मित्रों
चर्चा मंच पर सप्ताह में तीन दिन
(रविवार,मंगलवार और बृहस्पतिवार)
को ही चर्चा होगी।
रविवार के चर्चाकार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,
मंगलवार के चर्चाकार
बृहस्पतिवार के चर्चाकार
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बृहस्पतिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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यह नागार्जुन का अपमान
खगेन्द्र ठाकुर से पुष्पराज की बातचीत अंधेरा बढ़ता जा रहा था और हम जवान हो रहे थे. तमाम दीप बुझते जा रहे थे. अभी दो दीप जल रहे थे, जिनकी जलती-बुझती लौ से अपनी आँखें रौशन हो रही थी. एक दीप था इप्टा तो दूसरा दीप था जनशक्ति. खगेंद्र ठाकुर इप्टा और जनशक्ति के सांस्कृतिक- लोक-संसार में ही खगेन्द्र ठाकुर को पहली बार अपनी आँखों से देखा था. नागार्जुन के बाद बिहार के जिस लेखक ने बिहार के ग्राम्यांचलों, कस्बाई सभाओं में सबसे ज्यादा शिरकत की हो, वे मेरी जानकारी में खगेन्द्र ठाकुर ही हैं...
Randhir Singh Suman
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'आहुति" लिखती है...
मैंने आज खुद को किताबो के, बाजार में देखा,
मोल मिल गया उन शब्दों को,
जो मेरे लिए अनमोल थे, सभी पढ़ रहे है तुमको,
इक सिवा तुम्हारे,सभी जानते है,
तुमको,इक तुम्ही अंजान रहे...
'आहुति' पर
Sushma Verma
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बालकविता
"सारा दूध नही दुह लेना"
मुझको भी कुछ पीने देना।
थोड़ा ही ले जाना भैया,
सीधी-सादी मेरी मैया।
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प्रेम- विवाह से पहले या बाद......
बदलते दौर में सब कुछ अलग सूरत अख्तियार करता जा रहा है.....यहाँ तक की भावनाएं भी बदल गयी हैं....सोच तो बदली ही है| प्रेम जैसा स्थायी भाव भी कुछ बदला बदला लगने लगा है... दैनिक भास्कर की पत्रिका अहा! ज़िन्दगी में प्रकाशित मेरी लिखी आवरण कथा आपके साथ साझा कर रही हूँ|
उम्मीद है आपको पसंद आयेगी....
expression
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दोहे
"विश्व हिन्दीदिवस-मान रहा संसार"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दुनिया में हिन्दीदिवस, भारत की है शान।
सारे जग में बन गयी, हिन्दी की पहचान...
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विश्व हिन्दी दिवस
और शब्द क्रमंचय संचय
प्रयोग सब करते हैं
समझते एक दो हैं
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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निर्धन की क्या जाति बता दो -
वेदन का क्या संवत्सर क्या है
निर्धन की क्या जाति बता दो -
क्या दुर्जन का धर्म है वर्णित
सज्जन की क्या जाति बता दो...
udaya veer singh
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बालकविता
"छोटा बस्ता हो आराम"
मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।
मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है...
बोझ उठाना है लाचारी।।
मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है...
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मन को बहुत लुभाने वाली,
तितली रानी कितनी सुन्दर।
भरा हुआ इसके पंखों में,
रंगों का है एक समन्दर...
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माँ सुनो...
आँखों में अब परी नहीं आती,
तुम्हारी थपकी नींद से कोसों दूर है,
आज भूख भी कैसी अनमनी सी है
तुम्हारी पुकार की आशा में,
"मुनिया...खाना खा ले"...
मानसी पर
Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी
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आतिशे उल्फ़त को हर कोई हवा देने लगे
ख़ैर जब जब मैं रक़ीबों की मनाया मुझको
तब गालियाँ वे सह्न पर मेरे ही आ देने लगे ...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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मातम भी तो मज़ाक़ है
*मैं से हम होते जाओ
मांगो, मिलजुलकर खाओ
सुबह को उठ-उठकर जाओ
शाम को चुप-चुप लौट आओ...
Sanjay Grover
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शब्दों के तुम कारीगर
जो हो भूल कोई मुझसे प्रिये
तुम उन्हें अनदेखा किया करो
न मुँह मोड़ो यूँ छोड़ मुझे तुम
मेरे प्रेम को महसूस किया करो...
♥कुछ शब्द♥ पर
Nibha choudhary
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मुझे रहने दो
मेरे घर मे अकेले
ये बखूबी जनता है मेरे मिज़ाज
जब भी ख्याल बिखरते हैं
बटोर कर सहेज लेता है
उन्हें सजा देता है करीने से...
प्यार पर Rewa tibrewal
बहुत सुंदर चर्चा सूत्र.मुझे भी शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर गुरुवारीय चर्चा अंक । आभार 'उलूक' के सूत्र 'विश्व हिन्दी दिवस और शब्द क्रमंचय संचय प्रयोग सब करते हैं समझते एक दो हैं' को स्थान देने के लिये।
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. शास्त्री,
जवाब देंहटाएंहालाँकि ये कोई रचना नहीं अपितु एक जानकारी मात्र ही थी, फिर भी मेरी ब्लॉग-पोस्ट को यहाँ स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद!
सादर... अमित
पुनिश्च: मेरी सद्यप्रकाशित 'सुपरमून' आपका ध्यानाकर्षित नहीं कर पाई इस बात का दुःख है...आशा है आने वाली रचनाएँ पसंद आएँगी!
क्या बात है भाई साहिब ! इस चर्चा की रचनाएँ सारगर्भित और मार्ग दर्शक हैं !मेरे ब्लॉग की रचना को प्रकाशित कर जो आपने सद्कर्म किया है उसके लिए ढेर सारा धन्यवाद और शुभकामनाएं आभार सहित !
जवाब देंहटाएंसतर्क चयन है - मेरा भी आभार .
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