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रविवार, मई 07, 2023

'समय जो बीत रहा है'(चर्चा अंक 4661)

सादर अभिवादन। 
रविवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।


देखते ही देखते 

सर्र से निकल जाएगा समय,

जब वह निकल जाए,

तो अफ़सोस न रहे 

कि जो फिर कभी 

लौटकर आने वाला नहीं था,

उसे हमने यूं ही जाने दिया.   


आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

उच्चारण: बालकविता "ककड़ी-खीरा, खरबूजा, बहुत रसीले हैं तरबूजा"

सूरज ने है रूप दिखाया।
गर्मी ने तन-मन झुलसाया।।
--
धरती जलती तापमान से।
आग बरसती आसमान से।।
--

समय जो बीत रहा है,

आओ,आख़िरी बूंद तक

उसका रस निचोड़ लें,

उसके बीजों को बो दें,

कहीं व्यर्थ न चला जाए

उसका छिलका भी. 

--

कविता "जीवन कलश": कौन लाया

बन गई, सपनों की, कई लड़ियां,
खिल उठी, सब कलियां,
गा रही, सब गलियां,
कौन लाया, बारिशों के ये सर्द उजाले!
दिन ये ख्वाहिशों वाले!

जगाए हैं किसने......
--
ज़िन्दगी इक बार ही मिलती है, किसे
मालूम उस पार की दुनिया, शीर्षक
हो सकते हैं मुख़्तलिफ़ लेकिन
बहोत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं
होता अफ़सानों में,
सौ फ़ीसद का
सुख है इक
सपना,
--
वक्त की आँधी से
हम डर गए
उसी में
सारे रिश्ते बिखर गए
रिश्तों में
बढ़ती खाइयाँ हैं
जिधर देखो उधर
तनहाइयाँ हैं।
--
तेरा बोध
दुख के समंदर में
देता है सहारा
बस तू ही है मेरी आस
जन्मों की प्यास
मन का उजास।
--
पर आपकी कृपा से भगवन
प्रहलाद भी जनम लेता है
उसी सोच के धरातल पर ।
--
इधर मुक्ति पालो उधर बंधुआ हो लेती है सोच
सबको पता होता है
खुले दिमाग मरीचिका होते हैं
कोई कहता नहीं 
है मगर गुलाम होता है
--
 'इसलिए' 'किसलिए' मिलकर
 रिश्तों को दफ़नाने के लिए
जब गहरी खाई खोदने लगे 
'आप' से 'तुम' और 'तू' पर
ज़बान का लहजा अटक जाए 
'तू'-'तू' के इस खेल में
'मैं' के बीज का अंकुर फूटने लगे 

--

आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 


6 टिप्‍पणियां:

  1. सभी लिंक एक से बढ़कर एक हैं।
    मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए
    आपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर।
    मेरी क्षणिकाओं को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं

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