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रविवार, फ़रवरी 05, 2023

'न जाने कितने अपूर्ण प्रेम के दस्तक'(चर्चा-अंक 4639)

शीर्षक पंक्ति आदरणीय शांतनु शान्याल जी की रचना 'उँगलियों के निशान' से -


सादर अभिवादन। 
रविवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।


टहनियों में उभर आती
हैं नन्ही पत्तियां, हवाओं में
इक अजीब सी होती है
मृदु सरसराहट,
ज़िन्दगी
फिर
अंध वृत्त से निकल कर छूना चाहती है
उजाले की आहट, सभी आवाज़ों को
को सीने से आबद्ध करना नहीं
आसान

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

गीत "घट गया इक साल मेरी उम्र का" 

जन्मदिन का जश्न है केवल छलावा,
लोग कहते हैं अँधेरे को सवेरा।।
घट गया इक साल मेरी उम्र का,
लोग कहते जन्मदिन है आज मेरा।।
--

अग्निशिखा : : उँगलियों के निशान - - 

न जाने कितने अपूर्ण
प्रेम के दस्तक, दरवाज़े पर
छोड़ जाते हैं कांपते
उँगलियों के
निशान,
पुनः
जीवित हो जाते हैं विस्मृत स्मृतियों के -
जीवाश्म, 
--

पिता,

बहुत दिन हुए 

तुम्हारी आवाज़ सुने,

कभी मैं भी आऊंगा,

लेटूँगा तुम्हारी बग़ल में,

तुम कुछ कह पाओगे न,

मैं कुछ सुन पाऊंगा न ?

 जो खानदानी रईस होते हैं
उन्हें संस्कार में मिलते हैं
हरामखोरी के पारंपरिक सलीके
जिसकी गौरवगाथा के होते हैं पुराने तरीके
जो होते हैं नए धनाढ्य
वे खुद सीखते हैं हरामखोरी के सलीके
सरकारी कृपा के नायाब तरीके।
कुछ पुरुष,
अपने बच्चों और बीवियों,
को सोते हुए,
अकेला छोड़ चले गए,
ऐसे पुरुष,
बुद्ध हो गए,
कहानियों में,
भ्रमित मुझे कर जाने को, तुम आते हो!
अभी-अभी, इन लहरों में, तुम ही तो थे,
गुम थे हम, उन्हीं घेरों में,
पर, यूं लौट चले वो, छूकर मुझको,
ज्यूं, तुम कुछ कह जाते हो!
बना दूसरों को फिर सीढ़ी
लोग सफल हैं कुछ ऐसे
जोड़-तोड़ के योग लगा
नीव खोदते दीमक जैसे
हरियल तरुवर को नागिन सा
अमर बेल का आलिंगन।।
सूरज की तपन लेकर के
तू करता है अवशोषण.
छिटकाई जो तूने किरण,
करती चित्त का है शमन.
तू उज्जवलता  का जग को दे रहा है दान रे
तू मानवता का हरदम रख रहा है मान रे.
चंदा रे तू अविचल  रहना.
चंदा रे  शीतल   करना - 2
--
कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब को प्रतिबंधित किए जाने के बाद दो जजों की पीठ के दो अलग-अलग फैसले आए हैं ठीक वैसे ही जैसे पिछले साल इसी वक्त पूरा देश बहस करते हुए दो धड़ों में बंट गया था ,अपनी राय दे रहा था और तर्क रख रहा था। अभी एक पखवाड़े पहले ही सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने महिला को गर्भपात का अधिकार दिया है। महिला का वैवाहिक स्टेटस जो भी हो वह 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त कर सकती है। यह उसके शरीर पर उसके कानूनी हक के  उद्घोष की तरह  है। क्या हिजाब के मामले को भी इस नजरिए से देखा जा सकता है कि यह उसकी देह है, वह चाहे तो हिजाब पहने, चाहे तो नहीं। कोई मजहब, कोई कानून उस पर थोपा नहीं जाए कि उसे इसे पहनना ही है। ईरान की स्त्रियां यही तो कह रही हैं। जान कुर्बान कर रही हैं कि आप इसे हम पर थोप नहीं सकते। हमारे देश में जो यह सवाल चला वह एक शैक्षणिक संस्था से चला था। संस्थान में एक ड्रेसकोड है जिसका पालन होना ही चाहिए लेकिन हमने जानते हैं  कि भारत विविधता और विविध विचारधाराओं का देश है। 

"भोलापहले समय से उठनामेरी बात मानना और पढ़ना-लिखना सीखो। मैंने एक नहींतुम्हारे लिए दो-दो मुर्गे मँगवा दूँगी।माँ की बात उसे कभी अच्छी नहीं लगी थी सो आज भी कोई फर्क नहीं पड़ा। वह अपनी धुन में दरवाज़े की ओर देखकर रोए जा रहा था। "क्यों रो रहे हो भोलावह मुर्गा रमन का थातुम्हारा नहीं।माँ ने उसके बाल सम्हालते हुए थोड़े रूखे स्वर में फिर से कहा और दिल बहलाने के लिए घर के बाहर बनी क्यारी में भोला के हाथों रोपे गए पौधे को दिखाने उसे साथ लेकर चली गईं। माँ अभी भोला को समझाने का प्रयत्न कर ही रही थीं कि खेत से उसके पिता भी आ पहुँचे।

--

आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

9 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी चर्चा प्रस्तुत की है @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी आपने।
    एतदर्थ बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर संग्रह। मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर कहानी!

    मेरी आवाज में संगीतबद्ध मेरी रचना 'चंदा रे शीतल रहना' को दिए गए लिंक पर सुनें और वहीं पर अपने विचार भी लिखें. सादर abhaar🌹❗️--ब्रजेन्द्र नाथ

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर चर्चा रही. सारी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं. ऐसे ही अंको से हमें जोड़ते रहें. सादर आभार ❗️--ब्रजेन्द्र नाथ

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर चर्चा अंक, शास्त्री सर को उनके जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

    जवाब देंहटाएं

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