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रविवार, अप्रैल 23, 2023

"बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक 4658)

 मित्रों!

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में

रविवार की चर्ता में आपका स्वागत है।

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दोहे "कंकरीट का जाल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 


कंकरीट जबसे बना,  जीवन का आधार।
धरती की तब से हुई, बड़ी करारी हार।।
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पेड़ कट गये भूमि के, बंजर हुई जमीन।
प्राणवायु घटने लगी, छाया हुई विलीन।।

उच्चारण 

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(आलेख) 

आइए ,हम सब मिलकर बचाएँ 

अपनी ख़ूबसूरत पृथ्वी को 

क्या आप और हम चाहते हैं कि हमारी यह ख़ूबसूरत पृथ्वी सुरक्षित रहे ,जिस पर हम सबकी दुनिया बसती है ? तो फिर आज विश्व पृथ्वी दिवस के मौके पर ऐसे कई सवालों के  जवाब तलाशने  का दिन है । सोचने -विचारने का दिन है कि हम पृथ्वी लोक के मनुष्य हमारी इस खूबसूरत पृथ्वी को विनाश की दिशा में ढकेलना आख़िर कब  बन्द करेंगे?

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अवदत् अनीता...धर्मवीर

         हड़ताल के समय जैसे भूल गए थे वे डॉ. हैं। वैसे ही मैं भी भूल गया था मैं शराबी हूँ। हाँ! समाज ज़रूर मुझे समय-समय पर याद दिलाता रहता था कि मैं शराबी हूँ। जेष्ठ महीना, मैं गाँव के बाहर नीम के नीचे चबूतरे पर पसरा पड़ा था। डालियों से झाँकती धूप रह-रहकर मेरी देह को जला रही थी। दो गिलहरियाँ मेरे पास ही खेल रही थीं। वे उचक-उचक कर देख रही थीं मुझे। मेरा एक पैर और एक हाथ चबूतरे से नीचे लटका हुआ था।
गाँव की औरतें घूँघट से झाँक-झाँककर देख रही थीं मुझे और फिर मुँह बनाकर वहाँ से निकल जातीं। 

अवदत् अनीता 

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वृद्धा योग शिक्षिका 

कुछ देर पूर्व वे रात्रि भ्रमण से लौटे हैं, हवा ठंडी थी, शाम भर वर्षा होती रही थी। जाने कहाँ से बादल इतना जल लेकर आते हैं और अचानक किसी स्थान पर धरा को भिगो कर चले जाते हैं। प्रकृति की लीला को कौन समझ सका है। भगवद गीता में कृष्ण कहते हैं, वही पंच भूतों के स्रोत हैं।

एक जीवन एक कहानी  अनीता

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दलदल 

पत्रकार : "विधा के दिशा निर्देशों के अनुसार से कमजोर लिखी गयी रचना को आपने प्रकाशित क्यों किया?"

उत्तरदायी : "ताकि वैसी रचना नहीं लिखी जा सके•••!" 

"सोच का सृजन" विभारानी श्रीवास्तव

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प्रेम ❤️ 

मैं कुछ समय से पौधों में टाइम इनवेस्ट कर रही हूं. पौधों के पास रहती हूं, तो समय का पता नहीं चलता. दिन रात उनके लिए सोचती हूं कि उन्हें ऐसा क्या दूं कि वे लहलहा उठें, जिन्हें धूप चाहिए, उन्हें धूप में रखना जिन्हें छांव चाहिए उन्हें धूप से बचाना. छोटी सी बालकनी में उनकी जगह बदलती रहती हूं कि कहीं ये एक जगह से बोर न हो जाएं.. 

कुछ ख़याल मेरे.. पारुल चन्द्रा

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अपरिमेय प्रणय 

कोई प्रतीक्षा नहीं करता, फिर भी
अपनी धुरी पर लौटना होता है,
कुछ आशाएं जुड़ी रहती हैं
भूमिगत जड़ों की तरह,
वृक्ष को हर मौसम
के लिए तैयार
रहना होता
है 
अग्निशिखा 

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दोनों में अंतर क्यूँ 

 मन में उसके क्या है

वह खुद ही नहीं जानती

प्यार किसे कहते हैं

 अनुभव किया ही नहीं | 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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दोहे नीति के 

करो प्यार निज देश से, इससे बढ़ता मान। 
यही हमारा गर्व हो, यही हमारी आन।। 
जल को जीवन जानिये, और मानिए प्राण। 
जल बिना इस सृष्टि में, रहे न कोई त्राण।

मन की वीणा - कुसुम कोठारी। 

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मुमताज़ नाम से ही हिट हो जाती थी फिल्में ...... संजय भास्कर     बॉलीवुड ऐसी दुनिया है जहाँ जब इंसान का सिक्का चलता है तो तमाम बुलंदियां उसके आगे छोटी दिखाई देती है आज हम आपको ऐसी ही एक अभिनेत्री के बारे में शब्दों की मुस्कुराहट :) 

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21.04.2023 को .. बस यूँ ही ... 

प्रायः आपकी-हमारी पहचान आपके-हमारे पद से की जाती है, आपकी-हमारी प्रसिद्धि से की जाती है, ना कि आपकी रचनाओं के स्तर और उसकी गंभीरता से। और तो और स्वजाति विशेष या अपने क्षेत्र के होने पर भी विशेष कृपा दृष्टि रखी जाती है। वैसे तो पाया ये भी जाता है, कि सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र है .. किसी का लल्लो-चप्पो कर के अपना काम निकालना, किसी एक के लल्लो-चप्पो से सामने वाले को बस ख़ुश हो जाना चाहिए।

बंजारा बस्ती के बाशिंदे 

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बालगीत "मन को बहुत लुभाते आम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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एक साल में आते आम।

सबके मन को भाते आम।।

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वादा करो मुझसे 

तुम्हारी आँखों के आगे अँधेरा है, 
विचारों को पाला मार गया है, 
कल्पना कुहासे के गह्वर में दुबकी है, 
दिल पर द्वंद्व के साए घिर आये हैं, 

Sudhinama 

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जिज्ञासु बनो : पंचतंत्र ||  Zigyasu Bano : Panchtantra || 

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मुरादाबाद जनपद के मूल निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ कुंअर बेचैन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित नई दिल्ली की साहित्यकार डॉ कीर्ति काले का संस्मरणात्मक आलेख...... विद्वत्ता, विनम्रता एवं विचारशीलता का अद्भुत समन्वय थे डॉ कुंअर बेचैन .... 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी सामयिक चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी लिंकों की चर्चा और इसमें मेरी प्रविष्टी को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात ! रविवार की सुंदर चर्चा में 'एक जीवन एक कहानी' को स्थान देने हेतु आभार शास्त्री जी, एक से बढ़कर एक रचनाओं का सुंदर और श्रम साध्य संयोजन आपने इस अंक में किया है।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सार्थक रचनाओं का संकलन आज की चर्चा में ! अपनी रचना को यहाँ पाकर सुखद आश्चर्य की अनुभूति हुई शास्त्री जी ! पहले की तरह इस बार ब्लॉग पर इसकी सूचना नहीं थी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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