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रविवार, फ़रवरी 26, 2023

"फिर से नवल निखार भरो" (चर्चा-अंक 4643)

 मित्रोंं!

रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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ब्लॉग जगत का अब नहीं, रहा सुनहरा काल।

मुखपोथी (फेसबुक) पर मिल रहा, सभी तरह का माल।।

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एक समय वो भी था जब फेसबुक का अभ्युदय नहीं हुआ था।

तब सौ-सौ टिप्पणियाँ पोस्ट पर आतीं थी। 

क्योंकि उस समय अपने मन की बात को जनमानस तक पहुँचाने का

 एकमात्र माध्यम ब्लॉग लेखन ही था। 

यह अच्छी बात है कि आज भी बहुत से 

मेरे जैसे लोग ब्लॉग लेखन में लगे हुए हैं।

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आइए अब चलते हैं कुछ पोस्टों के लिंकों की चर्चा की ओर-

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गीत "मन के जरा विकार हरो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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देता है ऋतुराज निमन्त्रण,
तन-मन का शृंगार करो।
पतझड़ की मारी बगिया में,
फिर से नवल निखार भरो।।
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नये पंख पक्षी पाते हैं,
नवपल्लव वृक्षों में आते,
आँगन-उपवन, तन-मन सबके,
वासन्ती होकर मुस्काते,
स्नेह और श्रद्धा-आशा के
दीपों का आधार धरो।
पतझड़ की मारी बगिया में,
फिर से नवल निखार भरो।।

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चरवाहा 

वहाँ! 

उस छोर से फिसला था मैं,

पेड़ के पीछे की 

पहाड़ी की ओर इशारा किया उसने

और एक-टक घूरता रहा  

पेड़  या पहाड़ी ?

असमंजस में था मैं!  

गूँगी गुड़िया अनीता सैनी 

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कुछ अर्थपूर्ण पंक्तियाँ "जिंदगी का अर्थ" 

Rupa Oos ki ek Boond

एक सुबह पार्क में दौड़ते,

एक व्यक्ति को देखा 

मुझ से आधा किलोमीटर आगे था

अंदाज़ा लगाया कि मुझसे थोड़ा धीरे ही भाग रहा था

एक अजीब सी खुशी मिली

मैं पकड़ लूंगा उसे, यकीं था

मैं तेज़ और तेज़ दौड़ने लगा

आगे बढ़ते हर कदम के साथ, 

Rupa Oos Ki Ek Boond.. 

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एक ग़ज़ल - शोख ग़ज़लों में तसव्वुर को सजाने के लिए 

चित्र गूगल सर्च से
कौन बाक़ी है मेरा राज़ बताने के लिए
अब कोई ख़त भी नहीं घर में छिपाने के लिए

प्यास तो नदियाँ बुझाती हैं ज़माने भर की
वो समंदर है अहं अपना दिखाने के लिए 

छान्दसिक अनुगायन 

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पुस्तकें मिलीं ("भावों के पंख" व "जो आधा-अधूरा कह दूं तो") 

हाल ही में दो वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने काव्य संग्रह मुझे भेंट किए। इनमें एक कविता-संग्रह  "भावों के पंख" झांसी निवासी श्री निहाल चंद्र शिवहरे जी ने भेंट किया तथा दूसरा काव्य-संग्रह "जो आधा-अधूरा कह दूं तो" गुरुग्राम निवासी श्री विनोद कुमार पहिलाजानी द्वारा भेंट किया गया।
काव्य सृजन एक साधना के समान होता है।उसमें साहित्यकार को पूरी तरह रमना पड़ता है।किसी रचनाकार की किताब निकलना तो और भी बड़ी बात होती है। रचनाकार को अपनी किताब छपने पर इतनी ही खुशी का अनुभव होता है जैसे घर में कोई समारोह होने पर।अक्सर देखने में आता है कि कोई रचनाकर जिस भाव से अपनी पुस्तक किसी को भेंट करता है उस भाव से बहुत कम ही लोग उसे पढ़ने और उस पर प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत समझते हैं।
मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि भेंट की गई कृति को मनोयोग से पढ़कर उस पर समीक्षा लिखूं या कम से कम रचनाकार को एक पत्र/संदेश के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराऊं।
इसी क्रम में मैंने उल्लिखित दोनों साहित्यकारों को संदेश प्रेषित किए जो यहां साझा कर रहा हूं :

मेरा सृजन 

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ऐ जाग जाग मन अज्ञानी 

ऐ जाग जाग मन अज्ञानी

ये जग है माया की नगरी

अभिमान न कर खल-लोभ न कर

सब रह जायेगा यहीं पर धरी

ऐ जाग....... 

BHARTI DAS 

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भिन्नता 

अपनी अपनी सोच अनूठी

अपनी खुशियांँ अपना डर।

एक पात लो टूट चला है

तरु की उन्नत शाखा से

एक पात इतराता ऊपर

झाँक रहा है धाका से

छप्पन भोगों पर इठलाती 

पत्तल भाग्य प्रशंसा कर।।

मन की वीणा - कुसुम कोठारी 

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भारतीय गणना की श्रेष्ठता सिद्ध करता एक अद्भुत अंक, 2520 

गणित में 0 से लेकर 9 तक के अंक होते हैं ! इन्हीं से सारी संख्याएं और गणनाएं की जाती हैं ! इन्हें दो भागों में बांटा गया है, सम और विषम यानी EVEN और ODD ! सम अंकों से बनने वाली संख्याएं सम अंकों से विभाजित होती हैं और विषम से बनने वाली विषम अंकों से ! सदियों तक यह माना जाता रहा था कि ऐसी कोई भी संख्या हो ही नहीं सकती, जिसे 1 से 10 तक के सभी अंको से विभाजित किया जा सके। वैसे एक से लेकर नौ अंको के गुणनफल से ऐसी संख्या बन तो सकती है पर बनाने और होने में बहुत फर्क होता है ! लेकिन हमारे महान गणितज्ञ रामानुजन ने गहन अध्ययन और शोध के बाद एक ऐसी संख्या खोज ही निकाली, जिसे 1 से लेकर 10 तक के सभी अंकों से विभाजित किया जा सकता है, यानी भाग दिया जा सकता है। एक अद्भुत संख्या, जो सम और विषम दोनों से पूर्णतया विभाजित हो जाती है, गणित के विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हैं इसकी प्रकृति पर ! यह संख्या है, 2520 !    

श्रीनिवास रामानुजन् 

यह वह विचित्र, सबसे छोटी संख्या है, जो 1 से 10 तक प्रत्येक अंक से विभाजित हो सकती है और जिसे इकाई तक के किसी भी अंक से भाग देने के उपरांत शेष शून्य रहता है ! जब रामानुजनजी ने विश्व के गणितज्ञों को बताया कि हिन्दू संवत्सर के अनुसार यह वह सबसे छोटी संख्या है जो सम और विषम सभी अंकों से विभाजित हो जाती है और यह वास्तव में सप्ताह के सात दिनों, महीने के तीस दिनों और साल के बारह महीनों 7x12x30 का गुणनफल है तो उनके मुंह खुले के खुले रह गए ! 

यही है भारतीय गणना की श्रेष्ठता ! जो कभी शून्य दे कर जगत की गणना को अनंत विस्तार देती है ! 

कुछ अलग सा 

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जो प्राप्त है वही पर्याप्त है कौवे की हिंदी कहानी। किसी जंगल में एक कौवा रहता था। वो हमेशा खुश रहता था क्योंकि उसकी ज्यादा इच्छाएं नहीं थीं। वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट था  लेकिन एक बार उसने जंगल में किसी हंस को देख लिया और उसे देखते ही कौवा सोचने लगा, ऐसा प्राणी तो मैंने पहले कभी नहीं देखा, इतना साफ और सफेद यह तो इस जंगल में औरों से बहुत सफेद और सुंदर है, इसलिए यह तो बहुत खुश रहता होगा।  आपका ब्लॉग नितेश महेश्वरी

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आब ए एहसास 

पुरअसरार रहे अंदाज़ ए बयां, शहर में फ़ित्नागर कम नहीं,
यूँ तो मीलों चलते रहे फिर भी ज़िन्दगी का सफ़र कम नहीं,
अग्निशिखा 

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मुझे तुम #अच्छे नहीं लगते ! 

मुझे तुम #अच्छे नहीं लगते ,

जब हो जाते तुम #नाराज,

और उठा लेते सर पर आकाश ,

फिर सुनते नहीं कोई बात ।

Abhivyakti Deep - अभिव्यक्ति दीप दीपक कुमार भानरे

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हाइकू 

१ -ना किसी ने

कविता को समझा 

 हुई बेकल

२- साझा रहना

किसी से ना बांटना

मन दुखता 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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भ्रमणकारी पाँव मन के 

आज मन मेरा 

मुसाफ़िर फिर चला है।

भागता अपने 

मुताबिक़ मनचला है॥


कह रही हूँ मान जा पर

वो मेरी सुनता नहीं है।

भावनाओं की मेरे वो 

कद्र अब करता नहीं है॥

जिज्ञासा की जिज्ञासा 

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शादी में गाए जाने वाले पांच-पांच बिंदायक, घोड़ी और भात गीत 

आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल 

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संतुलन 

खड़ी हुई हूँ एक पैर पर

संतुलन बनाए !

जानते हो क्यों ?

सच करने के लिए

अपने सारे सपने ! 

Sudhinama 

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गीत "कंचन का गलियारा है" 

वासन्ती परिधान पहनकर, मौसम आया प्यारा है।
कोमल-कोमल फूलों ने भी, अपना रूप निखारा है।।
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तितली सुन्दर पंख हिलाती, भँवरे गुंजन करते हैं,
खेतों में लहराते बिरुए, जीवन में रस भरते हैं,
उपवन की फुलवारी लगती कंचन का गलियारा है।

कोमल-कोमल फूलों ने भी, अपना रूप निखारा है।।

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आज के लिए बस इतना ही...!

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11 टिप्‍पणियां:

  1. आपका हृदय से आभार आदरणीय. सभी लिंक्स सुंदर पठनीय. सभी ब्लॉगर मित्रों और सहृदय पाठकों, लेखकों को सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की चर्चा में बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों का समायोजन ! मेरी रचना 'संतुलन' को आपने आज की इस चर्चा में स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार प्रस्तुति, आज एक साथ काफी लिंक पढ़ने को मिले सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    काफी समय उपरांत ब्लॉग पर आकर पढ़ना सुखद लगा।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर।

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  6. पतझड़ के बाद बसंत आगमन का बहुत ही सुंदर सृजन।

    "वह हँसता रहा स्वयं पर
    एक व्यंग्यात्मक हँसी " स्वयं पर हंसने वाले विरले ही होते, बहुत सुंदर रचना।

    मुझमें कई सारी कमियाँ हैं
    मैं इंसान को इंसान ही समझता हूँ"
    लाजवाब सृजन।

    फूल तो खुशबू ही देते रहे आदिम युग से
    सिर्फ़ पत्थर ही मिले आग जलाने के लिए
    वाह! लाजवाब रचना।

    उत्साह जगाती सुंदर रचना।

    सुंदर रचना।

    महत्वपूर्ण जानकारी।

    एक से बढ़कर एक पोस्ट। अच्छी चर्चा प्रस्तुति।
    चर्चामंच में मेरी प्रविष्टी को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. विभिन्न रचनाकारों की बहुआयामी रचनाओं से सज्जित उत्कृष्ट अंक। मेरी रचना को स्थान देने के लिया आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर।

    जवाब देंहटाएं
  8. मुझे सम्मिलित करने हेतु आपका हृदय तल से आभार । सभी रचनाओं का अपना अलग माधुर्य है - - शुभकामनाओं सह।

    जवाब देंहटाएं
  9. उम्दा चर्चा |मेरी रचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

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