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रविवार, दिसंबर 04, 2022

'सीलन '(चर्चा अंक 4624)

शीर्षक: आदरणीय संदीप जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।  

रविवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आदरणीय शास्त्री जी के कहे अनुसार एक नई पहल का आरंभ है। 

 मेरा मात्र प्रयास है।

सर्द दिनों में 
मन भी 
ठिठुरता है
और पेड़ों से लिपट 
पूरी रात ओस में भीगता है।
सुबह सूर्य 
के आगमन पर
ओटले 
पर बैठ सुखाता है 
बीते दिनों की 
सीलन को।

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

 --

कवि बया पक्षी के माध्यम से प्रकृति का मनोरम चित्रण प्रस्तुत करते हुआ कहता है- कल केवल कुहरा आया था,अब बादल भी छाया है।हाय भयानक इस सर्दी ने,सबका हाड़ कँपाया है।।

उच्चारण: गीत "नीड़ बनाया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

भीनी-भीनी पड़ी फुहारें,
झीना-झीना उजियारा।
आग सेंकता सरजू दादा,
दिन में छाया अँधियारा।
कॉफी और चाय का प्याला,
--

समय की परतों पर आई सीलन अपने निशान छोड़ जाती है फिर चाहे दिसंबर के महीने में ओस से भीगी रात सूरज के उजाले में ओटले पर बैठी सूखती ही क्यों न रहे। ऐसे ही सिले से एहसास लिए आइए पढ़ते हैं आदरणीय संदीप जी की कृति सीलन…

पुरवाई: सीलन 

सर्द दिनों में 
मन भी 
ठिठुरता है
और पेड़ों से लिपट 
पूरी रात ओस में भीगता है।
सुबह सूर्य 
के आगमन पर
ओटले 
पर बैठ सुखाता है 
बीते दिनों की 
सीलन को।
--
कवयित्री इस कविता में जीवन को ऊर्जावान बनाने का भरसक प्रयास करती है।कहीं वह लहरों संग बह जाती है तो कहीं व्याकुल हो पीले पत्तों-सी झड़ जाती है और कहीं तारों की चमक आँखों में लिए भोर-सी बिखर जाती है। आइए पढ़ते हैं आदरणीया मीना जी भाव भरी यह कृति-

जीवन बस यूँ ही चलता है ॥


तारों की झिलमिल में आँखें ,

स्वर्णिम सी भोर को तकती हैं ।

जुगनू सी कोई आस किरण बस हर पल पलती रहती है ,

दिन मंथर -मंथर ढलता है ।

--

कवि मन यायावर हो क़लम के साथ बंध-मुक्त हो बहने की लालसा में बिखरता है। वह निश्छल प्रेम को पोषित कर कभी गोपी बन थिरकना चाहता है तो कभी कहता है मैं झाँकूँ निराला निलय में, छंद मुक्त हो जाऊँ। आइए पढ़ते है आदरणीय ब्रजेन्द्रनाथ जी की प्रेम में पगी यह सुंदर कृति-


marmagya.net: मैं यायावरी गीत लिखूँ (कविता) 

मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाऊँ।
मैं तितली बन फिरूँ बाग में,
कलियों का जी न दुखाऊं।
गुंजन करुँ  लता-द्रुमों  पर,
उनको  कभी ना  झुकाऊँ।
--
सरल सहज शब्दों में गहन भावों को मंथती क़लम पाठको से मिलती है तब जीवन नये आयाम गढ़ता है।  जीवन को खंगालते-खंगालते अवचेतन से चेतन के हिस्से आया एक प्रश्न कि आख़िर यह शरीर किसका है? मेरा है! तो फिर मेरे कहे का क्यों नहीं?क्यों नहीं चलता मेरे कहे अनुसार…आइए पढ़ते हैं ऐसे ही प्रश्न लिए आदरणीय ओंकार जी की यह कृति-

बहुत प्यार है मुझे अपने शरीर से,

पर यह आख़िर है किसका?

मेरा है,तो क्यों अपनी मर्ज़ी से 

बीमार पड़ जाता है?

क्यों मेरी बातों को अक्सर 

अनसुना कर देता है?

--
वर्तमान में सब बिकता बा, भ्रम की चादर पर शब्दों को उत्साह से बिखेरों समाचार कह सच का तड़का लगा सरकारी काम-काज को मजबूरी न कहो बस जनता के पैसे ठिकाने लगाओ। आइए ऐसा ही एक मजेदार व्यंग्य पढ़ते है आदरणीय तरुण जी का तरुण की डायरी से-

ससुर  इहा हर खबर बिकात बा  ,
अउ जो बिकात बा 
सोइ ना छपात बा !
कहत हई के मीडिया बिकात बा ?
--
एक पल छाँव एक पल धूप का खेल खेलती ज़िंदगी न जाने कितने रूप बदलती है। कभी अपनी-सी लगती है तो अगले ही पल बेगानी-सी लगती है। रूठती भी है और फिर मनुहार भी करती है ऐसे ही अनेक रूप में ढलती ज़िंदगी से मिलते हैं आदरणीय आतिश जी की कृति ऐ ज़िंदगी! तू कितनी बदल गई में 

घर बदला शहर बदला  
तुम कहां खो गई ,
तेरी बातें तेरा मुस्कूराना 
तेरा शर्माना बदला
तू बिलकुल नई हो गयी 
--
प्रेम की अधिकता विरह की टीस छोड़ ही देती है। प्रकृति प्रेम में डूबे हृदय को कण-कण में जीवन की उठती लहर भिगोती है। आकाश में दिखता है चाँद तारों का एक परिवार…रात का ढलना भोर का बिखरना, चाह में भटकना रात भर मन का और फिर अनभिज्ञ हो दौड़ जाना एक ही घर में रह कभी न मिलना। गागर में सागर है यह गीतिका गहन अर्थ लिए आइए पढ़ते हैं आदरणीया कुसुम दी जी की गीतिका …

मन चाह लेकर याद में भटका रहा हर रात में।
पर सूर्य तो अनभिज्ञ सा चलता रहा बस दौड़ता।
झरती प्रभा शत हाथ से  नित चंद्र के हर भाग से।
मन में यही अभिलाष है कब तार सूरज जोड़ता
--
जीवन में एक रूपता के अभाव में हर फूल गुलाब होने की चाह में जीवन व्यापन करता है परंतु गुलाब और लिली होना इतना भी आसान नहीं पृथ्वी पर, अधिकता रंगहीन गंधहीन फूलों का कोई तलबगार नहीं होता। वह एक उम्मीद की लौ के सहारे खिलते रहते है आइए पढ़ते हैं ऐसे ही अथा गहराई लिए आदरणीय शांतनु सान्याल जी की कृति उम्मीद की लौ…

 सुबह और शाम के
मध्य कितना कुछ बह जाता
है केवल साक्षी रहता है
एक मात्र नमनीय
सूरजमुखी,
रिक्त
स्थानों को भर जाता है मौसम का पहिया,
--
1984 में भोपाल में हुई सबसे भीषण त्रासदी का जिक्र दिल दहला देता है। विचार मात्र से हृदय सहम जाता है। हम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं? कैसे नहीं देख पाते अपने चारों तरफ़ बुना जाल। उस त्रासदी का आँखों देखा हाल आदरणीया कविता रावत जी ने कई प्रश्नों  के साथ किया है। आइए पढ़ते हैं एक जवलंत विषय पर विचारोंत्तेजक सारगर्भित लेख…मनन कीजिएगा।


आज वर्ष 1984 में भोपाल में हुई विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी की 38वीं बरसी है। इस त्रासदी में हज़ारोँ की संख्या में जान गँवाने वाले मृतकों की याद में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 2 दिसंबर को 'राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस' (National Pollution Control Day) मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य वर्तमान समय में बढ़ती जनसँख्या के कारण निरंतर मानव निर्मित औद्योगिक गतिविधियों, रसायनों के प्रयोग, खनिज तेल का उपयोग एवं प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण उत्पन्न सम्पूर्ण जीव जगत के लिए खतरे की घंटी बने अनेक प्रकार के प्रदूषण यथा- जल-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि  के प्रति जनजागरण कर पर्यावरण प्रदूषण के बारे में जनता को जागरूक करना है। इस दिन राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस के माध्यम से सरकार एवं विभिन्न गैर-सरकारी संगठन कई कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, 
--
और अन्त में चर्चा मंच के संस्थापक 

आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति'

12 टिप्‍पणियां:

  1. किसी की रचना को पढ़ना और चिंतन मनन करते हुए उसकी समीक्षा करना एक ज़रूरी कार्य होने के साथ साथ श्रमसाद्ध्य और तटस्थ रहने वाला होता है। अनीता जी ने प्रत्येक रचना के मन को टटोल कर जो व्याख्या की है, वह निश्चित ही सराहनीय है। शब्दों का चयन और भाषा की खनक बराबर महसूस होती च्लती है।

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  2. संक्षिप्त समीक्षा के साथ सुन्दर रहा आज का चर्चा मंच।
    आपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

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  3. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य समीक्षात्मक चर्चा प्रस्तुति । आज की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से असीम आभार अनीता जी ।

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  4. धन्यवाद ! मैम !

    मेरी नन्हीं सी भाव को आपने अपने मंच पर जगह दी ।

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  5. सार्थक समीक्षा के साथ पठनीय रचनाओं की प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई !

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  6. आदरणीया अनीता सैनी 'दीप्ति' जी एवं समस्त चर्चामंच परिवार को सतत स्नेह मार्गदर्शन देने के लिए हृदय से बहुत बहुत आभार !
    जय श्री कृष्ण जी!

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  7. बहुत सुन्दर चर्चा. सार्थक समीक्षा. मेरे सृजन को जगह दी.आभार.

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  8. आभार आपका...। संपूर्ण चयन ही शानदार है..।.मेरी रचना को मान देने के लिए साधुवाद...। अनीता जी आपकी प्रस्तुति अदभुत है...। शेष रचनाओं पर पढ़कर कमेंट करूंगा..।

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  9. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार

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  10. बहुत सुंदर चर्चा। पठनीय लेख व कविताएँ।

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  11. सभी लिंक एक से बढ़कर एक हैं अनीता जी...बहुत शानदार चयन

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