मित्रों!
वर्ष 2022 के अन्तिम बृहस्पतिवार की चर्चा में
आपका स्वागत है।
आज जाते-जाते साल के कुछ लिंक देखिए!
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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें एक गीत
नए क्षितिज पर
नए सूर्य से
जगमग हिंदुस्तान.
विश्व समूचा
आज कर रहा
भारत का जयगान.
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देह दीप माटी का जैसे
उजियारा मन बाती कारण,
स्नेह प्राण का, ज्योति आत्म की
जग को किया उसी ने धारण !
आदरणीया अनीता जी की
यह रचना अपने आप में सम्पूर्ण दर्शन प्रस्तुत करती है।
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रेशे-रेशे घुसे पड़े हैं दाँतों में
भजिया अब घर नहीं बनेगी ।
जली पराली धुआँ भरा है साँसों में
भंडरिया क्या ख़ाक भरेगी ?
तपी दोपहर, चला नहीं
पानी का इंजन ।
खेत सूखते खलिहानों में
भटके खंजन ॥
जमा-बचा गुल्लक का रुपया,
डॉलर बन कर घूम रहा परदेसों में ।
सेंसेक्स में नई करेंसी धूम करेगी ॥
अपने अलग अन्दाज में
जिज्ञासा सिंह जी ने अपनी कामना में,
उपरोक्त आशंका प्रस्तुत की है।
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१-जब देखती
उसी को निहारती
मन खुश है
२-सुख या दुःख
जीवन के पहलू
दौनों यहीं हैं
प्रतिदिन नियमितरूप से 1-2 रचनाएँ लिखनेवाली
आदरणीया आशालताै सक्सेना जी को
चर्चा में स्थान देना मेरा दायित्व तो बनता ही है।
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कांटे चुनते-चुनते,
पर जितने चुनता हूँ,
उतने ही और निकल आते हैं.
आदरणीय ओंकार सिंह विवेक जी की
उपरोक्त रचना में सीधे-सादे शब्दों को
कुछ इसप्रकार पिरोया गया है कि
वह मन पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं।
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विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में मेरे और पिताजी के लेखों को देखते हुए 'गत्यात्मक ज्योतिष' को जानने की इच्छा रखने वाले अनेक पाठकों के पत्र मुझे मिलते रहे हैं। उनकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए 1991 से ही विभिन्न ज्योतिषीय पत्र पत्रिकाओं में मेरे आलेख प्रकाशित होने शुरू हो गए और दिसंबर 1996 मे ही मेरी पुस्तक ‘गत्यात्मक ज्योतिष: ग्रहों का प्रभाव’ प्रकाशित होकर आ गयी थी । पर मेरे द्वारा पत्र पत्रिकाओं में ज्योतिष से संबंधित जितने भी लेख छपे , वो सामान्य पाठकों के लिए न होकर ज्योतिषियों के लिए थे। यहां तक कि मेरी पुस्तक भी उन पाठकों के लिए थी ,जो पहले से ज्योतिष का ज्ञान रखते थे। इसे पाठकों का इतना समर्थन प्राप्त हुआ था कि प्रकाशक को शीघ्र ही 1999 में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित करना पडा।
कुछ वर्ष पूर्व ही प्रकाशक महोदय का पत्र तीसरे संस्करण के लिए भी मिला था , जिसकी स्वीकृति मैने उन्हें नहीं दी थी। इसलिए छह महीने पूर्व तक यत्र तत्र बाजार में मेरी पुस्तकें उपलब्ध थी , पर इधर बाजार में मेरी पुस्तक नहीं मिल रही है। इसलिए आम पाठकों को यह जानकारी दे दूं कि मेरे पास इस पुस्तक की प्रतियां उपलब्ध हैं ...
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अस्आर मेरे बहन कुसुम कोठारी जी के कुछ अश्आर निम्न हैं-
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इस घट अंतर बाग़-बग़ीचे -कबीर इस घट अंतर बाग़-बग़ीचे, इसी में सिरजनहारा। इस घट अंतर सात समुंदर, इसी में नौ लख तारा। इस घट अंतर पारस मोती, इसी में परखन हारा। इस घट अंतर अनहद गरजै, इसी में उठत फुहारा। कहत कबीर सुनो भाई साधो, इसी में साँई हमारा॥
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दोहे "लाख टके की घूस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-१-
चार टके की नौकरी, लाख टके की घूस।
लोलुप नौकरशाह ही, रहे देश को चूस।।
-२-
मक्कारों की नाक में, डाले कौन नकेल।
न्यायालय में मेज के, नीचे चलता खेल।।
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आज के लिए बस इतना ही...!
वर्ष 2023 में जनवरी के प्रथम सप्ताह में
अनीता सैनी दीप्ति जी
रविवार और वृहस्पतिवार की चर्चा में
चर्चा प्रस्तुत करेंगी।
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नववर्ष 2023 आप सबको मंगलमय हो!
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