। गायत्री के संस्थापक आचार्य राम शर्मा जी की पुस्तक “चेतन, अचेतन व सुपर चेतन” एक बार फिर पढ़नी आरंभ की है, जो वर्षों पूर्व महिला क्लब की एक एक वरिष्ठ महिला ने भेंट में दी थी। वह कहते हैं, विचार प्राणशक्ति की स्फुरणा है, यदि प्राणशक्ति प्रबल है तो विचार भी सुदृढ़ होंगे।
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विसंगतियों की शिकार विरोधी-एकता
राष्ट्रीय-राजनीति का परिदृश्य अचानक 2019 के लोकसभा-चुनाव के एक साल पहले जैसा हो गया है। मई, 2018 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणामों की शुरुआती गहमागहमी के बाद कांग्रेस के समर्थन से एचडी कुमारस्वामी की सरकार बनी, जिसके शपथ-ग्रहण समारोह में विरोधी दलों के नेताओं ने हाथ से हाथ मिलाकर एकता का प्रदर्शन किया। एकता की बातें चुनाव के पहले तक चलती रहीं। 2014 के चुनाव के पहले भी ऐसा ही हुआ था। और अब गत 23 जून को पटना में हुई विरोधी-दलों की बैठक के बारे में कहा जा रहा है कि इससे भारतीय राजनीति का रूपांतरण हो जाएगा। जिज्ञासा
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गीत "तुकबन्दी से होता गायन"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
वाणी से खिलता है उपवन
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स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन
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आज के लिए बस इतना ही...!
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बहुत सुंदर चयन,सभी रचनाएँ भावपूर्ण हैं 👌👌👍👍🌹🌹
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सारी विविधतापूर्ण रचनाओं से सजा चर्चामंच अपने आप में एक सुसज्जित पत्रिका से कम नहीं। यहाँ अपनी रचना को देखकर हमेशा गौरवान्वित महसूस करती हूँ। हृदयपूर्वक आभार आदरणीय शास्त्रीजी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरे आलेख को आज की चर्चा में स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! रविवार के विशेष अंक को हर बार की तरह श्रम से सजाया गया है, मेरी रचनाओं को भी इस पटल पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी 'एक नन्ही-सी कहानी' को इस सुन्दर अंक में स्थान देने के लिए आदरणीय शास्त्री जी का आभार व अभिवादन! सभी विद्व रचनाकारों का भी अभिवादन!
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