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तुम सर्वव्यापी नाथ शंकर
सांसों में साकार बसकर प्राणों में आधार बनकर करुणा के आगार होकर दुष्टों को संहार कर-हर जन पे कर उपकार विषधर तुम रहो न हास्य बनकर कर दया अब भक्त-जन पर नेत्र खोलो हे ज्ञानेश्वर ये है अवसर हे महेश्वर देव आओ स्वर्ग तजकर...
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धरम मेरा था लगाए थे फूल गुलशन में
करम तेरा है कि काँटों से भर गया दामन
चला किये तमाम उम्र जलते सहरा में
न जाने कौन सी नगरी बरस गया सावन...
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पी.सी.गोदियाल "परचेत"
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महाशिवरात्रि को त्यौहारों का राजा कहा जाता है। यह पर्व भगवान शंकर की पूजा तथा भक्त की श्रद्धा और आस्था का पर्व है। शिवरात्रि व्रत ’सर्व पाप प्रणाशनम्’ अर्थात् सभी पापों को नष्ट करने वाला तथा ’भुक्ति भुक्ति प्रदायकम्’ अर्थात् भोगों तथा मोक्ष का प्रदाता है। मान्यता है कि जो लोग शिवरात्रि का व्रत रखते हैं, उन्हें कामधेनु, कल्पवृक्ष और चिंतामणि के सदृश मनोवांछित फल प्राप्त होता है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि ‘जो मनुष्य महाशिवरात्रि के दिन व्रत कर जागरण करता है और विधिवत शिव पूजा करता है, उसे फिर कभी अपनी माता का दूध नहीं पीना पड़ता, वह मुक्त हो जाता है, अर्थात् उसे मोक्ष प्राप्ति होती है। ज्योतिष के अनुसार अमावस्या में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है, अतः उस समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ संयोग होने से इष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है।
शिवरात्रि शिव-पार्वती के विवाह का दिन है। शिव-पार्वती के मिलन की रात है, शिव शक्ति पूर्ण समरस होने की रात है। इसलिए शिव ने पार्वती को वरदान दिया कि आज शिवरात्रि के दिन जहाँ कहीं तुम्हारे साथ मेरा स्मरण होगा, वहाँ उपस्थित रहूँगा।
महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिर में पूजा अर्चना के बाद जब दोपहर में शिव-पार्वती बारात में शामिल होने का अवसर मिला तो आत्मीय शांति का अनुभव हुआ। यूट्यूब पर विडियो लोड हुआ तो उसमें ब्लॉग पर शेयर करने का बटन भी सामने आ गया तो क्लिक करने पर ब्लॉग पर आ गया तो सोचा इसके साथ ही दो-चार शब्द लिखती चलूँ।
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
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धरे रुरियारे रंग, बन फिरिति पतंग,
दए फगुनिया पुकारि के होरी में..,
मनि मोतियाँ ते भरी बलपरी फूरझरी
छरहरी डोरी डार के होरी में..,
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घरौंदा की खातिर रह रह कर बदलते है, बस चलते है।।
छोड़ कर सब कुछ उसी की तलाश में जिसे छोड़ चलते है...
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Sawai Singh Rajpurohit
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खुशियाँ खोजनी हों तो
शिकायतों को तह करके रख दीजिए...
Shreesh K. Pathak
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HARSHVARDHAN TRIPATHI
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Rameshraj Tewarikar
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rajeev Kulshrestha
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जाने कितनी रातें इस उधेड बुन में काट दी
कि अपनी आज की स्थिति को
अपनी नियति मान ही लूँ
और परिस्थितियों से समझौता कर लूं
या फिर जिन्दगी को कम से कम
उस स्थिति में तो लेकर आऊँ
जहां पर उसे जिन्दगी तो कहा जा सके...
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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यदि आप स्वयं को भारतीय संस्कृति के रक्षक मानते हैं या आपको अपने घनघोर राष्ट्रवादी होने का अभिमान है अथवा आप भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सक्रिय सदस्य हैं तो आपसे एक अनुरोध है कि आप फिर से उन्हीं सांस्कृतिक मूल्यों का अध्ययन करें जिन्हें आपने बचपन में पढ़ा,सोचा या समझा है। याद कीजिए जब आप घर से स्कूल के लिए निकलते थे तो स्कूल में आपको क्या-क्या सिखाया जाता था। कैसे प्रार्थना में आपको ये समझाया जाता था कि इस संसार में सब पूजनीय हैं, धरती माँ से लेकर पशु-पक्षी तक। किस तरह से आपको समझाया जाता था कि समाज समता मूलक है...
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तखल्लुस कह नहीं सकते , तखैयुल कर नहीं सकते ,
तकब्बुर में घिरे ऐसे , तकल्लुफ कर नहीं सकते . …
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प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
मैं तो कवि हूँ मुझ पर क्या है ,
कविता गीतों की झंकार ...
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लय साधने हेतु गीतों व छंदों में तुकांत का प्रयोग सनातन परम्परा से प्रारम्भ हुआ जो हिन्दी में तुकांत वर्णिक व मात्रिक छंदों युत गीतों का प्रयोग महाकाव्यों की लम्बी कवितायें एवं शास्त्रीय काव्य में ही रहा | लोकगीतों में तुकांत की अनिवार्यता कभी पूर्ण रूप से स्थापित नहीं हुई अपितु केवल *लय ही गीतों का मूलतत्व बना रहा |* जो महादेवी, प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त आदि तक गीतों के रूप में चलती रही ...
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हर शहर की अपनी अपनी खासियत होती है पर जो बात लखनऊ में है वह कहीं और नहीं है. अयोध्या से महज ४० मील दूर ये शहर राम जी के छोटे भाई लखन जी के नाम से है, ऐसा पौराणिक गल्पों पर विश्वास करने वाले लोग मानते हैं. मध्य काल में जब अवध के नवाबों की तूती बोलती थी तो गोमती नदी के तट पर बसे इस शहर को पूरब का कुस्तवनतुनिया या शिराजे-हिन्द भी कहा जाता था. इतिहास में दर्ज है कि इसे सर्वप्रथम नवाब आसिफुद्दौला ने अवध की राजधानी बनाया था. इस शहर के विकास व सास्कृतिक विरासत का विहंगम वर्णन करने बैठेंगे तो तो एक विराट पुस्तक बन जायेगी...
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक के ब्लॉग उच्चारण से-
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