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रविवार, जनवरी 29, 2023

"बिगड़ गई बोली-भाषा" (चर्चा-अंक 4638)

 मित्रों!

जनवरी 2023 के अन्तिम रविवार 

की चर्चा में आपका स्वागत है।

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सारे जग से अलग है, तीन रंग की शान।

देशभक्ति सबसे प्रथम, इतना लेना जान।।

माँ भारती 

अब ले तिरंगा हाथ में चल मान से।

भू सज रही अब केसरी परिधान से।

जयकार की गूंजे सुहानी आ रही।

ऊँचा रखेगें भाल भी सम्मान से।। 

मन की वीणा - कुसुम कोठारी 

--

अभी शीत का देश में, नहीं हुआ है अन्त। 

ब्रजवासी स्वागत करें, आया पीत बसन्त।।

ब्रज में बसंत : कुछ इस तरह स्‍वागत करते हैं बसंत का सभी ब्रजवासी सदा बसंत रहत वृंदावन पुलिन पवित्र सुभग यमुना तट।।

जटित क्रीट मकराकृत कुंडल मुखारविंद भँवर मानौं लट।

ब्रज में यूं तो ऋतुओं की भरमार है 

किंतु एक ऋतु ऐसी है जो ब्रज में 

अपने उन्माद को लिए हुए नित्य विराजमान है 

और वह है वसंत ऋतु। 

अब छोड़ो भी 

--

मन को बहुत लुभा रहे, कुदरत के ये ढंग।

खेतों में पसरा हुआ, पीला-पीला रंग।।

खिलखिलाता बसंत 

सरस्वती आगमन का  दिन ही 

चुन लिया था मैंने
बासंती जीवन के लिए .
पर  बसंत !  
तुम तो न आये । 

गीत.......मेरी अनुभूतियाँ 

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उपवन में खिलने लगे, प्यारे-प्यारे फूल। 

कानन में हँसने लगे, कंटक पेड़ बबूल।।

वसंत पीला सा 

ये पीला सा वसंत
उन उम्रदराज़ आंखों में 
कोरों की सतह पर
नमक सा चुभता है
और 
आंसू होकर 
यादों में कील सा धंस जाता है। 

पुरवाई 

--

सेंक रहे हैं देश में, लोग अभी भी आग।

लुभा रहा है देश को, वासन्ती अनुराग।।

मौसम के उतार चढाव 

कितने ही मौसम बीत गए 
सुहाने मौसम के इन्तजार में 
कभी गरमी कभी सर्दी 
कभी वर्षा की मार है | 
हाहाकार मचा सारे देश  में 

Akanksha -asha.blog spot.com 

--

लोकतन्त्र के नाम पर, राजतन्त्र का राज।

देख रहा मनमानियाँ, सहमा हुआ समाज।।

लोकतंत्र एक लोकतंत्र चलता है

 मेरे घर में भी 
 ,
यहाँ भी राज अम्माजी का

और नाम पिता जी का चलता है ... 

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दिल की बात न मानिए, मन है सदा जवान।

तन की हालत देखिए, जिसमें भरी थकान।।

है अपना दिल तो सादा सा 

कहाँ से इश्क़ ये पाएगा 

किसी ने न बुलाया, गले से न लगाया

बहुत समझाया, यही न समझा

के बन के रहेगा भैया,

कहाँ से इश्क़ ये पाएगा 

उधेड़-बुन 

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अंग्रेजी का मित्रवर, छोड़ो अब व्यामोह।
अपनी भाषा के लिए, करो न ऊहा-पोह।।

चलो फिर साथ चलें... 

काम से चलते समय मैंने अपने सहकर्मी से कहा

"सी यू लेटर।"

उसने पलटकर जवाब दिया, "फिर मिलेंगे"। 

साफशुद्धस्पष्ट हिन्दी में।

पर जब उसने बोला 'फिर मिलेंगे'। 

तो मुझे आश्चर्य के साथ-साथ खुशी भी हुई। 

MERE SAPNE MERE APNE 

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जब तक प्राण शरीर में, सभी मनाते खैर।
धड़कन जब थम जाय तो, हो जाते सब गैर।।

पुस्तक अंश: धड़कनें - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा  'धड़कनें' जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा द्वारा लिखा गया सामाजिक उपन्यास है। कई वर्षों से आउट ऑफ प्रिंट रहने के बाद इस उपन्यास को नीलम जासूस कार्यालय द्वारा पुनः प्रकाशित किया गया है।  आज एक बुक जर्नल पर हम आपके लिए जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के इस उपन्यास 'धड़कनें' का एक छोटा मगर रोचक हिस्सा लेकर आ रहे हैं। आशा है आपको यह अंश पसंद आएगा।  

एक बुक जर्नल 

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गौमाता भूखी मरे, श्वान खाय मधुपर्क।
समझो ऐसे देश का, बेड़ा बिल्कुल गर्क।। 

कुत्ते का वैरी कुत्ता : पंचतंत्र || Kutte ka bairi kutta : Panchtantra || 

एको दोषो विदेशस्य स्वजातिद्विरुध्यते

विदेशी का यही दोष है कि यहाँ स्वाजातीय ही विरोध में खड़े हो जाते हैं।

कुत्ते का वैरी कुत्ता : पंचतंत्र || Kutte ka bairi kutta : Panchtantra ||

एक गाँव में चित्रांग नाम का कुत्ता रहता है। वहाँ दुर्भिक्षपड़ गया। अन्न के अभाव में कई कुत्तों का वंशनाश हो गया। चित्राँग ने भी दुर्भिक्ष से बचने के लिए दूसरे गाँव की राह ली। 

Rupa Oos Ki Ek Boond... 

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होता भय के भूत का, कोई नहीं इलाज।

युगों-युगों से ग्स्त है, इससे देश-समाज।।

डर, सभी को लगता है 

डर क्या है ! आम अर्थ में यह एक नकारात्मक भावना है। यह इंसानों में तब देखा जाता है जब उन्हें किसी से किसी प्रकार का जोखिम महसूस होता हो। यह जोखिम किसी भी प्रकार का हो सकता है, काल्पनिक भी और वास्तविक भी ! पर मृत्यु का भय सर्वोपरि होता है ! अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग प्रकार से इसका अनुभव करते हैं ! कुछ सिद्ध पुरुषों को छोड़ दिया जाए तो यह भावना कमोबेश सभी में रहती है ! डर सभी को लगता है !  

कुछ अलग सा 

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कहना-सुनना मनुज के, जीवन के हैं अंग।

कहन छोड़ कर सीखिए, सुनने के भी ढंग।। 

कहना - सुनना 

वह जो मेरे भीतर बोलता है 

वही तुम्हारे भीतर सुनता है 

कहा था आँखों में आखें डाल के किसी ने 

फिर भी नहीं समझ पाते 

लोग एक-दूसरे की बात 

मन पाए विश्राम जहाँ अनीता

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गीत "कैसे उजियार करेगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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जो बहती गंगा मे अपने हाथ नही धो पाया,

जीवनरूपी भवसागर कोकैसे पार करेगा?

मानव-चोला पाकर, जो इन्सान नही हो पाया,

वो कुदरत की संरचना कोकैसे प्यार करेगा

उच्चारण 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात! देशभक्ति और बसंत के रंग में रंगे गीत, आलेख, कविता व अन्य साहित्यिक विधाओं में सृजन की गंगा बहाने आया चर्चा मंच का यह अंक सराहनीय बन पड़ा है। बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर संग्रह। बसंत ऋतु के आगमन की सभी को शुभकामनाएं।
    लिंको की इस संग्रह में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार!!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर प्रस्तुति। बहुत बढ़िया चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  6. विभिन्न आयामों से सजी चर्चा प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं

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