शीर्षक पंक्ति: आँचल पांडेय जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
विश्व पटल पर उभरे ज्वलंत विषयों पर आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की बेहतरीन रचना-
दोहे "जीत रही है मौत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हार रही है जिन्दगी, जीत रही है मौत।
मदद नहीं अब तक मिली, खाली पड़ा कठौत।।
आशाएँ धूमिल हुईं, नजर न आता जोत।
मानवता के भूमि से, सूख गये सब स्रोत।।
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मनमोहक बिंबों को प्रभावशाली शब्दों में पिरोया है आदरणीया कुसुम कोठारी जी ने अपने मर्मस्पर्शी गीत में -
जड़ में चेतन भरने वाली
कविता हो ज्यों सुंदर बाला
अलंकार से मण्डित सजनी
स्वर्ण मेखला पहने माला
शब्दों से श्रृंगार सजा कर
निखर उठी है कोई भागिन।
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सामान्य-सी बातें जब ग़ज़ल में सम्मिलित होती हैं तो असरदार बन कर हमारे एहसासात से गुज़रती हैं, आइए पढ़ते हैं आदरणीय दिगंबर नासवा जी की एक बेहतरीन ग़ज़ल-
पर ये सिगरेट तेरे लब कैसे लगी...
रोज़ बनता है सबब उम्मीद का,
ज़िन्दगी फिर बे-सबब कैसे लगी.
दिल तो पहले दिन से था टूटा हुआ,
ये बताओ चोट अब कैसे लगी.
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काव्य में दार्शनिक अंदाज़ को ब-ख़ूबी पेश करते हैं आदरणीय शांतनु सान्याल जी, आइए पढ़ते हैं एक ख़ूबसूरत रचना-
मधुर धुन उसकी गुनगुनाती
एक आकर्षण में बहती जाती
कलकल कर बहती नदिया सी
लहरों पर स्वरों संगम होता।
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काव्य में नवीन प्रयोग हमेशा सराहे जाते हैं। आदरणीया रश्मि विभा त्रिपाठी जी का सृजन हमारे मर्म को स्पर्श करता है-
जो जीवन के
मरु में मुरझाई
मेरे मन की डाली
उनको देखा
खिल उठ्ठी, क्या वे हैं
इस डाली के माली।
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हालात की तल्ख़ियों से जूझते संघर्ष को ओजस्वी स्वर दे रही हैं आँचल पांडेय जी। एक ऐसी रचना जो आपको सृजन में मौलिकता का एहसास कराती है-
जग रही हूँ मैं अकेली या कहीं कोई और भी है?
साहस है मेरा छूटता,
सम्मान भी अब डोलता,
प्रतिकार फिर भी कर रही हूँ
झूठ के प्रहार का,
मैं हार कर भी लड़ रही हूँ!
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सरल शब्दावली में दूरदृष्टि की झलक देती ख़ूबसूरत रचना आदरणीय उदय वीर सिंह जी की-
रंगों शबाब महफ़िल का मुकम्मल नहीं हुआ,
जश्न आधा अधूरा है जबतक गुलाल पर्दे में है।
हर जुबां तहरीरो वरक तस्दीक में नज़र आये,
बुलंदियां ख़्वाब हैं जब तक ख़्याल पर्दे में है।
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एक लघु कविता बड़े अर्थ समेटे हुए है। आइए पढ़ते हैं ब्लॉग कावेरी की एक प्रभावशाली रचना-
विस्तृत चर्चा … आभार मुझे शामिल करने के लिये .
जवाब देंहटाएंबढियां संकलन आभार सर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के इस अंक में |
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंको का चयन किया है आपने आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।
सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूब रवींद्र जी, आपने नायाब रचनाओं से हमें रूबरू कराया...शानदार हैं सभी एक से बढ़कर एक...चर्चामंच पर वैसे तो नियमित आती रही हूं परंतु इधर कुछ दिनों से देर क्या हुई कि पढ़ने के लिए रचनायें एक किताब जितनी हो गई ळैं। खैर आज सब पढ़ने बैठी हूं....एक बार फिर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और शानदार पोस्ट, सभी को पढ़ा, बहुत ही खूबसूरत, बहुत बहुत बधाई हो सभी को🙏🙏 👌👌
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