शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए चंद चुनिंदा रचनाएँ-
शाख पर खिलते मुकुल पर
तितलियों ने गीत गाये
भूरि राँगा यूँ बिखरकर
पर्व होली का मनाये
ये कलाकृति पूछती है
रंग किसने भर दिए।।
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चाँद छूने का बस इक इरादा ही काफ़ी
दिल की गहराइयों से जो निकला हो
श्वासें न खर्च हों समेटते उदासियों को
जबकि हाथ कोई प्यार से सिर पर रखे!
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शायरी | अजीब लोग हैं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
*****अनगिनत लब ए तिश्ना, तकते हैं चाँद को,
ज़ुल्फ़ों की घटाएं, यूँ रुख़ पे गिराया न करो,
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मन मुझे देखता है, देखता जाता है. मुस्कुरा कर पूछता है, 'तुम चाहती क्या हो आखिर?'
मैं अपनी हथेलियों को देखते हुए कहती हूँ, एक कप चाय पीना चाहती हूँ, पिलाओगे.'
वो चादर ओढ़कर सो जाता है. मैं चाय की इच्छा लिए खिड़की के बाहर टंगे आसमान को देखने लगती हूँ.
आसमान खूब नीला है.
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श्री चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर (सिद्धपुर) सीहोर | स्वयं भू गणेश |
इस मंदिर से जुड़ी किवदंतियाें में यह उल्लेखित है कि पेशवा द्वारा पार्वती नदी से निकाली गई यह शोभायात्रा नियत स्थान पर पहुंचने से पूर्व ही रूक गई, जिसके लिए पूरे प्रयास कई दिन तक चलते रहे, लेकिन सभी प्रयास असफल ही रहे और रथ के पहिये धसने लगे। रथ को निकालने के तमाम प्रयासाें के बीच जब पेशवा बाजीराव पस्त होकर थक हार गए तब उन्होंने सेना सहित वहीँ रात्रि विश्राम किया।*****रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! सभी रचनाकारों व पाठकों का अभिनंदन, चर्चा मंच के इस विविधरंगी अंक में 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंदेरी के लिए हृदय से क्षमा प्रार्थी हूं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना की पंक्ति को शीर्ष स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई, सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
पठनीय सूत्रों से परिपूर्ण अंक।
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