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गुरुवार, मार्च 23, 2023

'जिसने दी शिक्षा अधूरी तुम्हें' (चर्चा अंक 4649)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

चित्र: साभार गूगल 

 23 मार्च भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की महत्वपूर्ण तारीख़ है। 
आज ही के दिन 1931 में  ब्रिटिश सरकार ने हमारे महान क्रांतिकारी योद्धाओं भगत सिंह, शिवराम राजगुरु, सुखदेव थापर को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी थी जिसकी देशभर में तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी।  

आज देश अपने महान सपूतों को शिद्दत से याद कर रहा है। 

कोटि-कोटि नमन।    

गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-

आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री जी की सामयिक दोहावली में विश्व कल्याण का संदेश-

दोहे "सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अभ्यागत को देखकरहोना नहीं उदास।

करो प्रेम से आरतीरक्खो व्रत-उपवास।।

जीवन की परिस्थितियों-विसंगतियों पर प्रकाश डालती आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना-

गाड़ी के दो पहिये

जिसने दी  शिक्षा  अधूरी तुम्हें

उसने  यह तो बताया होगा

गाड़ी के दो पहिये होते हैं

दोनों को साथ ही रहना है स्वेछा से।

*****

मेहनतकश लोगों की दशा पर मर्मस्पर्शी रचना आदरणीया अनीता जी की-

वही ख़ुदा उनमें भी बसता है उतना ही

चंद निवालों के लिए दिन-रात खटते हैं

कभी देखा भी है पसीना बहाते  उनको

अपने हाथों से नई इमारतें गढ़ते

जा बसें उनमें ख़्वाब भी नहीं आये जिनको

*****

कोमल एहसासात का सफ़र आदरणीया शैल सिंह जी की रचना में बड़ी ख़ूबसूरती के साथ उभरा है- 

ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है

तोड़कर सरहदें जिद्द की एकबार

बता जाओ आकर हो ख़फ़ा क्यूँ बेज़ार

ख़यालों में हुई तेरे बावरी मशहूर हो गई मैं

राह देखते अपलक थककर चूर-चूर हो गई मैं ।

*****

आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना में एकाकी यात्री का मर्म जीवन-दर्शन के नए आयाम प्रस्तुत करता है-

एकाकी यात्री--

*****
पढ़िए आदरणीया कृष्णा वर्मा जी द्वारा रचित ताँका रचनाएँ-

1116- ताँका

चढ़ीं मुँडेर

पीत पुष्प लताएँ

अमवा बौरे

कुहके कोयलिया

मनवा तड़पाए।

*****

आदरणीय विश्वमोहन जी प्रस्तुत कर रहे हैं एक सारगर्भित पुस्तक समीक्षा-

देश मेरा रंगरेज

अतीत की स्मृतियों के आलोक में वर्तमान की विसंगतियों पर अचूक निशाना साधने में प्रीति अत्यंत खरी उतरी हैं। उनकी लेखनी की प्रांजलताविचारों का  प्रवाहचिरयौवना भाषा का अल्हड़पनशब्दों का टटकापनभावों की मिठासहास्य का सुघड़पनव्यंग्य की धार और दृष्टि की तीव्रता किताब की छपाई के फीकेपन को पूरी तरह तोप  देती है और पाठक शुरू से अंत तक प्रीति के बंधन से बँधा रह जाता है।

*****

पढ़िए विश्व जल-दिवस पर आदरणीया रेखा श्रीवास्तव जी का गहन चिंतन-

विश्व जल दिवस!

घरों में नलों के ठीक न होने पर उनसे टपकता हुआ पानी सिर्फ और सिर्फ पानी की बर्बादी को दिखाता है जिसके लिए हम जिम्मेदार हैं। इस तरह से बहते हुए।*****
फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


7 टिप्‍पणियां:

  1. रंग रंग के रंग भरे अंक की शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई, रवीन्द्रजी.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका बहुत-बहुत आभार @रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. वीर शहीदों को नमन। बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात! जल दिवस, पुस्तक समीक्षा और भी अनेक विविध विषयों पर आधारित विविधरंगी चर्चा! आभार मुझे भी आज के अंक में शामिल करने हेतु रवींद्र जी!

    जवाब देंहटाएं
  5. धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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