मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हँसते हुए पलों को रखो तुम सँभाल कर
लफ्जों में प्रीत पालकर उनको निहाल कर
दुखती हुई रगों से कभी ना सवाल कर...
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रविकर की कुण्डलियाँ ब्लॉग पर-
मुखड़े पे मुखड़े चढ़े, चलें मुखौटे दाँव |
शहर जीतते ही रहे, रहे हारते गाँव |
रहे हारते गाँव, पते की बात बताता।
गया लापता गंज, किन्तु वह पता न पाता।
हुआ पलायन तेज, पकड़िया बरगद उखड़े |
खर-दूषण विस्तार, दुशासन बदले मुखड़े ||
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...कुदरत को कुतरे मनुज, दनुज मनुज को खाय।
पोंगा पंडित मौलवी, रहे खलीफा छाय।
रहे खलीफा छाय, किताबी ज्ञान बघारे।
कत्लो गारद लूट, रोज मानवता हारे।
कह रविकर कविराय, बदलनी होगी फितरत।
नहीं करेगी माफ, अन्यथा सहमी-कुदरत।।...
पोंगा पंडित मौलवी, रहे खलीफा छाय।
रहे खलीफा छाय, किताबी ज्ञान बघारे।
कत्लो गारद लूट, रोज मानवता हारे।
कह रविकर कविराय, बदलनी होगी फितरत।
नहीं करेगी माफ, अन्यथा सहमी-कुदरत।।...
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नहीं आती हमें शब्दों की बाजीगरी !
बाजीगरों की इस मायावी दुनिया में
नहीं आती हमें शब्दों की बाजीगरी !
इसीलिए तो बार-बार मान लेते हैं हम अपनी हार !
बाजीगरों को मालूम है शब्दों की कलाबाजी ,
कैसे भरी जाती है छल-कपट के पंखों से
कामयाबी की ऊंची उड़ान ,
हसीन सपने दिखाकर ...
Swarajya karun
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पिता
कभी-कभी जी करता है कि कोई ज़ोर से डांटे,
पूछताछ करे,टोकाटाकी करे,
कहे कि आजकल तुम्हारे रंग-ढंग ठीक नहीं हैं.
घर से निकलूं तो कहे,
जल्दी वापस आ जाना,
देर से लौटूं तो कहे,
मेरी बात ही नहीं सुनते,
बिना कहे जाऊं तो पूछे, कहाँ गए थे...
कविताएँ पर Onkar
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रात गुज़र जाएगी
मेहरबानियां उनकी इसकदर हैं मुझपर,
गिनने बैठूंगा तो रात गुज़र जाएगी !
रहने दो ख़ामोश लबों को,
असर होने दो दुवाओं का;
जख्म की नुमाइश में
बात गुज़र जाएगी...
अन्तर्गगन पर धीरेन्द्र अस्थाना
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ये चुके हुए दिनों की दास्ताँ है
ये चुके हुए दिनों की दास्ताँ है
जहाँ चुक चुकी थीं संवेदनाएं
जहाँ चुक चुकी थीं वेदनाएं
जहाँ चुक चुकी थीं अभिलाषाएं
तार्रुफ़ फिर कौन किसका कराये
जहाँ चुक चुके थे शब्द
जहाँ चुक चुके थे भाव
जहाँ चुक चुके थे विचार
उस सफ़र का मानी क्या...
जहाँ चुक चुकी थीं संवेदनाएं
जहाँ चुक चुकी थीं वेदनाएं
जहाँ चुक चुकी थीं अभिलाषाएं
तार्रुफ़ फिर कौन किसका कराये
जहाँ चुक चुके थे शब्द
जहाँ चुक चुके थे भाव
जहाँ चुक चुके थे विचार
उस सफ़र का मानी क्या...
vandana gupta
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क्या यही सच है
कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं होता कितना ही सफल व्यक्ति अगर जीवन के पृष्ठ पलट कर देखेगा उसे अनेकों गलतिया भूलें नजर आएँगी कि अगर यह किया होता तो कितना अच्छा होता या यह न किया होता तो कितना अच्छा होता पृष्ठ पलटते भी हैं फिर सोचते हैं मत देखो भूलों को अब भूल नहीं करेंगे पर फिर करते हैं...
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सुशील कुमार जोशी के ब्लॉग उलूक टाइम्स से-
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प्रतिभा की दुनिया ... ब्लॉग से-
कि तुम मेरी कोई नहीं...
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कोई खिड़की से झांककर कहता है, 'गाड़ी आराम से चलाना, आहिस्ता.’ मैं मुस्कुराकर देखती हूँ. वो निदा फ़ाज़ली से आखिरी मुलाकात का आखिरी लम्हा था. उनकी मुझसे कही गयी आखिरी बात....
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महकती धोरो की धरती, काेई आये शैलानी ।
महकती धोरो की धरती,
काेई आये शैलानी।
स्वागत करे राजस्थानी, राजस्थानी ।
हिन्वा सूरज राणा प्रताप,
कभी नहीं हार मानी।
दुश्मन की छाती पे चढ़ा,
घाेड़ा चेतक मस्तानी...
काेई आये शैलानी।
स्वागत करे राजस्थानी, राजस्थानी ।
हिन्वा सूरज राणा प्रताप,
कभी नहीं हार मानी।
दुश्मन की छाती पे चढ़ा,
घाेड़ा चेतक मस्तानी...
ज्ञान दर्पण पर
Ratan singh shekhawat
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गगन शर्म के ब्लॉग कुछ अलग सा से-
तकनीक को सेवक बना कर ही रखें
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*सत्तर **के दशक में कलकत्ता शहर के लिए एक कानून पारित किया गया था, जिसके तहत यदि कोई मूत्रालय के अलावा** कहीं और मूत्र-विसर्जन करते पकड़ा जाता था तो उसे जुर्माना भरना पड़ता था ! शहर को साफ़-सुथरा रखने के लिए उठाया गया था यह कदम, सोच अच्छी थी, पर नियम लागू करते समय किसी ने शहर की आबादी के अनुपात में, ना के बराबर मूत्रालयों की संख्या पर नाहीं सोचा था, नाहीं ध्यान दिया था ! परिणाम, संघर्ष, अराजकता, असंतोष, टकराव...
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काजल कुमार के कार्टून के ब्लॉग से-
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यशोदा अग्रवाल के ब्लॉग
मेरी धरोहर से-
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक के ब्लॉग
उच्चारण से-
बिना स्नेह के दीप कैसे जलेगा?
बिना प्यार के कैसे पादप पलेगा?
कभी वासना से न जीवन चलेगा,
प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है?
प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है...
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक के ब्लॉग
नन्हे सुमन से
चित्रांकन - कु. प्राची
मम्मी देखो मेरी डॉल।
खेल रही है यह तो बॉल।।
पढ़ना-लिखना इसे न आता।
खेल-खेलना बहुत सुहाता।।
कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना।
विद्यालय में नाम लिखाना।।
मैं गुड़िया को रोज सवेरे।
लाड़ लड़ाऊँगी बहुतेरे।।
विद्यालय में ले जाऊँगी।
क.ख.ग.घ. सिखलाऊँगी।।
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काले रंग का चतुर-चपल,
पंछी है सबसे न्यारा।
डाली पर बैठा कौओं का,
जोड़ा कितना प्यारा।
नजर घुमाकर देख रहे ये,
कहाँ मिलेगा खाना।
जिसको खाकर कर्कश स्वर में,
छेड़ें राग पुराना...
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बालकविता
"लगता एक तपस्वी जैसा"
बगुला भगत बना है कैसा?
लगता एक तपस्वी जैसा।।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है।।
धवल दूध सा उजला तन है।
जिसमें बसता काला मन है...
लगता एक तपस्वी जैसा।।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है।।
धवल दूध सा उजला तन है।
जिसमें बसता काला मन है...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसर एक बात कहनी है आपने सप्ताह में तीन दिन चर्चा मंच कर दिया बहुत बुरा लगा |हमें तो रोज देखने की आदत है |इतनी सारी लिंक्स पढ़ना भा कठिन है |आप भी रोज दिया कीजिए चर्चा मंच |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
बढ़िया रविवारीय अंक। बहुत सारे सुन्दर सूत्रों के साथ 'उलूक' के तीन तीन सूत्रों को स्थान देने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रविवारीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा! मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं