सादर अभिवादन
आप सभी को मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनायें
शीर्षक और भूमिका आदरणीया अनीता जी की रचना से
सबको साथ लिए चलना है
वसुंधरा है एक परिवार,
भारत का हर पर्व अनोखा
जगा रहा हर हृदय में प्यार !
इसी शुभ भावना के साथ आज की चर्चा का शुभारम्भ करतें हैं....
दोहे "लोहड़ी पर्व-खिचड़ी का आहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
संस्कृति है यह कैसी अद्भुत
क़ीमत इसकी वही जानता,
मानवता की ख़ुशबू जिसमें
भारत को जो मातृ मानता !
---------------------------------पतंगों का मौसम गया और हमारी प्यारी जिज्ञासा जी की पतंग तो उड़ भी चली चलिए हम भी उनका हाथ थामकर थोड़ा आनंद उठा लें
चिड़ियों सी उड़ती जाये वो,
तितली सा रंग सजाए वो ।
मैं डोर अगर कस के पकड़ूँ,
फड़के औ भागी जाए वो ॥
------------------------
प्रकृति के हर रूप का सुंदर चित्रण करने में हमारी आदरणीया कुसुम जी का जबाब नहीं
अब,इनकी प्रशंसा क्या करें,बस आनंद उठाईये
लहर-लहर मचल कगार पद पखारती रही।
करे नहान कूल रूप को निखारती रही।।
नवीन रंग दिख रहा गगन प्रभात काल में।
किरण चली उचक उचक कनक पसारती रही।।
---------------------------
मानव द्वारा शोसित पेड़-पौधे,नदी-झरने यहाँ तक समुंदर भी अपना दर्द तो कह ही रहे थे
मगर, आप पहाड़ भी झटपटा-झटपटा कर दरक रहें हैं
आखिर कब सुनेंगे उनकी पीड़ा हम
क्या, अपना सर्वनाश करने के बाद ही रुकेंगे?
पहाड़ का दर्द या दुख का पहाड़
इस हाल का कौन है जिम्मेदार
सूनी गलियां सूना आंगन
है दहशत में सबका आनन
भींगे नयनो में आह भरा है
पीड़ा करूणा अथाह भरा है
-------------------------------------
आदरणीय गोपेश सर की एक बेहद मार्मिक संस्मरण,पढ़ते-पढ़ते आँखे नम जा रही थी
कुछ असामाजिक गतिविधियों के चलते सांप्रदायिक दंगा हो जाने के कारण शहर में दो दिन तक कर्फ्यू रहने के बाद पिछले तीन दिनों से धारा 144 लगी हुई थी। प्रशासन की तरफ से किसी भी खुराफ़ात या दंगे से निपटने के लिए माकूल व्यवस्था की गई थी। शहर में हर घंटे-दो घंटे में सायरन बजाती पुलिस और प्रशासन की जीपें व कारें सड़क पर दौड़ रही थीं। -----------------------------
" जीवन श्रम से सिंचित होगा"जीवन में श्रम का महत्व और समाज में श्रमिकों के महत्व को वया करती अभिलाषा जी की सुंदर रचना
मेहनत ही श्रृंगार बनी
पाथर तोड़े महल बनाए
ढोते गारा 'औ' माटी
भीषण गर्मी,शीत प्रबल हो
पीर कहाँ किसने बाँटी
दो पाटों के बीच पिसे हैं
आँसू की बरसात घनी
जीवन श्रम से.......
-----------------------------
सच,सोचने वाली बात है कि-"बचपन का घर याद क्यों आता है"
और जबाब यक़ीनन यही है कि -"सयानेपन के घर में वह सुख तलाशना पड़ता है जो बचपन का घर स्वतः दे दिया करता था"
बचपन, घरौंदा और जीवनकितना आसान था बचपन में पलक झपकते घर बनाना... और उसे छोड़कर चले जाने का साहस जुटाना... और टूटने पर दोबारा फिर घर को गढ़ लेना...। बचपन का घर बेशक छोटा और कमजोर होता था... अपरिपक्व सोच लेकिन उसे आकार दे दिया करती थी...घर बनाकर हर बार खिलखिलाती। कितना कुछ बदल जाता है हमारे अल्लहड़ होने से सयाने होने तक। बचपन कई घर बनाता है और सयाने होने पर बमुश्किल एक...या नहीं। बावजूद इसके सयानेपन वाले घर में भी बचपन का घर ही क्यों याद आता है... इसके जवाब सर्वथा भिन्न हो सकते हैं। हममें से कई सोचेंगे कि बचपन तो बचपन होता है.--------------------------
सादर नमस्कार आ. कामिनी जी! आभारी हूँ मेरी कहानी 'खिदमत' को इस प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिए। आपको व सभी साथी रचनाकारों को मकर संक्रान्ति के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं असीम शुभकामनाएँ! भगवान आदित्य सब पर कृपालु हों।
जवाब देंहटाएंकामिनी जी, इस चर्चा-अंक के लिए ली गई सुन्दरतम रचनाओं के चयन में आपके द्वारा किये गये श्रम को नमन करता हूँ। सभी रचनाएँ श्लाघनीय हैं
हटाएंआभार आपका कामिनी जी...। सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
सुंदर शुरुआत, सुंदर संकलित अंक सभी रचनाएं बहुत आकर्षक और कुछ संदेश देती,
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका कामिनी जी।
मकर संक्रांति पर्व की सभी सुधि जनों को हार्दिक शुभकामनाएं।
सामयिक विषय के साथ साथ सुंदर रोचक और पठनीय प्रस्तुति। जिसमें.. मेरा गीत "मेरी उड़ गई पतंग" और सभी रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ा आभार सखी कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी के शरद ऋतु के जीवन संदर्भ पर सजीव और मनमोहक दोहे।
मालती मिश्र जी का..मकर संक्रान्ति पर्व पर सुंदर सकारात्मक पक्ष का उल्लेख करता आलेख ।
कुसुम कोठारी जी की. अद्वितीय सौंदर्य से सजी मनमोहती गीतिका ।
गजेंद्र भट्ट जी की.. बहुत ही सार्थक और सामयिक विषय पर संवेदना से भरी कहानी।
गोपेश सर की कहानी में अपनों के खोने का बहुत ही मार्मिक चित्रण ।
सखी अभिलाषा चौहान जी की.. श्रमशक्ति पर गहन और चिंतनपूर्ण रचना।
अनीता दीदी की.. भारतीय मूल्य और संस्कृति पर सुंदर प्रेरक अभिव्यक्ति।
भारती दास जी की रचना.. हिमशिखरों की दर्दभरी दास्तान कहती और मर्म को छूती सराहनीय अभिव्यक्ति।
संदीप जी की पोस्ट.. बचपन के जीवन संदर्भ पर गहन चिंतन ।
सभी को मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति के पर्व पर सभी रचनाकारों व पाठकों को शुभकामनाएँ! सराहनीय रचनाओं के लिंक्स का सुंदर संयोजन, 'मन पाए विश्राम जहाँ को' स्थान देने के लिए हृदय से आभार कामिनी जी!
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं
आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर अभिवादन 🙏
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएं