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गीत "निम्बौरी आयीं है अब नीम पर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जीवन जब उपहार बनेगा हम ध्यान अर्थात् भीतर जाकर विचार करने से घबराते हैं, ऐसे विचारों से जो हमारे भीतर की कमियों को उजागर करते हैं. हम उस दर्पण में देखना नहीं चाहते जो हमें कुरूप दिखलाये तभी कठिन विषयों से भी हम घबराते हैं, जो हम जानते हैं वह सरल है पर उसी को पढ़ते-गुनते रहना ही तो हमें आगे बढ़ने से रोकता है. जब कोई हमें अपमानित करता है तब वह हमारा निकष होता है, प्रभु से प्रार्थना है कि वह उसे हमारे निकट रखे ताकि हम वही न रहते रहें जो हैं बल्कि बेहतर बनें. स्वयं की प्रगति ही जगत की प्रगति का आधार है, हम भी तो इस जगत का ही भाग हैं. हम यानि, देह, मन, बुद्धि। आत्मा तो पूर्ण है उसी को लक्ष्य करके आगे बढ़ना है. उसी की ओर चलना है चलने की शक्ति भी उसी से लेनी है. आत्मा हमारी निकटतम है हमारी बुद्धि यदि उसका आश्रय ले तो वह उसे सक्षम बनाती है अन्यथा उद्दंड हो जाती है. आत्मा का आश्रित होने से मन भी फलता फूलता है, प्रफ्फुलित मन जब जगत के साथ व्यवहार करता है तो कृपणता नहीं दिखाता समृद्धि फैलाता है. जीवन तब एक शांत जलधारा की तरह आगे बढ़ता जाता है. तटों को हर-भरा करता हुआ, प्यासों की प्यास बुझाता हुआ, शीतलता प्रदान करता हुआ, जीवन स्वयं में एक बेशकीमती उपहार है, उपहार को सहेजना भी तो है. डायरी के पन्नों से अनीता
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शादी में तोरण क्यों मारा जाता है और तोरण पर चिड़िया क्यों होती है?
हिन्दू समाज में शादी में तोरण मारने की एक आवश्यक रस्म है। जो सदियों से चली आ रही है। लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते कि यह रस्म कैसे शुरू हुई। दंत कथानुसार कहा जाता है कि एक तोरण नामक राक्षस था जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था तथा दूल्हा जब द्वार पर आता तो उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था। एक बार एक राजकुमार जो विद्वान एवं बुद्धिमान था शादी करने जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की। बताया जाता है कि तब से ही तोरण मारने की परंपरा शुरू हुई अब इस रस्म में दुल्हन के घर के दरवाजे पर लकड़ी का तोरण लगाया जाता है, जिस पर राक्षस के प्रतीक के रूप में एक तोता होता है। बगल में दोनों तरफ छोटे तोते होते हैं। दूल्हा शादी के समय तलवार से उस लकड़ी के बने राक्षस रूपी तोते को मारने की रस्म पूर्ण करता है।--
चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)
चतुर्भुज मंदिर (Chaturbhuj Temple) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ओरछा नगर में एक भगवान विष्णु का मन्दिर है। ओरछा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित है। यह मंदिर जटिल बहुमंजिला संरचना वाला है तथा मंदिर, दुर्ग एवं राजमहल की वास्तुगत विशेषताओं से युक्त है। यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। चतुर्भुज मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है जो अपनी वह अद्भुत वास्तुकला के लिए जाना जाता है।
चतुर्भुज मंदिर का निर्माण ओरछा के राजा मधुकर शाह ने 1558 और 1573 के बीच बनवाया था। मधुकर शाह ने अपनी पत्नी रानी गणेश कुमारी के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था, जो भगवान राम की भक्त थीं।
इस भव्य मंदिर को ओरछा के छोटे शहर के लगभग किसी भी कोने से देखा जा सकता है। मंदिर एक विशाल पत्थर के मंच पर बनाया गया है और दीवारों में जटिल डिजाइन और धार्मिक प्रतीक, विशेष रूप से कमल हैं। यह बड़ा पत्थर का मंच है जो इसे अतिरिक्त ऊंचाई प्रदान करता है और इसलिए यह एक बड़े टॉवर की तरह दिखाई देता है। मंदिर के तहखानों के भीतर विष्णु की एक रत्न और रेशम से सजी मूर्ति है। चतुर्भुज का अर्थ है चार भुजाओं वाला और कोई इसे मूर्ति में चित्रित देख सकता है। सर्पिल गुंबदों को न केवल बाहर से जटिल रूप से उकेरा गया है, बल्कि आंतरिक नक्काशी भी उतनी ही उत्तम है। मंदिर का निर्माण राजा मधुकर शाह ने शुरू किया था और उनके बेटे बीर सिंह देव ने पूरा किया था।
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जीवन एक पेड़ जैसा
पहले पत्ते निकलते
फिर डालियाँ हरी भरी होतीं
वायु के संग खेलतीं
धीरे धीरे कक्ष से
कलियाँ निकलतीं
पहले तो वे हरी होतीं
फिर समय पा कर
खिलने लगतीं तितली आती
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"जी उससे बात करता हूँ।"
"उसे समझाना पंक भाल पर नहीं लगाया जा सकता।"
"कहाँ खो गये पापा?"
"अतीत में! तुम्हारे देह पर वकील का कोट और तुम्हारे मित्र की वर्दी तथा तुम्हारे स्वागत में आस-पास के कई गाँवों की उमड़ी भीड़ को देखकर लगा, पंक में पद्म खिलते हैं।"
"फूलों की गन्ध क्यारी की मिट्टी से आती ही है।"
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बदनसीब को बद्दुआ लग गई ( हास-परिहास )
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न रहो यूँ बेहर्फ़ न रहो यूँ बेहर्फ़, सहमे सहमे, फ़ासलों में तुम,
नूर महताब वादियों में यूँ ही ठहर न जाए कहीं,
हम कब से हैं खड़े, अपनी साँसों को थामे हुए -
ये गुलदां ए ज़िन्दगी, यूँ ही बिखर न जाए कहीं,अग्निशिखा
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केजरीवाल पापसंकट में फंस गए हैं (अब 'धर्मसंकट' शब्द उनके मामले में तो रुचता नहीं 😊)। गुजरात में चुनाव के वक्त उनके द्वारा जनता को कहे गये शब्द 'कॉन्ग्रेस को वोट मत देना। वह पार्टी तो अब ख़त्म हो गई है। आपका वोट बेकार चला जाएगा। हमें वोट देना, गुजरात में हम बहुमत से आ रहे हैं', कॉन्ग्रेस अब तक भूली नहीं है। सम्भवतः कॉन्ग्रेस ने हर अवसर पर अपना विरोध देख कर ही कर्नाटक-विजय के बाद किये गये शपथ-गृहण समारोह में केजरीवाल को नहीं बुलाया था।
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अगस्त ९८यूँ ही नहीं हो जायेगा,मेरे सफ़र का खात्मा।मैं कोई चिराग नहीं जो बुझा तो अँधेरा हो जायेगा।
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वो खड़े थे मैं खड़ी थी,
आँख धरती पर गड़ी थी।
भाव अधरों पर थिरककर,
काढ़ते थे मुस्कियाँ।
याद अब भी आ ही जातीं
चाय की वो चुस्कियाँ॥
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मैंने जो कविता लिखी है,
उसे अभी पैना कर रहा हूँ.
जो सुनना नहीं चाहते,
कान बंद कर लें अपने,
पर जो सुनना चाहते हैं,
वे भी सावधान रहें,
अच्छी तरह सोच लें,
क्या ऐसी कविता सुन सकेंगे,
जो दिल में चुभ जाय
तीर की तरह?
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विषकन्या | राज कॉमिक्स | अनुपम सिन्हा , तरुण कुमार वाही
कहानी
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एक ग़ज़ल - जिसकी गीता वही अदालत में यह देश का दुर्भाग्य है की सनातन धर्म सबसे प्राचीन होते हुए भी प्रभु श्रीराम, शिव. भगवान श्री कृष्ण पर अदालतों में मुक़दमे चल रहे हैँ. यूरोप अमेरिका में कभी अदालत में ईसा मसीह को सबूत नहीं देना पड़ता. आजादी के समय ही यह तय हो जाना चाहिए था कि भारत का आदर्श बाबर होगा या श्री राम. भारत का विभाजन ज़ब धर्म के आधार पर हुआ तो भारत हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं संविधान और विभाजन दोनों हिन्दुओं के साथ षड्यंत्र था जिसके कारण आज शिव और कृष्ण का अस्तित्व संकट में है. क्या ऐसा कोई देश है जहाँ ईश्वर अदालत में हो जिसकी गीता की शपथ राष्ट्रपति और न्यायधीश भी लेते हैँ. संविधान का पुनरलेखन होना चाहिए हमारा अधिकार है हिन्दू राष्ट्र होना. ताकि ईश्वर को देश की अदालतों में जलील न होना पड़े. केंद्र सरकार कड़ा क़ानून बनाकर मुगलों द्वारा ध्वस्त मंदिरों का अधिग्रहण करे और उनका नव निर्माण.हर हर महादेव.
अब तो अपना निज़ाम है साहब छान्दसिक अनुगायन
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उठे वे तो जबरन गिराने चले
कुछ अपने ही रिश्ते मिटाने चले
अपनों की नजर में गिराकर उन्हें
गैरों में अपना बताने चले ।।
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अश्लीलता के बहाने .. बस यूँ ही ...
आज के शीर्षक से आप भ्रमित ना हों, हम अपनी बतकही में आपके समक्ष कुछ भी ऐसा-वैसा अश्लील नहीं परोसने वाले .. शायद ...
गत दिनों मैंने "बस यूँ ही ..." नामक अपनी एक कहानी प्रसार भारती के तहत आकाशवाणी, देहरादून के माध्यम से पढ़ी थी। जिसे बहुत से अपने शुभचिन्तक लोग अपने-अपने मोबाइल में उनके भिन्न 'Android' होने के कारण 'App' - "Newsonair" को नहीं 'Download' कर पाने की वजह से उस कहानी का प्रसारण नहीं सुन पाए थे। अफ़सोस भी हुआ था, दुःख भी। तो आज उसकी 'रिकॉर्डिंग' यहाँ साझा कर रहे हैं। पर यह कहानी केवल और केवल आर्थिक रूप से मध्य या निम्न-मध्य वर्ग के लोगों को सुनने के लिए है और .. आर्थिक रूप से उच्च वर्ग के लोगों के लिए सुनना पूर्णरूपेण निषेध है .. बस यूँ ही ... सोच रहा हूँ कि .. उन्हें बुरी लग जाए कहानी की बातें .. शायद ...
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जीवन हर पल बहता जाता
गुनता रहता खुद को
अलबेली नदी सरीखा
पर सुनो न ...
तटबंधों की पुकार भूल जाती हूँ!
निवेदिता श्रीवास्तव निवी
लखनऊ
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कोई बनता जाति शिरोमणि,
कहता हम गद्दी के हकदार ।
कोई गाये यश पुरखों का ,
बन जाये गद्दी दावेदार।।
अशर्फी लाल मिश्र |
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आज के लिए बस इतना ही...!
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जी ! सुप्रभातम् वाले नमन संग आभार आपका .. आज अपने मंच पर अपनी अनूठी प्रस्तुति में मेरी बतकही को स्थान देने के लिए .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंआपने सही बात कही है अपनी भूमिका में .. मुझे भी आपका पोस्ट 'स्पैम' में ही मिला ..
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! एक से बढ़कर एक पठनीय रचनाओं से सुसज्जित श्रम साध्य प्रस्तुति, डायरी के पन्नों से को भी इसमें शामिल करने हेतु ह्रदय से आभार!
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जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.आभार
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