मित्रों!
मार्च के अन्तिम रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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देखिए कुछ ब्लॉग पोस्टों के अद्यतन लिंक।
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कुछ लोग उसे
पहाड़ कहते थे, कुछ पत्थरों का ढ़ेर
सभी का अपना-अपना मंतव्य
अपने ही विचारों से गढ़ा सेतु था
आघात नहीं पहुँचता शब्दों से उसे
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कर्ता भाव से मुक्त हुआ जो जब हम घटनाओं के साक्षी बन जाते हैं, तो मुक्ति का अहसास सहज ही होता है। हम सभी ने यह अनुभव किया है। कई बार हम क्रोध करना नहीं चाहते थे लेकिन किसी बात से क्रोधित हो गए और खुद पर आश्चर्य हुआ।यह क्रोध हमारे भीतर संस्कार रूप से मौजूद था और जब तक वह संस्कार बना रहेगा, हमारे न चाहने पर भी क्रोध आएगा। सुबह से रात्रि तक इस सृष्टि में सब कुछ हो रहा है।कोई उन्हें कर नहीं रहा है। कोई चित्रकार किसी दिन एक चित्र बना लेता है और कवि किसी दिन बहुत अच्छी कविता लिखता है। उनसे कोई पूछे, तो वे आश्चर्य करते हैं कि यह कैसे हुआ! उनके मन की गहराई में वे सब मौजूद है, जो उचित समय आने पर व्यक्त हो जाता है । जीवन ने हमें कदम-कदम पर सिखाया है कि यहाँ सब कुछ हो रहा है। हम कर्ता नहीं हैं। बड़े से बड़ा अपराधी भी कहता है, उसने अपराध नहीं किया, किसी क्षण में यह उससे हो गया। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मनुष्य अब भी इसे कैसे नहीं देख पाता कि वह कई कार्य स्वभाव वश ही करता है ! मनुष्य सोचता भर है कि वह स्वयं निर्णय लेकर रहा है। कोई कह सकता है कि यदि उसने प्रयास न किया होता तो उसके जीवन में वह सब न होता जो आज है। पर जीवन में हमें जहाँ जन्म मिला, जैसे परिस्थितियाँ मिलीं, उनमें हमारा क्या हाथ था, हमारे पास उस स्थिति में वही प्रयास करने के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं था। किन्हीं कारणों हमारा जीवन एक विशेष दिशा ले ले लेता है और उस दिशा में बहने लगता है। डायरी के पन्नों से अनीता
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पानी पर कब्जे की लड़ाई या सहयोग?
जनवरी के महीने में जब भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जलसंधि पर संशोधन का सुझाव देते हुए एक नोटिस दिया था, तभी स्पष्ट हो गया था कि यह एक नए राजनीतिक टकराव का प्रस्थान-बिंदु है. सिंधु जलसंधि दुनिया के सबसे उदार जल-समझौतों में से एक है. भारत ने सिंधु नदी से संबद्ध छह नदियों के पानी का पाकिस्तान को उदारता के साथ इस्तेमाल करने का मौका दिया है. अब जब भारत ने इस संधि के तहत अपने हिस्से के पानी के इस्तेमाल का फैसला किया, तो पाकिस्तान ने आपत्ति दर्ज करा दी. जिज्ञासा
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जैसे कोई जल
विलग हो जाए
बहते दरिया से
तो सूखने लगता है
वैसे ही झुलस रहा है एक मुल्क
अपने स्रोत से बिछड़ा
मन पाए विश्राम जहाँ अनीता
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हम सब ईमानदार शरीफ़ लोग हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया मुझे कोई तीस साल पुरानी खबर याद आई आल इंडिया रेडियो पर सीधा प्रसारण हो रहा था जिस में इक बच्चे ने कविता नुमा बोल दिया था गली गली में शोर है .............. चोर है । तब अख़बार में बहुत कुछ हुआ राजनेताओं ने भाषण में जाने क्या क्या कहा सब हुआ यहां तक की पुरानी कहानी पढ़ने को मिली जो हमने नहीं सुनी थी तब तक , " राजा नंगा है " । लेकिन अब समझ आया है कि उस पर मुकदमा दायर किया जाना चाहिए था और चोरी साबित नहीं होने पर सज़ा मिलनी चाहिए थी । बच्चा होने से कोई बच नहीं सकता है और ढूंढना होगा अब तक वो लड़की या लड़का चालीस से ऊपर का हो गया होगा उस पर अभियोग चला कर न्याय की मिसाल कायम की जा सकती है । ऐसा किसी व्यक्ति की मान सम्मान की खातिर नहीं बल्कि हर किसी की इज़्ज़त समान होती है इस खातिर किया जाना ज़रूरी है । क्या आपको ये हंसी मज़ाक की बात लगती है जी नहीं विषय बेहद गंभीर है ।Expressions by Dr Lok Setia
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जिसे भले बुरे का हो ज्ञान
समझाने का तरीका
हो सरल प्रेम भरा |
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विश्व क्षय रोग दिवस : टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य और चुनौतियां
शब्द-शिखर--
अग्निशिखा--
लेखक, अनुवादक यादवेन्द्र के शब्दो में कथाकार सुभाष पंत का स्कैच
मैंने जब पंतजी से इन दोनों घटनाओं पर कहानियाँ लिखने के बारे में पूछा तो उन्होंने बड़ी सहजता और दृढ़ता से जवाब दिया कि ये मेरे जीवन का "फिक्स्ड डिपॉज़िट" है जिसको मैंने सोच रखा है काम चलाने के लिए कभी तुड़ाऊँगा नहीं ..... और हमेशा ये घटनाएँ मुझे दिये की तरह रोशनी दिखाती रहेंगी और यह बताती रहेंगी कि मुझे किनके बारे में और किनके लिए लिखना है। लिखो यहां वहां--
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कलसी,जगतग्राम, सुमनक्यारी, नैनबन्ध विकासनगर किसी कारण से 2 दिन रुकना पड़ा, कारण बाद में बताएंगे। तो आज दोपहर तक हमारे पास विकासनगर में समय था, Vikas Porwal जी ने मार्गदर्शन किया और कहा कि आप कलसी में सम्राट अशोक का शिलालेख देख लें, जो कि उत्तराखंड में एकमात्र शिलालेख पाया गया है। और दूसरी जगह जगतग्राम जहाँ अश्वमेध यज्ञ के होने के प्रमाण पाये गये हैं। कल्पतरू
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काग़ज़ पे कलम से लिखा
तो कहने लगे मेहनत है
वही काम फ़ोन पे किया
तो कहने लगे लानत है
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आज फिर उन्हें सताने का मन करता है !
कर दूं बातें उनकी अनसुनी ,
बैठ जाऊं मुंह फेरकर कहीं ,
नजर न आऊं रहकर भी वहीं ,
कुछ देर उनसे खुद को छुपाने का मन करता है ।
Abhivyakti Deep - अभिव्यक्ति दीप
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मित्र की शिक्षा मानो : पंचतंत्र || Mitra ki Shiksha Mano : Panchtantra ||

एक बार मन्थरक नाम के जुलाहे के सब उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गए उपकरणों को फिर बनाने के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी। लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी लेकर यह समुद्र तट पर स्थित वन की ओर चल दिया। समुद्र के किनारे पहुँचकर उसने एक वृक्ष देखा और सोचा कि इसकी लकड़ी से उसके सब उपकरण बन जाएँगे। यह सोचकर वृक्ष के तने में वह कुल्हाड़ी मारने को ही था कि वृक्ष की शाखा पर बैठे हुए एक देव ने उसे कहा- मैं वृक्ष पर सुख से रहता हूँ और समुद्र की शीतल हवा का आनन्द लेता हूँ। तुम्हारा इस वृक्ष को काटना उचित नहीं। दूसरे के सुख को छीनने वाला कभी सुखी नहीं होता।
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जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!
तभी तो, वो एहसास था,
सर्द सा वो हवा भी, बदहवास था,
कर सका, ना असर,
गर्म सांसों पर,
सह पे जिसकी, करता रहा अनसुनी,
वो आप थे!
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हम एक ही रास्ते पर चले, एक ही मंज़िल की ओर बढ़े, पर साथ-साथ नहीं, कोई वजह तो नहीं थी, बस एक झिझक थी, एक ज़िद थी कि हम अकेले भी चल सकते हैं.
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पुस्तक समीक्षा "चंचल अठसई" दोहा संग्रह (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अपने पिछत्तर साल के जीवन में मैंने यह देखा है कि गद्य-पद्य में रचनाधर्मी बहुत लम्बे समय से सृजन कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो दोहों की रचना में आज भी संलग्न हैं। "चंचल अठसई" मेरे विचार से कोई नया प्रयोग तो नहीं है। किन्तु इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को दोहों की विशेषताओं का संग-साथ लेकर कवि ओम् शरण आर्य ने अपने दोहा-संकलन में पिरोया है। जिसकी जितनी प्रशंसा की जाये वो कम ही होगी।
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आज के लिए बस इतना ही...!
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बहुत सुन्दर चर्चा। आपका बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक उत्कृष्ट कृतियों का संकलन
ReplyDeleteसादर
आपके श्रम , लगन और साहित्यिक निष्ठा को शत शत नमन, अभिनंदन,वंदन ।
ReplyDeleteसभी रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं। कड़ी कड़ी जोड़कर एक सुंदर सृजन के लिए हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआदरणीय मयंक सर ,
ReplyDeleteमेरी प्रविष्टि् "आज फिर उन्हें सताने का मन करता है ! " आज के अंक शामिल करने के लिये , बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
सभी अभिव्यक्तियाँ बहुत उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनायें एवं बधाइयाँ ।
सादर ।
सुप्रभात! मार्च माह के अंतिम रविवार की चर्चा अति श्रम साध्य प्रतीत हो रही है।इतने सारे विषयों पर सराहनीय रचनाओं का संकलन एक लघु पत्रिका सा लग रहा है। 'मन पाए विश्राम जहाँ' तथा 'डायरी के पन्नों से' को स्थान देने हेतु,बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
ReplyDeleteशानदार रचनाओं से सज्जित सुंदर अंक।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत से अच्छी रचनाओं को पढ़कर अच्छा लगा, बहुत अच्छा अंक है इससे हम नए विद्यार्थियों को कुछ नया सिखने का अवसर मिल रहा है।
ReplyDeleteआज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
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