सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)
हैं शीतलता-उष्णता, जीवन के आधार।
जब तक सूरज-चन्द्रमा, तब तक ही संसार।।
आईये, आज की चर्चा का शुभारम्भ करते हैं
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चन्दा में होती नहीं, सूरज जैसी धूप।
शीतलता को बाँटता, उसका प्यारा रूप।।
-३-
चन्दा चमका गगन में, पसरी धवल उजास।
कुदरत के उपहार का, करना मत परिहास।।
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सूरज की सोहबत में
लहरों के साथ दिन भर
गरजता उफनता रहा
समुद्र ..
साँझ तक थका-मांदा
जलते अंगार सा वह जब
जाने को हुआ अपने घर
तो..
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रहेगा हो के जो किसी का नाम होना था ...
न चाहते हुए भी इतना काम होना था.हवा में एक बुलबुला तमाम होना था.
जो बन गया है खुद को भूल के फ़क़त राधे,उसे तो यूँ भी एक रोज़ श्याम होना था.
वो खुद को आब ही समझ रहा था पर उसको,किसी हसीन की नज़र का जाम होना था.
बेटियाँ खपती जाती हैं दो दो घरों की फिकर में ।
तुझमें मुझमें कुछ भेद नहीं
मैं तुझ से ही तो आया है,
अब मस्त हुआ मन यह डोले
सिमटी यह सारी माया है !
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बहुत-बहुत बधाई एवं अनंत शुभकामनायें दी
आपका सफर यूँही जारी रहें,नमन आपको
छलका मधु घट - विमोचन की विज्ञप्ति
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर चर्चा . आभार मुझे शामिल मारने का …
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सूत्रों से सजा चर्चा मंच । आज की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteउत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति... मेरी रचना को भी चर्चा में शामिल करने के लिए तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार @कामिनी सिन्हा जी।
बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसाधना दीदी को बहुत बधाई।
उम्दा चर्चा।
ReplyDeleteसुप्रभात! सराहनीय रचनाओं की खबर देता चर्चा मंच! 'मन पाए विश्राम जहाँ' को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी !
ReplyDeleteअपने आस पास की खबरों से रहे अपडेट
ReplyDeleteअपने आस पास की खबरों से रहे अपडेट firstuttarpradesh.com
ReplyDeleteआप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏
ReplyDeleteअरे वाह ! हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आपका बहुत बहुत आभार आपने मेरी ब्लॉग पोस्ट को यहाँ स्थान दिया ! सप्रेम वन्दे सखी ! !
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