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मंगलवार, मई 16, 2023

"काहे का अभिमान करें" (चर्चा-अंक 4663)

मित्रों!

मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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आज देखिए कुछ अद्यतन लिंक!

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गीत "जमा न ज्यादा दाम करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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पहले काम तमाम करें।
फिर थोड़ा आराम करें।।
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आदम-हव्वा की बस्ती में,
जीवन के हैं ढंग निराले।
माना सबकुछ है दुनिया में,
पर न मिलेगा बैठे-ठाले।
नश्वर रूप सलोना पाकर,
काहे का अभिमान करें।
पहले काम तमाम करें।
फिर थोड़ा आराम करें।।

उच्चारण 

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उसने कहा 

"उस महल की नींव में

न जाने कितने ही मासूम परिंदे 

दफ़नाए गए हैं 

महल की रखवाली के लिए

कितना कुछ दफ़न है ना 

हमारे इर्द-गिर्द।" 

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मैं का अंकुर

 
'इसलिए' 'किसलिए' मिलकर
 रिश्तों को दफ़नाने के लिए
जब गहरी खाई खोदने लगे 
'आप' से 'तुम' और 'तू' पर
ज़बान का लहजा अटक जाए 
'तू'-'तू' के इस खेल में
'मैं' के बीज का अंकुर फूटने लगे 
भावों की नदी अविरल 
दिन-रात उसे सींचने लगे  
तब तुम थोड़ा-सा
लाओत्से को पढ़ लेना।

अनीता सैनी दीप्ति

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संदर्भ 

संदर्भ बदलते ही 
अर्थ बदल जाते हैं । 
बात करो मत 
शाश्वत सत्य की ! 
एक ही क्षण में  
मूल्य बदल जाते हैं । 

नमस्ते namaste 

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माँ 

एहसास मुझको है अनेकों 

है अनगिनत अनुभूतियाँ

है अनोखी  पुलक भरी

 ह्रदय  में  स्मृतियाँ.

स्नेहिल स्मरण से भरे हैं

ये मेरे मन और प्राण

माँ तुम्ही से है भरे 

BHARTI DAS 

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एक इसने और एक मैंने 

एक इसने

और एक मैंने

दोनों ही नहीं सुनी

मौसम की भविष्यवाणी 

और निकल पड़े 

दुनिया निहारने

उधेड़-बुन 

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किताब परिचय: देवकी -  अनघा जोगलेकर 

किताब परिचय: देवकी - अनघा जोगलेकर | Kitab parichay: Devki - Angha Joglekar
मेरे कक्ष के बाहर से कुछ ध्वनियाँ आने लगीं। सम्मिलित ध्वनियाँ…परंतु धीमे स्वर में। जैसे कई लोग आपस में हँस-बोल रहे हों। शनैः शनैः वे ध्वनियाँ समीप आती-सी प्रतीत होने लगीं। मैं उत्सुकतावश द्वार तक जा पहुँची।
बाहर एक छोटा-सा जनसमूह खड़ा था, जिसमें अधिकांश स्त्रियाँ थीं और उनके साथ उनके बाल गोपाल। वे स्त्रियाँ मुझे देखते ही अनुशासित हो गईं और अपने बच्चों को भी शांत रहने का संकेत करने लगीं। वे मेरे सम्मुख शांत खड़ी थीं। उनके मुख उज्ज्वल थे और मुख पर असीम आनंद की शांति थी। 

एक बुक जर्नल 

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कृतियाँ - न्यायालय में महामना, चौरी -चौरा एवं महामना एट बार 

    • इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट एवं पूर्व एडिशनल सॉलिसीटर श्री अशोक मेहता जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है. अधिवक्ता के रूप में जितनी ख्याति है उतनी ही साहित्य और समाज के प्रति उनका लगाव है. लम्बे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े हैँ. काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से क़ानून की पढ़ाई करने के कारण महमना से भी बहुत लगाव है. आज ज़ब मैं मिलने गया तो तीन पुस्तकें मुझे स्नेहवश मिलीं एक चौरी चौरा क़ानून की दृष्टि में और दो पंडित मदन मोहन मालवीय के अधिवक्ता के रूप में और उनके कुछ महत्वपूर्ण निर्णय भी शामिल हैँ. इलाहाबाद उच्च न्यायालय विद्वानों की खान रहा है देश के कुछ चुनिंदा उच्च न्यायालयों में इसकी गिनती होती है. न्यायालय में महामना साहित्य भंडार से बाकी दो पुस्तकें तिरुपति इंटरप्राइजेज से प्रकाशित हुई हैँ 30 अप्रैल को हाईकोर्ट बार में माननीय न्यायमूर्ति श्रीमती सुनीता अग्रवाल जी ने इसका विमोचन भी किया था. अशोक मेहता जी को उनकी इन अनमोल कृतियों के लिए बधाई और हार्दिक शुभकामनायें
 

छान्दसिक अनुगायन 

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सम्मान समारोह और मातृ दिवस 

सम्मान समारोह और मातृ दिवस

कल का दिन मेरे लिए दोहरी खुशियों वाला रहा और बहुत ज्यादा व्यस्त रहा। बहुत विशेष दिन था मेरे लिए, एक तरफ पुस्तक "रूपा ओस की एक बूंद" के लिए मुझे सम्मान मिला तो दूसरी तरफ सम्मान पाकर शाम घर पहुंची तो मातृ दिवस पर यानी मदर्स डे पर बच्चों द्वारा सरप्राइस भी मिला। वाकई में कल का दिन बहुत सुखद रहा। 

Rupa Oos Ki Ek Boond... 

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नेत्र बिम्ब 

शिरा उपशिराओं से बह कर वेदना स्रोत, एक दिन
हृत्पिंड को कर देगी पाषाण, तब कदाचित
जीवन हो जाएगा सभी चिंताओं से
मुक्त, उसी एक बिंदु पर कहीं
सुप्त विद्रोह का होता है
उदय, तब भावनाओं
में कहीं जा कर
उभरते हैं
आग्नेय तूफ़ान
अग्निशिखा 

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कविता के रूप अनूप 

 कविता के रूप अनूप मुझे बहुत लुभाते 
सुनते ही मन में खुशी बढाते 

जब तक पूरी ना  हो कोई सुन नहीं पाता

जब तक नया रूप ना हो आनंद नहीं आता 

कोई  सुनना नहीं चाहता | 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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बालकविता "ककड़ी, खीरा- खरबूजे"  

गर्मी अपने पूरे यौवन पर है।
ऐसे में मेरी यह बालरचना 
आपको जरूर सुकून देगी!
पिकनिक करने का मन आया!
मोटर में सबको बैठाया!!
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पहुँच गये जब नदी किनारे!
खरबूजे के खेत निहारे!!
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ककड़ीखीरा और खरबूजे!

कच्चे-पक्के थे तरबूजे!!

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माँ 

माँ
उनकी स्मृतियों को नमन 

घर के दालान को खाली कर
पांव फटते अंधयारे में
पहली रेलगाड़ी से
गाँव से लेकर आया था तुम्हे माँ
तुम्हारी कमजोर आँखों ने
कितना भर देखा होगा 

कावेरी 

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आखिर जाने ऐसा क्या पा लेंगे! 

मौसम ठंडा है या गरमनहीं पता. जहाँ हूँ वहाँ अच्छा लग रहा है.

अभी अभी आँख लगी थी या अभी अभी आँख खुली हैसमझ नहीं पा रहा हूँ.

पूरा बदन दर्द से भरा है. दिल नहींबस बदन. ज्यादा काम की थकावट. १४ घंटे काम के दिन.

त्यौहारों के दिन तो आते ही रहते हैं. कभी कोई दिनकभी कोई दिन. छुट्टियाँ ही छुट्टियाँ मिल जाती हैं तो समझो आराम के दिन.

आराम के पहले थकान जरुरी है वरना आराम का क्या मजा

उड़न तश्तरी .... 

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बस नाम तुहारा ! 

जन्मा मुझे ,मैं जो भी हूँ उसने ही बनाया
खाना, लिखना , बोलना उसने ही सिखाया
सही गलत की उसने ही पहचान बताई
चलना है मुझे जिसपे सही पथ भी दिखाया ।।1 

ज्योति-कलश 

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उदासी की हल्दी 

कहा था उसने...

सुनो 

बात ...क्यों आजकल तुम

बेबाक यूं  करती नहीं ?

हल्दी  ये उदासी की  

क्यों इन आंखों से 

ढलती नहीं ? 

आपका ब्लॉग 

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यू ऽ ऽ ऽ ऊ नॉटी मिनिस्टर! 

आज दादा की 6ठवीं अवसान तारीख और पाँचवीं बरसी है। उन्हें याद करते हुए एक रोचक घटना का आनन्द लीजिए। 

यह 1969 से 1972 के कालखण्ड की बात है। दादा पहली बार विधायक बने थे और श्री श्यामाचरण शुक्ल के मुख्य मन्त्रित्ववाली, मध्य प्रदेश सरकार में सूचना-प्रकाशन राज्य मन्त्री थे। श्री के. सी. रेड्डी (पूरा नाम क्यासम्बली चेंगलराय रेड्डी) मध्य प्रदेश के राज्यपाल थे। रेड्डी सा’ब, मैसूर प्रान्त (आज का कर्नाटक) के पहले मुख्य मन्त्री थे। वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे। वे अभिरुचि सम्पन्न व्यक्ति थे। दादा से उनकी खूब पटती थी। इतनी कि वे यदा-कदा, कभी-कभार बिना काम, बिना बात के भी दादा को बुला लिया करते थे। सड़कछाप भाषा में कहें तो, रेड्डी सा’ब दादा पर लट्टू थे। 

एकोऽहम् 

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लाडली दुल्हन बनी है 

लाडली दुल्हन बनी है।


माँग में झूमर लटकता,

माथ पे बेंदा दमकता।

नाक नथिया हँस रही है,

कान पे कुंडल बहकता।

कह रहा है फुसफुसाके,

हाय दिल पे आ ठनी है॥

लाडली दुल्हन बनी है॥

जिज्ञासा की जिज्ञासा 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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11 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चा पूरी पत्रिका है । विविध विषय । रोचक प्रस्तुति । सभी रचनाकारों का अभिनंदन । शास्त्री जी, धन्यवाद । इस दिलचस्प अंक में जगह दिलाने के लिए । नमस्ते ।

    जवाब देंहटाएं
  2. शास्त्रीजी, अभी तक आधी रचनाएँ पढ़ी हैं. मज़ा आ रहा है. धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  3. हार्दिक आभार आपका. सभी लिंक्स अच्छे

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरे ब्लॉग पर अधिकतर कमेंट्स गूगल स्पेम कर दे रहा है कई बार बहुत पुराने कमेंट्स को स्पेम में शो कर रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरे द्वार किये गये सारे कमेंट स्पैम में जा रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, मेरे ब्लॉग पर खुद मेरे ही कमेंट्स स्पैम में जा रहे हैं और आपके बहुत पुराने कमेंट्स स्पैम में अब दिख रहे हैं 🙏

      हटाएं
  6. बहुत सुन्दर चयन, हार्दिक बधाई ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. लिंकों से पिरोई हुई बहुत ही सुंदर प्रस्तुति और इसमें मेरे लिंक को स्थान देने के लिए आपका तहे दिल से आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही बढ़िया ... विविध रचनाओं को पढ़कर आनंद मिला
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार महोदय 🙏

    जवाब देंहटाएं

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