सादर अभिवादन
सप्ताह के आखिरी दिन और इस साल की मेरी आखिरी प्रस्तुति में
आप सभी का हार्दिक स्वागत है
शीर्षक और भूमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से
दोहन पेड़ों का हुआ, नंगे हुए पहाड़।
नगमग करते शैल से, बस्ती हुई उजाड़।।
मानवीय अति दोहन के कारण कुपित होती प्रकृति
और तांडव करती नदी-पर्वत
बदलते पर्यावरण....कवि हृदय विचलित तो होगा ही
इसी दर्द को अपने दोहो में पिरोते शास्त्री सर
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पिघल रहे हैं ग्लेशियर, दरक रहे हैं शैल।
खेत-गाँव से हो गये, गायब अब हल-बैल।।
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बिरुओं को मिलता नहीं, नेह-नीर अनुकूल।
उपवन में कैसे खिलें, सुन्दर-सुन्दर फूल।।
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वर्तमान समय में मानव मन स्वयं में इतना लिप्त है कि उसे अपने घरवालों तक की परवाह नहीं,
मानवीय संवेदना विलुप्त ही हो चुकी है।
ऐसे में,बीते दिनों की याद दिलाती एक अति संवेदनसील लघुकथा
जो एक संवेदनशील लेखिका के कलम से ही निकल सकती है
को देखने के साथ पास-पड़ौस के घरों से उठता धुआँ देखना उसे
बड़ा भला लगता है । वह अनुमान लगाया करती है कि कौन से घर
में सबसे पहले खाना बनना शुरू होगा । उसकी सहपाठिन सहेलियाँ क्या कर रही होंगी अपने घरों में । वह दो दिन से देख रही थी श्यामा काकी के घर से किसी तरह की सुगबुगाहट नहीं थी ।कल स्कूल से आते वक़्त उनके घर का दरवाज़ा भी खुला देखा मगर सांझ के समय उठता धुआँ नहीं देखा छत की मुँडेर थामे वह यह सोच ही रही
--------------------------"चलो! अब मुझे पंख भी लगा दो।” सहसा स्त्री के शब्दों से पुरुष बिफर उठा।"पुरुषसत्ता" जिसके लिए सबकुछ संभव है फिर भी....???
”ओह! बादल बरसे तब जानूँ मैं !” जेष्ठ महीने की तपती दुपहरी में स्त्री ने पुरुष को परखते हुए कहा। कुछ समय पश्चात काली-पीली घटाएँ उमड़ी और बरसात की बूँदों से मिट्टी महक उठी जिसकी ख़ुशबू से मुग्ध स्त्री झूम उठी।
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भोर के उगते सूरज और प्रकृति छटा का इतना मनोरम वर्णन एक कवि हृदय ही सकता है,मन में ही नहीं जीवन में उल्लास भरता बेहद खूबसूरत सृजन
पर्वतों के कपाट खोल
सद्यस्नाता रश्मियाँ
झाँकती घूँघट की ओट से
शनैं शनै पग बढ़ाती वधू सी
धानी पांवड़ों पर
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एक माँ अपने बच्चों को बड़े प्यार पालती है मगर,वही माँ जब थक रही होती है तो बच्चें ना उसे सहारा देते है ना ही उसकी भावनाओं को समझते है,हृदयस्पर्शी कहानी अम्माँ
कितने दिनों के बाद बेटा गौरव बहू और बच्चों के साथ गाँव आया था ! खुशी के मारे अम्माँ के पैर धरती पर पड़ते ही नहीं थे ! कभी उनके लिए हलुआ बनातीं कभी तरह तरह की पूरी कचौड़ी तो कभी खीर और मालपुए ! आज के पिजा, बर्गर, हॉट डॉग, सैंडविच खाने वाली पीढी के लिए अम्माँ के हाथ के ये पकवान किसी छप्पन भोग से कम नहीं थे !--------------
"सास-बहू" इन रिश्तों के प्रति पहले से ही मानसिकता बनी ही होती है कि ये दोनों कभी एक दूसरे के साथ अच्छी हो ही नहीं सकती,सास-बहू के रिश्तों का ताना-बाना बुनता एक संवेदनशील कथा
हाँ आंटी ! बहुत मासूम, सीधी-सादी और सुंदर दिखती हैं मेरी भाभी और जैसी दिखती हैं न, हैं भी बिल्कुल वैसी ही । निधि ने अपनी माँ और उनकी सहेली की बातचीत के बीच हस्तक्षेप किया तो माँ गुस्से से तिलमिलाकर अपनी सहेली से बोली , "देखा ! देखा तूने ! इसने मेरा बेटा ही नहीं अब मेरी बेटी भी अपनी तरफ कर ली है। ऐसी है ये, दिखने में सीधी- सादी पर मन से कपटी और झूठी"
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कविता जी के पुत्र की आवाज़ में सुनिए एक प्यारा गीत और बच्चें को को प्रोत्साहित कीजिए
चिड़िया भोर में जगती है
उड़ती है, दाना खोजती है
दिन भर फुदकती है
शाम हुए नीड़ में आकर सो जाती है
दूसरे दिन फिर वही क्रम
नीले आसमान का उसे भान नहीं
हरे पेड़ों का उसे भान नहीं
--------------------------जीवन का एक पड़ाव "बुढ़ापा" जहाँ लोग ये समझने लगते है कि हम अब क्या कर सकते हैं बस,आखिरी वक़्त का इंतज़ार या बच्चों के जीवन में दखलअंदाजी मगर,ऐसा नहीं है आप चाहे तो बहुत कुछ कर सकते है इन्ही बातों पर प्रकाश डालता बेहतरीन लेख
साीरगर्भित टिप्पणियों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति्।
ReplyDeleteआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
सुप्रभात! सभी रचनाओं के बारे में दी जानकारी उन्हें शीघ्र पढ़ने का आमंत्रण दे रही है, चर्चा मंच का नवीन अंदाज़ सराहनीय है। आभार और बधाई कामिनी जी!
ReplyDeleteसुप्रभात! चर्चा मंच की प्रस्तुति का नवीन रूप अत्यंत सुन्दर और सराहनीय है । सभी सूत्र लाजवाब एवं बेहतरीन हैं ।आज की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आपका बहुत बहुत आभार कामिनी जी !
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
ReplyDeleteउत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति ।प्रत्येक लिंक पर आपकी सारगर्भित समीक्षा उसे और भी प्रेरक बना रही है। मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
ReplyDeleteसार्थक सुंदर भूमिका के साथ सुंदर सारगर्भित लिंको की प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित चर्चा आज की ! अपनी लघुकथा का लिंक आज की चर्चा में देख कर बहुत प्रसन्नता हुई ! कामिनी जी आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteआप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार
ReplyDeleteआप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति आद. कामिनी जी
ReplyDeleteसारगर्भित टिप्पणियों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति्।
ReplyDeleteआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
आदरणीय सदस्य जन !
ReplyDeleteचर्चा मंच में सम्मिलत सभी रचनायें सुशोभित योग्य है । सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति ।
बहुत अच्छी चर्चा
ReplyDeleteउपयोगी पोस्टों का चयन. बधाई.
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