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गुरुवार, मई 11, 2023

'माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए'(अंक 4662)

सादर अभिवादन। 
गुरुवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।


उस दिन के बाद लौट के वो घर नहीं गया,
माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए.

बापू की शेरवानी जो पहनी तो यूँ लगा,
हमको सम्भालते थे जो कन्धे चले गए.

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

उच्चारण: बालगीत "मिट्टी से है बनी सुराही"


छोटी-बड़ी और दरम्यानी,

सजी हुई हैं सड़क किनारे।

शीतल जल यदि पीना चाहो,

ले जाओ सस्ते में प्यारे।

कभी न पीना फ्रिज का पानी

बीमारी देता दुखदायी।

बिन बिजली के चलती जाती,

देशी फ्रिज होती सुखदायी।।

-- 

स्वप्न मेरे: शम्मा बुझी तो उड़ के पतंगे चले गए ...

--महँगे बिके जो लोग चमकते रहे सदा,

सोने के दिल थे जिनके वे मंदे चले गए.

मरना किसी के इश्क़ में जल कर ये अब नहीं,
शम्मा बुझी तो उड़ के पतंगे चले गए.
--

अग्निशिखा : : आधी रात - -

झिझक कैसी, आईना पूछता है आधी रात 

बेलिबास हैं सभी नक़ाबपोश यहाँ 
कह भी जाओ अपनी दिल 
की बात, इतना भी 
घुमावदार नहीं 
ज़िन्दगी,

--

 था एक वादा

साथ चलते -- चलते क्यूँ फासले हो गये
पास रहते -- रहते क्यूँ हादसे हो गये
*
था एक वादा फलक तक साथ चलने का
एक आँधी चली के अलग काफले हो गए

--

मन के मोती: कितने विवश हैं हम

खेत में खड़ी फसल पर

ओलों की मार

आकाश में उड़ते बादलों

से बारिश की मनुहार

बीज बुआई के बाद

बारिश की आस

नदियों के सिमटते आकार

--

सपनों का सौदा नहीं करते।

कमरे की दीवारें

ये छत, लाल पर्दा

सब मुझे घूरते हैं

सब जानने की कोशिश

में लगे हैं 

कि ये अकेला 

तन्हा होकर भी 

उनके साथ क्यों है

--

देबोराह टौसन किलडे की कविताएं

जैसे देखा उसने उसे, दिखी 

एक देवी, एक रानी!

सम्पूर्ण, वह थी सब कुछ

जिसकी कामना कर सकता था 

कोई पुरुष!

--

Nayisoch: ये माँ भी न !...

ट्रेन में बैठते ही प्रदीप ने अपनी बंद मुट्ठी खोलकर देखी तो आँखों में नमी और होठों में मुस्कुराहट खिल उठी ।  साथ बैठे दोस्त राजीव ने उसे देखा तो आश्चर्यचकित होकर पूछा, "क्या हुआ ? तू हँस रहा है या रो रहा है " ? 

--

काथम: गिल्लू

सोलहवां साल यानी सोलह बसंत...यह उम्र कितनी मायावी है, उसे उम्र के इसी विशेष दौर में पहुँचकर या गुजरते हुए जाना सकता है। छलावे से भरी हुई इस उम्र में दुनिया बड़ी हसीन और रंगीन लगती है,  ठीक उस इन्द्रधनुष की तरह जो वर्षा की हल्की फुहार के बाद अचानक अनन्त आकाश के नीले विस्तार में धनुषाकार आकृति लिए टंकित हो जाता है।

--

आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए
    आपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी लिंक्स शानदार। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार मेरी ग़ज़ल को आज पटल पर जगह देने के लिए … सुंदर चर्चा आज की

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर लिंकों से सजी बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति
    मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर लिंक्स चयन,सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा लिंक्ससे सजा आज का अंक |
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

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