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गुरुवार, दिसंबर 08, 2022

"घर बनाना चाहिए"(चर्चा अंक 4624)

सादर अभिवादन 

गुरुवार की इस विशेष प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

 शीर्षक और भुमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से 

सिर छिपाने के लिएइक शामियाना चाहिए
प्यार पलता हो जहाँवो आशियाना चाहिए
***

जहां प्यार नहीं वो घर हो ही नहीं सकता
वो सिर्फ मिट्टी और ईंट का मकान होगा
***

 ग़ज़ल "घर बनाना चाहिए"

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



राजशाही महल हो, या झोंपड़ी हो घास की
सुख मिले सबको जहाँ, वो घर बनाना चाहिए
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दाँव भी हैं-पेंच भी हैं, प्यार के इस खेल में
इस पतंग को, सावधानी से उड़ाना चाहिए
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जहां घर होगा वहां एक संगिनी तो होगी ही
 हमारे इस कवि की कल्पना के जैसी 


परखी जिन पारखी निगाहों ने इस नायाब को l

मृगतृष्णा मुराद बन गयी उस जीने की राह को ll


इस धूप की साँझ छाँव बनी थी जो कभी l

बूँद उस ओस की संगिनी सी गुलजार थी ll


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मन के अंधकार को दूर कर

प्रकाश की ओर ले जाती सुन्दर रचना 

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सुदूर कहीं ज्योति की नगरी


पलकों में सुख  स्वपन क़ैद हैं 

हृदय कमल भी सुप्त हैं अभी, 

सुदूर कहीं ज्योति की नगरी 

गहन तिमिर में पड़े हैं सभी !

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एक गम्भीर प्रश्न का उत्तर तलाशती

हमारी जिज्ञासा जी

सागर का दीवान कौन है ?


ये जीवन सागर सम गहरा

घाट-घाट पर उनका पहरा

सागर का दीवान कौन है

देखी का परछाई ?


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जीवन जब तक है शिकवे गिले तो होते रहेंगे

कभी खुद से तो कभी खुदा से 



ना जाने किसको देखकर फितरत बदल गई
पल में बदल गया समां, जो रुत बदल गई । 

हम तो वही हैं, तेरी मुहब्बत बदल गई ।


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 यादों की जड़ें कितनी गहरी पैठी होती हैतभी तो उन पलों को कविवर ने पीपल सदृश कहा है पीपल सा पल


यूं भटका सा, इक पथिक मैं,
आकुल, हद से अधिक मैं,
जा ठहरूं, वहीं हर पल,
घनी सी छांव उसकी, करे घायल!

वो दो पल, जैसे घना सा पीपल....

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पतझड़ की कहानी सुनिए शांतनु जी की रचना में 

पतझर की कहानी - -


स्मृति आलोक दीर्घायु नहीं होते, बहुत जल्द
लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी,
सूखे पलों को कोई नहीं चाहता है
सहेजना, टहनियों में कोंपलें
उभरते हैं रिक्त स्थानों
को भरते हुए, हिम
परतों के नीचे
सदैव रहता
है जमा
-------------------------उपहार भी तो औकात देखकर ही दी जाती है...अति सुन्दर लघुकथा लघुकथा- उपहार

कुछ दिनों बाद... 
''शिल्पा, कल बॉस के बेटे की शादी है। हम सभी चलेंगे।'' 
''उपहार में क्या देंगे?" 
''कम से कम 5100 रुपए तो देना ही पड़ेगा!" 
''5100 रुपए ज्यादा नहीं होंगे? हमारा महीने का बजट गडबड़ा जाएगा।"  
''इससे कम देंगे तो बॉस क्या सोचेंगे? इज्जत का सवाल है। देना ही पड़ेगा!" 

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ये सच है यदि हम इन छोटे छोटे विचारो को हृदयंगम कर ले तो जीवन में बड़े बदलाव ला सकते हैं 

जिंदगी में छोटे छोटे विचार, बड़े बड़े बदलाव ला सकते हैं.


घर से दरवाजा छोटा, दरवाजे से ताला छोटा, और ताले से चाबी छोटी, पर छोटी सी चाबी से पूरा घर खुल जाता है, ऐसे ही जिंदगी में छोटे छोटे विचार, बड़े बड़े बदलाव ला सकते हैं.
 आज के अनमोल विचार आप सबके सम्मुख प्रस्तुत करने जा रहा हूं।


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अब चलते चलते एक लेखक का जीवन दर्शन 

‘जश्न-ए-रेख्ता’ में जावेद अख्तर की जिंदगी पर लिखी किताब ‘जादूनामा’



 दिल्ली में चल रहे उर्दू के सबसे बड़े मेले ‘जश्न-ए-रेख्ता’ में उर्दू अदब की शख्सियत जावेद अख्तर जब एक किताब पलटा रहे थे तब उनकी जुबान से लेखक के लिए निकला, ‘आपने तो कमाल कर दिया, ये फोटो तो मेरे खुद के पास नहीं हैं, आपने कहां से जुटा लिए। मुझ जैसे व्यक्ति पर आपने इतनी मेहनत कर दी, किसी दूसरे पर करते तो पीएचडी मिल जाती।’
-------------------------------बेहद व्यस्त दिनचर्या होने से समय अभाव के कारण आज की प्रस्तुति में रचनाओं के विश्लेषण में थोड़ी कंजूसी कर रही हूं जिसका मुझे खेद है सारी रचनाएं बेहद प्यारी है।आज़ बस इतना हीमिलती हूं फिर रविवार को तब तक के लिए आज्ञा देआपका दिन मंगलमय होकामिनी सिन्हा 

9 टिप्‍पणियां:

  1. संक्षिप्त टिप्पणियों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति्।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात! अति श्रम से सजायी चर्चा, बहुत बहुत आभार कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीया कामिनी सिन्हा जी
    एवं समस्त चर्चामंच को सुन्दर संकलन एवं संक्षिप्त ही सही , सराहनीय विश्लेषण के लिए अभिनन्दन , साधुवाद !
    जय श्री कृष्ण !

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीया कामिनी जी बहुत सुंदर आज के चर्चा मंच की पोस्ट हमारी पोस्ट को शामिल करने के लिए तहे दिल से धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia

    जवाब देंहटाएं

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