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Thursday, December 22, 2022

"सबके अपने तर्क" (चर्चा अंक-4629)

 मित्रों।

दिसम्बर के चौथे सप्ताह 

बृहस्पतिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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देवों का सहयोग मिले जब परमात्मा सर्वशक्तिमान है, वह सर्जक है, नर्तक है, वह दृष्टा है, स्वप्नदर्शी है। वह अनंत है और अनंत हैं उसके उसके आयाम। उसके हर गुण, हर क्षमता को एक देवी या देवता का रूप दे दिया गया है। इसलिए देवी-देवता अनेक हैं। मानव का हृदय जब स्वार्थ से ऊपर उठ जाता है,  उसमें उन देवताओं का वास हो जाता है। महापुरुषों में दैवीय गुण होते हैं और असुरों में आसुरी शक्तियों का वास बन जाता है। हमें यदि प्रेम, शांति, आनंद जैसे गुणों को अपने भीतर धारण करना है तो इनके देवताओं का वरण करना होगा। उनका स्मरण मात्र करना होगा; तथा अपनी सच्ची आकांक्षा के अनुरूप हम पाएँगे कि वे हमारे आस-पास ही विचरते हैं। पुराणों में लिखी देवों की कहानियाँ प्रकृति के अटल, सत्य नियमों का निरूपण हैं। अतीत काल से मानव व देव मिलजुल कर इस धरती पर आते रहे हैं। दोनों ही परमात्मा की कृति हैं। डायरी के पन्नों से 

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दूर हो सारा अंधेरा 

रेत का उठता बवंडर

फूस के तिनके उड़ाता

टूटता तटबंध मन का

साथ अपना छोड़ जाता।

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शब्द सारे शून्य होते

मौन लिखता है कहानी

नैन प्यासे कुएँ जैसे

ढूँढते दो बूँद पानी

दर्द का सागर उमड़ता

चैन कैसे कौन पाता। 

रेत का बबंडर पर अभिलाषा चौहान जी की

उपरोक्त रचना मनुष्य को सोचने पर विवश करती है। 

मन के मोती 

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शंख रव (महामंजीर सवैया) 

कलियाँ महकी महकी खिलती, अब वास सुगंधित भी चहुँ ओर है।

जब स्नान करे किरणें सर में, लगती निखरी नव सुंदर भोर है।

बहता रव शंख दिशा दस में, रतनार हुआ नभ का हर कोर है।

मुरली बजती जब मोहन की, खुश होकर नाच उठे मन मोर है।। 

छन्दों में सिद्धहस्त कवयित्री कुसुम कोठारी जी ने 

उपरोक्त रचना में महामंजीर सवैया की सभी मर्यादाओं का संग-साथ लेकर बहुत कुशलता से अपनी लेखनी चलाई है। 

मन की वीणा - कुसुम कोठारी। 

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नाद हमारी आत्मा का निनाद है 20 सितम्बर 1977 को प्रातः ओशो द्वारा आध्यात्मिक क्रान्ति प्रवचन के दौरान, ‘अंगार और श्रंगार के ख्यातनाम कवि’, हिन्दी-मालवी के शब्द-साधक बालकवि बैरागी की कविता ‘पुरवा को पछुवा मार गई’ की व्याख्या कर श्री बैरागी को सम्मानित किया गया। सन्त चरणदास के पदों पर दिए गए ओशो के दस प्रवचनों के संकलन ‘नहीं सांझ, नहीं भोर’ में यह प्रवचन संकलित है। 

आचार्य रजनीश के सभी प्रवचन तार्किक होते हैं।
इसीलिए उन्हें भगवान रजनीश भी कहा जाता है। 
एकोऽहम् 

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काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता 

काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता

प्यार से उसने मेरा हर लफ्ज़ लब से छुआया होता !

मिलते जो कभी फूलों की शक्लों में प्यार के तोहफे

मेरे पन्नों के बीच उसने गुलाबों को दबाया होता ! 

मन की आकांक्षाओं का सुन्दर उदारण।

Sudhinama 

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अपने चेहरे से मुखोटे को हटाया उस दिन  

जोड़ जो अपने गुनाहों का लगाया उस दिन.
आईना शर्म से फिर देख न पाया उस दिन.
 
कुछ परिंदों को गुलामी से बचाया उस दिन,
दाने-दाने पे रखा जाल उठाया उस दिन.
ग़ज़लगो दिगम्बर नासवा जी अपने अल्फाजों से 
अपनी गजलों में कमाल करते हैं।
उनकी यह ताजा गजल इसका जीता-जागता उदाहरण है।

स्वप्न मेरे 

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सड़कें और दूरियाँ केवल दूरी नहीं काफी दूरियों के लिये .नज़दीक होकर भी बढ़ जाती हैं ,दूरियाँ  बहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना
यह रचना वैसे तो काफी लम्बी है किन्तु 
उपरोक्त चार पंक्तियों में बहुत बड़ी सच्चाई और जीवन का सार निहित है। 

Yeh Mera Jahaan 

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अन्त में मेरी भी दोहानुमा रचना 

"गर्दन पर हथियार" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 

परम्पराएँ मिन्न हैंलेकिन हम सब एक।

कोई पेड़ा खा रहाकोई खाता केक।।

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खाने-पीने के लिएसबके अपने तर्क।

बीयर मांस-शराब कोसमझ रहे मधुपर्क।।

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कोई झटका कर रहाकोई करे हलाल।

दोनों की ही रीत परउठते बहुत सवाल।।

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शाकाहारी जीव कीगर्दन पर हथियार।

केवल रसना के लिएकरते लोग प्रहार।।

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आज के लिए बस इतना ही।

25 दिसम्बर को रविवार की चर्चा में 

कुछ और लिंकों के साथ फिर मिलेंगे।

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9 comments:

  1. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

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  2. आज की चर्चा में बहुत ही सुन्दर रचनाओं के सूत्रों का आपने चयन किया है शास्त्री जी ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  3. पठनीय सूत्रों से सजी चर्चा प्रस्तुति।

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  4. सार्थक सूत्रों को पिरोकर सुंदर चर्चा प्रस्तुति।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    आदरणीय नासवा जी के ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी दिख नहीं रही है शायद स्पेम में चली गई,बहुत शानदार अस्आर हैं।

    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर।

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  5. बेहतरीन रचनाओं से सजा सुन्दर चर्चा अंक आदरणीय सर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई 🙏

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  6. सुप्रभात! देर से आने के लिए खेद है, पठनीय रचनाओं का सुंदर संकलन,
    'डायरी के पन्नों से' को स्थान देने के लिए बहुत बहित आभार शास्त्री जी !

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  7. सभी रचनाएं पढ़ लीं. चयन सुन्दर है ं . मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद.

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  8. सुंदर प्रस्‍तुति. बधाई.

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