सादर अभिवादन। रविवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
आदरणीय रविंद्र जी सर शायद कहीं व्यस्त हैं चलिए हम पढ़ते हैं कुछ रचनाएँ-
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गीतिका छन्द "मधुमास सबको भा रहा"
खिल उठे हैं बाग-वन मधुमास सबको भा रहा।
होलिका के बाद में नव वर्ष चलकर आ रहा।।
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वृक्ष सब छोटे-बड़े नव पल्लवों को पा गये।
आम, जामुन-नीम भी मदमस्त हो बौरा गये।।
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अग्निशिखा : : अंध द र्शकों के मध्य - -
पैतृक सीढ़ी के बग़ैर, छत पे चढ़ना आसान नहीं होता,
हर शख़्स के माथे पे, कुलीनता का निशान नहीं होता,
हर शख़्स के माथे पे, कुलीनता का निशान नहीं होता,
उस आदमी को चलना है ख़ुद के दम पे बहुत दूर तक,
हर किसी के नंगे पांव तले मख़मली ढलान नहीं होता,
हर किसी के नंगे पांव तले मख़मली ढलान नहीं होता,
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बह चला, वक्त का ढ़लान...
वो इक नदी,
बहा ले चली, कितनी ही, सदी,
बह चले, वो किनारे,
संवारता किसे!
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मुस्कान ऐसी की मन में कटुता ना रहे
और आँसू ऐसे की आँखों से निश्छलता बहे
सुख इतना कि मन में बस भक्ति जगे
और दुःख इतना कि जीवन श्राप ना लगे।
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हम साथ साथ रहे
मैंने तुम्हें जाना
तुम्हारी फितरत को पहचाना
पर तुम ना समझे मुझे||
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कुछ मुश्किल है,
आँख खुलती नहीं,
ख़्वाब मिलते नहीं I
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कासे कहूँ?: बैंक में एक दिन अनायास
कल एक प्रायवेट बैंक में जाना पड़ा। पड़ा इसलिये क्योंकि मैं ज्यादातर बैंक जाना बिल भरना सब्जी खरीदने जैसे काम करना पसंद नहीं करती लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मुझे ये काम नहीं आते। आते भी हैं और जरूरत होने पर करती भी हूँ। अब चूँकि पतिदेव का प्रमोशन हो गया है और उनका वर्किंग डे में इंदौर आना कम ही होता है इसलिये काफी समय से पेंडिंग यह काम मैंने ही करने का सोचा।
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बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
अत्यंत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार
सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंपठनीय और सार्थक सूत्रों का संकलन।
जवाब देंहटाएंNice links thanks for my link including here
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