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गुरुवार, दिसंबर 29, 2022

"वाणी का संधान" (चर्चा अंक-4631)

 मित्रों!

वर्ष 2022 के अन्तिम बृहस्पतिवार की चर्चा में 

आपका स्वागत है। 

आज जाते-जाते साल के कुछ लिंक देखिए!

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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें एक गीत 

नए क्षितिज पर

नए सूर्य से

जगमग हिंदुस्तान.

विश्व समूचा

आज कर रहा

भारत का जयगान. 

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अब #सहन न कर ! 

#दुष्टों की छाती पर चढ़,

टूट पड़ बनकर कहर ,
अब #सहन ना कर ,
कोई तो रूप धर ।

उठा हाथ में खप्पर ,
मां #दुर्गा बनकर ,
ऐसा चला अपना त्रिशूल,
दुष्टों की छाती पर जाये उतर।

#अहिल्या बाई होलकर ,
या #झांसी की रानी बनकर,
उठा हाथ में तलवार ,
दुश्मन का कर प्रतिकार ।

#आत्मरक्षा के गुण से संवार ,
अस्त्र शस्त्र से कर श्रृंगार ,
#वीरांगना का ऐसा रूप धर ,
कि दुष्ट कांपे थर थर ।

#दुष्टों की छाती पर चढ़,
टूट पड़ बनकर कहर ,
अब सहन ना कर ,
कोई तो रूप धर ।

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उजियारा मन बाती कारण 

देह दीप माटी का जैसे

उजियारा मन बाती  कारण, 

स्नेह प्राण का, ज्योति आत्म की 

जग को किया  उसी ने धारण !

आदरणीया अनीता जी की

यह रचना अपने आप में सम्पूर्ण दर्शन प्रस्तुत करती है।

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नई करेंसी धूम करेगी 

रेशे-रेशे घुसे पड़े हैं दाँतों में

भजिया अब घर नहीं बनेगी ।

जली पराली धुआँ भरा है साँसों में

भंडरिया क्या ख़ाक भरेगी ?


तपी दोपहर, चला नहीं

पानी का इंजन ।

खेत सूखते खलिहानों में

भटके खंजन ॥

जमा-बचा गुल्लक का रुपया,

डॉलर बन कर घूम रहा परदेसों में ।

सेंसेक्स में नई करेंसी धूम करेगी ॥

अपने अलग अन्दाज में

जिज्ञासा सिंह जी ने अपनी कामना में,

उपरोक्त आशंका प्रस्तुत की है।

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हाईकू 

 १-जब देखती 

उसी को निहारती  

मन खुश है 

२-सुख या दुःख 

जीवन के पहलू 

दौनों यहीं हैं  

प्रतिदिन नियमितरूप से 1-2 रचनाएँ लिखनेवाली

आदरणीया आशालताै सक्सेना जी को

चर्चा में स्थान देना मेरा दायित्व तो बनता ही है।

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फिल्म पर दोहे 

लाइट ऐक्शन कैमरा, तीन शब्द है फ़िल्म। 
संप्रेषण संवाद का, बहुत बड़ा है इल्म।।1। 
सुन्दर सज्जा नृत्य की, आकर्षक तस्वीर। 
देशभक्ति या प्रेम की, सुन्दर सी तहरीर।2। 
ऋता शेखर मधु (रीता प्रसाद) जी 
साहित्य की प्रत्येक विधा में पारंगत हैं 
आज की चर्चा में उनके दोहे दृष्टव्य हैं।

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कांटे-कंकड़ 

मैं थक गया हूँ 

कांटे चुनते-चुनते,

पर जितने चुनता हूँ,

उतने ही और निकल आते हैं. 

आदरणीय ओंकार सिंह विवेक जी की

उपरोक्त रचना में सीधे-सादे शब्दों को

कुछ इसप्रकार पिरोया गया है कि

वह मन पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं।

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बाबू अब तुम बड़े हो गए ! 

Father and son beginning to walk | Line art drawings, Father and son,  Simple line drawings
अपने बेटे को उसके बीसवे जन्मदिवस पर प्यार भरी सीख , 
ढेरो स्नेह और आशीर्वाद  के साथ ! 
बाबू अब तुम बड़े हो गए 
जिम्मेदारी समझोगे ! 
अपना बचपन छोड़ के 
एकदिन 
आशा है कि
जन्म दिन पर एक पिता की भावपूर्ण रचना
पाठकों को अवश्य प्रभावित करेगी

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गत्यात्मक ज्योतिष की पुस्तकें 

विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में मेरे और पिताजी के लेखों को देखते हुए 'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' को जानने की इच्‍छा रखने वाले अनेक पाठकों के पत्र मुझे मिलते रहे हैं। उनकी इच्‍छा को ध्‍यान में रखते हुए 1991 से ही विभिन्‍न ज्‍योतिषीय पत्र पत्रिकाओं में मेरे आलेख प्रकाशित होने शुरू हो गए और दिसंबर 1996 मे ही मेरी पुस्‍तक ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष: ग्रहों का प्रभाव’ प्रकाशित होकर आ गयी थी । पर मेरे द्वारा पत्र पत्रिकाओं में ज्‍योतिष से संबंधित जितने भी लेख छपे , वो सामान्‍य पाठकों के लिए न होकर ज्‍योतिषियों के लिए थे। यहां तक कि मेरी पुस्‍तक भी उन पाठकों के लिए थी ,जो पहले से ज्‍योतिष का ज्ञान रखते थे। इसे पाठकों का इतना समर्थन प्राप्‍त हुआ था कि प्रकाशक को शीघ्र ही 1999 में इसका दूसरा संस्‍करण प्रकाशित करना पडा। 

कुछ वर्ष पूर्व ही प्रकाशक महोदय का पत्र तीसरे संस्‍करण के लिए भी मिला था , जिसकी स्‍वीकृति मैने उन्‍हें नहीं दी थी। इसलिए छह महीने पूर्व तक यत्र तत्र बाजार में मेरी पुस्‍तकें उपलब्‍ध थी , पर इधर बाजार में मेरी पुस्‍तक नहीं मिल रही है। इसलिए आम पाठकों को यह जानकारी दे दूं कि मेरे पास इस पुस्‍तक की प्रतियां उपलब्‍ध हैं ...

गत्यात्मक ज्योतिषी 
बहन संगीता पुरी जी का यह आलेख आपको  गत्यात्मक ज्योतिष की पुस्तकों की जानकारी प्रदान करेगा।

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अस्आर मेरे बहन कुसुम कोठारी जी के कुछ अश्आर निम्न हैं- 

सुनों ये बात है सच्ची जहाँ दिन चार का मेला। 
फ़कत दिन चार के खातिर यहां तरतीब का खेला।  
शजर-ए-शाख पर देखो अरे उल्लू लगे दिखने। 
नहीं ये रात की बातें ज़बर क़िस्मत लगे लिखने।

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इस घट अंतर बाग़-बग़ीचे -कबीर इस घट अंतर बाग़-बग़ीचे, इसी में सिरजनहारा। इस घट अंतर सात समुंदर, इसी में नौ लख तारा। इस घट अंतर पारस मोती, इसी में परखन हारा। इस घट अंतर अनहद गरजै, इसी में उठत फुहारा। कहत कबीर सुनो भाई साधो, इसी में साँई हमारा॥

रिंकी राउत जी ने ईश आराधना को
बड़ी कुशलता से छन्दबद्ध किया है।

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दोहे "लाख टके की घूस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

-१-

चार टके की नौकरीलाख टके की घूस।

लोलुप नौकरशाह हीरहे देश को चूस।।

-२-

मक्कारों की नाक मेंडाले कौन नकेल।

न्यायालय में मेज केनीचे चलता खेल।।

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आज के लिए बस इतना ही...!

वर्ष 2023 में जनवरी के प्रथम सप्ताह में 

अनीता सैनी दीप्ति जी

रविवार और वृहस्पतिवार की चर्चा में 

चर्चा प्रस्तुत करेंगी।

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नववर्ष 2023 आप सबको मंगलमय हो!

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रविवार, दिसंबर 25, 2022

"अटल होते आज अगर" (चर्चा अंक-4630)

 मित्रों।

दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह के

रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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देखिए जाते हुए साल के कुछ लिंक-

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अटल होते आज अगर (कविता) 

पीर पंजाल का नाम होता 

पञ्चालधारा  पर्वत माला? 

पी ओ के के होता भारत में, 

गिलगिट पर फहराता तिरंगा निराला? 

अटल होते आज अगर 

रग रग हिन्दू मेरा परिचय, 

भारत का वेद वाक्य होता 

सत्य सनातन  ही 

देश का अभिनव साक्ष्य होता.

कवि ब्रजेन्द्र नाथ जी ने  अपनी उपरोक्त रचना में 

पूर्व प्रधानमन्त्री भारतरत्न अटल बिहारी बाजपेई 

जी का भावपूर्ण स्मरण किया है।

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"जीवन देती धूप"  

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फिर से कुहरा छा गयाआसमान में आज।

आवाजाही थम गयीपिछड़ गये सब काज।।

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खग-मृगकोयल-काग कोसुख देती है धूप।

उपवन और बसन्त कायह सवाँरती रूप।। 

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अनावृत प्रतिबिम्ब 

सारा अंतरिक्ष अपनी जगह रहता है यथावत्, 
बस दिन के उजाले में हम उन्हें देख नहीं पाते, 
दिगंत में जा कर, मेलों का क्या लगते उठते रहते हैं साल भर, अंतरतम के खेल का होता नहीं पटाक्षेप,उपरोक्त रचना में कवि सान्तनु सान्याल ने जीवन शैली को बहुत चतुराई से शब्द दिये हैं।

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रे ! मन 

बंधन हैं सामाजिक
 मन के बन्ध नहीं दीखते 
क्यों भटके मन बैरागी 
भ्रम में जीना छोड़ रे मन 
बन जा तू सन्यासी 

रे मन ! चल तू एकाकी ! 
दिल्ली निवासी कवयित्री संगीता स्वरूप
अपने मनोभावों को शब्दों में बहुत कुशलता से पिरो देतीं हैं।
उनकी उपरोक्त रचना इसका जीवन्त प्रमाण है।

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वाह रे ! सर्दी 

हाड़   कँपाती   ठंड   में,  खींचेंगे   सब  कान।
गीजर अपने स्वास्थ्य का,रखना थोड़ा ध्यान।।

मूँगफली   कहने   लगी , सुन   ले   ए  बादाम।
करती हूँ  कम  दाम  में,तुझ-सा  ही  मैं काम।।

कवि ओंकार सिंह विवेक जी ने 
हाड़ कँपाती सर्दी पर सुन्दर दोहे पेरस्तुत किये हैं। 

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अरूप 

वह जो अरूप है भीतर 

अकारण सुख है 

उसकी मुस्कान थिर है 

चिर बसंत छाया रहता है उसके इर्दगिर्द 

अनहद राग बजता है अहर्निश 

कवयित्री अनीता जी की यह रचना भी

पाठकों को सोचने पर विवश करेगी।

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कह दो किसी से प्यार है कह दो किसी से प्यार है कर भी दो इज़हार कब तलक छलती रहोगी कह भी दो इक बार प्यार के इजहार पर कवि राहुल उपाध्याय ने ढाई अक्षर के इस शब्द को जिया है,किन्तु सच पूछा जाये तोप्यार हमेशा आधा-अधूरा ही रहता है क्योंकि प्यार का तो पहला ही अक्षर आधा होता है।

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चर्चा के अन्त में देखिए

कुछ और लिंक-

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ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन

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पड़ने वाले नये साल के हैं कदम!

स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!!

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कोई खुशहाल है. कोई बेहाल है,

अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है,

ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन!

स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!!

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दिल (मानव हृदय) के बारे में रोचक तथ्य || Amazing Facts About Human Heart || 

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केवल अपेक्षा तुमसे आशा लता सक्सेना

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इच्छाधारी हवलदार और पंगानाथ | मनोज कॉमिक्स | विनय प्रभाकर 

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आज के लिए बस इतना ही...।

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