मित्रों
चर्चा मंच पर सप्ताह में तीन दिन
(रविवार,मंगलवार और बृहस्पतिवार)
को ही चर्चा होगी।
रविवार के चर्चाकार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,
मंगलवार के चर्चाकार
बृहस्पतिवार के चर्चाकार
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रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वन्दना
"बनें सब काज सुन्दर"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कह दिया मेरे सुमन ने आज सुन्दर।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
ज्ञान की गंगा बही, विज्ञान पुलकित हो गया,
आकाश झंकृत हो गया, संसार हर्षित हो गया,
नाम से माँ के हुआ आगाज़ सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
बेसुरे से राग में, अनुराग भरने को चला हूँ,
मैं बिना पतवार, सरिता पार करने को चला हूँ,
माँ कृपा करदो, बनें सब काज सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
वन्दना है आपसे, रसना में माँ रस-धार दो,
लेखनी चलती रहे, शब्दो को माँ आधार दो,
असुर भागें, हो सुरो का राज सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
ज्ञान की गंगा बही, विज्ञान पुलकित हो गया,
आकाश झंकृत हो गया, संसार हर्षित हो गया,
नाम से माँ के हुआ आगाज़ सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
बेसुरे से राग में, अनुराग भरने को चला हूँ,
मैं बिना पतवार, सरिता पार करने को चला हूँ,
माँ कृपा करदो, बनें सब काज सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
वन्दना है आपसे, रसना में माँ रस-धार दो,
लेखनी चलती रहे, शब्दो को माँ आधार दो,
असुर भागें, हो सुरो का राज सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
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सजाकर जो पलक पर आँसुओं का हार रखता है
कहोगे क्या उसे जो तिफ़्ल ख़िदमतगार रखता है
औ तुर्रा यह के दूकाँ में सरे बाज़ार रखता है...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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पूस की रात
दुश्वारियों भरी है रात, पूस की मनहूस रात।
सर्दी यह पूस की बहुत ही सताती है,
रोके नहीं रूकती सरकती ही आती है।
रहते हैं कपड़ों से लदे फदे-
फिर भी गात कँपकपात...
पूस की....
Jayanti Prasad Sharma
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"पढ़ना-लिखना मजबूरी है"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मुश्किल हैं विज्ञान, गणित,
हिन्दी ने बहुत सताया है।
अंग्रेजी की देख जटिलता,
मेरा मन घबराया है...
नन्हे सुमन पर
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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एक ग़ज़ल : गो धूप तो हुई है ....
गो धूप तो हुई है , पर ताब वो नहीं है
जो ख़्वाब हमने देखा ,यह ख़ाब वो नही है...
आपका ब्लॉग पर
आनन्द पाठक
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सतरंगी कल्पनायें
उड़ती गगन में मेरी सतरंगी कल्पनायें
झूलती इंद्रधनुष पे
बहती शीतल पवन सी ठिठकती
कभी पेड़ों के झुरमुट पे...
Rekha Joshi
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नव वर्ष
कतरा कतरा बन गिरता रहा,
मेरे वक्त का एक एक पल
लम्हा लम्हा बन ढलता रहा.
अभिव्यंजना पर
Maheshwari kaneri
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गीत
"धावकमन बाजी जीत गया"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपाधापी की दुनिया में,
ऐसे मीत-स्वजन देखे हैं।
बुरे वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई सुमन देखे हैं...
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खिचड़ी,
मकसूद भाई के घर की
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय)
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छोटे से अरमान
छोटे छोटे अरमानों की धूप समेटे
धुंध को चीर बिखर रही
कई नई तेजस ओजस्वी किरणें
सफर के इस शिखर को
चूमने बेताब हो रही...
RAAGDEVRAN पर
MANOJ KAYAL
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चल अम्बर अम्बर हो लें..
चल अम्बर अम्बर हो लें..
धरती की छाती खोलें..
ख्वाबों के बीज निकालें..
इन उम्मीदों में बो लें..
SB's Blog पर
Sonit Bopche
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समा उदासी का
Akanksha पर
Asha Saxena
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गाँव का स्टेशन
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सुन्दर रविवारीय अंक।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा आज की
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाएं शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
hmesha ki trh sundar chrcha meri satrangi kalpanaon ko shamil karne pr hardik abhar
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा संग्राहलय सभी अच्छे ब्लागों का संग्रह एक साथ सराहनीय कार्य
जवाब देंहटाएंमेरे लिंक को शामिल करने के लिए आपका आभार
बहुत सुंदर रविवारीय चर्चा सूत्र.
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
सुन्दर लिंक्स. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय चर्चा प्रस्तुति ..आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों के साथ सुन्दर रविवारीय चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा शास्त्री जी ! सप्ताह में केवल तीन दिन ही चर्चा होने की सूचना कुछ मायूस कर गयी ! प्रतिदिन सुबह इसे देखने की आदत पड़ चुकी है !
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